मदनलाल ढींगरा बलिदान दिवस/17 अगस्त लड़कपन में सिखाया देशभक्ति का गुरलक्ष्मीकांता चावला
July 9, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

मदनलाल ढींगरा बलिदान दिवस/17 अगस्त लड़कपन में सिखाया देशभक्ति का गुरलक्ष्मीकांता चावला

by
Aug 14, 2015, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

दिंनाक: 14 Aug 2015 13:02:21

तख्ते-लंदन तक भारतीय तेग चलाने वाले अमर बलिदानी मदनलाल ढींगरा पर एक भविष्यवाणी सन् 1857 का संग्राम समाप्त होते समय बादशाह बहादुरशाह जफर ने की थी। अंग्रेजों ने कहा था 'ए जफर अब चल चुकी तलवार हिंदुस्तान की इसलिए अब हार स्वीकार करो तब जफर ने कहा था-बागियों में बू रहेगी जब तलक ईमान की तख्ते-लंदन तक चलेगी तेग हिंदुस्तान की।' यह भविष्यवाणी आखिर सत्य हो गई। अमृतसर से लंदन जाकर सन् 1909 में मदनलाल ढींगरा ने और 1940 में ऊधम सिंह ने तख्ते-लंदन तक हिंदुस्थानी तेग चलाकर अपने प्राणों की आहुति दे दी। अफसोस भारतवासी अपने उन हुतात्माओं को भूल गए, जहां क्रांतिकारी फांसी के फंदे को चूमने से पहले यह गाता है-'देशवासियों जब-जब आजादी का जश्न मनाओगे, हमें भी याद कर लेना।'
19वीं शताब्दी में भारत के अमृतसर नगर में एक ऐसा भारत का लाल पैदा हुआ, जिसने यह प्रण लिया कि अंग्रेजों द्वारा अपमानित होने से कहीं अच्छा है अपने खून से भारत और भारतीयों के अपमान का बदला लेना। इस बेटे का नाम था  मदनलाल ढींगरा, जो एक सुशिक्षित एवं धनी परिवार में पैदा हुआ। धन-बल, जन-बल और राज-बल इनके पास खूब था, पर देश का दर्द इनके दिल में कहीं न था। ऐसे ही पिता के घर मदन पैदा हुआ और देश का दर्द उनके हृदय में कूट-कूट कर भर गया। यही कारण था कि उन्होंने शिक्षा प्राप्त करने के लिए भी पिता की कमाई का सहारा नहीं लिया और विदेश जाने के लिए साधन जुटाने के लिए कड़ी मेहनत की। सन् 1906 में इंजीनियर बनने के लिए ढींगरा लंदन पहुंचे और वहीं सौभाग्य से उनकी भेंट वीर सावरकर से हो गयी। इन दोनों के मिलन से भारत मां मुस्कुरा उठी। सावरकर गुरु और मदन शिष्य हो गए।
लंदन में रहते हुए उन्हांेने स्वाभिमानी जीवन व्यतीत किया। उनके पिता ने कर्जन वाइली को ढींगरा की देखभाल करने का दायित्व सौंपा, पर वाइली तो यह चाहता था कि जो विद्यार्थी भारत से आकर उसके संपर्क में रहे, वे उसके लिए जासूसी करें जो इंडिया हाउस में देशभक्ति का पाठ पढ़ते और पढ़ाते हैं। दिखाने के लिए सर कर्जन भारत मंत्री के रक्षक के रूप में नियुक्त थे, लेकिन वास्तव में वे भारतीय छात्रों की गतिविधियों पर नजर रखते थे। याद रखने वाली बात है कि इंडिया हाउस में वीर सावरकर भारत से शिक्षा प्राप्त करने गए युवकों को इकट्ठा करके यह समझाते थे कि अंग्रेज सरकार भारतीयों का शोषण और अपमान कर रही है और इससे छुटकारा पाने का एक ही रास्ता है          कि भारत को अंग्रेजों के बंधन से मुक्त             करवाया जाए।
ढींगरा जब पूरी तरह से राष्ट्र के रंग में रंग गए तो ऊपरी तौर पर सावरकर से दूरी बनाकर रखते थे और लॉर्ड कर्जन की नेशनल इंडिया एसोसिएशन के सदस्य बन गए, जिससे कर्जन यह समझे कि सावरकर को देश की आजादी से कोई सरोकार नहीं। कर्जन को विश्वास में लेने के लिए सावरकर की कुछ बातें भी उसे बताने लगे, लेकिन जानकारी देने से पहले वह सावरकर की सलाह अवश्य ले लेते थे। उन्हीं दिनों भारत से उन बलिदानियों के समाचार भी लंदन पहुंचने लगे जो बंग-भंग आंदोलन में प्राण देकर अंग्रेज शासकों से लोहा ले रहे थे।  खुदीराम बोस, प्रफुल्ल चाकी तथा सत्येन्द्र के कारनामे अब हर भारतीय युवक के लिए धर्मग्रंथ बन चुके थे।
ऐसे वातावरण में सन् 1908 में इंडिया हाउस के सदस्यों ने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की 51वीं वर्षगांठ मनाने का निर्णय किया। बहुत सुंदर बैज बनाए गए और बड़ी शान से इसे अपनी छाती पर लगाकर सभी लोग लंदन की सड़कों पर निकल पड़े। ढींगरा भी कॉलेज में इसी शान से गए और वहां एक अंग्रेज सहपाठी ने ढींगरा की छाती से बैज खींचकर भारत के लिए अपशब्द बोले। यह सुनते ही ढींगरा ने उस अंग्रेज को बुरी तरह पीट दिया, उसकी छाती पर चढ़ बैठे, उसे तभी छोड़ा जब उस अंग्रेज ने आगे से कभी भी भारत के विरुद्ध अपशब्द न बोलने का वचन देकर माफी मांगी। एक दिन अचानक ढींगरा सावरकर के सामने जाकर खड़े हो गए। उस समय वहां दोनों के सिवाय और कोई न था। सावरकर की आंखों में आंखें डालकर ढींगरा ने कहा-'सावरकर जी, आप मुझे बताएं कि क्या अपने प्राणों को न्योछावर करने का समय मेरे लिए आ गया है? सावरकर ने उत्तर दिया- मदन भाई, जब व्यक्ति स्वयं यह अनुभव करता है कि विशेष समय आ गया है तो समझ लेना चाहिए कि समय आ गया है। ढींगरा ने कहा- सावरकर जी मैं तैयार हूं। दोनों कुछ समय एकांत में बैठे रहे और ढींगरा के जीवन की महानतम घटना की पृष्ठभूमि तैयार हो गई।'
उसके बाद से ढींगरा एकांत में रहने लगे। उनके हृदय में यह पीड़ा थी कि भारत का कच्चा माल इंग्लैंड लाकर यहां कारखाने चलाए जाते हैं और भारत को बेकारी तथा महंगाई की चक्की में पीसा जा रहा है। उन्हें दर्द यह भी था कि भारतीयों को पुलिस और सेना की सहायता से निर्ममतापूर्वक पीटा जा रहा है, देशभक्तों को जेलों में अमानवीय यातनाएं दी जा रही हैं। एक दिन वह समय आ गया जब ढींगरा सज-धज कर नेशनल इंडियन एसोसिएशन के वार्षिक उत्सव  में पहुंचे।
उन्होंने शानदार सूट पहना हुआ था। गले में नेक टाई बांधकर आंखों पर काली ऐनक चढ़ा रखी थी। इस समारोह के लिए इम्पीरियल इंस्टीट्यूट का जहांगीर हॉल चुना गया। रात 11 बजे तक खूब खाना-पीना, नाच-गाना चला। कर्जन ढींगरा से हाथ मिलाने के लिए जैसे ही उनके पास गया, अचानक ही गोलियां चलीं और एक चीख के साथ ही कर्जन धराशायी हो गया। कोलाहल मच गया और सभी लोग भाग गए, लेकिन वे शांत खड़े रहे। 

उन्होंने पुलिस को कहा कि-'एक मिनट रुको मैं अपना चश्मा चढ़ा लूं। पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। डॉक्टर ने आकर उनकी नाड़ी पर हाथ रखा। हालत यह कि डॉक्टर कांप रहे थे और ढींगरा शांत खड़े थे। लंदन से लेकर भारत तक अंग्रेजों के तख्त पर चली इस गोली की प्रशंसा हुई। देशभक्त सिर ऊंचा करके चले, पर कुछ गद्दारों ने ढींगरा की निंदा की और वे अंग्रेजों के साथ सहानुभूति प्रकट कर रहे थे। ढींगरा का जो भाई इंग्लैंड में बसा था उसने भी अपने भाई का पक्ष नहीं लिया। उनके पिता ने भी इस कार्य की कड़ी निंदा करते हुए अंग्रेज शासकों को अपनी वफादारी का परिचय दिया। इस संबंध में लंदन में भारतीयों की एक सभा हुई। सावरकर और उनके साथी भी इस सभा में उपस्थित थे, जो विवशता के कारण चुप बैठे थे। समय वह भी आया कि जब सर्वसम्मति से ढींगरा के विरुद्ध निंदा प्रस्ताव पास करवाने का प्रयास किया गया। शेर की भांति सावरकर गरज उठे- नहीं, मुझे कुछ कहना है। सावरकर ने वकील की तरह अपना पक्ष रखा और कहा कि मामला अभी विचाराधीन है, इसलिए निंदा या स्तुति अभी नहीं होनी चाहिए। गुस्से में एक अंग्रेज ने सावरकर को मुक्का मारा और कहा-'जरा अंग्रेजी घूंसे का मजा ले लो।' तभी एक हिन्दुस्थानी नौजवान ने बड़ी जोर से डंड़ा अंग्रेज की खोपड़ी पर दे मारा और कहा- 'अब हिन्दुस्थानी डंडे का मजा भी ले लो।' सभा बिखर गई, कोई प्रस्ताव पास न  हो सका।
सभी जानते थे कि ढींगरा  को फांसी होनी ही है। उन्होंने अपने अंतिम वक्तव्य में कहा कि-'यदि हमारी मातृभूमि के विरुद्ध कोई जुल्म करता है तो वह ईश्वर का अपमान करता है। मेरी तरह एक अभागी संतान इसके सिवाय और कर भी क्या सकती है कि वह अपनी भारतमाता को अपना रक्त अर्पण करे। भारतवासी इस समय केवल इतना ही कर सकते हैं कि वह मरना सीखें और इसको सीखने का एकमात्र उपाय यह है कि वह स्वयं मरें। इसलिए मैं मरूंगा और मुझे इस बलिदान पर गर्व है।' न्याय की नौटंकी करते हुए अंग्रेज शासकों ने 17 अगस्त, 1909 को लंदन की पैटन विले जेल में ढींगरा को फांसी दे दी। उनकी अंतिम इच्छा पूरी न की गई क्योंकि वह हिन्दू रीति-रिवाज के अनुसार अंतिम संस्कार कराना चाहते थे, लेकिन उन्हें जेल में ही दफना दिया गया। एक काम अवश्य हो गया, ढींगरा चाहते थे कि उनका अंतिम वक्तव्य फांसी से पहले अखबारों में छपे। सावरकर के प्रयासों से जर्मनी, इटली, अमरीका जैसे अनेक देशों के महत्वपूर्ण अखबारों में उनका वक्तव्य छपवाने का प्रबंध हो गया। लंदन के 'डेली' नामक अखबार में भी किसी तरह वक्तव्य डाल दिया गया, जो अगले दिन छप गया और तभी दुनिया जान गई कि ढींगरा क्या चाहते थे। कोटि वंदन है उन हुतात्मा को जिन्होंने तख्त-ए-लंदन तक हिंदुस्तान की तेग चलाकर भारत मां का सिर गौरव से ऊंचा कर दिया। 

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

फैसल का खुलेआम कश्मीर में जिहाद में आगे रहने और खून बहाने की शेखी बघारना भारत के उस दावे को पुख्ता करता है कि कश्मीर में जिन्ना का देश जिहादी भेजकर आतंक मचाता आ रहा है

जिन्ना के देश में एक जिहादी ने ही उजागर किया उस देश का आतंकी चेहरा, कहा-‘हमने बहाया कश्मीर में खून!’

लोन वर्राटू से लाल दहशत खत्म : अब तक 1005 नक्सलियों ने किया आत्मसमर्पण

यत्र -तत्र- सर्वत्र राम

NIA filed chargesheet PFI Sajjad

कट्टरपंथ फैलाने वालों 3 आतंकी सहयोगियों को NIA ने किया गिरफ्तार

उत्तराखंड : BKTC ने 2025-26 के लिए 1 अरब 27 करोड़ का बजट पास

लालू प्रसाद यादव

चारा घोटाला: लालू यादव को झारखंड हाईकोर्ट से बड़ा झटका, सजा बढ़ाने की सीबीआई याचिका स्वीकार

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

फैसल का खुलेआम कश्मीर में जिहाद में आगे रहने और खून बहाने की शेखी बघारना भारत के उस दावे को पुख्ता करता है कि कश्मीर में जिन्ना का देश जिहादी भेजकर आतंक मचाता आ रहा है

जिन्ना के देश में एक जिहादी ने ही उजागर किया उस देश का आतंकी चेहरा, कहा-‘हमने बहाया कश्मीर में खून!’

लोन वर्राटू से लाल दहशत खत्म : अब तक 1005 नक्सलियों ने किया आत्मसमर्पण

यत्र -तत्र- सर्वत्र राम

NIA filed chargesheet PFI Sajjad

कट्टरपंथ फैलाने वालों 3 आतंकी सहयोगियों को NIA ने किया गिरफ्तार

उत्तराखंड : BKTC ने 2025-26 के लिए 1 अरब 27 करोड़ का बजट पास

लालू प्रसाद यादव

चारा घोटाला: लालू यादव को झारखंड हाईकोर्ट से बड़ा झटका, सजा बढ़ाने की सीबीआई याचिका स्वीकार

कन्वर्जन कराकर इस्लामिक संगठनों में पैठ बना रहा था ‘मौलाना छांगुर’

­जमालुद्दीन ऊर्फ मौलाना छांगुर जैसी ‘जिहादी’ मानसिकता राष्ट्र के लिए खतरनाक

“एक आंदोलन जो छात्र नहीं, राष्ट्र निर्माण करता है”

‘उदयपुर फाइल्स’ पर रोक से सुप्रीम कोर्ट का इंकार, हाईकोर्ट ने दिया ‘स्पेशल स्क्रीनिंग’ का आदेश

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies