विशेषज्ञ की राय - पटरी पर लौटीं रक्षा तैयारियां
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विशेषज्ञ की राय – पटरी पर लौटीं रक्षा तैयारियां

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May 23, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 23 May 2015 14:11:23

किसी भी देश के रक्षा तंत्र को उस देश की सफल विदेश नीति के परिप्रेक्ष्य में आंका जा सकता है। रक्षा के विभिन्न मोर्चों पर सेना में हथियार और सैन्य मनोबल के बिना विजय प्राप्त नहीं की जा सकती। पिछले एक दशक के अंदर भारत की रक्षा तैयारियों पर जब गहराई से दृष्टि डालते हैं तो पाते हैं कि केवल सामग्री का ही अभाव नहीं था बल्कि सैन्य नेतृत्व को आंतरिक और विदेशी निहित स्वार्थों से बचाने का भी ठोस एवं प्रभावी तंत्र नहीं था। भारत में चाहे थल सेना हो, वायु अथवा नौसेना, अब तक उनकी सैन्य तैयारियां पर्याप्त नहीं थीं। सेना के तीनों ही अंग दयनीय स्थिति में थे क्योंकि हथियार, युद्ध सामग्री प्रभावी ढंग की नहीं थी। युद्ध की तैयारियों में कहीं न कहीं यह हमारी कमजोरी सिद्ध होती। सैन्य सामग्री के क्रय-विक्रय को प्रभावित करने वाले आंतरिक और बाहरी दबाव भारत के सैन्य क्षेत्र को कर्जों के बोझ तले दबा रहे थे। टाट्रा वाहनों की खरीद से स्पष्ट रूप से यह खुलासा हो गया है। एक बहुत ही सुनियोजित भ्रष्ट तंत्र इस खरीद फरोख्त में शामिल था जो प्रमाणित हो चुका है। चतुराई के साथ सेना में विद्यमान जालसाजों के संरक्षकों ने यह विश्वास दिलाया कि किसी भी प्रकार का संदेह नहीं करना चाहिए, क्योंकि ऐसे नियमित सौदे राजस्व बजट की सीमा के बाहर जाते
रहते हैं।
संयोग की बात है कि इन खुले घपलों पर से पर्दा हटाने वाले वह सेना प्रमुख वर्तमान में मोदी सरकार में मंत्री हैं जो कि टाट्रा लूट को जनता के सामने लाने के लिए प्रतिबद्ध थे। ये सब इसलिए था क्योंकि पैसा तभी बन सकता था जब विदेशी कंपनियों से सौदा किया जाता। रक्षा मंत्री के रूप में ए.के. एंटनी के कार्यकाल में सभी बदहाल पड़े हथियारों से परीक्षण और संचालन के बहाने नए रक्षा खरीदारों के माध्यम से छेड़छाड़ की गई। एंटनी के कार्यकाल में विदेशी हथियार निर्माताओं, राजनेताओं और शीर्ष सैन्य नेतृत्व के साथ हथियारों की खरीद फरोख्त में लगे समूह के परस्पर संबंध का खुलासा हुआ। सेना प्रमुख जनरल वी.के. सिंह के उम्र विवाद को इसलिए उठाया गया क्योंकि वे टाट्रा ट्रक और 155 मि.मी बंदूक सौदों की पोल खोलकर इनकी जांच की मांग कर रहे थे। इसी क्रम में एक वायुसेना के प्रमुख को अति महत्वपूर्ण हैलीकॉप्टर घोटाले में सहभागी बताया गया। इस वायुसेना प्रमुख पर कई सौदों में गड़बड़ी के आरोप लगे और इन सब में मुख्य लाभार्थी तत्कालीन रक्षा मंत्री ए.के. एंटनी के खास जानकर को बताया गया। भारतीय नौसेना में लगातार एक के बाद 13 दुर्घटनाएं हुईं। ज्यादा हो-हल्ला इन हथियारों की उम्र और मियाद पर हुआ। उस समय के नौसेना प्रमुख को त्यागपत्र के लिए विवश कर दिया गया और वरिष्ठता की अनदेखी कर नए पसंदीदा अधिकारी की नियुक्ति कर दी गई। चाहे उम्र विवाद का मामला हो अथवा मनपसंद नौसेना प्रमुख की नियुक्ति, सेना और नौसेना में ये जो कुछ हुआ इससे हथियारों का मामला जस का तस रहा। कुल मिलाकर भारत के रक्षा मामलों में निहित स्वार्थ वाले व्यक्तियों ने ही बाधा डाली है। नेतृत्व को भी बरगलाया गया। सभी प्रकार के सैन्य सौदों में गड़बडि़यां की गईं और रक्षा तैयारियों को भी विदेशी चश्मे से देखा गया।
सेना प्रमुख को नकारकर एवं अंधेरे में रखकर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के कार्यालय से जम्मू-कश्मीर में सीधे सेना कमांडर को आदेश प्रेषित किए जाते थे। सीमा रेखा पर पाकिस्तान के दुस्साहस पूर्ण कृत्यों का प्रतिरोध करने की बजाय हम आंखें बंद कर लेते थे। केंद्र में नए नेतृत्व के बाद रक्षा क्षेत्र के लिए विशेष नीतियां बनीं और किसी भी प्रकार के सौदे के लिए मध्यस्थों की बजाय तटस्थ तंत्र की स्थापना पर जोर दिया गया। यह सुनिश्चित किया गया है कि सेना की रक्षा तैयारियों में किसी भी प्रकार की कोताही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। फ्रांस से 36 राफेल युद्धक विमान खरीद के लिए सरकार से सरकार के बीच सौदे की अनिवार्य शर्त बनने के बाद खरीदार लॉबियों की नींद उड़ गई। इसी प्रकार बुरी स्थिति में पहुंच गए हथियारों को बदलने के लिए भी ठोस नीति बनाई गई। 56 एब्रो युद्धक विमानों को वायुयान सीटू 225 (जिनमें 40 भारत में बने हैं), इसी प्रकार रूस से 197 केमोव हैलीकॉप्टर (जो भारत में बनाए जाएंगे), 145-एम777 बंदूकें, मिसाइल और छह सशस्त्र नौ सैन्य युद्ध जहाज अमरीका से लिए जाएंगे। इस प्रकार सरकार ने यह पक्का निर्णय कर लिया है जो भी हथियार बदहाल एवं जीर्ण-शीर्ण स्थिति में हैं, चाहे युद्धक विमान हो या वायुसेना की परिवहन क्षमता को बढ़ाने वाले विमान।
एंटनी के कार्यकाल में सामरिक महत्व की 25 प्रतिशत सड़कें (73 में से 19) ही बनीं थीं जिन्हें पूर्वी फ्रंटियर कहा जाता है। रक्षा मंत्रालय के अनुसार इनमें से 16 सीमावर्ती सड़कों को इस वर्ष पूरा किया जाएगा और वर्ष 2018 तक सभी 73 सड़कों को बनाने का लक्ष्य रखा गया है। इस प्रकार मोदी सरकार सेना और रक्षा से जुड़े हुए प्रत्येक मुद्दे को नवोन्मेष एवं नई कल्पना से और अधिक प्रभावी बनाने के अभियान में लगी हुई है। अब तक के विभिन्न सौदों में हुए घोटालों के लिए विशेष जांच प्रक्रिया जारी है। ऊपर से नीचे तक सेना के नेतृत्व को सीधा संदेश दिया गया है। किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ और लूटपाट को और बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। साथ ही यह भी निश्चय किया गया कि रक्षा ढांचे का निर्माण आवश्यकता की प्राथमिकता देखते हुए होगा। एक रैंक एक पेंशन की घोषणा करने के साथ एक पुरानी मांग को माना गया है। ल्ल
(लेखक रॉ के पूर्व सयुक्त सचिव हैं)

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