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कम खपत से लाभ बहुत

by
Jul 4, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 04 Jul 2015 12:40:56

श में बिजली की खरीद-बेच इंडिया एनर्जी एक्सचेंज में की जाती है। यहां प्रतिदिन अगले दिन के 15-15 मिनट के समय के लिये निविदाएं डाली जाती हैं। 25 जून को बिक्री की 1,94,000 निविदाएं डाली गयीं जबकि खरीद की केवल 85,000 निविदाएं डाली गयीं। फलस्वरूप बिक्री की 1,09,000 निविदाएं बेकार गयीं। उत्पादक कम्पनियां इस बिजली को बना कर बेचने को तत्पर थीं, किन्तु मांग के अभाव में उन्हें अपने उत्पादन को रोकना पड़ा। जाहिर है कि बिजली की उपलब्धि अधिक और मांग कम है। यह स्थिति कई वर्ष से बन रही है। वर्ष 2009 में बिजली का औसत मूल्य7़ 40 रुपये था। वर्ष 2013 में 2़ 80 रुपये रहा। आज यह 2 रुपये हो गया है। इसका यह अर्थ नहीं कि बिजली की उत्पादन लागत 2 रुपये हो गई है। वर्तमान में उत्पादन लागत लगभग 4 रुपये है। परन्तु इकाई लगा लेने के बाद कम्पनी के द्वारा पूंजी का निवेश किया जा चुका होता है। इसलिये वे लागत से कम दाम में बिजली बेचने को तैयार हो जाते हैं, जैसे ठेलीवाला रात में खरीद से कम दाम में सब्जी बेचने को तैयार हो जाता है।
राज्यों के बिजली बोर्ड इस सस्ती बिजली को खरीदकर उपभोक्ता को मुहैया कराने को तैयार नहीं हैं। इनके द्वारा बिजली 4 से 6 रुपये प्रति यूनिट बेची जा रही है। औसत पांच रुपये मान लेते हैं। दो रुपये में खरीद कर पांच रुपये में बेचना इनके लिये लाभ का सौदा है। परन्तु इस लाभ को कमाने के स्थान पर ये 'लोड शेडिंग' कर रहे हैं। कारण कि बोडार्ें द्वारा जो बिजली आपूर्ति की जाती है उसमें बड़ा हिस्सा पारेषण में क्षय हो जाता है। इसमें बड़ा हिस्सा चोरी हो जाता है। कुछ राज्यों में पारेषण घाटा 40 से 50 प्रतिशत है। इसके अलावा बोर्ड द्वारा जो बिल जारी किये जाते हैं उनमें से आधे की ही वसूली हो पाती है। फलस्वरूप बिजली की आपूर्ति करना बोर्ड के लिये घाटे का सौदा हो गया है। अत: कहा जा सकता है कि बिजली की वास्तविक मांग ज्यादा है परन्तु बोडार्ें की अकर्मण्यता के कारण यह मांग बाजार में नहीं पहुंच रही है।
इस दृष्य के विपरीत मेरा अनुमान है कि बोडार्ें द्वारा 24 घंटे बिजली की आपूर्ति की जाये तो भी बिजली की मांग में विशेष वृद्धि नहीं होगी। पहला कारण है कि पंाच रुपये से अधिक दाम पर लोगों की बिजली खरीदने की इच्छा नहीं है। 'द इनर्जी रिसर्च इन्स्टीट्यूट' द्वारा किये गये अध्ययन में पाया गया कि शहरी उपभोक्ता बिजली के लिये पांच रुपये प्रति यूनिट अदा करने को तैयार हैं और किसान मात्र तीन रुपये। इससे ऊपर दाम पर ये उपभोक्ता बिजली की खपत कम करेंगे, जैसे एयर कंडीशनर के स्थान पर डेजर्ट कूलर लगायेंगे। दूसरा कारण है कि बड़े उपभोक्ताओं ने 'कैप्टिव पावर प्लांट' लगा लिये हैं। पेपर फैक्ट्री के एक मालिक ने बताया कि धान की भूसी से वे दो रुपये में स्वयं बिजली का उत्पादन कर रहे हैं। ऐसे में उद्योगों में बिजली की मांग घटती जायेगी।
तीसरे, बिजली की जो चोरी हो रही है उस बिजली की भी खपत की जा रही है। बोर्ड सुचारु रूप से चलने लगे तो यह बिजली  दो से एक नंबर में बदल जायेगी। अर्थात् चोरी कम होने से बिजली की मांग पर कोई असर नहीं पड़ेगा। चौथे, जिन क्षेत्रों की बिजली काटी जाती है वे राजनीतिक अथवा आर्थिक दृष्टि से कमजोर होते हैं। अत: यदि इन्हें 24 घंटे बिजली आपूर्ति की गई तो भी मांग में ज्यादा वृद्धि नहीं होगी क्योंकि इनके पास क्रय शक्ति नहीं है। अत: मेरा अनुमान है कि बोडार्ें के सुचारु रूप से काम करने पर बिजली की मांग में लगभग मात्र 10 प्रतिशत की वृद्धि होगी। इस मामूली वृद्धि के कारण बिजली के दाम में विशेष अन्तर नहीं पड़ेगा और अतिरिक्त की स्थिति बनी रहेगी।
केन्द्र सरकार की संस्था 'सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी'द्वारा प्रचार किया जाता है कि दूसरे देशों की तुलना में भारत में बिजली की खपत कम है और इसे बढ़ाना जरूरी है। अमरीका में प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष 13,227 यूनिट की खपत की जाती है तथा चीन में 3,298 यूनिट की। अथॉरिटी का दबाव है कि देश में बिजली का उत्पादन बढ़ाया जाये जिससे खपत बढ़ सके। यह एक विकृत सोच है। हर देश को अपने संसाधनों के अनुरूप जीवन शैली अपनानी पड़ती है। सऊदी अरब के लोग ब्राजील जितने पानी की खपत नहीं कर सकते हैं। उन्होंने कम पानी में जीना सीखा है। इसी तरह हमें कम बिजली में जीने की कला को विकसित करना चाहिये।
सरकार को चाहिये कि 'सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी' के अधिकारियों से पूछे कि उनके द्वारा बताई गई कमी के विपरीत बाजार में दाम क्यों गिर रहे हैंं? राज्यों के बिजली बोडार्ें के प्रबन्धन को ठीक करना चाहिये। वास्तव में ये जानबूझकर 'लोड शेडिंग' करते हैं। ये पहले बिजली की चोरी कराते हैं और कमी बनाते हैं फिर 'लोड शेडिंग' करते हैं। इससे जनमानस में बिजली की आपूर्ति बढ़वाने की प्रवृत्ति बनती है। इन्हें अधिक बिजली खरीदकर उसे अधिक कालाबाजारी करने के अवसर मिल जाते हैं।
बहरहाल बिजली के दाम में वर्तमान में आ रही गिरावट एक शुभ संकेत है। सरकार को 24 घंटे सातों दिन बिजली अवश्य उपलब्ध करानी चाहिये। परन्तु इसके लिये उत्पादन में वृद्धि के स्थान पर खपत में कमी का प्रयास करना चाहिये। ज्यादा से ज्यादा खपत की सोच से उद्धार होने वाला नहीं है। कम बिजली में उन्नत जीवन जीने की ओर बढ़ाना चाहिये।   

डा. भरत झुनझुनवाला

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