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5500 स्वयंसेवकों ने संभाली बाढ़ पीडि़तों को राहत पहुंचाने की कमान
1200000 से ज्यादा भोजन के पैकेट बांटे
50000 ब्रेड के पैकेट, 50 हजार चादर वितरित कीं
30000 कंबल, मोमबत्तियां, दवाइयां व महिलाओं की जरूरत के सामान बांटे
50 डॉक्टरों की टीम के साथ फार्मेसी व मेडिकल के 12 छात्र लोगों का इलाज करने में जुटे
चेन्नै में यूं तो बारिश 11 नवम्बर से पड़नी शुरू हो गई थी, लेकिन तब तक किसी को अंदाजा नहीं था कि इतनी बारिश होगी कि चेन्नै में इस भीषण वर्षा से बाढ़ आ जाएगी। पिछले 100 वर्षों के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ था कि बारिश के चलते चेन्नै में बाढ़ आई हो। 1 और 2 दिसंबर को तो चेन्नै में इतनी बारिश हुई जितनी वर्ष 1901 के बाद कभी नहीं हुई थी। भारी बारिश से चेन्नै के कई इलाके ऐसे लग रहे थे मानो समंदर शहर में उमड़ आया हो। सड़कें जलमग्न हो गईं, इंटरनेट, मोबाइल, यातायात सब कुछ ठप पड़ गया। किसी को अंदाजा नहीं था कि बारिश के कारण स्थिति इतनी विषम हो जाएगी। सरकार की तरफ से भी तब तक राहत कार्य शुरू नहीं हुए थे। हालात बिगड़ते देख सरकार से पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों ने अपने स्तर पर लोगों की मदद करने का बीड़ा उठाया। चेन्नै के पास स्थित कडल्लौर बाढ़ से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाला जिला है। जैसे ही यहां के हालात बिगड़े रा. स्व. संघ के 110 स्वयंसेवक तत्काल बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में पहुंचे और बाढ़ में फंसे लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने का कार्य शुरू कर दिया। स्वयंसेवकों ने लोगों को भोजन और अन्य जरूरी सामान मुहैया कराया। इस क्षेत्र में संघ के स्वयंसेवकों ने लगभग 20 हजार परिवारों को राहत सामग्री उपलब्ध करवाई ।
चेन्नै के पेरंबूर इलाके में 25 वर्षीय सर्वनन सप्ताह भर तक बाढ़ पीडि़तों को अन्न वस्त्र पहुंचाते-पहुंचाते इतना थक गए कि वे अपने नवजात शिशु तक को गोद में नहीं उठा पाए। वे स्वयं बाढ़ पीडि़त थे और खुद राहत शिविर में अपनी पत्नी और बच्चे के साथ रह रहे थे। उन्होंने देखा कि स्वयंसेवक दिन-रात लोगों की सहायता करने में जुटे हैं तो वे भी अपना दर्द भूलकर स्वयंसेवकों के साथ बाढ़ पीडि़तों की मदद करने में जुट गए। रा. स्व. संघ के 5 हजार से ज्यादा स्वयंसेवक चेन्नै में राहत शिविरों में सेवा कार्य में जुटे। गत 30 नवम्बर के बाद 48 घंटों के भीतर भोजन के 12 लाख पैकेट स्वयंसेवकों ने बाढ़ में फंसे लोगों तक पहुंचाए। उत्तर तमिलनाडु प्रांत सेवा प्रमुख राम राजशेखर के अनुसार पहले 24 घंटों के दौरान किसी सूचना का इंतजार किए बिना ही स्वयंसेवक बचाव कार्यों में जुट गए थे। परिस्थितियां ऐसी थीं कि सभी सड़कों पर पानी भरा हुआ था, मोबाइल फोन और इंटरनेट से संपर्क टूट चुका था। इसके बावजूद स्वयंसेवक तत्काल अपने स्तर पर टोलियां बनाकर सेवा कार्यों में जुट गए। सेना और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन बल (एनडीआरएफ) के जवानों के साथ संघ के कार्यकर्ता इन पंक्तियों के लिखे जाने के वक्त भी बाढ़ पीडि़तों की सहायता करने में जुटे हुए हैं। 50 डॉक्टरों की एक टीम दिन-रात लोगों का उपचार करने में जुटी है। संघ की तरफ से लोगों को एंटीबॉयोटिक दवाइयां भी उपलब्ध कराई जा रही हैं।
गत 6 दिसंबर को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल के सदस्य वरिष्ठ प्रचारक श्री सूर्यनारायण राव ने चेन्नै पहुंचकर राहत कार्यों में जुटे स्वयंसेवकों से मुलाकात की और उन्हें पीडि़तों की मदद करने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने कहा कि जब भी कोई आपदा आती है तो संघ के स्वयंसेवक हमेशा आगे रहकर सेवाकार्य करते हैं।
संघ के स्वयंसेवक पूरी निष्ठा से बाढ़ प्रभावित इलाकों में कार्य कर रहे हैं, राहत कार्यों में जुटे स्वयंसेवकों ने बिना किसी भेदभाव के सभी की सहायता की है। उदाहरण के तौर पर विल्लिवक्कम में स्वयंसेवकों से जब एक मुसलमान व्यक्ति ने मदद मांगी तो स्वयंसेवकों ने तत्काल उसकी मदद की।
केन्द्र सरकार की पहल
चेन्नै में भारी बारिश के बाद स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बाढ़ग्रस्त इलाके का हवाई सर्वेक्षण कर 1000 करोड़ रुपए की अतिरिक्त सहायता देने की घोषणा की। केंद्र सरकार की तरफ से थल सेना, वायु सेना व नौसेना के जवानों को राहत कार्य के लिए वहां भेजा गया। एनडीआरएफ की टीम, थल सेना, पुलिस एवं दमकल सेवा के जवानों ने कोट्टूरपुरम, नंदनम, सईदापेट और वेलाचेरी, मडिपक्कम, तांबरम और मुदीचूर इलाकों में बाढ़ प्रभावित लोगों को उनके घरों से निकालकर सुरक्षित स्थानों में पहुंचाया। इन इलाकों में पानी पहली मंजिल तक भर चुका था। चेन्नै के बाढ़ प्रभावित इलाकों में एनडीआरएफ की कुल 28 टीमें, जिनमें 1200 जवान थे, तैनात की गईं। इन टीमों ने 110 से ज्यादा नौकाओं की मदद से हजारों लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया। एनडीआरएफ की दो टीमें पुदुचेरी में भी तैनात की गई हैं। वायुसेना ने हेलीकॉप्टर से लोगों के घरों की छतों पर खाने के पैकेट गिराए। वायुसेना के 15 हेलीकॉप्टर राहत मुहैया कराने के लिए जुटे हैं। बाढ़ के कारण राज्य में मरने वालों की संख्या बढ़कर 250 से ज्यादा बताई गई है।
भाजपा कार्यालय बना राहत केन्द्र
भाजपा के केन्द्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग राज्यमंत्री पोन. राधाकृष्णन ने राहत कार्य में लगे कार्यकर्ताओं को कहा कि वे मदद करते समय किसी तरह के राजनीतिक प्रतीकों का प्रयोग न करें। कौन क्या कर रहा है और कितनी मदद कर रहा है, ये जनता को पता है। भाजपा के राष्ट्रीय सचिव एच. राजा ने बताया कि चेन्नै स्थित तमिलनाडु भाजपा का प्रान्त कार्यालय राहत केन्द्र में बदल गया है। यहां पर सैकड़ों की संख्या में स्वयंसेवक राहत कार्य में जुटे हुए हैं।
सब के साथ, सब की सेवा
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों को खाकी निक्कर पहनकर कमर तक के पानी में खड़े होकर राहत कार्य करते देखना अपने आप में अनूठा था। बाढ़ग्रस्त उन इलाकों में एनडीआरएफ और सेना के जवान भी राहत कार्य में जुटे स्वयंसेवकों के साथ मिलकर दूरस्थ क्षेत्रों में मदद पहुंचा रहे थे। यहां तक कि स्वयंसेवकों ने लगातार राहत कार्य में जुटे जवानों को भी भोजन करवाया।
आपदा में नजदीक आए सब
श्री रामकृष्ण मठ, शृंगेरी तथा कांची शंकराचार्य के अनुयायी, वैष्णव संत जीयर स्वामी जी, अद्वैताचार्यों के शिष्य आदि अनेक संत- संन्यासियों ने बाढ़ पीडि़तों की मदद का बीड़ा उठाया। उनकी मदद को बाढ़ पीडि़तों ने सहर्ष स्वीकार किया। एक वैष्णव संत ने एक चर्च परिसर में जाकर बाढ़ पीडि़तों की मदद की। स्वयंसेवकों ने सैकड़ों मुसलमानों और ईसाई पंथ को मानने वाले बाढ़ पीडि़तों को राहत सामग्री बांटी।
विल्लिवाक्कम इलाके में पानी से चौतरफा घिरे एक मकान की पहली मंजिल पर एक मुसलमान परिवार, जिसमें बूढ़ी औरत व उसका बीमार बेटा था। पानी से भरे मकान की पहली मंजिल से स्वयंसेवकों ने पहले उस बूढ़ी औरत को निकाला और फिर उसके बेटे को दो स्वयंसेवक उठाकर बाहर लाए। संघ के स्वयंसेवकों पर लोगों का कितना विश्वास है, यह पता चला तब जब तंबारम इलाके में एक बुजुर्ग मुसलमान ने अपनी बेटी को एक स्वयंसेवक के साथ सुरक्षित स्थान पर भेजते हुए कहा कि 'मुझे संघ के सेवा कार्य में विश्वास है। मेरी बेटी सही सलामत रहेगी।' ओट्ेरी के ईसाई बहुल क्षेत्र के ईसाइयों ने स्वयं आकर राहत कार्यों में जुटे स्वयंसेवकों से कहा 'आप लोग बहुत अच्छा काम कर रहे हैं।'
वाह! क्या काम किया
सरकारी आंकड़ों के अनुसार तमिलनाडु में आई बाढ़ से अब तक लगभग 350 लोग मारे गए हैं। लेकिन राहत कार्य में में लगे अनेक संगठनों के कार्यकर्ताओं का कहना है कि मरने वालों की संख्या 600 से भी अधिक जा सकती है। बाढ़ से सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ कांचीपुरम। यहां 95 लोगों की मौत हुई। कड्डलूर में 50 और चेन्नै में 48 लोग मारे गए। इन जगहों पर अनेक सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों ने अपने-अपने स्तर से राहत कार्य शुरू किया। इनमें एक प्रमुख संगठन है भारतीय जनता युवा मोर्चा। इसके राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ए.पी. मुरूगानंदन के नेतृत्व में 300 कार्यकर्ताओं की एक टोली ने दिन-रात राहत और बचाव कार्य किया। इस टोली से जुड़े कार्यकर्ताओं ने स्थानीय लोगों के साथ मिलकर पहले लोगों को बाढ़ग्रस्त इलाकों से निकाला, फिर उनके लिए भोजन और रहने का प्रबंध किया। इन कार्यकर्ताओं ने 3 दिन चेन्नै, 2 दिन कड्डलूर और 1 दिन कांचीपुरम में लगातार बचाव कार्य किया और राहत पैकेट बांटे। कड्डलूर में 300 कार्यकर्ता लगे, तो कांचीपुरम और चेन्नै में 175-175 कार्यकर्ताओं ने राहत कार्य किया। 4000 से भी अधिक परिवारों तक राहत पैकेट पहुंचाए गए। एक पैकेट में 1 चादर, 15+10 फुट का एक तिरपाल, 2 तौलिए, 10 किलोग्राम चावल, खाना बनाने के बर्तन, 1 स्टोव, साड़ी, धोती और अन्त:वस्त्र थे। कार्यकर्ता राहत कार्य में इस तरह रमे कि उन्हें अपनी कोई चिन्ता नहीं रही। ये कार्यकर्ता स्वयं 20 दिन तक न नहाए और न ही ढंग से भोजन किया, लेकिन बाढ़ पीडि़तों की हर सुख-सुविधा का ख्याल रखा। मुरूगानंदन कहते हैं जब तक हर पीडि़त का आंसू पोंछ न लिया जाए तब तक हम कार्य करते रहेंगे।
मर्मस्पर्शी दृश्य
चेन्नै का विल्लिवक्कम इलाका। एक गली में चार फीट से ज्यादा पानी भरा हुआ था। स्वयंसेवक लोगों को रोजमर्रा की जरूरत की वस्तुएं बांट रहे थे। तभी एक घर से एक भूख से बिलखते एक नवजात के रोने की आवाज सुनाई दी। कमर तक के पानी में तैरकर एक तरुण स्वयंसेवक वहां पहुंचा तो बच्चे की मां ने बताया कि बच्चा दूध न मिलने के कारण भूख से रो रहा है। वह स्वयंसेवक तत्काल वापस आया और थोड़ी देर के अंदर बच्चे के लिए दूध का पैकेट उसकी मां के पास पहुंचा दिया।
इसलिए डूबा चेन्नै
यूं तो आपदा अचानक ही आती हैं, लेकिन जैसी आपदा चेन्नै में भारी बारिश के बाद आई और जो हालात उत्पन्न हुए उनको निमंत्रण बहुत हद तक मानवीय गतिविधियों ने ही दिया है। इतिहासकारों के अनुसार करीब 350 वर्ष पहले चेन्नै एक छोटा सा कृषि प्रधान कस्बा था। इसके चारों तरफ 850 से ज्यादा झीलें थीं। बारिश होती थी तो उसका पानी इन झीलों में समाहित हो जाता था। आज शहरीकरण के चलते चेन्नै के आसपास केवल 40 झीलें बची हैं। चेन्नै में आई बारिश से 86 लाख की आबादी में 25 लाख लोग सबसे ज्यादा प्रभावित हुए। नवम्बर के पहले सप्ताह में चेन्नै महानगरपालिका कर्मी पानी के अभाव की चेतावनी के पोस्टर लगा रहे थे। स्थानीय लोग पानी के सकंट से उभरने के लिए तैयारियां करने में जुटे थे। इसके बाद चेन्नै में मूसलाधार बारिश शुरू हुई। 23 नवंबर को अचानक ही 50 मिमी पानी गिरा। इससे पहले कि लोग संभल पाते, लगातार बारिश का दौर शुरू हो गया। 100 वर्षों के दौरान यह पहली बार था कि चेन्नै के आसपास स्थित झीलों से अतिरिक्त पानी बाहर छोड़ा गया। यदि ऐसा नहीं होता तो आसपास के गांव डूब जाते।
इस पानी को अडयार और कूवम नदियों द्वारा बंगाल की खाड़ी में गिरना चाहिए था, लेकिन मनुष्यों की गतिविधियों के कारण ऐसा नहीं हो पाया। जहां कभी इन नदियों का मार्ग हुआ करता था वहां हुए बेतहाशा निर्माण के चलते पानी शहर में फैल गया। झीलों को पाटकर जहां घर बनाए गए थे वहां अब पानी ही पानी था। इसके ऊपर लगातार होती बारिश ने स्थितियों को और भी विषम बना दिया। देखते ही देखते पूरा क्षेत्र पानी में डूब गया। मद्रास न्यायालय ने भी शहर के जलाशयों और झीलों पर बढ़ते अतिक्रमण को लेकर टिप्पणी की थी कि इस समस्या पर ध्यान देना जरूरी है।
हर आपदा में संघ सदैव साथ
ल्ल 1966 में बिहार के विध्वंसकारी अकाल ने चारों और भूखमरी का साम्राज्य स्थापित कर दिया था। संकट की इस घड़ी में हजारों स्वयंसेवक सहायता व राहत सामग्री का दिन रात वितरण करते रहे। विभिन्न स्थानों पर 971 कुएं खोदकर पीने के पानी की व्यवस्था की। हजारों परिवारों के भोजन व कपड़ों की व्यवस्था स्वयंसेवकों द्वारा की गई। लोकनायक जयप्रकाश नारायण सभी सरकारी राहत योजनाओं के प्रभारी थे। उन्होंने अनुभव किया कि स्वयंसेवकों द्वारा किए जाने वाले राहत कार्यों में कहीं भी हिन्दू और मुसलमानों में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं हुआ और वे दुर्गम स्थानों पर भी जाकर पीडि़तों को सहायता पहुंचा रहे थे। 6 फरवरी, 1967 को गया के पास नवदा में एक अकाल सहायता केन्द्र का उद्घाटन करते हुए उन्होंने कहा 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों की नि:स्वार्थ सेवाओं की कोई भी, यहां तक कि देश का प्रधानमंत्री भी, बराबरी नहीं कर सकता।'
ल्ल नवंबर 1977 में चक्रवात ने 100 कि.मी प्रति घंटे की गति से आंध्र प्रदेश के समुद्री तट क्षेत्रों पर आघात किया। लगभग 20 हजार लोगों को मृत्यु का ग्रास होना पड़ा और एक लाख लोग बेघर हो गए। सरकार की तरफ से राहत कार्य शुरू होने से पहले संघ के स्वयंसेवकों ने इस चुनौती को स्वीकार कर राहत कार्य और दूषित क्षेत्रों की सफाई का कार्य तत्काल शुरू कर दिया। जब संघ ने सहयोग व सहायता के लिए आह्वान किया तो सम्पूर्ण देश से लोगों ने धन व अन्य राहत सामग्री सहायता के लिए भेजी। स्वयंसेवकों द्वारा आंध प्रदेश तूफान पीडि़त समिति का गठन किया गया और सभी क्षेत्रों में भोजन-केन्द्र भी खोले गए। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कांग्रेसियों की भर्त्सना करते हुए कहा था, 'मुझे केवल संघ के लोग प्रभावित क्षेत्रों में राहत कार्य करते दिखाई दिए।'
ल्ल राजस्थान में मई 1977 में आयी विनाशकारी बाढ़ से राजस्थान के भरतपुर जिले के अनेक गांव जलमग्न हो गए तो राहत और पुनर्वास कार्यों में स्वंयसेवकों ने हर तरह से मदद की। जुलाई,1979 व जुलाई,1981 में जयपुर नगर तथा बहारी जयपुर और सवाई माधोपुर जिले के सभी क्षेत्र अप्रत्याशित वर्षा के शिकार हुए और अनेक स्थान तहस-नहस हो गए। वहां पर पूरी तरह उजड़ गए परिवारों के लिए केशवपुरी नाम से नये गांव को बसाया गया, जिसमें प्रारम्भिक रूप से 64 पक्के मकान, एक समुदाय भवन और एक मंदिर का निर्माण कार्य किया गया।
ल्ल दिल्ली में 1978 में यमुना नदी की भयंकर बाढ़ के समय दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में संघ के पांच हजार स्वयंसेवकों ने तत्काल लोगों की मदद करनी शुरू की। कार्यकर्ता कमर तक गहरे पानी में चलकर और तैरकर वहां भी पहुंचे जहां राहत सामग्री पहुंचाना दुष्कर कार्य था। इस दौरान एक नाव दुर्घटना में सात स्वयंसेवक बलिदान भी हो गए। चार सितम्बर सुबह से सात सितम्बर की रात तक 15 हजार संघ के स्वयंसेवक यमुना बांध की दिन-रात निगरानी करते रहे। इसके बाद सेना ने रात 10 बजे व्यवस्था को अपने हाथ में लिया।
ल्ल अगस्त 1979 में गुजरात के मकाऊ बांध में दरार आने पर राजकोट के स्वयंसेवक सबसे पहले राहत कार्यों के लिए पहुंचे। तुरंत 10 राहत शिविरों की स्थापना की गई। 1200 परिवारों और 14000 बाढ़ पीडि़त लोगों ने इन राहत शिविरों में आकर सहायता प्राप्त की। स्वयंसेवकों ने पांच दिनों में 1085 शवों का संस्कार किया। उन दिनों रमजान के दिन थे और राहत शिविरों में बाढ़ पीडि़त 4000 मुसलमानों ने आश्रय लिया हुआ था। तब स्वयंसेवकों ने मुसलमानों को उनकी मजहबी परंपराओं का पालन करने की सुविधाएं भी मुहैया कराईं। जब श्री अटल बिहारी वाजपेयी उन राहत शिविरों में गए थे मुसलमान आश्रितों ने उनसे कहा कि, 'यदि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ न होता तो हम जिन्दा न होते।'
ल्ल हिन्दुस्तान टाइम्स ने 25 अगस्त 1979 के अंक में अपने संपादकीय में लिखा था कि 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने एक ज्वलंत उदाहरण प्रस्तुत किया है कि ऐसे समय में स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा क्या-क्या किया जा सकता है। अनगिनत राहत शिविरों में कार्यकर्ताओं को सेवा कार्यों में लगाना और वहां के निवासियों की वापस अपने घरों में पहुंचने तक सहायता करना आदि। इतना ही नहीं, ऐसे शवों का अंतिम संस्कार करना, जिन्हें अन्य कोई छूने मात्र को भी तैयार नहीं था।'
ल्ल 2 दिसंबर 1984 को भोपाल गैस त्रासदी के बाद जब लोग सड़कों पर तड़प रहे थे तब संघ के स्वयंसेवकों ने भोपाल नगर निगम का सहयोग कर पीने योग्य पानी, जन सुविधाओं को चालू करने की व्यवस्था कराई थी।
ल्ल 1987-88 में गुजरात में सूखा पड़ने के दौरान राज्य के 18275 गांवों में से 15000 गांव अभावग्रस्त घोषित कर दिए गए। तब संघ के स्वयंसेवकों ने 'दुष्काल पीडि़त सहायता समिति' का गठन किया और प्रदेश में 123 शिविरों में 145310 पशुओं को आसरा दिया। तब पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र के स्वयंसेवकों ने पशुओं के लिए 2000 टन चारे की व्यवस्था की। 5000 परिवारों को कई महीनों तक मुफ्त खाद्यान्न उपलब्ध कराया गया।
ल्ल 8 जुलाई 1988 को बेंगलुरू से तिरुअनंतपुरम् जाने वाली आईलैण्ड एक्सप्रेस के 14 डिब्बे पेरुमान रेल पुल से क्विलोन के पास अष्टामुदी झील में गिर गए। वहां मछुआरों में कुछ स्वयंसेवक थे। वे तत्काल दुर्घटना स्थल पर पहुंचे और बड़ी संख्या में रेल यात्रियों की जान बचाई। तब मलयालम के प्रमुख दैनिक 'मातृभूमि' ने अपने 12 जुलाई के अंक में लिखा ' जहां सब लोग हिचकिचा रहे थे, अपनी नाक मुंह सिकोड़ कर वहां खड़े थे, वहीं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों ने आगे बढ़कर पानी में से लाशों को निकाला, अस्पतालों में घायलों के लिए रक्तदान करने वालों ने कतारें लगाईं और कुछ स्वयंसेवक तो इन बचाव व राहत कार्यों को करते हुए घायल भी हो गए।'
ल्ल 24-30 जुलाई 1988 को कोच्चि से प्रकाशित पत्रिका वीक ने शवों को ले जाते, राहत कार्य करते स्वयंसेवकों के चित्र छापकर उनके द्वारा किए गए कार्यों का उल्लेख किया।'
ल्ल 1991 में 20 अक्तूबर को उत्तरकाशी और टिहरी में आए भूकंप में 768 लोग मारे गए। 20 हजार घर ढह गए। भूकंप के तत्काल बाद 15 मिनटों के दौरान स्वयंसेवक सहायता के लिए पहुंच गए। उत्तरांचल भूकंप पीडि़त सहायता समिति का गठन किया गया और राहत सामग्री का वितरण प्रारंभ हो गया। करीब एक हजार स्वयंसेवक राहत कार्यों में जुटे। इस दौरान स्वयंसेवकों ने पहाड़ी क्षेत्रों में अपनी पीठ पर रखकर राहत सामग्री पहुंचाई।
ल्ल 1993 में महाराष्ट्र के लातूर और उस्मानाबाद जिलों में आए भयंकर भूकंप के समय तत्काल संघ के स्वयंसेवकों द्वारा 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जन-कल्याण समिति' का गठन कर सम्पूर्ण देश से 5.12 करोड़ और विदेशों से 2.5-3 करोड़ रुपए एकत्रित किए गए। महाराष्ट्र से आठ हजार स्वयंसेवक व अन्य प्रांतों से 15 सौ स्वयंसेवक राहत और पुनवार्स कार्यों में दिनरात जुटे रहे।
ल्ल वर्ष 2004 दिसंबर में आई सुनामी के दौरान भी तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में स्वयंसेवकों ने राहत कार्य करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। सुनामी से प्रभावित दक्षिण भारत के विभिन्न शहरों और अंदमान-निकोबार में रा. स्व. संघ, वनवासी कल्याण आश्रम, सेवा भारती और विहिप के सैकड़ों कार्यकर्ता लोगों की सेवा में जुटे रहे। पोर्ट ब्लेयर में 10 हजार से ज्यादा लोगों को राहत शिविरों में पहुंचाया गया। चेन्नै से करीब 200 किलोमीटर दूर 13 से ज्यादा गांवों में स्वयंसेवकों ने शिविर लगाए और हजारों पीडि़तों का इलाज किया। कन्याकुमारी में हजारों परिवारों को स्वयंसेवकों ने जरूरत का सामान मुहैया कराया। (श्री के. सूर्यनारायण राव द्वारा लिखित पुस्तक राष्ट्रीय नवोत्थान से साभार)
चेन्नै से एस. महादेवन साथ में आदित्य भारद्वाज
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