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राखी संस्कृत शब्द 'रक्ष' से बना है जिसका तात्पर्य रक्षा करना है। श्रावण की पूर्णिमा को मनाये जाने वाले पर्व रक्षाबन्धन का उद्देश्य भी रक्षा से सम्बंधित है। इसमें स्त्रियां चांदी जैसे चमकीले और सोने जैसे सुनहरे धागों से ओतप्रोत रंग-बिरंगे फूलों से सजी राखियां अपने भाइयों की कलाई पर बांधकर उनकी सुख-समृद्धि और मंगल की कामना करती हैं। दूसरी ओर उनसे अपने लिए हर प्रकार के सहयोग और पूर्ण सुरक्षा की कामना करती हैं। बहनों द्वारा इस दिन भाई की दोनों भौंहों के मध्य तिलक करने का तात्पर्य उसके आन्तरिक प्रकाश को जागृत कर उसे जीवन के कल्याणकारी लक्ष्य की ओर अग्रसर करना है। माथे पर तिलक के साथ भाइयों को विविध प्रकार के सुस्वादु मिष्टान्न भी बड़े चाव, श्रद्धा और प्रेम से खिलाये जाते है जिससे उनका व्यवहार न केवल बहनों के लिए अपितु समस्त नारी जाति के लिए मृदुल और विनम्र बना रहे।
भारतीय संस्कृति मेंे श्रावण मास का विशेष महत्व है। हमारे शास्त्रों में श्रावण मास की पूर्णिमा विविध रूपों में मान्य है। राखी के धागे मात्र सूत्र के होने पर भी जीवन को पावन और नैतिकतापूर्ण बनाते हैं साथ ही हमारे समस्त जीवन में सूत्र रूप में नैतिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों की स्थापना में सहयोगी बनते हैं। ये कच्चे धागे स्वयं में मजबूत न होते हुए भी जिसकी कलाई पर बांधे जाते हैं उससे न केवल अटूट संबंध बनाते हैं वरन् नि:स्वार्थ प्रेम, शुचिता और आध्यात्मिक बन्धन में बांधकर सदैव-सदैव के लिए वसुधैव कुटम्बम् के बन्धन में बांध देते हैं जहां वर्गभेद, जातिभेद और विभिन्न विचारों का कोई महत्व नहीं रहता।
पौराणिक दृष्टि से भी रक्षाबन्धन पवित्र एवं महत्वपूर्ण पर्व रहा है। भविष्य पुराण के अनुसार जब इन्द्र और दैत्यराज बली के मध्य भयंकर युद्ध हुआ तब इन्द्र के पराभव पर उनके अपमान से विचलित हो उनकी पत्नी शची ने भगवान विष्णु से परामर्श किया। इस पर भगवान विष्णु ने शची को धागे के रूप में राखी देकर इन्द्र की कलाई पर बांधने को कहा। शची ने ऐसा ही किया। परिणामस्वरूप इन्द्र ने उसके प्रभाव से महान शक्ति प्राप्त कर अमरावती (इन्द्र की राजधानी) पर विजय प्राप्त की। अत: सुरक्षा की दृष्टि से युद्ध में जाते समय योद्धाओं की कलाई पर राखी बांधने का प्रचलन आरम्भ हुआ।
भागवतपुराण और विष्णु पुराण में रक्षाबन्धन के महत्व को बताया गया है। उनके अनुसार विष्णु की पत्नी लक्ष्मी ने भी राजा बली को भाई की मान्यता देते हुए उसके हाथ में राखी बांधी और उससे भेंट स्वरूप महल से मुक्ति की आकांक्षा की। बली ने लक्ष्मी की राखी के महत्व को आधार देते हुए तुरन्त स्वीकृति दी जिससे वह अपने पति सहित बैकुण्ठ धाम को प्रस्थान कर गयी। देवी संतोषी मां के उद्गम का कारण भी पुराणों के अनुसार रक्षाबंधन बताया जाता है। कथा के अनुसार भगवान गणेश के शुभ और लाभ केवल दो पुत्र थे। रक्षाबंधन पर्व पर गणेश जी की बहन ने उनकी कलाई पर राखी बांधी। उस समय दोनों पुत्रों की कलाई पर कोई राखी बांधने वाली बहन न होने पर वे दु:खी हुए। उन्होंने बहन प्राप्ति के लिए गणेश जी से प्रार्थना की परन्तु सब निरर्थक रहने पर नारद जी ने आकर गणेश जी को सुख-समृद्धि प्रदाता लड़की के जन्म के लिए प्रेरित किया। भगवान गणेश सहमत हुए और उनकी पत्नी रिद्धि-सिद्धि की देवी अग्निशिखा से एक कन्या का उद्भव हुआ। तदुपरान्त शुभ-लाभ नामक दोनों पुत्रों को संतोषी मां के रूप में बहन की प्राप्ति हुई और उनका निराशापूर्ण जीवन उल्लासपूर्ण बन गया।
भगवान श्री कृष्ण का द्रौपदी को बहन के रूप में मानने का कारण भी रक्षाबंधन रहा है। शिशुपाल वध के समय भगवान श्रीकृष्ण की कटी उंगली पर द्रोपदी ने साड़ी का टुकड़ा बांध दिया। उनके इस कार्य से कृष्ण अभिभूत हुए और बहन मानकर समय आने पर उनका कर्ज चुकाने का वादा किया जिसे उन्होंने चीर हरण के समय द्रौपदी की रक्षा कर पूरा किया। यम और यमुना से सम्बंधित कहानी भी कुछ इसी प्रकार की है। मृत्यु के देवता यमराज का बारह वर्ष तक अपनी बहन यमुना से मिलना न हो सका। तब यमुना दु:खी हुई और उन्होंने गंगा से इसकी चर्चा की। उसके बाद गंगा ने यम के पास जाकर यमुना के बारे में याद दिलाई। यमराज गंगा की बात से बहुत प्रसन्न हुए और तुरन्त यमुना से मिलने को तत्पर हुए। यमुना ने भी भाई से मिलकर उनकी कलाई पर राखी बांधी और उनसे निरन्तर मिलने तथा सुख-समृद्धि की कामना की।
सन् 1535 में चित्तौड़ के राजा की विधवा कर्णावती ने जब गुजरात के सुल्तान बहादुरशाह के आक्रमण से स्ययं को असुरक्षित अनुभव किया, उस समय अपनी सुरक्षा के लिए सहायता की अपेक्षा शासक हुमायूं को राखी भेजकर इस सम्बंध में प्रार्थना की। हुमायूं ने तुरन्त राखी को महत्व देते हुए अपनी फौज के साथ चित्तौड़ को बचाने के लिए कूच किया। परन्तु हुमायूं के समय पर न पहुंच पाने के कारण बहादुरशाह चित्तौड़ के महलों तक पहुंच गया। जिसे देखकर चित्तौड़ की सभी रानियों ने जौहर कर लिया। हुमायूं इससे दु:खी हुआ फिर भी वहां पहुंचकर बहादुर शाह पर आक्रमण कर उसे चित्तौड़ से बाहर खदेड़ दिया और वहां का शासन कर्णावर्ती के पुत्र विक्रमजीत सिंह को सौंप दिया। सन् 1905 में ब्रिटिश शासकों ने धर्म के आधार पर बंगाल को दो भागों में विभाजित किया। तब रवीन्द्रनाथ टैगोर ने मुसलमानों और हिन्दुओं को आपसी सौहार्द और संगठन बनाए रख्रने के लिए रक्षाबन्धन पर्व मनाया जिसके परिणामस्वरूप सन् 1911 में ब्रिटिश शासकों ने बंगाल का विभाजन समाप्त कर पुन: एकीकरण कर दिया परन्तु दुर्भाग्यवश कुछ असामाजिक तत्वों के कारण एकीकरण संभव न हो सका।
रक्षाबन्धन पर्व विभिन्न प्रदेशों में भिन्न-भिन्न प्रकार से मनाया जाता है। उत्तराखण्ड के कुमायंु में रक्षाबन्धन 'जन्योपुन्य' नाम से मनाया जाता है। उस दिन मनुष्य शरीर पर धारित जनेऊ (यज्ञोपवीत) को बदलते हैं और चम्पावत जिले के देवीधुरा नगर में बगवाल का मेला लगता है। पश्चिम बंगाल और ओडिशा में इस पर्व को झूलन पूर्णिमा के रूप में मनाते हैं। इस अवसर पर राधा और कृष्ण की आराधना को जाती है। बहनें भाइयों के राखी बांध उनकी अमरता की प्रार्थना करती हैं। राजनीतिक दल, अधिकारी गण, मित्र मण्डल, विद्यालय, महाविद्यालय, गली मोहल्ला आदि सभी स्थानों के लोग धूमधाम से इस पर्व को मनाते हुए अच्छे संबंधों तथा नई आशा के साथ कल्याण की कामना करते हैं। इसी दिन मानसून की समाप्ति पर शान्ति प्रदान करने के लिए समुद्र तटों पर नारियल की भेंट चढ़ाई जाती है तथा मछली पकड़ने का व्यवसाय आरम्भ किया जाता है। ओडिशा में श्रावण पूर्णिमा को गाय-बैलों को सजाया जाता है। उनकी पूजा की जाती है और विभिन्न प्रकार के व्यंजन तैयार करके एक-दूसरे को बांटे जाते हैं। ओडिशा में जगन्नाथ संस्कृति एकादशी से पूर्णिमा (श्रावण) तक राधा कृष्ण की झूलन यात्रा का समारोह मनाया जाता है। इस प्रकार राखी का यह पर्व किसी वर्ग विशेष का न होकर विश्वबन्धुत्व का संदेश देता है।
डॉ. गिरीश दत्त शर्मा
प्यार कीकोई कीमत नहीं
भैया, रक्षाबंधन के अवसर पर नहीं चाहिए मुझको धन, नहीं चाहिए झुमकी, पायल और न ही कोई कंगन… पिछली बार का वह खाली चेक अब तक यूं ही कोरा है, जिसको देता देख भाभी ने तुमको जब घुरा था। मां के कुछ गहने और कपड़े वह भी तुम भाभी को दे देना, पर मुझको कभी भी अपने दिल से दूर न करना। राखी, तीज त्योहार पर भैया, उपहार तुम मुझको मत देना, बस ससुराल के चौखट पार भी मुझसे दूर कभी भी तुम मत होना। इस राखी के अवसर पर देना सिर्फ आशीर्वाद मुझे। रेशम के धागे से भी मजबूत रहे ये रिश्ता, भाई-बहन के प्यार की कोई कीमत तुम मुझको मत देना, भैया सदा इस बहना को तुम अपना आशीष ही देना।
—अनीता गौतम की फेसबुक वॉल से
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