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भारत ने पहली बार कोई मुद्दा अपने पड़ोसी देश नेपाल के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय मंच पर उठाया है। भारत की तरफ से संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की बैठक में चिंता जताते हुए कहा गया कि नेपाल में कोई राजनीतिक प्रगति नहीं हुई है और हिंसक घटनाओं के साथ जातीय द्वेष को बढ़ावा मिला है। भारत की तरफ से अपनी बात के समर्थन में नेपाल के नए संविधान को लेकर मधेशियों की चिंता और विरोध प्रदर्शन के बारे में कहा गया व नेपाल- भारत सीमा पर भारतीय ट्रकों को रोके जाने की बात भी कही गई है।
जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की बैठक में 'नेपाल के यूनिवर्सल पीरियोडिक रिव्यू' में भारत के कार्यवाहक स्थाई प्रतिनिधि बीएन रेड्डी ने कहा कि नेपाल ने अप्रैल 2015 में भूकंप की भयानक त्रासदी झेली है। इसके बाद से नेपाल के लोग राजनीतिक संक्रमण का सामना कर रहे हैं जो नेपाल के लिए एक बड़ी चुनौती है। नेपाल में जगह-जगह हिंसा हो रही है। विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। सितंबर 2015 से नए संविधान को लागू करने के बाद नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता का माहौल बना हुआ है। नेपाल में हो रही हिंसा में अभी तक 45 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं जबकि 100 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। हम इस राजनीतिक अस्थिरता को लेकर चिंतिंत हैं। उन्होंने कहा कि नेपाल में नए संविधान के लागू होने के बाद वहां की घटनाओं पर संयुक्त राष्ट्र संघ की मानवाधिकार संस्थाओं व स्वयं नेपाल के मानवाधिकार आयोग ने चिन्ता जताई है। नेपाल जिन समस्याओं का सामना कर रहा है वे उसकी राजनैतिक समस्याएं हैं। इनका निदान ताकत द्वारा नहीं किया जा सकता है। भारत के नेपाल के साथ जो परंपरागत रिश्ते हैं नेपाल को उन्हें ध्यान में रखते हुए संवाद से इस समस्या का हल तलाशने का प्रयास करना चाहिए। वहीं नेपाल के उपप्रधानमंत्री कमल थापा ने कहा कि दुनिया में कोई भी ऐसा संविधान नहीं है जो कि सौ फीसदी सही हो। हमारा संविधान एक जीवंत दस्तावेज है जिसे सारे समाज ने सर्वसम्मति से स्वीकार किया है।
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