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वर्ष 2014 में आंध्र प्रदेश से अलग होकर एक नया राज्य तेलंगाना बनाया गया। इसके बाद आंध्र प्रदेश के पास अपनी राजधानी का संकट आ गया क्योंकि हैदराबाद तेलंगाना के हिस्से में चला गया था। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने किसी शहर को राजधानी के तौर पर चुनने के बजाय एक नई राजधानी बसाने का निर्णय किया जिसे अमरावती का नाम दिया गया।
22 अक्तूबर को इस नये शहर की भव्य तरीके से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा आधारशिला रखी गई। अमरावती का सामाजिक और सांस्कृतिक तौर पर काफी महत्व है। इस प्राचीन शहर को स्वयंभू शिवलिंग के कारण अमरेश्वर मंदिर से अमरावती नाम मिला। अमरावती में कृष्णा नदी के तट पर बना अमरेश्वर मंदिर शिव भक्तों के बीच अपनी खास पहचान रखता है। इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि नदी तट पर 32 फुट का शिवलिंग स्वयंभू है। धीरे-धीरे यह शिवलिंग जमीन से 9 फुट ऊपर दिखलाई देने लगा है और इसका बाकी हिस्सा जमीन के अंदर ही है। इसके बाद यहां मंदिर बनवाया गया और आजकल शिवभक्तों की काफी भीड़ अमरेश्वर मंदिर में जुटती है। अमरावती क्षेत्र में सातवाहन वंश ने हिन्दू धर्म को बढ़ावा दिया था। उन्होंने यहां अमरेश्वर मंदिर बनाया, जिसके आधार पर पहली बार शहर को अमरावती नाम मिला। यह शहर प्राचीन और मध्यकाल में तेलुगू साम्राज्य का केन्द्र रहा है। ईसा पूर्व दूसरी सदी से लेकर 16वीं शताब्दी तक यह सातवाहन वंश, इक्ष्वाकु, चालुक्य, तेलुगू चोल, पल्लव, काकातिया और रेड्डी राजाओं के शासन में रहा। 16वीं सदी के मध्य तक यह कर्नाटक के विजयनगर साम्राज्य का हिस्सा रहा था। इस जगह का राजनैतिक, सांस्कृतिक केन्द्र और बौद्ध पंथ की राजधानी रहने के कारण ऐतिहासिक महत्व रहा है। दक्षिण भारत के आंध्र प्रदेश में कई प्राचीन बौद्ध स्थल हैं। अमरावती का इतिहास करीब 200 ईसा पूर्व से मिलता है कि जब यहां सातवाहन वंश का शासन था। अमरावती के राजा बौद्ध धर्म स्वीकारा और गुंटूर जिले में कृष्णा नदी के तट पर मशहूर स्तूप बनवाया। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अमरावती के बौद्ध विहार और स्तूपों का शानदार वर्णन किया है।
क्या है अमरावती का इतिहास : सातवाहन वंश के शासन के पहले अमरावती बौद्ध पंथ का केन्द्र था। यहां सम्राट अशोक के समय (269 से 232 ईसा पूर्व) बने स्तूप और बौद्ध मठ के अवशेष मौजूद हैं। इसके बाद आए राजवंशों ने यहां जैन पंथ को खूब बढ़ावा दिया और शहर का नाम श्रीधन्यकातक हो गया। इसका अर्थ है सहनशीलता का नगर। 18वीं शताब्दी में वासीरेड्डी वंश के आखिरी राजा वैंकटाद्रि नायडू ने शहर को अमरावती नाम दिया था। बाद में 1750 में अमरावती को फ्रांस को दिया गया। फिर 1759 में यह अंग्रेजों के मद्रास प्रेसिडेंसी के अधीन हो गया। अमरावती करीब 1800 साल पहले सातवाहन राजाओं की राजधानी हुआ करती थी। अमरावती के फिर से राजधानी बनने से ऐतिहासिक, राजनीतिक, धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत के बावजूद नजरअंदाज हुए इस शहर को नई पहचान मिलेगी।
किसानों के हितों का भी ध्यान : कृष्णा नदी के किनारे विजयवाड़ा-गुंटूर क्षेत्र में नई राजधानी के लिए किसानों की जमीन ली गई है। मुआवजे में हर किसान को 10 वर्ष के लिए प्रति एकड़ 50 हजार रुपये मिलेंगे। चंद्रबाबू नायडू की सरकार ने राजधानी बनाने के लिए 32,000 एकड़ जमीन ली है।
नागराज राव
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