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आईना – हिन्दुओं की पीड़ा नहीं दिखती उन्हें…

by
Oct 26, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 26 Oct 2015 13:02:58

देश में कथित बुद्धिजीवियों का एक धड़ा दादरी हिंसा पर तो घडि़यालू आंसू बहाता है लेकिन देश के अन्य राज्यों में हो रहीं साम्प्रदायिक हिंसा की घटनाओं पर वे चुप्पी साध लेते हैं। पश्चिम बंगाल में आएदिन जिहादियों द्वारा हिन्दुओं पर अत्याचार किए जाते हैं लेकिन इन पर बुद्धिजीवियों का मुंह सिल जाता है।
पश्चिम बंगाल में 3 मई,2015 को जिहादियों द्वारा जुरानपुर में ऐसी ही हिंसा की घटना हुई। जिहादियों द्वारा हिन्दू परिवार के तीन लोगों की बड़ी ही बेरहमी से हत्या कर दी गई। इस पूरी घटना में तृणमूल पार्टी के विधायक मोहम्मद नसरुद्दीन अहमद ने हत्यारों को शह दी। लेकिन इस पूरे भयावह घटनाक्रम को राष्ट्रीय चैनल या समाचार पत्र ने स्थान देना उचित नहीं समझा। दादरी पर चीख-पुकार मचाने वाला कोई बुद्धिजीवी नहीं बोला। असल मंे इन कथित बुद्धिजीवियों का उद्देश्य केन्द्र की राजग सरकार को अस्थिर करना है। जुरानपुर में हुई हिंसा में अभी प्रमुख अभियुक्त गिरफ्तार नहीं किया गया है। वहीं पीडि़त हिन्दू परिवार न्याय की आस में दर-दर भटक रहा है और राज्य सरकार की ओर से उस परिवार को कोई भी संरक्षण नहीं दिया जा रहा है।
इस हमले का शिकार हुए मारू हजारे की पत्नी अर्पणा हजारे द्वारा जारी किए गए एक प्रेस वक्तव्य के अनुसार, जुरानपुर में असहाय हिन्दुओं पर मजहबी उन्मादियों द्वारा एकतरफा हमला किया जा रहा था और असहाय हिन्दू करुण क्रन्दन कर रहे थे। इस हमले में एक ही परिवार के तीन लोगों की उन्मादियों ने हत्या कर दी और कई महिलाएं गंभीर रूप से घायल हुईं।  जिहादियों का आतंक यहीं नहीं थमा, उन्होंने 35 हिन्दुओं के घरों को भी आग के हवाले कर दिया। कितने ही मवेशी जलकर मर गए। स्थानीय लोगों की मानें तो जिस समय यह घटना घटी उस समय तृणमूल पार्टी का विधायक कालीगंज पुलिस थाने में बैठा था। घटना के बाद पुलिस उसके खिलाफ कोई भी कार्रवाई नहीं कर सकी क्योंकि विधायक का पूरे मामले में सीधा हस्तक्षेप था। ऐसी ही दूसरी घटना 3 मई,2015 को बर्द्धमान जिले की है। अनसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के किसानों का एक समूह जुरानपुर पंचायत के नौदा गांव में एक मंदिर में दर्शन के लिए जुलूस रूप के में जा रहे थे। वे अपने साथ में पूजा की सभी सामग्री लिए हुए थे। लेकिन अचानक इस शान्तिपूर्ण जुलूस पर बिना किसी कारण के  जिहादियों ने  बड़ी ही बेरहमी से हमला कर दिया। सूत्रों की मानें तो जिहादियों ने इस जुलूस पर बम भी फेंके, जिसके बाद सभी उन्मादी भागने में सफल हो गए। अगले दिन जब सभी भक्त जुरानपुर के लिए प्रस्थान कर रहे थे तो रास्ते में पड़ने वाली एक मस्जिद से मुसलमानों ने घात लगाकर एक समूह में उनपर हमला कर दिया। इस हमले में  स्थानीय हमलावरों के अलावा बड़ी संख्या में बाहरी उन्मादी भी शामिल थे, जिनका एकमात्र उद्देश्य आतंक फैलाना था। इन उन्मदियों द्वारा लगातार 3 घंटे तक हिन्दुओं पर अत्याचार किया जाता रहा और हिन्दू सहायता की भीख मांगते रहे, लेकिन इन हिन्दुओं की सहायता के लिए न कोई आगे आया, न ही उनकी किसी ने मदद की।  स्थानीय लोगों के अनुसार जिहादियों ने हिन्दुओं के अनेक घरों को आग लगाकर तहस-नहस किया, उनके घरों में लूट की और महिलाओं के गहनों को भी लूटा। इस पूरी घटना के चश्मदीद गवाहों, जो कि हिन्दू हैं, ने जब पुलिस को घटना की जानकारी दी तो पुलिस ने अनसुना कर दिया।  जिहादियों ने जब पूरा उत्पात मचा लिया, उसके कई घंटों बाद पुलिस घटनास्थल पर पहुंची और मृत शरीरों को कृष्णानगर भेजा। जो लोग इस घटना में घायल हुए थे उनके साथ कटबा सरकारी अस्पताल में भी अभद्रता की गई। साथ ही कुछ घायलों को बर्द्धमान के अस्पताल में भेजा गया। जिहादियों के आतंक की ऐसी ही तीसरी घटना  पश्चिम बंगाल के निकाय चुनाव के दौरान की है। 3 अक्तूबर,2015 को साल्ट लेक में सुबह जैसे ही मतदान केन्द्रों पर मतदान शुरू हुआ वैसे ही कुछ उन्मादियों ने मतदाताओं, पत्रकारों और यहां तक कि पुलिस वालों के साथ मारपीट की। मतदान केन्द्र पर जो भी तृणमूल पार्टी के प्रत्याशी के विरोध में मतदान करता, उसके साथ वह हिंसा करने लगते। साल्ट लेक मतदान केन्द्र पर तैनात कर्मचारी इस पूरी घटना पर मूकदर्शक बनेहुए थे। साल्ट लेक और राजरहाट पर गुंडों की हिंसा से स्थिति नियंत्रण से बाहर थी। वे लोगों को मतदान नहीं करने दे रहे थे। उन्मादियों के झुंड में 18 से 30 वर्ष के युवा शामिल थे। तृणमूल पार्टी के ये गुंडे बाहर से आयातित थे, जो खासकर मतदान के दिन उत्पात के लिए ही बुलाये गए थे।
तृणमूल के इन अपराधी तत्वों के लिए यह समय कर्ज उतारने का था और इन उन्मादियों ने अपने कार्य को बखूबी अंजाम दिया। इसी दौरान कुछ पत्रकार, जो चुनाव कवर कर रहे थे, 10 बजकर 30 मिनट पर साल्टलेक के प्रशासनिक प्रशिक्षण संस्थान मतदान केन्द्र पर पहुंचे तो पाया कि मतदान केन्द्र के दरवाजे बंद हैं और मतदाता बाहर लाइन में खड़े हैं। पूछे जाने पर कुछ समय बाद एक युवक और एक महिला ने दावा किया कि उन्होंने अपना वोट डाल दिया है और उन्होंने उंगली पर लगी स्याही भी दिखाई। लेकिन जब उनसे उनके पहचान पत्र दिखाने के लिए कहा गया तो उन्होंने बड़े ही सामान्य रूप में कहा कि उनके पास नहीं हैं। जिन स्थानों पर ऐसे ही बाहर के अपराधी तत्वों को लाया गया था उनमें 30,39,40 और 41 नंबर के मतदान केन्द्र थे। इन मतदान केन्द्रों के पास सैकड़ों की तादाद में ऐसे भाड़े के लोग उपस्थित थे। कई ऐसे लोग भी दिखाई दिए जो अपनी उंगली के निशान को अपने बालों और कंधों से रगड़कर मिटा रहे थे। इस पूरी घटना का बंगाल की मीडिया ने खुलासा किया, लेकिन कुछ चैनलों ने सत्ता के दवाब में आकर इस समाचार को दिखाया ही नहीं। वहीं करीब 14 पत्रकारों का एक समूह साल्ट लेक मतदान केन्द्र की बूथ लूटने की घटना को कवर करने गया तो तृणमूल पार्टी के भाड़े के तत्वों ने लक्षित करके इन लोगों पर हमला किया।  यहां तक कि एक चैनल की पत्रकार के सिर पर हमला किया। ऐसी कई महिला पत्रकार हैं, जिनके साथ सिर्फ बर्बरता ही नहीं की गई बल्कि बलात्कार तक का प्रयास किया गया।      
-पाञ्चजन्य ब्यूरो

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