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केन्द्र सरकार की ओर से शुक्रवार को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को उस समय करारा झटका लगा जब गजट अधिसूचना जारी कर स्पष्ट कर दिया गया कि सेवा, लोक व्यवस्था, पुलिस और भूमि सम्बंधी मामले उपराज्यपाल के अधिकार क्षेत्र में रहेंगे। अधिसूचना में उपराज्यपाल को ही दिल्ली शासन का प्रमुख बताया गया। ये भी स्पष्ट कर दिया गया कि तबादले और नियुक्ति का अंतिम फैसला उपराज्यपाल ही ले सकते हैं। इसके बाद पिछले कई दिनों से अराजक बने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उप मुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया ने भाजपा पर आरोप लगाने का राग अलापना शुरू कर दिया है।
अधिसूचना के अनुसार उपराज्यपाल चाहें तो किसी विषय पर दिल्ली सरकार से विचार-विमर्श कर सकते हैं, लेकिन वे इसके लिए बाध्य नहीं हैं। इसमें गृह मंत्रालय की ओर से स्पष्ट किया गया है कि भारतीय प्रशासनिक सेवा और भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों का प्रशासन केन्द्र सरकार के हाथों में होता है। इसके तुरंत बाद अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट किया कि 'भाजपा पहले दिल्ली चुनाव हारी और नई अधिसूचना से साफ जाहिर है कि वह भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम से घबरा गई है।' मनीष सिसौदिया ने अपनी टीस मिटाते हुए कहा कि कुछ भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी गृह मंत्रालय के साथ मिलकर तबादले व नियुक्ति का अधिकार उपराज्यपाल के पास ही रहने की पैरवी कर रहे हैं।
गौरतलब है कि उपराज्यपाल ने 20 मई को दिल्ली सरकार द्वारा किए गए सभी अधिकारियों के तबादले और नियुक्ति को रद्द कर दिया था। वहीं दिल्ली सरकार ने उपराज्यपाल के इस आदेश को मानने से इंकार कर दिया था। उपराज्यपाल सचिवालय से जारी बयान में कहा गया था कि दिल्ली क्योंकि केन्द्रशासित राज्य है, ऐसे में सेवा सम्बंधी मामलों में शक्तियां राष्ट्रपति और उपराज्यपाल के पास हैं। इसी आधार पर 16 मई के बाद की गई नियुक्ति और तबादले वैध करार न देते हुए रद्द कर दिए गए। साथ ही मुख्यमंत्री द्वारा सीधे फाइलें मंत्रियों के पास भेजना भी असंवैधानिक बताया गया। इस पर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने उपराज्यपाल को पत्र लिखकर पूछा था कि वे संविधान के किस प्रावधान के तहत उन्हें आदेश दे रहे हैं? यही नहीं इसके बाद भी हठधर्मिता दिखाते हुए 21 मई को दिल्ली सरकार के चार अधिकारियों के तबादले कर दिए गए। लिहाजा आने वाले दिनों में भी उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच अधिकार क्षेत्र को लेकर लड़ाई जारी रह सकती है। प्रतिनिधि
केन्द्र की अधिसूचना से दिल्ली सरकार को झटका
संविधान में 1991 में संशोधन किया गया था। इसके मुताबिक मुख्यमंत्री का काम उपराज्यपाल को सलाह और मदद देना है। तबादले और नियुक्ति का काम उपराज्यपाल गृह मंत्रालय के जरिए करेंगे।
-एस. के. शर्मा, संविधान विशेषज्ञ
दिल्ली केन्द्रशासित प्रदेश है, इसलिए यहां के उपराज्यपाल को अन्य राज्यों के राज्यपाल के बराबर नहीं आंका जा सकता है। संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो कहता हो कि दिल्ली में उपराज्यपाल को मुख्यमंत्री की सलाह से काम करना होगा।
– सुभाष कश्यप, संविधान विशेषज्ञ
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