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सेवा संगम का समापन समारोह 6 अप्रैल को संपन्न हुआ। इस अवसर पर प्रमुख वक्ता के रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबाले ने अपने विचार रखे। श्री होसबाले ने कहा कि पांच वर्ष पहले सेवाभारती के तत्वावधान में बेंगलुरू में संगम संपन्न हुआ था, लेकिन यह संगम द्वितीय नहीं अद्वितीय है। इस पूरे कार्यक्रम के दौरान कई आयामों पर चिंतन हुआ है। कई प्रमुख व्यक्तियों का मार्गदर्शन मिला है। श्री होसबाले ने कहा कि यह कार्यक्रम नहीं, बल्कि बहुत बड़े आंदोलन का एक हिस्सा है। सेवा को जीवन का हिस्सा बनाना चाहिए, यही सेवा भारती का उद्देश्य है। जो मनुष्य होता है वह सोचता है कि मैं मनुष्य बना, मनुष्य कहलाने लायक बना, समाज में रहता हूं तो मेरा पालन-पोषण होता है। इसमें सैकड़ों लोगों का योगदान है। यदि मैं समाज से इतना कुछ ले रहा हूं तो मैं भी कुछ वापस दूं। समाज के अंदर परिवर्तन लाने के उद्देश्य को लेकर हम आगे बढ़ते हैं। हमें सेवा कार्य करते समय न अहंकार करना चाहिए न ही कोई अपेक्षा रखनी चाहिए। हमें सोचना चाहिए कि हम एक बड़ा कार्य नहीं कर रहे, बल्कि कर्तव्य भाव से कार्य कर रहे हैं। त्याग और सेवा मानव जीवन के दो लक्ष्य हैं। त्याग भाव से सेवाकार्य और सेवा के रूप में त्याग की अभिव्यक्ति। मनुष्य को अपने लिए नहीं बल्कि दूसरों के लिए जीना चाहिए। स्वामी विवेकानंद ने कहा है, 'जो दूसरों के लिए जी रहे हैं वही जी रहे हैं। जो सिर्फ अपने लिए जी रहे हैं वे जीवित रहते हुए भी मृत प्राय: हैं।'
श्रीमद्भगवद्गीता में लिखा है जो स्वयं खाता है, लेकिन दूसरों को अन्न नहीं देता वह अन्न नहीं खा रहा। सेवा कार्य नर को नारायण बनाने का काम है। आप लोग सेवा कार्यों में लगे हुए ईश्वर हैं। इसलिए मैं आपको प्रणाम कहना चाहता हूं। हम सभी को अपने द्वारा किए गए कार्यों की समय- समय पर समीक्षा करने की आवश्यकता है। हमें अपने सेवा कार्यों की गुणवत्ता में बढ़ोतरी करनी चाहिए। हम वर्षों से जो कार्य कर रहे हैं उसमें हमें आत्मसंतुष्टि मिलनी चाहिए। उन्होंने बिलियर्ड खिलाड़ी गीत शेट्टी की पुस्तक (सक्सेस वर्सिस जॉय) का उदाहरण देते हुए कहा कि शेट्टी ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि जब वह बिलियर्ड के पहली बार विश्व विजेता बने तो उन्हें बड़ा धन मिला, सम्मान मिला, उन्हें कई जगह बुलाया गया। दूसरी बार वे प्रतियोगिता में हार गए। उनके मन में अंतर्द्वंद्व चलता रहा। अंत में वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि मैं सफलता के लिए खेल को खेला इसलिए हार गया। मैंने खेल का आनंद नहीं लिया। इसके बाद उन्होंने मन में धारणा बनाई कि वे सिर्फ आनंद के लिए खेलेंगे। उन्होंने ऐसा सोचा और खेले, फिर वे जीत गए। वे नौ बार विश्वविजेता बने। इसलिए सेवाकार्य जब करें तो सफलता के लिए नहीं, बल्कि आनंद के लिए करें।
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