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भारत की पूर्वी सीमा से सटा पड़ोसी मुल्क बंगलादेश. काजी नजीरुल इस्लाम के शब्दों में कहें तो 'आमार शोनार बांग्ला'. आज वह बंगभूमि अशान्त है. वहां हिंसा और बर्बरता का ताण्डव आएदिन देखने में आ रहा है. कट्टरवादी मौलानाओं की अलग-अलग नामों से खड़ी तंजीमें 'खुदा के फरमान' पर साफगोई दिखाने वाले या इंसानियत की राह पर चलने की बात करने वाले का खंजर से गला रेत रही हैं. उन तंजीमों के जहर उगलती तकरीर करने वाले मौलानाओं पर जब सत्ता अधिष्ठान कानून के रास्ते कड़ाई करता है तो ढाका से लेकर सिल्हट तक…..चटगांव से लेकर कॉक्स बाजार तक….मकान, दुकान, प्रतिष्ठान फूंक दिए जाते हैं…..लोगों को तलवारों से हलाक कर दिया जाता है….'नारा-ओ-तकबीर' का शोर मचाते 'मजहब के रखवालों' के झुण्ड सड़कों पर उतर कर हिंसा और आगजनी का वीभत्स मंजर पैदा करते हैं. दूसरी ओर अमनपसंद और आजादी की बात करके कठमुल्लावाद को सिरे से नकारते बंगलादेश के युवा ब्लॉगर्स अपने ब्लॉग के जरिए आवाम को हरकत में आने और हर दूसरे शख्स को 'ईशनिन्दा' दोषी ठहराकर हलाक करने वालों के खिलाफ आवाज बुलंद करने का आह्वान करते हैं. खतरा होता है इसमें जान का और उनको ये मालूम भी है, लेकिन देश को पाकिस्तानी आईएसआई के हाथों की कठपुतली बने कट्टर मुल्लाओं के हाथ में न जाने देने की कसमें खाए ये युवा ब्लॉगर ढाका में रहते हुए शरिया की दीवानों को चुनौती देते हैं. एक-दो ने तो अपने ब्लॉग में अपने बेलाग अंदाज का परिचय देते हुए खुलकर लिखा था कि उनको ईमेल पर रोजाना जान से मार डालने की ढेरों धमकियां मिलती हैं, सड़क पर सरेआम गोलियों से छलनी कर देने या तलवार से काट डालने के संदेशे भेजे जाते हैं और साफ ताकीद की जाती है कि, बाज आ जाओ, ब्लॉग के जरिए 'खुदा' या 'कुरान' की शान में ऊल-जलूल मत लिखो नहीं तो…..
…..पर वे उन धमकियों से डरे नहीं….लिखते गए और लिखते ही जा रहे हैं. उसी का नतीजा था वह जन-ज्वार जो तकरीबन दो साल पहले राजधानी ढाका के उस शाहबाग चौक पर उमड़ा था, कट्टरवादियों को सजा देने की मांग और कठमुल्लावाद को नकारने का आह्वान करते हुए. अमरीका में रहकर अपने वतन बंगलादेश को चैनो-अमन की राह पर बढ़ाने का सपना लेकर पेशे से इंजीनियर अविजित राय भी उन चंद ब्लॉगर्स में थे जिन्हें आएदिन जान से मारने की धमकियां मिलती थीं. उनमें लिखा होता था, 'अभी तुम अमरीका में हो इसलिए बचे हुए हो, जिस दिन ढाका पहुंचोगे, कत्ल कर दिए जाओगे.' धमकियां देने वाले का नाम था फराबी शफीउर्रहमान…पर अविजित डरे नहीं. अपने साथी ब्लॉगर्स के साथ वेबसाइट 'मुक्तो मोनो' (मुक्त मन) में ढकोसलेबाजों की पोल खोलते रहे. उन्होंने इस्लाम के नाम पर मासूमों के कत्ल की भरपूर निंदा की….आईएसआईएस द्वारा इस्लाम के नाम पर किए जा रहे दुष्कर्मों पर सवाल खड़े किए….अंजाम वही हुआ जिसका डर था….फरवरी, 2015 में ढाका की व्यस्त सड़क पर मांस काटने वाले बड़े चाकू से अविजित की निर्मम हत्या कर दी गई. ढाका का आमजन गुस्से से उबल पड़ा….झुण्ड के झुण्ड मशाल थामे शाहबाग चौक पर इकट्ठे होकर हत्यारों को गिरफ्तार करने की मांग करने लगे. लाखों की उस भीड़ ने बंगलादेश में कठमुल्लाओं के खिलाफ उभरती शक्ति का भी परिचय दिया और जता दिया कि अब वे मजहब के नाम पर भेड़ की तरह हांके जाने को तैयार नहीं हैं.
ये वही लोग थे जिन्होंने बंगलादेश में 1971 के युद्ध अपराधियों पर सुनवाई को गठित ट्रिब्यूनल द्वारा जमाते इस्लामी के एक बहुत बड़े वाले नेता अब्दुल कादिर मुल्ला को उसके गुनाहों के लिए फांसी की सजा सुनाने पर ढाका की सड़कों पर पटाखे फोड़कर जश्न मनाया था. 'मीरपुर का कसाई' के नाम से कुख्यात मुल्ला पर आरोप था कि उसने 1971 युद्ध के दौरान पाकिस्तानी फौजों के साथ मिलक र जबरदस्त लूटमार, हत्या और बलात्कार के दौर रचे थे. 2013 में उसे फांसी दी गई. इसी तरह अक्तूबर, 2014 में जमात के ही नेता मतीउर्रहमान और अप्रैल 2015 में मोहम्मद कमरुज्जमां को भी सूली चढ़ाया गया. तीनों मौकों पर जहां एक तरफ जमातियों ने हिंसा का ताण्डव रचाया तो दूसरी तरफ अमनपसंदों ने जश्न मनाया.
उन तीनों जमातियों और उनके कठमुल्ला साथियों की बर्बरता का सबसे ज्यादा निशाना बने थे वहां उस वक्त कुल आबादी में 20 प्रतिशत हिन्दू. हिन्दुओं के घर, दुकान, मकान लूटे-जालए गए. महिलाओं का उनके अपने पिता, पति, बेटे-बेटियों के सामने बलात्कार किया गया. हिन्दुओं को तब उस पाकिस्तानी जनरल नियाजी के सैनिकों द्वारा लूटा-खसोटा गया जिसने बाद में भारत के सैन्य कमांडर के सामने अपने 93000 सैनिकों के साथ 71 की लड़ाई में हार स्वीकार करते हुए आत्म समर्पण कर दिया था.
….पर क्या उसके बाद हिन्दुओं के घाव भर गए. तब के 20 प्रतिशत हिन्दू आज घटते-घटते करीब 6 प्रतिशत रह गए हैं. अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है. बंगलादेश के सुदूर देहातों से लगभग रोज ही किसी हिन्दू लड़की का बलात्कार होने, किसी हिन्दू व्यापारी की दुकान लूटने या हिन्दू बस्ती को आग लगाने की खबरें मिलती हैं. जमात के कठमुल्लों का हिंसा का कारोबार बदस्तूर जारी है.
….आज बंगलादेश कालखण्ड के उस मोड़ पर खड़ा है जहां उसे तय करना होगा कि वह कठमुल्लाओं के हाथों की कठपुतली बनेगा या अमन चाहने वाली आवाम का दामन थामेगा….लावा भीतर ही भीतर धधक रहा है…
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