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अपनी बात :समर्पण की स्याही, सेवा की कहानी

by
Apr 11, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 11 Apr 2015 12:59:50

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक और पहले सरसंघचालक डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार कहा करते थे कि समाज की सेवा के लिए किया जाने वाला कोई काम कभी भी साधनों के अभाव में बंद नहीं हुआ, बंद हुआ है तो कार्यकर्ताओं के अभाव में। बात एकदम खरी है। साधन सहज हैं। स्वार्थ को छोड़, अहं को गलाकर समाज के लिए खड़े रहने वाले लोग आसानी से नहीं मिलते। लेकिन दुष्कर कार्य आसान करना, सबसे पहले इस समाज और राष्ट्र की चिंता करना, यही तो संघ प्रेरणा का चमत्कार है। दिल्ली में आायोजित राष्ट्रीय सेवा संगम 2015 में यह चमत्कार दुनिया ने देखा। 'स्वयंस्वीकृतम् कण्टकाकीर्ण मार्गम्' यानी कांटोंभरी राह पर चलने का संकल्प खुद लेने वालों की ऐसी विशाल संख्या! यदि आज यह दृश्य विश्व के सामने है तो संघ की प्रेरणा और सेवा भारती के अनथक परिश्रम के कारण। विविध सेवा प्रकल्पों की डेढ़ लाख कंकरियां समाज-ताल में जगह-जगह तरंगें पैदा कर रही हैं। समर्पण से उपजी सामाजिक बदलाव और सशक्तिकरण की ऐसी-ऐसी कहानियां कि सुनकर रोमांच हो उठे।
'मैं' को होम कर 'हम' हो जाना सहज नहीं, अपने आप में एक यज्ञ है। राष्ट्रीय सेवा संगम इसी यज्ञ का साक्षात्कार कराने वाला आयोजन था।
पाञ्चजन्य के इस अंक का संयोजन विशिष्ट है। समाज सवार्ेपरि की भावना से अनुप्राणित व्यक्ति और संस्थाओं का कार्य इस अंक की विषयवस्तु का केन्द्र है। एक ओर राष्ट्रीय सेवा संगम से छनकर निकली रपट और प्रेरक वक्तव्य हैं तो दूसरी ओर युगदृष्टा डॉ. बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर के जीवन के अल्पज्ञात पक्षों को सामने रखती आवरण कथा।
साधन जहां अतिअल्प हैं, जहां अपमान का हलाहल कदम-कदम पर मिलता है, ऐसी विकट परिस्थितियों में भी बाबासाहेब समाज हित की राह पर बढ़ते जाते हैं। संघर्ष की कसौटी पर स्वयं को सिद्ध करते हैं और वह सम्मान और स्थान अर्जित करते हैं जहां से उनकी बात पूरा देश, पूरा समाज सुन सके। विसंगतियों और विषमताओं पर कड़े स्वर में फटकारते हैं, लेकिन साथ ही राष्ट्र की समवेत् शक्ति का आह्वान भी करते हैं। बाबासाहेब का जीवन और सेवाव्रती कार्य की राह एक है। भाव एक है। जहां समाज की चिंता होती है वहां 'स्व' पीछे छूट जाता है। स्वार्थ का खोल तोड़कर व्यक्ति जब आगे बढ़ता है तो समाज के ज्यादा करीब आ जाता है। बात साधनों की नहीं रहती, बात सम्मान की नहीं रहती। सेवा और समर्पण से व्यक्ति समाज से समरस हो जाता है। समाज का दुख अपना दुख, समाज की चिंता अपनी चिंता। बाबासाहेब का जीवन ऐसे लोगों के लिए मिसाल है जो समाज के लिए कुछ करना चाहते हैं परंतु संसाधनों का रोना रोते हैं। राष्ट्रीय सेवा संगम सेे निकलीं परिवर्तनकारी कहानियां उन सभी के लिए सोच की नई खिड़कियां हैं जिन्हें समझ नहीं आता कि हम कर क्या सकते हैं। जिस देश में एक करोड़ बीस लाख लड़के-लड़कियां हर वर्ष रोजगार की खोज में निकलते हों वहां उद्यमिता और समर्पण से कैसी-कैसी कहानियां लिखी जा सकती हैं, जरा कल्पना कीजिए।
बाबासाहेब की सी सोच से पल्लवित, सेवा भारती जैसे संकल्प से शक्ति पाने वाली कितनी ही और कहानियां अभी और लिखी जानी बाकी हैं। अगली कहानी कौन लिखेगा! पन्ने पलटिए, खुद को पहचानिए, अपने भीतर का संकल्प जगाइए। आपका समाज आपकी प्रतीक्षा में है।

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