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'बीमारू राज्य' के कर्णधार !

by
Aug 14, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 14 Aug 2015 13:14:40

कुछ लोग झूठ पर झूठ बोले ही चले जा रहे हैं। भाजपा का विरोध करते हुए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और दूसरे लोगों के द्वारा इस बात का जोर-शोर से प्रचार किया जा रहा हैं और यह आरोप भी लगाया जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा बिहार को बीमारू राज्य कहने से बिहार के लोगों की भावनाएं आहत हुई है और यह बिहार के लोगों का अपमान है। जबकि प्रधानमंत्री ने बिहार को अबाध प्रतिभा और विशाल क्षमता से भरे हुए लोगों का राज्य कहा। उन्होंने वहां मौजूद लोगों को याद भी दिलाया कि जिस प्रदेश में प्रतिभा का इतना बड़ा भंडार है उसे विकास की दौड़ में पिछड़ जाने का कोई अधिकार ही नहीं हैं। बिहार के लोग अपनी प्रतिभा से देश की अर्थव्यवस्था को बदलने की क्षमता रखते हैं।
'बीमारू' हिन्दी का एक शब्द है जिसका मतलब बीमार से है। इसे किसी भाजपा नेता या सरकार द्वारा नहीं गढ़ा गया है। इसके लिए हमें 30 साल पहले के भारत के इतिहास को देखना होगा, जब 1984 में राजीव गांधी भारत के प्रधानमंत्री बने थे। उनके सलाहकारों ने जिन चार राज्यों को देश के समग्र आर्थिक विकास के लिए बाधा बताया था उनमें बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश को राजीव गांधी ने 'बीमारू' का नाम दिया था। आशीष बोस ने ये सर्वे कराया था, जिसकी रपट तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को सौंपी थी। वे एक जाने-माने अर्थशास्त्री हैं और उन्होंने ही इन राज्यों के लिए बीमारू शब्द गढ़ा था। जिसे राजीव गांधी ने अपनाया था और प्रचारित किया था। बोस ने इसमें केवल चार
 राज्यों को ही नहीं शामिल किया था, बल्कि, उनके अनुसार दो और राज्य भी इस श्रेणी में शामिल थे जो औसत राष्ट्रीय विकास में पीछे चल रहे थे, वे पूर्वी क्षेत्र के उड़ीसा और पश्चिम बंगाल थे। यद्यपि, पिछले कुछ वषोंर् में उड़ीसा की विकास दर में सुधार दिखाई दे रहा था, जबकि, पश्चिम बंगाल का विकास लगातार रुका हुआ था। पश्चिम बंगाल के औद्योगिक विकास को ज्योति बसु के नेतृत्व वाली वाम मोर्चा सरकार के लंबे शासन के दौरान सबसे अधिक नुकसान हुआ। उनके उत्तराधिकारी बुद्घदेव भट्टाचार्य ने बंगाल के औद्योगिक विकास के लिए गियर बदलने की कोशिश की भी, लेकिन, उनकी अपनी ही पार्टी के नेताओं द्वारा उनकी नीतियों पर हमला किया गया और पूंजीवादी नीतियों का अनुयायी कहकर मजाक उड़ाया गया। उन्होंने कहा था कि ए.के. गोपालन भवन, दिल्ली में बैठे उनके साथी कामरेडों के द्वारा उन्हें बदनाम किया गया। अंत में बुद्घदेव भट्टाचार्य ममता बनर्जी से चुनाव हार गये। प्रधानमंत्री ने बिहार के लोगों से कहा कि यदि आप भाजपा को वोट देते हैं और भाजपा बिहार में सत्ता में आती है तो बिहार की प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च शिक्षा के स्तर में सुधार होगा, तो इसमें क्या गलत क्या कहा है? 2011 की जनगणना के अनुसार बिहार 64 प्रतिशत साक्षरता के साथ साक्षरता दर में सबसे नीचे खड़ा है। जबकि राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की साक्षरता दर कहीं ऊपर है। जब नीतीश कुमार गठबंधन में भाजपा के साथ सरकार चला रहे थे उस समय सर्वाधिक बच्चे स्कूल गये थे। जब भाजपा सरकार में शामिल थी उस समय बिहार की आर्थिक स्थिति में भी सुधार हुआ था और साथ ही राज्य में सड़क, संचार, कानून व्यवस्थाएं भी बेहतर हुई थीं। यह सरकारी आंकड़े ही बयान करते हैं।
जिस दिन से नीतीश कुमार भाजपा से अलग हुए हैं और लालू प्रसाद को गले लगाया है, उस दिन से बिहार में विकास की गति रुक गई है। शिक्षा, संचार, और कानून व्यवस्था की स्थिति आज बिहार में सबसे खराब है। राजधानी पटना में दिनदहाड़े हत्याएं हो रही हैं, और सीसीटीवी फूटेज में कैद हत्यारों को भी पकड़ने में पुलिस अक्षम है। आज जंगलराज की वापसी की आशंका निराधार नहीं है, बल्कि, सरकार और उसके सहयोगियों ने उस ओर अपना मजबूत कदम बढ़ा दिया है। आप बिहार में जायें तो आपको सहज ही देखने को मिलेगा कि रात में आप अपने गांव-घर की गलियों में भी स्वछंद नहीं घूम सकते। वहां भी आप असुरक्षित हैं। यहां तक कि राज्य की राजधानी भी असुरक्षित है। अपराधी बेधड़क सड़कों पर घूम रहे हैं और सरेआम हत्याएं हो रहीं हैं, सरकार चुप्पी साधे हुए है। पटना में भाजपा के एक पदाधिकारी की दिनदहाड़े हुई हत्या इसका नवीनतम उदाहरण है।
किसी भी प्रदेश के आर्थिक विकास के लिए चार कारक महत्वपूर्ण हैं। सबसे पहले वहां की संचार व्यवस्था (सड़क, रेल, हवाई) बेहतर होनी चाहिए, बिजली की आपूर्ति बेहतर होनी चाहिए जिससे पर्याप्त बिजली औद्योगिक इकाइयों और कारखानों को मिल सके, कानून व्यवस्था और शिक्षा का बेहतर और सुदृढ़ होना भी विकास के लिए बहुत जरूरी है। तब जाकर निवेशक राज्य में निवेश के लिए आगे आयेंगे। इन सभी स्तरों में गिरावट राज्य को बीमारू नहीं तो क्या स्वस्थ बना रही है? प्रधानमंत्री ने बिहार के लोगों को यह याद दिलाया कि आज बिहार बिजली आपूर्ति में सबसे निचले पायदान पर खड़ा है।
बिजली आपूर्ति का राष्ट्रीय औसत 1000 यूनिट है, जबकि राज्य लगभग 150 यूनिट की ही आपूर्ति कर पा रहा है। प्रधानमंत्री ने इसमें क्या गलत कह दिया? एक समृद्घ और विकसित राज्य के बराबर हर व्यक्ति को बिजली आपूर्ति हो इसका क्या उपाय है? खुद नीतीश कुमार ने 2000 में बिहार-झारखंड विभाजन के लिए एक कारण के रूप में इसे भी बताया था कि बिहार में बिजली की आपूर्ति ठीक नहीं हो पाती। विभाजन के बाद अधिकतर विद्युत उत्पादन इकाइयां झारखंड के पास चली गईं। बिहार के पास कांटी-मुजफ्फरपुर और बरौनी की दो इकाइयां थीं, जिन्हें लंबे समय तक बंद कर दिया गया। अब सवाल यह उठता है कि बिजली उत्पादन और आपूर्ति के क्षेत्र में सुधार करने से राज्य सरकार ने कौन सा कदम उठाया? निजी निवेश के माध्यम से राष्ट्रीय ग्रिड से अधिक बिजली खरीदने से किसने रोका या राज्य सरकार ने इस ओर कदम क्यों नहीं बढ़ाया?
कुल मिलाकर राज्य के मतदाताओं के लिए यह बहुत कठिन समय है। राज्य की रक्षा के लिए और विकास के नये सोपान हासिल करने के लिए मतदाताओं को आत्मचिंतन करने की जरूरत है। लोग मतदान से पहले राज्य के बारे में सोचें, फिर अपना फैसला दें और परिणाम की प्रतीक्षा करें।    -आर के सिन्हा
लेखक सांसद (राज्यसभा) हैं

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