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.अब यह बात छुपी नहीं रही है कि चर्च में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। दुनियाभर में ईसाइयत के अनुयायियों का बर्ताव बदल रहा है। ईसाइयत चर्चवाद में बदलती दिखती है। यहां तक कि ननों और पादरियों का भारत में एक बड़ा वर्ग चर्च के मठाधीशों से मतभेद रखता है। ऐसे कितने ही कैथोलिक पादरियों और ननों ने मतभेद के चलते चर्च से अपनी जिम्मेदारी छोड़ दी है। ऐसे 650 ननों और पादरियों ने भारत में पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर एक नये संगठन का गठन किया है। इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि जब भारत में पूर्व पादरियों और ननों ने ईसाई समाज में अपनी स्वीकृति और सुरक्षा की मांग उठाई है।
कैथोलिक चर्च रिफोर्मेशन मूवमेंट (केसीआरएम) नामक संस्था के तत्वावधान में कोच्चि मंे गत 28 फरवरी को पूर्व पादरियों और ननों की ओर से राष्ट्रीय स्तर पर एक सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस मौके पर नये संगठन का गठन किया गया जिसमें रेजी जेल्लानी को अध्यक्ष, के. जॉर्ज जोसफ विल्सन को उपाध्यक्ष, पूर्व पादरी के. पी. शिबु को महासचिव, मारिया थॉमस, बेबीचन पल्लकड़, थॉमस बेल्थनगड़ी व सत्यानंद ज्योति को संयुक्त सचिव और के. के. जोस कंडत्तिल को कोषाध्यक्ष चुना गया। इस अवसर पर करीब 30 सदस्यों की राष्ट्रीय कार्यकारिणी का गठन किया गया।
चर्च छोड़ने वाले ऐसे पादरियों और ननों को ईसाई समाज में ही विरोध का सामना करना पड़ा, जो कि चर्च के कद्दावरों के बहकावे में आया हुआ है। संगठन की योजना है कि ऐसे सभी सदस्यों के लिए आवासीय परिसर बनाए जाएं और कानूनी मदद दी जाए, जिससे कि वे चर्च संस्थाओं से अपने हिस्से का पैसा प्राप्त कर सकें। चर्च छोड़कर जाने वाले लोगों को चर्च के संचालक रत्तीभर मुआवजा नहीं देते, जबकि वे खुद को गरीब और जरूरतमंदों को सहारा देने वाला बताते हैं। इस संबंध में सीरो मालाबार कैथोलिक चर्च के प्रवक्ता ने बताया कि पूर्व पादरी और ननों के लिए गुजारे भत्ते का कोई प्रावधान नहीं है।
केसीआरएम के अध्यक्ष रेजी जेल्लानी ने कहा कि सैकड़ों पादरी और ननों ने चर्च की असलियत सामने आने पर उससे नाता तोड़ लिया है, वे अपने परिवार और समाज की मदद से दूर दीन-हीन जिंदगी बिता रहे हैं। चर्च कानून के अनुसार, चर्च छोड़ने वालों को गुजारे के लिए मदद देनी चाहिए, लेकिन वे ऐसा करने की बजाय इन लोगों को पापी या दोषी बताते हैं। उन्होंने आगे कहा कि इनका समाधान निकालने के लिए ही सम्मेलन का आयोजन किया गया है। संगठन के महासचिव के. पी. शिबु ने कहा कि चर्च को पूर्व पादरियों व ननों की समस्याओं पर चर्चा करनी चाहिए, उनकी मदद के रास्ते खोजने चाहिए।
इस संगठन के उठ खड़े होने से साफ है कि भारत में चर्च के दुर्व्यवहार से खुद पादरी और नन ही पीडि़त हैं। लेकिन चर्च के रखवालों की दबंगई के चलते वे मुंह खोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाते। ऐसे में केसीआरएम का गठन होना चर्च से बाहर आए पादरियों और ननों के बुझते जीवन में उम्मीद की एक नई किरण पैदा करेगा।
ल्ल प्रदीप कृष्णन
रोजवैली घोटाले में सीबीआई का छापा
ल्ल सारदा की तर्ज पर रोजवैली चिट फंड कंपनी ने भी किया करोड़ों रुपए का घोटाला
ल्ल तृणमूल सांसद के फ्लैट पर छापेमारी कर सीबीआई ने जुटाए अहम दस्तावेज
सीबीआई ने 4 मार्च को चिट फंड कंपनी रोजवैली की जांच के संबंध में देश भर के 43 ठिकानों पर छापेमारी की। इस संबंध में तृणमूल कांग्रेस के सांसद व अभिनेता तापस पाल के दक्षिणी कोलकाता स्थित दो फ्लैटों पर छापेमारी की गई।
सीबीआई ने दिल्ली सहित पश्चिम बंगाल, हावड़ा, बर्द्धमान, उत्तर-दक्षिण 24 परगना, मुर्शिदाबाद, मेदिनीपुर, ओडिशा, त्रिपुरा, असम, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ और तमिलनाडु में छापेमारी की। सांसद तापस पाल के यहां हुई छापेमारी के दौरान उनके फ्लैटों से अहम दस्तावेज जब्त किए गए हैं। सीबीआई गत दो माह से रोजवैली चिट फंड कंपनी की जांच कर रही है।
जानकारी के अनुसार सांसद कंपनी के फिल्म डिवीजन के निदेशक बनाए गए थे। इसे लेकर उनका कंपनी से करार हुआ था और वे चिट फंड कंपनी के कार्यालय में आते-जाते थे। आरोप है कि कंपनी की ओर से उन्हें आर्थिक लाभ भी दिए गए। इससे पूर्व प्रवर्तन निदेशालय भी रोजवैली के देश भर में खुले खातों को सील कर चुका है और कंपनी के अध्यक्ष गौतम कुंडू से भी पूछताछ की जा चुकी है। बताया जा रहा है कि सारदा चिट फंड घोटाले की तर्ज पर ही रोजवैली ने अवैध तरीके से करीब 12 हजार करोड़ रुपए से अधिक वसूल किए थे।
ल्ल प्रतिनिधि
महाराष्ट्र में मुस्लिम आरक्षण रद्द
महाराष्ट्र सरकार ने मुसलमानों को दिया पांच फीसद आरक्षण रद्द कर दिया है। राज्य में सत्तारूढ़ कांग्रेस-राकांपा की पूर्व सरकार ने 24 जुलाई, 2014 को मराठों को 16 फीसद, जबकि मुसलमानों को शिक्षा व नौकरी में पांच फीसद आरक्षण देने की घोषणा की थी।
आरक्षण की घोषणा के ठीक बाद मुंबई उच्च न्यायालय में इसे चुनौती देते हुए एक याचिका दायर की गई थी। उच्च न्यायालय ने 14 नवंबर को मराठों और मुसलमानों को दिया आरक्षण स्थगित कर दिया था। महाराष्ट्र सरकार का कहना है कि न्यायालय द्वारा आरक्षण पर रोक लगाए जाने से अध्यादेश कानून का रूप नहीं ले सका था। इसलिए पूर्व में जारी किए गए मुस्लिम आरक्षण को रद्द कर दिया गया है, इसकी अवधि दो दिसम्बर को समाप्त हो गई थी। ल्ल प्रतिनिधि
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