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संसदीय हिंदी परिषद् द्वारा विधि भारती और परिचय साहित्य परिषद् के सहयोग से 14 अक्तूबर को संसद के केन्द्रीय कक्ष में राष्ट्रभाषा उत्सव का आयोजन किया गया। दीप प्रज्ज्वलन के साथ संसदीय हिन्दी परिषद की पूर्व अध्यक्षा पूर्व केन्द्रीय मंत्री एवं हिन्दी सेवी स्व. डॉ. सरोजिनी महिषी को श्रद्धांजलि अर्पित की गई। समारोह की अध्यक्षता करते हुए पूर्व लोकसभा महासचिव एवं वरिष्ठ संविधानविद् पद्मभूषण डॉ. सुभाष कश्यप ने कहा कि संसद के केन्द्रीय कक्ष से साठ वर्ष के सम्बन्ध से मुझे व्यक्तिगत रूप से कई अनुभव मिले। अहिन्दी भाषी क्षेत्र के लिए स्थापित संसदीय हिंदी परिषद् के माध्यम से विदुषी डॉ. सरोजिनी महिषी ने लगभग 50 वर्ष तक हिंदी की अद्भुत सेवा की।
डॉ. सुभाष कश्यप ने आगे कहा कि हिंदी के विषय में एक भ्रान्ति व्याप्त है कि हिंदी मात्र एक मत से राजभाषा बनते रह गयी जबकि सच यह है कि संसद में हिंदी सर्वसम्मति से राजभाषा स्वीकृत हुई थी। नि:संदेह पहले ही नहीं आज भी अधिकांश संसद सदस्य अपने प्रश्नों, भाषणों और कार्यवाहियों में हिन्दी भाषा को वरीयता देते हैं। यह गौरव की बात है कि आज भी दोनों सदनों के संसद सदस्य हिंदी के प्रयोग को ही वरीयता देते हैं बेशक लोकसभा और राज्यसभा दोनों ही सदनों में हिंदी और अंग्रेजी के साथ सभी भाषाओं में समझने की सुविधा उपलब्ध है। जब हम हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की बात करते हैं तो हमें क्षेत्रीय भाषाओं का भी ध्यान रखना चाहिए क्योंकि इनके अहित से हिंदी का कल्याण नहीं होगा।
कर्नाटक के पूर्व राज्यपाल एवं संसदीय हिंदी परिषद् के अध्यक्ष श्री त्रिलोकीनाथ चतुर्वेदी ने कहा कि हिंदी के प्रणेता पंडित गोविंद बल्लभ पन्त द्वारा स्थापित संसदीय हिंदी परिषद् के माध्यम से भाषा के सम्मान के अभियान निरंतर चलने चाहिए। राष्ट्र को जोड़ने वाली हिंदी को कुछ कारणों से बेशक संविधान में अपेक्षित सम्मान प्राप्त न हुआ हो लेकिन इससे इसकी महानता कम नहीं होती। हिंदी का तो जन्म ही दक्षिण में हुआ इसलिए वहां विरोध कैसे हो सकता है। हिंदी जोड़ने का काम करती है देश के अन्दर भी और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी। श्री त्रिलोकीनाथ चतुर्वेदी ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री भारतरत्न अटल बिहारी वाजपेयी ने जिस हिंदी को विश्व पटल पर स्थापित करने का सांकेतिक प्रयास किया था आज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हिंदी भाषा को बढाने की निरंतर कोशिश कर रहे हैं और इसी भाषा में दुनिया को समझा रहे हैं।
राष्ट्रभाषा उत्सव में प्रत्येक वर्ष की तरह इस वर्ष भी साहित्य, मीडिया और भाषा प्रचार के क्षेत्र में विशेष योगदान देने वाले महानुभावों को राष्ट्रभाषा गौरव सम्मान प्रदान किये गए । इनमें प्रमुख हैं प्रेमचंद साहित्य के मर्मज्ञ केन्द्रीय हिंदी संस्थान आगरा के निदेशक डॉ. कमल किशोर गोयनका, कलावती सरन अस्पताल दिल्ली की पूर्व चिकित्सा अधीक्षक हिंदीसेवी डॉ़ वासंती रामचंद्रन, वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. एस़ पी़ सुदेश एवं कवयित्री सरोजिनी प्रीतम। इसके साथ ही मीडिया के क्षेत्र में ये सम्मान दूरदर्शन हिंदी समाचार की श्रीमती नीलम शर्मा और वृतचित्र निर्माता पत्रकार प्रदीप जैन को प्रदान किये गए।
इस अवसर पर स्वर्गीय डॉ़ सरोजिनी महिषी पर केन्द्रित विधि भारती के विशेषांक सहित डॉ. सूरजमणि स्टेला द्वारा लिखित 'उरांव जनजाति का लोकसाहित्य', डॉ़ उषा देव के कहानी संग्रह 'प्रतिज्ञा' और प्रतिभा जौहरी के उपन्यास 'रेखाएं आढी तिरछी' का भी लोकार्पण किया गया। इस अवसर पर कवयित्री प्रतिभा श्रीवास्तव ने 'निर्भया' पर केन्द्रित एक कविता भी सुनाई।
पूर्व सांसद श्रीमती सत्या बहन ने कहा कि सारे दावों के बाद भी सम्मान की अधिकारिणी हिंदी को अपेक्षित सम्मान नहीं मिला और ज्यादा पीड़ा तब होती है जब हिंदी वाले अंग्रेजी में काम करते हैं। अतिथियों का स्वागत करते हुए विधि भारती की संपादक श्रीमती संतोष खन्ना ने कहा कि संसदीय हिंदी परिषद् और डॉ़ महिषी के साथ वर्ष 2003 से संसद से बाहर के लोग जुड़े इसलिए अब उनके जाने के बाद हम सबका दायित्व और अधिक बढ़ गया है। श्रीमती उर्मिल सत्यभूषण ने कहा कि वर्ष 2002 में इस उत्सव में कुल 30 लोग थे जबकि डॉ़ महिषी के प्रयास का परिणाम है कि कई वर्षों से सारा सेंट्रल हाल खचाखच भर रहा है। समारोह का मंच संचालन करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के प्रो़ पूरणचंद टंडन ने कहा कि भाषा के विस्तार के लिए संसद देश की सवार्ेत्कृष्ट संस्था और लोकतंत्र का एक पूज्य तीर्थस्थल है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी की बात करने से ज्यादा हिंदी में बात करने की सलाह देते थे, इस पर अमल करने की जरूरत है। ल्ल पाञ्चजन्य ब्यूरो
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