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विकास की साझी उड़ान

by
Nov 2, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 02 Nov 2015 11:34:54

भारत व अफ्रीका मिलकर विश्व की एक तिहाई जनसंख्या का निर्माण करते हैं। इसके साथ ही 3 करोड़ वर्ग कि़मी़ क्षेत्रफल में फैले 54 अफ्रीकी देश आज जहां अथाह प्राकृतिक संपदा संजोये हुए हैं वहीं भारत व्यापार, वाणिज्य, उद्योग, अवसंरचना निर्माण, मानव संसाधन विकास व प्रौद्योगिकी समुन्नयन के अपने सुदीर्घ अनुभव के साथ इन देशों को विकास के एक नवीन सोपान पर अग्रसर करने में समर्थ है। आज भारत-अफ्रीकी व्यापार, जो 70 अरब डॉलर वार्षिक है, इस सम्मेलन से भारत व अफ्रीका के मध्य विकसित होने वाले पारस्परिक सहयोग के फलस्वरूप चीन व अफ्रीका के बीच हो रहे वर्तमान 200 अरब डॉलर के शीर्ष कारोबार को भी पीछे छोड़कर अफ्रीका के विकास में एक नया अध्याय जोड़ने वाला सिद्घ होगा।
स्वाधीन भारत के इतिहास में अपनी तरह के सबसे बड़े इस शिखर सम्मेलन के पूर्व ही हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने पारस्परिक सहयोग के जो क्षेत्र चिह्नित किए हैं, वे जहां एक ओर अफ्रीका को विकास के नये पथ पर अग्रसर करेंगे वहीं भारत के लिए उस क्षेत्र में निवेश के अपूर्व अवसर खोलेंगे; ये दोनों के बीच आर्थिक सहयोग का वातावरण बनायेंगे, साथ ही अफ्रीका की अन्तर्बाह्य सुरक्षा को भी सुदृढ़ करेंगे। प्रधानमंत्री मोदी ने कृषि, स्वच्छ ऊर्जा, अवसंरचना विकास, मानव संसाधन विकास, जन स्वास्थ्य, शिक्षा, कौशल विकास एवं संस्थागत क्षमता निर्माण आदि जो सहयोग के क्षेत्र चिह्नित किये हैं, वे भारत व अफ्रीका के इन 54 देशों के बीच सुदीर्घ सहयोग व राजनयिक समीपता को सुदृढ़ आधार प्रदान करेंगे।
विश्व की 60 प्रतिशत खेती योग्य भूमि अफ्रीका में है। लेकिन, विश्व के कुल कृषि उत्पादन में अफ्रीका का योगदान मात्र 10 प्रतिशत ही है। इसी प्रकार शिक्षण व कौशल विकास के माध्यम से अफ्रीका को स्वावलम्बन के मार्ग पर अग्रसर करने के लिये भारत के शिक्षक व प्रशिक्षक महती भूमिका निभा सकते हैं। इन सभी क्षेत्रों में भारत-अफ्रीकी सहयोग अत्यन्त प्रभावी सिद्घ होगा। खनन, समुद्र तटीय तेल खोज, उसके विदोहन, मात्स्यिकि एवं स्वच्छ ऊर्जा के विकास में भी भारत का सहयोग उन सभी देशोें के लिए वरदान सिद्घ होगा। वहीं दूसरी ओर खनिज तेल सहित अफ्रीका के प्राकृतिक संसाधन भारत के द्रुत आर्थिक वृद्घि में अहम योगदान देने वाले सिद्घ होंगे। अफ्रीका के विकास की भारत की यह पहल जहां भारत के लिए भी अपूर्व आर्थिक अवसर उपलब्ध करायेगी, वहीं दो आगामी अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भी भारत व अफ्रीका सहित सभी विकासशील देशों के हितों के संरक्षण की दिशा में अत्यंत महत्वपूर्ण सिद्घ होगी। इसी वर्ष संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण परिवर्तन पर नवम्बर के अंत में फ्रांस में हो रहे सम्मेलन व नैरोबी में 15-18 दिसम्बर के बीच हो रहे विश्व व्यापार संगठन के 10वें द्विवार्षिक मंत्री स्तरीय सम्मेलन के पूर्व इस शिखर सम्मेलन से इन दोनों सम्मेलनों के लिए विकासशील देशों की सभी रणनीति तय की जा सकेगी। पर्यावरण पर होने वाले सम्मेलन में जहां हरित प्रौद्योगिकी विकास  के लिए कोष निर्माण व तकनीकी हस्तांतरण के साथ-साथ विकासशील देशों के आर्थिक विकास को बाधित होने से भी बचाना है, वहीं विश्व व्यापार संगठन के सम्मेलन में व्यापार, कृषि, खाद्य सुरक्षा, बौद्घिक संपदा आदि के मुद्दांे पर हम बेहतर सहयोग का वातावरण बना सकेंगे।
यह शिखर सम्मेलन ऐसे समय में हो रहा है, जब पूरे अफ्रीका में चीन द्वारा विगत एक दशक से विकास के नाम पर किए गए शोषण के विरुद्घ व्यापक जनाक्रोश पनप रहा है। वहां चीन द्वारा प्राकृतिक संसाधनों के विदोहन में किए गये पर्यावरण विनाश व स्थानीय श्रम शोषण, चीनी बंधक श्रमिकों के नियोजन से स्थानीय लोगों में बेरोजगारी आदि के विरुद्घ व्यापाक आक्रोश है। घटिया चीनी माल को लेकर भी लोग क्षुब्ध हैं। इसके अतिरिक्त वहां एड्स, मलेरिया व अन्य संक्रामक रोगों के विरुद्घ सस्ती दवाइयों से भारत ने विगत 15 वषार्ें मंे अफ्रीकी देशों की व्यापक सहायता की है।
भारतीय जेनेरिक दवाओं के माध्यम से ही अफ्रीका एड्स जैसी महामारी से उबर पाया है और पुन: आर्थिक प्रगति के पथ पर आगे बढ़ पाया है। आज भी भारत ही सस्ती दवाओं की दृष्टि से विश्व की फार्मेसी कहलाता है। इस कारण भारतीय जेनेरिक दवाईयां आज भी अफ्रीका की जीवन-रेखा बनी हुई हैं। हाल ही में भारत द्वारा छह अफ्रीकी देशों के संयुक्त राष्ट्र शान्ति सैनिकों के प्रशिक्षण की सहमति एवं अफ्रीकी स्टेण्ड-बाई सैन्य बल के गठन में सहयोग, अफ्रीका की सुरक्षा हेतु बाह्य शक्तियों पर निर्भरता कम करेगा। इससे भी अफ्रीका के आर्थिक वृद्घि का मार्ग प्रशस्त होगा।
आज अफ्रीका में भारत का निवेश, जो 30-35 अरब डॉलर है, 100 अरब डॉलर तक सहजता से ले जाया जा सकता है और अफ्रीका को द्रुत आर्थिक प्रगति के पथ पर ले जा सकता है। भारत ही नहीं विश्व के सर्वाधिक द्रुत गति से विकसित होने वाले देशों में 7 अफ्रीकी देश भी हैं। इसलिये अब अफ्रीका के संसाधनों व भारत के अनुभव एवं उन्नत प्रौद्योगिकी के संयोग से मंदी के जाल में फंसती विश्व व्यवस्था को उबारना संभव होगा। विशेषकर, जब यूरोप, अमरीका व चीन जिस आर्थिक मंदी के दलदल में फंसे हैं और जितना वे उससे उबरने का प्रयास कर रहे हैं, उस दलदल में वे उतना ही अधिक गहरे फंसते जा रहे हैं।
ऐसे में अब भारत-अफ्रीकी सहयोग का यह नवीन अध्याय विश्व को आर्थिक मंदी से उबारने में एक प्रकाश-रेखा के रूप में उभरेगा।    

 भगवती प्रकाश

(लेखक : अर्थचिंतक एवं पैसेफिक विश्वविद्यालय, उदयपुर राजस्थान के कुलपति हैं।)
भारत व अफ्रीका-एक दृष्टि में
    जनसंख्या         क्षेत्रफल             सकल घरेलू उत्पाद
  भारत    120 करोड़    3़02 करोड़ वर्ग कि़ मी़    20 खरब डॉलर
  अफ्रीका    111 करोड़    32़87 लाख वर्ग कि़ मी़    13 खरब डॉलर

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