सत्य-संधान :खुलने लगी परतें
May 10, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

सत्य-संधान :खुलने लगी परतें

by
Apr 18, 2015, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

दिंनाक: 18 Apr 2015 14:20:44

.

अंग्रेज नेताजी की जासूसी करवाया करते थे, जिसे प्रधानमंत्री बनने के बाद जवाहरलाल नेहरू ने भी अंग्रेजों की तर्ज पर ही जारी रखा। इतना ही नहीं, ब्रिटिश लेखागार से प्राप्त जानकारी के मुताबिक नेताजी के सम्बन्ध में भारत का खुफिया विभाग आईबी, ब्रिटिश खुफिया विभाग एमआई-5 को सूचनायें भी मुहैया कराता था।

शिवानन्द द्विवेदी
हाल ही में राष्ट्रीय अभिलेखागार की गुप्त सूची से आईबी की दो फाइलें सार्वजनिक किये जाने के बाद यह तथ्य सामने आया है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू दो दशकों तक नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के परिवार की जासूसी करवाते रहे थे। इन दस्तावेजों के गुप्त सूची से हटने के बाद यह खुलासा हुआ है। सन् 1948 से लेकर 1968 तक नेहरू नेताजी के परिवार पर कड़ी निगरानी के लिए जासूसी प्रणाली का निजी हितों में बेजा इस्तेमाल करते रहे थे। दरअसल भारत में राज्य पोषित जासूसी की संस्कृति अंग्रेजों के दौर में ही विकसित हो गयी थी। चूंकि तब अंग्रेज शासन कर रहे थे, लिहाजा अंग्रेजों द्वारा जासूसी का इस्तेमाल कांग्रेस नेताओं के विरुद्ध किया जाता था। तमाम कांग्रेसी नेताओं में अंग्रेज अगर सबसे ज्यादा किसी को लेकर सशंकित और डरे हुए थे, तो वे नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ही थे।
अंग्रेज नेताजी की जासूसी करवाया करते थे, जिसे प्रधानमंत्री बनने के बाद जवाहरलाल नेहरू ने भी अंग्रेजों की तर्ज पर ही जारी रखा। इतना ही नहीं ब्रिटिश लेखागार से प्राप्त जानकारी के मुताबिक नेताजी के सम्बन्ध में भारत का खुफिया विभाग आईबी, ब्रिटिश खुफिया विभाग एमआई-5 को सूचनायंे भी मुहैया कराता था। सन् 1947 में नेताजी के एक करीबी ए.सी. नाम्बियार ने स्विट्जरलैंड से नेताजी के भतीजे अमिय बोस के नाम कलकत्ता पत्र लिखा। इस पत्र की एक प्रति भारत के खुफिया विभाग ने ब्रिटिश खुफिया तंत्र एमआई-5 को मुहैया करा दी। ब्रिटिश लेखागार से मिला यह पत्र, इस बात की तस्दीक करता है कि नेताजी के परिवार की जासूसी आईबी द्वारा कराई जा रही थी। यानी वहीं से आईबी की भूमिका पर संदेह पैदा हो जाता है। आईबी के औचित्य एवं इसकी कार्य-प्रणाली पर टिप्पणी करते हुए वरिष्ठ पत्रकार रामबहादुर राय कहते हैं, 'राज्यव्यवस्था में भारत का खुफिया विभाग शुरू से ही औपनिवेशिक प्रणाली पर काम करता आ रहा है। यह पूरी तरह से ब्रिटिश खुफिया तंत्र एमआई-5 पर की तर्ज पर आधारित खुफिया एजेंसी है। यह एक ऐसी संस्था है, जिस पर संसद में चर्चा नहीं हो सकती, कोई सवाल नहीं उठाया जा सकता, इसकी जवाबदेही सुनिश्चित नहीं है। संसद के प्रति जवाबदेह होने की बजाय आईबी प्रधानमंत्री के हाथ की कठपुतली की तरह काम करने लगी। यही तरीका नेहरू के समय भी चलता था और बाद में भी इसमें कोई सुधार नहीं हुआ है। नेहरू द्वारा आईबी का इस्तेमाल करके नेताजी सुभाष के परिवार की जासूसी कराने का एक और प्रमाण 25 नवम्बर 1957 को नेहरू द्वारा तत्कालीन विदेश सचिव सुबिमल दत्त को लिखे पत्र से मिलता है। नेहरू ने विदेश सचिव को लिखे उस पत्र में नेताजी के भतीजे अमिय बोस के जापान दौरे के सम्बंध में जानकारी मांगी थी, जिसका जवाब देते हुए जापान में भारत के तत्कालीन राजदूत सी.एस. झा ने बताया कि अमिय बोस के जापान दौरे के सम्बंध में कोई भी संदिग्ध सूचना नहीं है। यानी यह पत्र अपने आप में एक प्रमाण है कि प्रधानमंत्री के रूप में नेहरू द्वारा नेताजी के परिवार पर निगरानी रखी गयी थी।
नेताजी के भाई शरत बोस की बेटी चित्रा ने नेहरू से हुई एक मुलाकात का जिक्र करते हुए मीडिया को बताया है कि कलकत्ता दौरे पर आये नेहरू उनके आवास 1, वुडवर्न पार्क पर उनके पिता से मिले थे। उस मुलाकात में नेहरू ने आंसू भरी आंखों के साथ एक आयताकार डायल वाली कलाई घड़ी देते हुए कहा था कि यह वही घड़ी है,जो सुभाष ने विमान दुर्घटना के दौरान पहनी हुई थ। इस पर उनके पिता ने साफ कहा, 'जवाहर, मुझे इस दुर्घटना वाली कहानी पर यकीन नहीं है, और सुभाष कभी ऐसी घड़ी नहीं पहनते थे। वे सिर्फ अपनी मां की दी हुई गोल डायल वाली घड़ी ही पहनते थे। अर्थात इस बयान के मायने यही हैं कि नेहरू वहां झूठ बोल रहे थे। हालांकि केवल परिवार ही नहीं बल्कि और भी तमाम लोग जो तब नेताजी से जुड़े रहे हैं, ये मानने को तैयार नहीं हैं कि 18 अगस्त 1945 को नेताजी विमान दुर्घटना में मारे गए थे। नेताजी के निजी सुरक्षाकर्मी रहे वयोवृद्घ स्वतंत्रता सेनानी जगराम ने मीडिया को बताया, 'नेताजी की मौत विमान दुर्घटना में नहीं हुई थी। हो सकता है कि उनकी हत्या कराई गयी हो! अगर उस दुर्घटना में उनकी मौत हुई होती तो कर्नल हबीबुर्रहमान कैसे जिन्दा बच जाते? आजादी के बाद कर्नल रहमान पाकिस्तान चले गए थे। मुझे ऐसी आशंका है कि नेहरू के कहने पर नेताजी को रूस में फांसी दी गयी हो।'
सवाल उठता है कि आखिर नेहरू नेताजी की जासूसी क्यों कराते थे? इस सवाल पर श्री रामबहादुर राय का जवाब था, 'नेहरू को 1937 में ही यह बात समझ में आ गयी थी कि उनके लिए असली प्रतिद्वंद्वी नेताजी ही हैं। अगर मैं गलत नहीं हूं तो नेहरू और नेताजी की उम्र में लगभग 9 साल का फर्क था। दोनों कई मुद्दों पर समान विचार के थे, लेकिन संगठन निर्माण के मामले में नेताजी के सामने कोई नहीं ठहरता था। नेहरू को हमेशा इस बात का भय था कि अगर नेताजी आ गये तो उनके लिए संकट की स्थिति होगी। हालांकि नेताजी के समर्थक भी इस रहस्य को हमेशा सनसनी बनाते रहे हैं। जबकि कुछ प्रमाणों के आधार पर कहें तो नेताजी की मृत्यु 1954 में साइबेरिया में होने की बात सामने आती है।' जासूसी पर उठे विवाद एवं नेहरू की भूमिका पर उठे सवालों के बीच एक बहस इस बात पर भी शुरू हुई है कि जासूसी की इस संस्कृति की परम्परा को बेशक शुरू नेहरू ने किया हो, लेकिन आगे भी इंदिरा गांधी सहित तमाम कांग्रेसी नेताओं ने इसे अपने निजी हितों के हथियार के तौर पर चलाया है। इतिहास के प्रमाण इस बात की तस्दीक करने के लिए पर्याप्त हैं कि आजादी के बाद की नेहरू-इंदिरा कांग्रेस 'जासूसी की संस्कृति' का पोषण करके इसे चलाती रही है। अपने वैचारिक प्रतिद्वंद्वियों को किनारे लगाने अथवा उन पर नजर रखने के लिए चाहे नेहरू हों या उनकी पुत्री पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, दोनों ने ही राजनीति के अंतर्गत हुए वैचारिक टकरावों को जासूसी के बूते लड़ने की संस्कृति बनाया है। इंदिरा गांधी बनाम मेनका गांधी मामले में भी जासूसी के इसी उपकरण का इस्तेमाल सामने आया था। पूर्व सीबीआई अधिकारी एम. के. धर ने तो बाकायदा यह स्वीकार किया है कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपने पुत्र संजय गांधी की मौत के बाद उनकी पत्नी एवं अपनी बहू मेनका गांधी की जासूसी करवाई थी। अर्थात, कुल मिलाकर देखा जाये तो आजादी के बाद की नेहरू-इंदिरा के ईद-गिर्द रही कांग्रेस ने राज्यव्यवस्था में खुफिया तंत्र को अपने निजी हितों के लिए विरोधियों के खिलाफ इस्तेमाल होने वाला उपकरण बना दिया था। चाहे, पूर्व रक्षा मंत्री ए. के. एंटनी के जासूसी का मामला हो अथवा संप्रग सरकार में मंत्री रहे प्रणब मुखर्जी के दफ्तर में जासूसी का मामला हो, ये सारा कुछ कांग्रेस की परम्परा से अर्जित जासूसी की कु-संस्कृति की परिणति रही है।
आज जब राष्ट्रीय अभिलेखागार की दो फाइलों को सार्वजनिक करने के बाद ये मामला सामने आया है और नेहरू पर सवाल उठ रहे हैं, तो इसे महज इतने पर सीमित करके देखना उचित नहीं होगा। अभी न जाने और कितने रहस्य इतिहास के कलेजे में दफन हैं, जो कांग्रेस के चरित्र को और उजागर कर सकते हैं। नेताजी की जासूसी के सम्बंध में मिले साक्ष्यों के बाद यह कहा जा सकता है कि जिन्हें हमें 'चाचा' बताया जाता रहा है, वे अब 'जासूसी के चाचा' भी साबित हुए हैं!

जासूसी से जुड़े कुछ मामले
ल्ल सन् 1947 से 1968 तक प्रधानमंत्री रहते हुए जवाहरलाल नेहरू ने नेताजी के परिजनों की जासूसी कराई, जिसका खुलासा हाल के दस्तावेजों में हुआ है।
ल्ल प्रधानमंत्री रहते हुए इंदिरा गांधी ने अपनी बहू एवं संजय गांधी की पत्नी मेनका गांधी की जासूसी कराई थी। इस बात को स्वयं तत्कालीन सीबीआई अधिकारी एम. के. धर ने स्वीकार किया है।
ल्ल सन् 1985 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी के दफ्तर में जासूसी का मामला सामने आया था।
ल्ल पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने वीपी सिंह पर जासूसी का आरोप लगाया, जब वीपी सिंह प्रधानमंत्री थे।
ल्ल वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने संप्रग सरकार पर यह आरोप लगाया था कि सरकार उनकी जासूसी करा रही है।
ल्ल सन् 2012 में तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी के दफ्तर में जासूसी का मामला सामने आया था।
ल्ल मार्च 2012 में तत्कालीन रक्षामंत्री ए. के. एंटनी के दफ्तर में जासूसी का मामला सामने आया था।

एक जासूस की जासूसी

भारत में जासूसी को सत्ता की कठपुतली भले ही बना दिया गया हो, मगर एक विदेशी जासूस ने रूस के अभिलेखागार तक पहुंचकर एक ऐसी जानकारी निकाली जो किसी भी भारतीय को हतप्रभ कर सकती है। 'मित्रोखिन आर्काइव' के नाम से प्रकाशित उस किताब में स्पष्ट किया गया है कि किस तरह इंदिरा गांधी के दौर में भारत के खिलाफ और रूस के पक्ष में लिखने के लिए तब के 1200 से ज्यादा भारतीय लेखकों-स्तंभकारों को नियमित तनख्वाह दी जाती थी। इनमें से तमाम स्तम्भकार हैं, जो नेहरू एवं इंदिरा के प्रति आज भी अपनी आस्था कायम रखे हुए हैं।

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

#पाकिस्तान : अकड़ मांगे इलाज

प्रतीकात्मक तस्वीर

भारतीय वायुसेना की महिला पायलट के पाकिस्तान में पकड़े जाने की बात झूठी, PIB फैक्ट चेक में खुलासा

भोपाल में लव जिहाद के विरोध में प्रदर्शन करतीं महिलाएं

लव जिहाद के विरुद्ध उतरीं हिंदू महिलाएं

CG Ghar Wapsi Sanatan Dharama

घर वापसी: छत्तीसगढ़ के कोंडागांव में 10 ईसाइयों ने अपनाया सनातन धर्म

Operation Sindoor Press briefing : ऑपरेशन सिंदूर पर भारत की प्रेस कॉन्फ्रेंस

भारतीय सेना ने पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों को किया नष्ट

भारतीय सेना ने PAK पर किया कड़ा प्रहार: पाकिस्तानी आतंकी लॉन्च पैड और चौकियां तबाह

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

#पाकिस्तान : अकड़ मांगे इलाज

प्रतीकात्मक तस्वीर

भारतीय वायुसेना की महिला पायलट के पाकिस्तान में पकड़े जाने की बात झूठी, PIB फैक्ट चेक में खुलासा

भोपाल में लव जिहाद के विरोध में प्रदर्शन करतीं महिलाएं

लव जिहाद के विरुद्ध उतरीं हिंदू महिलाएं

CG Ghar Wapsi Sanatan Dharama

घर वापसी: छत्तीसगढ़ के कोंडागांव में 10 ईसाइयों ने अपनाया सनातन धर्म

Operation Sindoor Press briefing : ऑपरेशन सिंदूर पर भारत की प्रेस कॉन्फ्रेंस

भारतीय सेना ने पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों को किया नष्ट

भारतीय सेना ने PAK पर किया कड़ा प्रहार: पाकिस्तानी आतंकी लॉन्च पैड और चौकियां तबाह

प्रतीकात्मक तस्वीर

भारत के पॉवर ग्रिड पर पाकिस्तानी साइबर हमले की खबर झूठी, PIB फैक्ट चेक में खंडन

पुस्तक का लोकार्पण करते डॉ. हर्षवर्धन और अन्य अतिथि

कैंसर पर आई नई किताब

PIB Fact check

PIB Fact Check: सरकार ने नहीं जारी की फोन लोकेशन सर्विस बंद करने की एडवायजरी, वायरल दावा फर्जी

Pakistan Defence minister Khawaja Asif madarsa

मदरसे में पढ़ने वाले बच्चों को पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ने बताया सेकंड लाइन ऑफ डिफेंस

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies