महावीर भवन में आखिरी अष्टमी पूजन
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महावीर भवन में आखिरी अष्टमी पूजन

by
Nov 23, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 23 Nov 2015 12:11:54

हिन्दू हितचिंतक श्री अशोक सिंहल के निधन की सूचना प्रयाग पहुंचते ही उनके आवास 'महावीर भवन' पर खामोशी छा गयी। हर कोई हतप्रभ सा एक-दूसरे को देख रहा था यह क्या हो गया? भवन में चलने वाले वेद विद्यालय के आचार्य हों या छात्र, अरुंधति वशिष्ठ शोध संस्थान से जुड़े तमाम लोगों की आखें नम हो गईं। धीरे-धीरे नगर के तमाम लोग आवास पर पहुंचे पर किसी प्रमुख व्यक्ति के उपस्थित न होने से लोग विहिप कार्यालय 'केसर भवन' पहुंच गये।
अशोक जी का जन्म आगरा में हुआ था, लेकिन इनके पिता शिक्षा और नौकरी के लिए प्रयाग आये, फिर यहीं के होकर रह गये। अशोक जी के पिता श्री महावीर सिंहल ब्रिटिश शासनकाल में प्रयाग के सिटी मजिस्ट्रेट थे। आजादी के बाद उन्हें राजस्थान का मुख्य सचिव बनाया गया था। उनके द्वारा प्रयाग में महावीर भवन नाम से एक भवन बनवाया गया था, यही अशोक जी का निजी आवास था।
'महावीर भवन' पिछले तीन दशक से अशोक जी का आवास ही नहीं उन्हें सुख, शांति और ऊर्जा प्रदान करने का केन्द्र रहा है। यह बात अशोक जी स्वयं आपस में चर्चा के बीच कहा करते थे। शायद यही कारण है कि जब भी अशोक जी के पास समय होता था या अस्वस्थ होते तो विश्राम के लिए यहीं आया करते थे। इस आवास से उनके जुड़ाव का एक और बड़ा कारण बताया जाता है। कहा जाता है कि प्रयाग में रहते हुए अशोक जी रामचन्द्र तिवारी के संपर्क में आये। तिवारी जी की विद्वत्ता से अशोक जी इतना प्रभावित हुए कि उन्हें अपना गुरु बना लिया। गुरु के रूप में तिवारी जी वेदों का पारायण करते रहते थे। तिवारी जी ने अपना अंतिम समय यहीं बिताया। उनके द्वारा परिसर में स्थापित पीपल वृक्ष को 'वृक्ष राज' की संज्ञा दी गयी है, जिसका पूजन अशोक जी सदैव करते रहते थे। पैतृक आवास और गुरु के आशीष ने शायद महावीर भवन को अशोक जी के लिए ऊर्जा का स्रोत बना दिया। शायद यही कारण है कि लगभग तीन दशक से चल रहे राम जन्मभूमि आंदोलन के सभी महत्वपूर्ण कार्यक्रमों की रूपरेखा इसी भवन में महत्वपूर्ण व्यक्तियों से मंत्रणा के बाद कार्यान्वित हुई है।
महावीर भवन से अशोक जी के जुड़ाव को इसी से समझा जा सकता है कि पिछले एक लंबे अर्से से दोनों नवरात्रि की अष्टमी का पूजन अशोक जी यहीं आकर करते थे। इस नवरात्रि में स्वास्थ्य ठीक न होने के बावजूद अशोक जी अष्टमी पूजन के लिए आये। पूजन के समय ही तबियत खराब हो जाने के कारण अशोक जी को उसी दिन (20 अक्तूबर) एयर एम्बुलेंस से मेदान्ता अस्पताल, गुड़गांव ले जाया गया था। मेदान्ता अस्पताल के लिए निकलते समय अशोक जी सबका अभिवादन अपनी चिरपरिचित शैली में स्वीकार करते हुए ऐसे गये थे, मानो जल्दी वापस आयेंगे लेकिन विधि का विधान कि वह प्रयाग का आखिरी प्रवास हुआ।
तन समर्पित, मन समर्पित और यह आवास समर्पित
प्रयाग का महावीर भवन आज पहचान का मोहताज नहीं है। यह अशोक जी का आवास ही नहीं अनेक महत्वपूर्ण गतिविधियों का केन्द्र है। अशोक जी वेदों में बहुत रुचि रखते थे। वर्ष 1992 के माघ मेले में वेद सम्मेलन का आयोजन करके लुप्त हो रहे वेदों को पुनर्जीवित करने का सार्थक प्रयास किया। उसके बाद देश में वेद विद्यालय स्थापित किये जाने की न केवल इच्छा जतायी,  बल्कि अपने आवास का एक बड़ा भाग वेद विद्यालय के लिए दे दिया। आज इस विद्यालय में 3 आचार्य तथा 30 वेद विद्यार्थी हैं।
वेद विद्यालय के बाद अशोक जी ने प्रयाग में एक ऐसे केन्द्र की स्थापना का विचार बनाया जिसे जुड़े लोग राष्ट्र जागरण, बौद्धिक जागरण के लिए नीति निर्धारण तथा शोध एवं लोगों की सहायता कर सकें। यह केन्द्र 'अरुंधती वशिष्ठ शोध संस्थान' के नाम से अशोक जी ने अपने आवास में 2007 में स्थापित करवाया था।
आवास का शेष भाग भी अशोक जी ने अपनी सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक गतिविधियों के साथ विहिप की गतिविधियों के लिए उपयोग किया। साध्वी उमा भारती हों या प्रवीण भाई तोगडि़या जब भी प्रयाग आये तो इसी आवास में बैठकर राष्ट्रहित के लिए चिंतन किया करते थे। लेकिन अशोक जी के जाने की खबर से शांति, ऊर्जा और शक्ति प्रदान करने वाले इस भवन में फिलहाल तो सन्नाटा पसर रहा है।
समरसता के प्रतीक
श्री अशोक सिंहल की छवि देश-विदेश में भले ही एक मुखर हिन्दूवादी व्यक्तित्व के रूप में विख्यात हो लेकिन प्रयाग में उनकी छवि अलग ही है। जिन लोगों ने उनका आवास 'महावीर भवन' देखा है उन्होंने यह भी देखा होगा कि भवन के मुख्य द्वार के साथ में किसी मुसलमान की मजार है जहां प्राय: लोग चादर चढ़ाने, मन्नत मांगने या फूल चढ़ाने आते हैं। वर्ष में उर्स भी होता है। लेकिन अशोक जी ने कभी भी उस मजार को लेकर विरोध नहीं किया। वह कहा करते थे कि वह हिन्दूवादी हैं लेकिन दूसरे मत-पंथों के विरुद्ध नहीं हैं। वह कहते थे कि हमारे संगठन मुसीबतों में इंसानों का साथ देते हैं, हिन्दू या मुस्लिम नहीं देखते। काश उनके आलोचक इसे देख और
जान जाते।     -हरिमंगल

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