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'न्यायालय की अवमानना कर रहेहैं सोनिया-राहुल'

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Dec 14, 2015, 12:00 am IST
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दिंनाक: 14 Dec 2015 11:45:18

पूरी संभावना है कि नेशनल हेराल्ड मामले में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उनके पुत्र राहुल गांधी को 19 दिसम्बर को दिल्ली के पटियाला हाउस न्यायालय में हाजिर होना ही पड़ेगा।  न्यायालय ने सोनिया गांधी और राहुल गांधी की कम्पनी 'यंग इंडिया' से जुड़े मामले में जिस तरह की तल्ख टिप्पणी की है वह इन दोनों के लिए भारी पड़ सकती है। इस कम्पनी पर आरोप है कि इसने 'नेशनल हेराल्ड' अखबार को चलाने वाली कम्पनी 'एसोसिएट जर्नल' की लगभग 5000 करोड़ की सम्पत्ति षड्यंत्र करके हड़प ली है। इस मामले को पूर्व केन्द्रीय मंत्री डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी दिल्ली के पटियाला हाउस न्यायालय ले गए थे। 26 जून, 2014 को पटियाला हाउस न्यायालय ने सोनिया गांधी, राहुल गांधी और कुछ अन्य लोगों को समन जारी किया था।  इसके विरुद्ध सोनिया गांधी और राहुल गांधी के वकील दिल्ली उच्च न्यायालय पहुंचे थे। उच्च न्यायालय ने 7 दिसम्बर को उनकी अपील खारिज कर कहा कि इस मामले के सभी आरोपियों को 19 दिसम्बर 2015 को न्यायालय में हाजिर होना होगा। न्यायालय के रुख से तो लगता है कि  यह मामला सोनिया परिवार और पूरी कांग्रेस के लिए मुसीबत बन चुका है। इस मामले में डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी से अरुण कुमार सिंह ने बातचीत की, जिसके मुख्य अंश यहां प्रस्तुत हैं –
 सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने कहा है कि उन्हें नेशनल हेराल्ड मामले में राजनीतिक बदले की भावना से फंसाया जा रहा है। इस पर आप क्या कहना चाहेंगे?
न्यायालय का आदेश तथ्यों के आधार पर है। यह कोई राजनीतिक बदले की भावना नहीं है। ऐसा कह कर सोनिया-राहुल न्यायालय की ही अवमानना कर रहे हैं। हालांकि इस परिवार के लिए यह कोई नई बात नहीं है। पहले भी इस परिवार ने अनेक बार अदालत की अवमानना की है। जब इन्दिरा गांधी के विरुद्ध इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया था तो उन्होंने उससे बचने के लिए देश को आपातकाल के शिकंजे में जकड़ दिया था।

 कांग्रेसी सांसदों ने इस मामले को लेकर संसद में कोई काम नहीं होने दिया। क्या उन्हें अदालत पर भरोसा   नहीं है?
उनके रुख से तो ऐसा ही लगता है कि उन्हें अदालत पर तनिक भी भरोसा नहीं है। कांग्रेसी इस मुद्दे को राजनीतिक रंग देना चाहते हैं, पर वे कुछ भी कर लें यह मामला उनके लिए बहुत भारी पड़ने वाला है। वे यह क्यों भूल जाते हैं कि गलती एक दिन सबके सामने आती ही है?

इस पूरे मामले की पृष्ठभूमि प्रकाश पर डालें।  
जब मुझे इस मामले की जानकारी हुई तो मैं इसे लेकर पटियाला हाउस न्यायालय पहुंचा। दण्डाधिकारी गोमती मनोचा ने मेरे द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों के आधार पर कहा था कि जब तक उनकी (आरोपियों) तरफ से खण्डन जारी नहीं होता है तब तक यह माना जा सकता है कि कुछ तो गड़बड़ है। इसी आधार पर उन्होंने 26 जून, 2014 को सोनिया गांधी, राहुल गांधी, ऑस्कर फर्नांडीस, मोतीलाल वोरा, सैम पित्रोदा और सुमन दुबे को समन जारी किया और इस सम्बंध में जवाब देने को कहा। उस समन को रद्द करवाने के लिए ये लोग दिल्ली उच्च न्यायालय पहुंच गए। उनकी तरफ से बड़े-बड़े वकील आए और इस मामले में बहस की। मामला लंबा खिंचता गया। इस बीच अचानक एक दिन मुख्य न्यायाधीश ने इस मामले के न्यायमूर्ति संजीव गौड़ को बदल दिया और मामला न्यायमूर्ति पी. एस. तेजी को दे दिया। न्यायमूर्ति तेजी ने इस मामले पर कहा कि इस पर बहुत बहस हो चुकी है। अब मैं इसे जल्दी निपटाना चाहता हूं। इससे बचाव पक्ष घबरा गया और उसने अदालत से निवेदन किया कि यह मामला पहले के न्यायाधीश को ही सौंपा जाए। तब न्यायमूर्ति संजीव गौड़ को ही यह मामला सौंप दिया गया।  बचाव पक्ष की बहस पूरी होने के बाद मैंने 19  अक्तूबर 2015 को अदालत में अपनी पूरी बात रखी । मैंने अदालत के सामने इतना ही कहा था कि निचली अदालत ने जो किया है वह सही और नियमानुसार है। आरोपियों को पटियाला हाउस न्यायालय में जाना चाहिए और मामले का सामना करना चाहिए। मुझे खुशी है कि न्यायालय ने मेरी बातों को गंभीरता से लिया और नतीजा हम सबके सामने है।
ल्ल    बचाव पक्ष के वकीलों का कहना है कि यह कांगे्रस पार्टी का अंदरूनी मामला है। फिर आप किस हैसियत से दखल दे रहे हैं?
देखिए, राजनीतिक दलों को जो चन्दा मिलता है उस पर उन्हें सरकार को किसी तरह का कर नहीं देना पड़ता है। इसमें कांग्रेस भी शामिल है। कोई भी राजनीतिक दल किसी व्यक्ति विशेष के फायदे के लिए अपने कोष से खर्च नहीं कर सकता है। इसके अलावा सरकार की ओर से इन दलों को कार्यालय बनाने के लिए जगह दी जाती है, बंगले दिए जाते हैं। चुनाव के समय इन दलों को दूरदर्शन या आकाशवाणी से नि:शुल्क प्रचार करने का समय मिलता है। यानी इन दलों को जनता के कर से अनेक सुविधाएं दी जाती हैं। इसलिए एक करदाता के नाते मेरा यह दायित्व बनता है कि मैं कांग्रेस पार्टी के अन्दर जो गड़बडि़यां हैं उनकी शिकायत पुलिस या अदालत में करूं। अपराध से जुड़ा कानून भी हर नागरिक को यह अधिकार देता है कि कहीं कोई गड़बड़ी है तो उसकी शिकायत वह कर सकता है। मान लीजिए कि आप कहीं जा रहे हैं और किसी गाड़ी से टकराकर कोई राहगीर मर जाता है। यदि आप नैतिकतावान हैं तो आप तुरन्त इस घटना की जानकारी पुलिस को देंगे, जबकि उस घटना से आहत व्यक्ति के साथ आपका कोई सम्बंध नहीं होता है। मैं यही कर रहा हूं। कांग्रेस पार्टी किसी की निजी पार्टी नहीं है। भले ही मैं कांग्रेस पार्टी का सदस्य नहीं हंू, लेकिन मैं कांग्रेस के कोष का दुरुपयोग नहीं  होने दूंगा।
ल्ल    कुछ लोग यह भी कहते हैं कि आप सोनिया गांधी के परिवार से बेमतलब का बैर रखते हैं, इसलिए आप उन पर कुछ न कुछ आरोप लगाते रहते हैं।
यह बेकार की बात है, न्यायालय किसी बैर भाव के आधार पर नहीं, बल्कि दस्तावेजों के आधार पर निर्णय देता है। इस बात को सर्वोच्च न्यायालय भी दसियों बार कह चुका है। मैं जो आरोप लगाता हूं उसके साक्ष्य मेरे पास होते हैं। इस परिवार ने नेशनल हेराल्ड की सम्पत्ति, जो लगभग 5000 करोड़ रुपए की है, को हड़पने के लिए एक साजिश रची है। इसी साजिश के तहत सोनिया और राहुल की कम्पनी 'यंग इंडिया' को नेशनल हेराल्ड की पूरी सम्पत्ति का मालिकाना हक दे दिया गया है।

ाकाना हक दे दिया गया है। 'यंग इंडिया' सांस्कृतिक गतिविधियों से जुड़ी संस्था है, जबकि 'एसोसिएट जर्नल' मुनाफा कमाने वाली कम्पनी थी। फिर किस आधार पर उसकी सम्पत्ति यंग इंडिया को दे दी गई? कोई भी राजनीतिक दल राजनीति करने के लिए समाज से पैसा लेता है। यदि वह उस पैसे को कालेधन के रूप में विदेश में जमा कर दे, किसी गलत काम में लगा दे तो कोई न कोई उसका विरोध करेगा ही। नेशनल हेराल्ड की सम्पत्ति को हड़पने के लिए 'यंग इंडिया' से जुड़े लोगों ने एक आपराधिक षड्यंत्र रचा। इसी षड्यंत्र के अन्तर्गत कांग्रेस पार्टी ने 'एसोसिएट जर्नल' को बिना ब्याज के 90 करोड़ रुपए का कर्ज दिया। कहा गया कि इससे नेशनल हेराल्ड के कर्मचारियों को तनख्वाह दी जाएगी और उन्हें बेरोजगार होने से बचाया जाएगा।  इसके बावजूद नेशनल हेराल्ड को 2008 में बन्द कर दिया गया। सोनिया परिवार से कोई तो पूछे कि अखबार निकालने के लिए कर्ज दिया गया था, फिर भी अखबार क्यों नहीं निकला? 'यंग इंडिया' ने 'एसोसिएट जर्नल' को केवल 50 लाख रुपए का भुगतान करके उसकी 5000 करोड़ की सम्पत्ति पर कब्जा कर लिया है। यह धोखा नहीं तो क्या है? यह भी सवाल उठता है कि जिस 'यंग इंडिया' कम्पनी की कुल पंूजी सिर्फ 5 लाख रुपए  है, वह किसी कम्पनी को 50 लाख रुपए कैसे दे सकती है? इसका अर्थ है कि उसके पास कालाधन है। अब नेशनल हेराल्ड के भवनों को 'यंग इंडिया' ने किराए पर दे रखा है। इससे उसको प्रतिमाह लगभग एक करोड़ रुपए की आय होती है। 1947 से 2008 तक 'एसोसिएट जर्नल' को पंजाब नेशनल बैंक और कई अन्य बैंकों से लगभग 300 करोड़ रुपए का कर्ज मिला था। उसका क्या हुआ?

   'यंग इंडिया' पर और किस तरह के आरोप लगाए गए हैं?
पहला मामला तो बनता है षड्यंत्र का। फिर विश्वासघात, धोखाधड़ी और सम्पत्ति हड़पने का। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि 'यंग इंडिया' के निदेशक मण्डल में सोनिया गांधी, राहुल गांधी, मोतीलाल वोरा, ऑस्कर फर्नांडीस जैसे लोग हैं। सोनिया गांधी कांगे्रस की अध्यक्ष हैं, राहुल गांधी उपाध्यक्ष हैं, मोतीलाल वोरा कोषाध्यक्ष हैं और ऑस्कर फर्नांडीस महासचिव हैं।  'एसोसिएट जर्नल' में भी यही लोग हैं। मोतीलाल वोरा अध्यक्ष
हैं, निदेशक मण्डल में ऑस्कर फर्नांडीस, सैम पित्रोदा, सुमन दुबे आदि लोग शामिल हैं। यानी संस्थान तीन हैं और उन्हें चलाने वाले वही हैं। यह षड्यंत्र नहीं तो क्या है? इसी षड्यंत्र के तहत इन लोगों ने 'एसोसिएट जर्नल' की पूरी सम्पत्ति पर कब्जा किया है। फिर इन लोगों ने 'एसोसिएट जर्नल' के पुराने 761 शेयरधारकों से भी धोखा किया। इन लोगों ने शेयरधारकों से कहा कि 'एसोसिएट जर्नल' का स्वामित्व सोनिया गांधी और राहुल गांधी की कम्पनी 'यंग इंडिया' को दिया जा रहा है, पर स्वामित्व में कोई फर्क नहीं पड़ेगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। 'एसोसिएट जर्नल' तो खत्म हो गई और उसकी सम्पत्ति 'यंग इंडिया' को मिल गई। इसको आप हड़पना भी कह सकते हैं। 'यंग इंडिया' के 76 प्रतिशत शेयर सोनिया गांधी और राहुल गांधी के पास हैं। यानी कानूनन यही दोनों इस कम्पनी के मालिक हैं।  
कुछ तथ्य
नेशनल हेराल्ड 'कांग्रेस का अखबार' ही कहा जाता था।
इसका पहला संस्करण 9 सितम्बर, 1938 को लखनऊ से प्रकाशित हुआ था और इसके प्रथम सम्पादक थे जवाहरलाल नेहरू। घाटे के कारण 1988 में लखनऊ संस्करण बन्द हो गया।
दिल्ली संस्करण भी घाटे में जा रहा था। इसलिए 2008 में उस संस्करण को भी बन्द कर दिया गया। उसी समय कर्मचारियों को वेतन देने और अखबार के पुनर्प्रकाशन के लिए कांग्रेस ने बिना ब्याज के 90 करोड़ रुपए का कर्ज नेशनल हेराल्ड को चलाने वाली कम्पनी 'एसोसिएट जर्नल' को दिया।
कहा जाता है कि कुछ समय बाद 'यंग इण्डिया' कम्पनी ने 'एसोसिएट जनरल' की लगभग 5000 करोड़ की सम्पत्ति पर कब्जा करने के लिए आपराधिक षड्यंत्र रचा।  
जवाहरलाल नेहरू ने 'नेशनल हेराल्ड' के नाम पर लखनऊ, दिल्ली, मुम्बई, भोपाल, इन्दौर, पटना, पंचकुला जैसे शहरों में सरकार से सस्ती दर पर जमीन ली।  
ल्ल    मजेदार बात है कि लखनऊ और दिल्ली संस्करणों के अलावा और कहीं से भी नेशनल हेराल्ड का संस्करण नहीं निकला।
इस मद में सरकार से ली गई जमीनों पर  आलीशान भवन  बनाए गए। आज ये सारे भवन किराए पर चढ़े हुए हैं और इन सबका लाभ प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सोनिया परिवार को मिल रहा है।
1947 से 2008 तक 'एसोसिएट जर्नल' को पंजाब नेशनल बैंक और कई अन्य बैंकों से लगभग 300 करोड़ रुपए का कर्ज मिला था। उसका  कुछ अता-पता नहीं है।

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