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गया में 9 अगस्त 2015 को हुई प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सभा ने अब तक के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। गया शहर में गांधी मैदान ही नहीं बल्कि एयरफोर्स तक लोगों की भीड़ अपरमपार थी। उन्होंने कई मुद्दे उठाये जो बिहार के लिए बड़े ही प्रासांगिक हैं। जनता ने एक स्वर से कहा कि बिहार में शिक्षा व्यवस्था नहीं है, बिजली नहीं है और ना ही कोई प्रशासन है। बिहार के आंकड़े भी कुछ यही बयां करते हैं। हाल ही में सत्तारूढ़ जनता दल (यूनाईटेड) और विपक्षी भारतीय जनता पार्टी ने अपने-अपने रिपोर्ट कार्ड जारी किए हैं। सत्तारूढ़ जनता दल (यूनाईटेड) के अघोषित सुप्रीमो नीतीश कुमार ने अपने दस वर्ष के शासन का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया तो भारतीय जनता पार्टी (बिहार) ने अपना अलग रिपोर्ट कार्ड जारी किया। बिहार सरकार द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट कार्ड में आंकड़ों की कारीगरी दिखती है। अधिकांश आंकड़े 2005 से 2013 तक के बीच के हैं। इस समय जदयू के साथ भारतीय जनता पार्टी बिहार सरकार में शामिल थी। 2013 में दोनों का अलगाव हुआ। 2013 के बाद के आंकड़े नीतीश द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट कार्ड में कम देखने को मिले।
बिहार आतंकवादियों का ऐशगाह पिछले 25 वषार्ें से लगातार बनता चला गया। बीच में कुछ प्रयास हुए थेे लेकिन विगत दो वषार्ें से एक के बाद एक आतंकी घटनाओं ने बिहार सरकार की नींद उड़ा दी है। 7 जुलाई, 2013 को बोधगया स्थित विश्वविख्यात महाबोधि मंदिर में लगातार 10 बम धमाकों ने बिहार सरकार की सुरक्षा व्यवस्था की पोल खोल दी। मुख्यमंत्री रहते हुए नीतीश कुमार ने वहां जाना अपना कर्त्तव्य तक नहीं समझा। बिहार आतंकियों के निशाने पर रहता है। ऐसी स्थिति में बोधगया की सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद होनी चाहिए लेकिन इस पर ध्यान न देकर नीतीश कुमार ने महाबोधि मंदिर न्यास के बहाने अपनी राजनीति चमकाने का प्रयास किया। मंदिर में वषार्ें पुरानी परंपरा के तहत न्यास में चार सनातनी हिन्दू और चार बौद्ध सदस्य होते हैं। गया का हिन्दू जिलाधिकारी भी उस न्यास का सदस्य होता है। लेकिन नीतीश कुमार ने गैर हिन्दू जिलाधिकारी को भी वहां का सदस्य बनने की अनुमति दे दी।
इस घटना के साढ़े तीन महीने बाद ही आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिद्दीन ने 27 अक्तूबर, 2013 को पटना के गांधी मैदान में हुंकार रैली के दौरान लगातार बम धमाके कर यह साबित कर दिया कि बिहार आतंकियों की पनाहगाह जैसा बन गया है। तुलनात्मक रूप से देखा जाय तो जदयू की अधिकार रैली में जो सुरक्षा व्यवस्था की गई थी उसका एक प्रतिशत भी भाजपा की हुंकार रैली में नहीं था जबकि हुंकार रैली को भाजपा की ओर से प्रस्तावित प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी संबोधित करने वाले थे।
आतंकित इशरफ जहां को 'बिहार की बेटी' बताने वाले नीतीश कुमार ने इंडियन मुजाहिद्दीन के सरगना और भारत के खूंखार आतंकी यासीन भटकल और उसके सहयोगी असदुल्लाह उर्फ हड्डी की गिरफ्तारी के लिए भी टालमटोल वाला रवैया अपनाया। 600 भारतीयों के कत्ल के जिम्मेदार, 10 से ज्यादा धमाकों के आरोपी, भारत के 10 मोस्ट वांडेट आतंकियों में शामिल और 33 लाख का ऐसा ईनामी आतंकी जिसे 12 राज्यों की पुलिस तलाश रही थी, को लेकर बिहार सरकार के चारों ओर फजीहत हुई। इन दोनों आतंकियों को बिहार पुलिस ने भारत- नेपाल सीमा क्षेत्र के रक्सौल से पकड़ा। परंतु उसे हिरासत में लेने से इंकार कर दिया, जब तक एनआईए की टीम रक्सौल नहीं पहुंच गई उन्हें हिरासत में नहीं लिया गया। जबकि आतंकी भटकल से पूछताछ के लिए मोतिहारी और बेतिया के एसपी सक्षम थे। भटकल को रिमांड पर नहीं लेने का कारण यह बताया गया था कि उसके खिलाफ यहां कोई मामला दर्ज नहीं था जबकि सबको पता है कि भटकल दरभंगा में कई वषार्ें तक डॉ़ इमरान के नाम से रह रहा था और गरीब बेरोजगार युवकों को पैसों का लालच देकर आतंकी बनने के लिए फांसता रहा था।
उत्तराखंड त्रासदी में भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की संवेदनहीनता उजागर हुई। बिहार के हजारों तीर्थयात्री उत्तराखंड में 16-18 जून, 2013 को आयी त्रासदी में काल के गाल में समा गए। उनकी कोई खोज-खबर नहीं मिली। बिहार सरकार के पूर्व मंत्री एवं वर्तमान सांसद श्री अश्विनी कुमार चौबे दो दिनों तक सपरिवार केदारनाथ मंदिर के गर्भगृह में फंसे रहे, उनके कई परिजन इस त्रासदी में काल कलवित हो गए। परंतु नीतीश कुमार इस मामले में लापरवाह रहे। उन्होंने निंदनीय वक्तव्य भी दिया कि उत्तराखंड बिहार में नहीं है। कई प्रदेशों के मुख्यमंत्री राहत और बचाव कायार्ें का निरीक्षण करने उत्तराखंड पहंुचे लेकिन नीतीश कुमार ने कोई व्यवस्था नहीं की और न ही आपदा के शिकार लोगों के घर तक गए।
भाजपा से 16 जून, 2013 को गठबंधन टूटने के बाद राज्य में जंगलराज की पुनरावृत्ति होने लगी। 2013 में आजादी के बाद अब तक के सभी रिकार्ड बलात्कार की घटनाओं के मामलों में टूट गए। 1128 बलात्कार के मामले 2013 में दर्ज किए गए जो कि अपने आप में एक रिकार्ड है। 2014 में भी 1127 बलात्कार के मामले दर्ज किए गए। 2015 के मई तक पूरे प्रदेश में बलात्कार की 439 घटनाएं दर्ज हो चुकी थीं। महिलाओं पर अपराध् ा इस शासन में काफी बढ़ा। 2014 में बलात्कार की घटनाओं में प्रथम स्थान कटिहार (86) का तथा दूसरा स्थान राजधानी पटना (76) का रहा। तीसरे नंबर पर पूर्णिया (54) तथा चौथे स्थान पर अररिया और किशनगंज (52-52) रहे।
राजनैतिक विरोधियों को मारने का सिलसिला बदस्तूर जारी है। अभी 6 अगस्त को पटना के वरीय पुलिस अधीक्षक के आवास से कुछ कदम दूर सक्षम के प्रांत मंत्री और दाहिने हाथ से लाचार अविनाश कुमार की सुबह 6़ 40 बजे अपराधियों ने गोली मारकर हत्या कर दी। अविनाश कुमार भाजपा के भी सक्रिय कार्यकर्ता थे। गत वर्ष 24 नवंबर को सिवान में भाजपा के कद्दावर नेता श्रीकांत भारतीय की हत्या कर दी गई। मुंगेर कचहरी परिसर में एसपी दफ्तर के पास भाजयुमो के जिला उपाध्यक्ष उत्तम शर्मा को गोलियों से भून डाला गया। 2 फरवरी, 2015 को भाजपा किसान प्रकोष्ठ के जिला उपाध्यक्ष पंकज वर्मा को अपराधियों ने गोली मार दी। कुछ महीनों के अंदर ही भाजपा के और नेताओं की हत्या हुई।
बिहार सरकार आतंकियों और अपराधियों के प्रति भले ही नरम रही हो लेकिन सरकारी नीतियों का विरोध करने वालों पर गोली चलाने में कहीं कमी नहीं करती है। 24 जून 2013 को पश्चिमी चंपारण जिले के थरूहट क्षेत्र स्थित नौरंगिया के कटहरवा में पुलिस गोलीबारी में छह थारू वनवासी मारे गए। एक दर्जन से अधिक निदार्ेष थारू घायल हुए। खाद खरीदने बाजार आए दो भाइयों में से एक को गोली मारने के बाद दूसरे की पुलिस ने जीप से कुचलकर हत्या कर दी। औरंगाबाद जिले के मदनपुर प्रखंड मुख्यालय में 19 जुलाई, 2014 को पुलिस गोलीबारी में दो लोगों की मौत हो गई। इसमें एक दस वर्षीय बच्चा रामध्यान और एक महिला (कनौदी गांव निवासी कलावती देवी) शामिल है।10 अन्य ग्रामीण घायल हुए थे। 7 जुलाई, 2014 को रोहतास जिले में दो मित्रों के बीच फेसबुक पर भेजी गई तस्वीर पर उपजे विवाद पर युवक अजय साह की रोहतास थाने में पदस्थापित दरोगा अब्दुल रज्जाक ने पुलिस गिरफ्त में जबर्दस्त पिटाई की। अजय साह को जब अस्पताल ले जाया जा रहा था तो हजारों लोगों की भीड़ पर पुलिस ने सीधी गोलियां चलाईं जिसमें औरंगबाद के युवक उपेन्द्र कुशवाहा और दिलीप पासवान मारे गए। करीब आधा दर्जन ग्रामीण घायल हुए। भ्रष्टाचार रोकने के मामले में भी बिहार सरकार विफल रही। अभी हाल में विज्ञापन एजेंसियों को जदयू का विज्ञापन प्रचारित करने का लालच दिया गया। प्रमुख होर्डिंग केवल जदयू को देने पर विज्ञापन एजेंसियों को कुछ सहुलियतें देने की बात की गई। जनवरी, 2012 में ताम-झाम के साथ सभी सरकारी मुलाजिमों को जांच के दायरे में लाने के लिए तीन सदस्यीय लोकायुक्त संस्था के गठन का निर्णय लिया गया मगर आज तक दो और सदस्यों की नियुक्ति नहीं हो पाई। बिहार में सूचनाएं दबाई जाती हैं और सूचना मांगने वालों पर फर्जी मुकदमे किए जाते हैं। सूचना मांगने वाले 454 लोगों पर फर्जी मुकदमे किए गए हैं। एक अनुमान के मुताबिक 40 आरटीआई कार्यकर्ताओं की अब तक हत्या हो चुकी है। शिक्षक नियुक्ति में भी जबर्दस्त फर्जीवाड़ा रहा। पटना उच्च न्यायालय के सख्त रवैये के कारण तीन हजार फर्जी शिक्षकों ने नौकरी से इस्तीफा दिया। इस राज्य में ब्लैक लिस्टिड दवा कंपनियों को सरकारी अस्पतालों में दवा आपूर्ति का ठेका दिया गया। भागलपुर स्थित जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज अस्पताल में ऐसी जानलेवा दवा से एक मरीज की मौत हो गई। 100 करोड़ से सूचना मांगने वाले 454 लोगों पर फर्जी मुकदमे किए गए हैं। एक अनुमान के मुताबिक 40 आरटीआई कार्यकर्ताओं की अब तक हत्या हो चुकी है। शिक्षक नियुक्ति में भी जबर्दस्त फर्जीवाड़ा रहा। पटना उच्च न्यायालय के सख्त रवैये के कारण तीन हजार फर्जी शिक्षकों ने नौकरी से इस्तीफा दिया। के इस घोटाले को दबाने की कोशिश की गई तथा पूरे मामले की जांच की लीपा-पोती की गई। नीतीश कुमार दवा घोटाले की जांच सीबीआई से करवाने के मुद्दे पर बचते रहे। जदयू के विधायक भी दबी जुबान से चर्चा करते हैं कि बिहार में 'ट्रांसफर पोस्टिंग' से बड़ा व्यवसाय कोई नहीं है। इस व्यवसाय से 250 करोड़ रुपये की काली कमाई की गई। स्वाभाविक है कि पैसा देकर स्थानांतरण कराने वाला अधिकारी कोई पुण्यकर्म करने नहीं जायेगा बल्कि रिश्वत में दी गई राशि का कई गुणा भ्रष्टाचार से कमायेगा। बिजली उपकरणों की खरीद में 27 करोड़ से ज्यादा के घोटाले का उजागर हुआ। नीतीश कुमार के शासनकाल में हर जगह शराब की दुकानें खोली गईं। नीतीश कुमार के तत्कालीन मंत्री ने ही शराब घोटाले को उजागर किया। यह घोटाला 340 करोड़ रुपये से ज्यादा का बताया गया।
जल संसाधन विभाग में 392 जूनियर इंजीनियर (सिविल) की नियुक्ति में भी घोटालेबाजी हुई। पटना उच्च न्यायालय के आदेश पर पुनर्मूल्यांकन में इस फर्जीवाड़े का भंडाफोड़ हुआ। किसानों के प्रति भी यह सरकार संवेदनशील नहीं है। 14 मई, 2015 को गया के कोडीघरवा गांव निवासी कृषक भरत शर्मा ने मंत्री श्याम रजक से अपमानित होने के बाद आत्महत्या कर ली। नौबतपुर के चिचौल गांव निवासी कृषक रमेश सिंह ने फसल की क्षति और कर्ज में डूबे रहने के कारण आत्महत्या जैसा कदम उठाया। मनेर के किसान गजेन्द्र सिंह ने भी खुदकुशी जैसा आत्मघाती कदम उठाया। राज्य में फसल बीमा राशि का भुगतान नहीं हो रहा है। फसल बीमा योजना के करीब 600 रु. किसानों को अब तक नहीं मिल पाए हैं क्योंकि राज्य सरकार ने अपना अंशदान कृषि बीमा निगम और निजी बीमा कंपनियों को जमा नहीं किया था। धान की खरीद हो या गेहूं की खरीद, सरकार सभी मामलों पर असंवेदनशील रही। बिहार कभी गन्ना उत्पादन के क्षेत्र में अग्रणी था। वहां के किसान अब गन्ना लगाने से बच रहे हैं।
ये भयावह स्थिति बिहार की है। प्राचीन भारत के स्वर्णकाल का केंद्र बिंदु बिहार था। आज वह बिहार दुर्दशा की कगार पर पहुंच गया है। भारत के कुल सकल घरेलू उत्पाद में बिहार का अंशदान मुश्किल से 3 प्रतिशत है। विकास के सभी पैमानों के आधार पर वर्ष 2012-13 में बिहार जहां 11वें स्थान पर था वह 2013-14 में फिसलकर 20वें पायदान पर पहुंच गया। आज भी यह गिरावट बदस्तूर जारी है। -पटना से संजीव कुमार
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