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उत्तर प्रदेश में गोवध धड़ल्ले से जारी है। सपा सरकार के शासन में तो कानून की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। मेरठ में पूर्व बसपा मंत्री हाजी याकूब के बूचड़खाने पर केन्द्रीय जांच एजेंसी द्वारा की गई छापेमारी में काफी अनियमितताएं पाई गई हैं। इससे पहले मेरठ के हापुड़ रोड स्थित हाजी इजलाल का बूचड़खाना 'अल-आलिया मीट प्रोसेसर' भी इसका ज्वलंत उदाहरण रह चुका है।
इसी बीच वर्ष 2012 और 2014 में बूचड़खानों पर की गई छापेमारी की रपट भी आ चुकी है। उसके अनुसार बूचड़खानांे में बेरहमी से दुधारु पशुओं को काटा जा रहा है और उसमें गाभिन गाय भी शामिल रही थीं। यही कारण है कि देश में पशुओं के लगातार काटे जाने से जहां एक ओर नस्लें खत्म हो रही हैं, वहीं दूसरी तरफ दूध की कीमतों में भी बार-बार उछाल आ रहा है। गत 28 जून को केन्द्रीय जांच एजेंसी द्वारा की गई संयुक्त छापेमारी में बसपा नेता और पूर्व मंत्री रहे हाजी याकूब के बूचड़खाने में गाभिन और दुधारु पशु कटते पाए गए।
मेरठ के हापुड़ रोड पर नौगजा पीर स्थित 'अल फहीम मीटेक्स' नामक बूचड़खाने में यह छापेमारी की गई। छापामार दस्ते में केंद्रीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण, निर्यात निदेशालय, सूक्ष्म जैव विभाग और 'एग्रीकल्चरल एंड प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी' (एपीईडीए) के अधिकारी शामिल थे। इस दस्ते ने स्थानीय प्रशासन या पुलिस को बगैर सूचना दिए औचक कार्रवाई की वरना सूचना देने पर दस्ते के छापेमारी करने का पहले ही पता लगने की आशंका बनी रहती। हाजी याकूब मायावती सरकार में मंत्री रह चुके हैं और मोहम्मद पैगंबर का व्यंग्य चित्र बनाने वाले यूरोप के कार्टूनिस्ट का सिर कलम करने वाले को उन्हांेने ही 50 करोड़ रुपए का इनाम देने की घोषणा की थी। इनका बेटा हाजी इमरान बूचड़खाना चलाता है। इमरान की मौजूदगी में ही तलाशी अभियान चलाया गया।
छापेमारी के दौरान बूचड़खाने में जांच दल को 30 से अधिक अनियमितताएं मिली हैं। मानकों के अनुसार कटान नहीं हो रहा था। रजिस्टर के रिकॉर्ड व कटान की संख्या में भारी अंतर देखने को मिला। जितने पशु काटे जा रहे थे, रजिस्टर में उससे आधे भी दर्ज नहीं किए गए थे। इस बूचड़खाने के लिए 'आईएसओ 9001-2000' होने का दावा किया जाता है। यही नहीं 'पैकिंग' पर एक माह आगे की तिथि अंकित की जा रही थी। केवल स्वस्थ पशु काटे जाएं, इसके लिए उनकी मृत्यु पूर्व 'एंटी-मोर्टेम' का प्रावधान है, लेकिन यहां कोई भी पशु चिकित्सक मौजूद नहीं था। सबसे आपत्तिजनक यह रहा कि दुधारु और गाभिन भैंस व अन्य पशु भी यहां कटते मिले। जांच दल ने काफी हद तक ऐसे पशुओं को बचा भी लिया। बूचड़खाने के रजिस्टर सील कर दिए गए। गौरतलब है कि उ. प्र. पुलिस ने कई शिकायतें मिलने के बाद 9 दिसम्बर, 2012 को पहला छापा मारकर 700 क्विंटल मांस बरामद किया था। मथुरा-स्थित प्रयोगशाला में नमूना जांच के लिए भेजा गया था, जहां से गोमांस होने की पुष्टि हो गई। बूचड़खाने के संचालकों पर मुकदमा तो दर्ज किया गया, लेकिन जब्त किया गया गोमांस सील कर आरोपियों की सुपुर्दगी में ही छोड़ दिया गया था। इसके दो वर्ष बाद 29 नवम्बर, 2014 को अनेक शिकायतें दोबारा मिलने के बाद फिर से छापामारी की गई तो इस बार 125 टन (1250 क्विंटल ) मांस बरामद हुआ था। जांच में दोबारा से गोमांस की पुष्टि हो गई, लेकिन 2012 में संबंधित बूचड़खाने की सुपुर्दगी में दिया गया 700 क्विंटल गोमांस गायब पाया गया। पुलिस ने तब गोहत्या कानून में एक नया मामला दर्ज कर फिर से यह 125 टन गोमांस सील कर फैक्टरी को सौंप दिया। मार्च, 2015 में पुलिस को जानकारी मिली थी कि 125 टन गोमांस भी गायब हो चुका है। कुल मिलाकर लगभग 200 टन गोमांस, अंतरराष्ट्रीय बाजार में जिसका मूल्य करीब 20 करोड़ रुपए है, हाजी इजलाल ने बेच खाया। इतनी बड़ी मात्रा में गोमांस इकट्ठा करने के लिए 3000 गायें काटी गई होंगी क्योंकि एक गाय से औसतन 65 -70 किलोग्राम मांस ही मिलता है। एक बात स्पष्ट है कि स्थानीय पुलिस की मिलीभगत से ही यह मांस निर्यात किया गया या बेचा गया। मेरठ के एसपी देहात एम. एम. बेग ने मामले की जांच रपट में स्पष्ट किया है कि खरखौदा थानाध्यक्ष मुख्यत: इस अपराध के लिए जिम्मेदार हैं, उनके विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं हुई है। बूचड़खाने के मालिक हाजी इजलाल तो तीन हिन्दुओं की वीभत्स हत्या के आरोप में कई वर्षों से जेल में हैं। उच्च न्यायालय से भी उनकी जमानत अर्जी खारिज हो चुकी है। इजलाल की अनुपस्थिति में उसकी पत्नी अन्य लोगों के साथ मिलकर बूचड़खाना चला रही है, लेकिन इन जिम्मेदार लोगों में से किसी को भी वर्ष 2012 और वर्ष 2014 में दर्ज हुए मामले में अभी तक गिरफ्तार नहीं किया गया है। जिन तीन लोगों को गिरफ्तार किया भी गया, वे सामान्य लोग थे जिन्हें जमानत भी मिल चुकी है।
अजय मित्तल
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