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अंक संदर्भ- 15-22
नवम्बर, 2015
दीपावली विशेषांक 'भारतीयता के दीप' हर दृष्टि से पसन्द आया। विशेषकर, आवरण पृष्ठ और उससे जुड़ी सामग्री के लिए सम्पादकीय विभाग बधाई का पात्र है। मैं लगभग 20 वर्ष से पाञ्चजन्य पढ़ रहा हूं। इस दौरान अनेक श्रेष्ठ विशेषांक पढ़ने को मिले। उन श्रेष्ठ विशेषांकों में से एक है यह विशेषांक। इसकी विषय-वस्तु हर हिन्दू को गौरवान्वित होने का अवसर देती है। ऐसी सामग्री पाञ्चजन्य के अलावा और कहीं पढ़ने को नहीं मिलती है।
– उदय कमल मिश्र, सीधी (म.प्र.)
ङ्म यह जानकर बहुत आश्चर्य हुआ कि फरशाद नजरघई एक मुस्लिम देश ईरान में लोगों को ध्यान का प्रशिक्षण दे रहे हैं। बेल्जियम में मार्टिन गुरविच सनातन हिन्दू संस्कृति के संरक्षण का कार्य कर रहे हैं। मास्को में रहने वाले एण्ड्री कालीचरण कह रहे हैं कि जब से वे सनातन संस्कृति के सम्पर्क में आए हैं तब से उनके जीवन में आशावादिता बढ़ गई है। धन्य हैं वे महापुरुष, जिन्होंने सनातन संस्कृति को विदेशियों तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
– कृष्ण वोहरा
मकान सं.-641, जेल परिसर, सिरसा (हरियाणा)
ङ्म अमरीकी विद्वान डेविड फ्रॉली उपाख्य वामदेव शास्त्री का साक्षात्कार 'पूरब से पश्चिम तक फहर रही है हिन्दुत्व की पताका' प्रत्येक भारतीय को पढ़ना चाहिए। एक विदेशी विद्वान सनातन धर्म और हमारी परम्पराओं की इतनी गहरी जानकारी रखता है, यह कोई साधारण बात नहीं है। डेविड फ्रॉली से हम भारतीयों को सीख लेने की जरूरत है। हमसे अधिक तो फ्रॉली हमारे धर्म, हमारी संस्कृति, हमारी शिक्षा आदि की चिन्ता करते दिखाई देते हैं।
– नीतू कुमारी, कंधार लाइन, दिल्ली छावनी (दिल्ली)
ङ्म डेविड फ्रॉली जो कर रहे हैं, इसके लिए उनका अभिनन्दन होना चाहिए। वे कर्म से किसी भारतीय से कम नहीं हैं। एक विदेशी होते हुए भी उन्होंने अपने आपको सनातन धर्म के लिए समर्पित कर दिया है। वहीं कैलाश सत्यार्थी का भी काम कम महत्व नहीं रखता है। उन्होंने अपने कर्म के बल पर भारत का नाम दुनियाभर में फैलाया है। एक छोटे से गांव से निकलकर विश्व क्षितिज पर पहंुचना मायने रखता है।
– डॉ. अशोक खण्डेलवाल, न्यू पलासिया, इन्दौर (म.प्र.)
ङ्म हिन्दू धर्म दर्शन, संस्कृति और अध्यात्म के गहन अध्येता डेविड फ्रॉली जैसे विद्वान सनातन धर्म के वैश्विक प्रसार में अहम भूमिका निभा रहे हैं। योग, वेदान्त और आयुर्वेद को भी उन्होंने बढ़ावा दिया है। इसके लिए उन्होंने 'अमेरिकन इंस्टीट्यूट ऑफ वैदिक स्टडीज' की स्थापना की है। उनके इस कार्य को भारत सरकार भी मानती है। इसलिए भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया है। वे लम्बे समय तक सनातन धर्म की सेवा करें, यही अभिलाषा है।
– रामदास गुप्ता, गंगीयाल, जम्मू (जम्मू-कश्मीर)
ङ्म एक ओर जहां हम भारतवासी पश्चिमी संस्कृति की नकल करने में गौरव अनुभव कर रहे हैं, और जाति की सीमा से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं, वहीं पश्चिम के लोग सारे भेदभावों को छोड़कर हमारी संस्कृति को अपना रहे हैं और यह भी कह रहे हैं कि पूरी दुनिया में शान्ति भारतीय संस्कृति से ही आएगी। अमरीका के डगलस यूटल, जेफ्री आर्मस्ट्रांग, स्टीफन नैफ उपाख्य नंदनंदन दास, अल्फ्रेड फोर्ड उपाख्य अम्बरीश दास, सायमन डेनिस, रूस की तात्याना जवोद्वना उपाख्य त्रिवेणी देवी जैसे लोग इसके उदाहरण हैं।
– गणेश कुमार, राजेन्द्र नगर, पटना (बिहार)
ङ्म जो लोग विदेश में भारतीय संस्कृति का दीपक जला रहे हैं, उन्हें सम्मानित किया जाना चाहिए। वे लोग तो उन भारतीयों से बढ़कर हैं, जो सेकुलर बनने के नाम पर दिन-रात सनातन संस्कृति की निन्दा करते हैं। कुछ वर्ष पहले अमरीकी कांग्रेस का सत्र वैदिक मंत्रोच्चारण से शुरू हुआ था। मॉरीशस की संसद ने एक प्रस्ताव पारित कर 'रामायण सेन्टर' की स्थापना की है। क्या ऐसा भारत में हो सकता है? इसका जवाब नहीं ही होगा, क्योंकि हम कुछ ज्यादा ही सेकुलर हो गए हैं।
– हरिहर सिंह चौहान, जंवरीबाग नसिया, इन्दौर (म.प्र.)
अराजक मानसिकता
उत्तर प्रदेश में कट्टरवादी मुसलमानों की अराजक मानसिकता को पाठकों तक पहुंचाने वाली रपट 'मजहबी उत्पात और लाचार प्रशासन' पढ़ी। यह जानकर बहुत दु:ख होता है कि वोट बैंक बनाने वाले नेताओं ने कट्टरवादियों का मनोबल इतना बढ़ा दिया है कि वे लोग अपने को कानून से ऊपर मानने लगे हैं। चाहे मुहर्रम हो या ईद,
पूरे देश में भय का वातावरण बनने लगता है। कट्टरवादी कब और कहां किसको निशाने पर ले लेंगे, कहना मुश्किल हो जाता है। भय का यह वातावरण कब तक बना रहेगा? इस अराजक मानसिकता को राष्ट्रवादी ताकतों की एकजुटता ही परास्त कर सकती है।
-सुहासिनी किरनी
गोलकुण्डा, हैदराबाद (तेलंगाना)
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