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अन्नदाता के मंगल से जुड़ा राष्ट्र

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Oct 20, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 20 Oct 2015 13:09:02

आवरण कथा ‘अन्नदाता सुखी भव’ की कामना देश का प्रत्येक व्यक्ति करता है, लेकिन आज के किसान की हालत जैसी होनी चाहिए वैसी नहीं है। स्तरहीन खाद-बीज व रसायनों के प्रयोग के चलते खेती की पैदावार दिन-प्रतिदिन घटती जा रही है और खेत बंजर होते जा रहे हैं। यहां तक कि रसायनों के प्रयोग से खाने की अधिकतर चीजें विषैली हो गई हैं। समाज में इसके दुष्परिणाम भी दिखाई दे रहे हैं। आज हम देखते हैं कि हर घर में बीमारियों का बोलबाला है। यह अत्यधिक चिंता की बात है। अन्नदाता के सुख का राज रासायनिक खेती से मुक्ति और जैविक खेती के उपयोग में छुपी है।

—राममोहन चन्द्रवंशी

विट्ठल नगर,हरदा (म.प्र.)

कृषि को लाभकारी बनाने के लिए उत्पादन लागत में कमी लाने के प्रयास होने चाहिए। पिछले कई वर्षों से बिजली, खाद, मजदूरी के दामों में भारी बढ़ोतरी हुई है। लेकिन इसके बावजूद फसलों के दामों में कोई विशेष वृद्धि नहीं हुई। केन्द्र और राज्य सरकारों को इस दिशा में संयुक्त प्रयास करने होंगे। साथ ही किसानों को भी अब पारंपरिक खेती की ओर ध्यान देना होगा। जैविक खाद का उपयोग और प्राकृतिक संसाधनों पर विचार करना होगा।        

      —मनोहर मंजुल

पिपल्या-बुजुर्ग, प.निमाड (म.प्र.)

भारतीय संस्कृति में ग्राम तथा कृषि को ऊंचा स्थान था। लेकिन कुछ षड्यंत्रों के चलते इसे ठुकराकर पाश्चात्य संसाधनों को जानबूझकर थोपा गया, जिसके कारण हमारी कृषि का नाश हो गया। अत्यधिक उपज का लालच देकर हमारे खेतों को बंजर बनाने का दुष्चक्र किया गया। अब हमें पुन: इस दिशा में जागृति लानी होगी क्योंकि खेती में पैदावार न होने के कारण गांवों से शहरों की ओर लोगों का पलायन लगातार जारी है। इसका एक प्रमुख कारण है कि गांवों मेंं रोजगार ही नहीं हैं। पं. दीनदयाल उपाध्याय और महात्मा गांधी के इस संदर्भ में विचारों को देखें तो वे चाहते थे कि जो राजनीति हो वह ग्राम केन्द्रित हो और भारत के सांस्कृतिक परिवेश को ध्यान में रखकर हो। क्योंकि हमारी पुरानी संस्कृति में सभी समस्याओं का समाधान है।

     —लक्ष्मीचंद, कसौली, सोलन (हि.प्र)

पहले के समय गोवंश आधारित कृषि होती थी। गोवंश और कृषि का आपस में एक संबंध था। लेकिन समय दर समय जैसे-जैसे अत्याधुनिक संसाधनों का बढ़ना शुरू हुआ वैसे-वैसे गोवंश का क्षरण शुरू हो गया। टैÑक्टर, कंपाइन और अन्य साधनों ने गोवंश को समाप्त करने की नींव डाल दी। उसी का दुष्परिणाम आज हमारे सामने है। आज देश का ऐसा कोई भी राज्य नहीं है जहां गोवंश की तस्करी न होती हो और उनका कत्ल न होता तो। असल में उनका उपयोग लगभग समाप्त हो गया जिसके कारण लोग गोवंश को बेचने लगे। परिणाम हम सबके सामने हैं। लेकिन आज फिर से गोवंश को कृषि में पुनर्स्थापन की व्यवस्था पर चिंतन करना होगा। अगर ऐसा नहीं होता है तो हमारी परंपरा टूट जाएगी।

—हरिओम जोशी

चतुर्वेदी नगर, भिण्ड (म.प्र.)

निन्दनीय बयान

उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी द्वारा दिया गया भाषण उनकी पद की गरिमा के अनुरूप न होकर किसी छोटे कद के नेता जैसा था। क्या संवैधानिक पद पर होने के बाद ऐसा बयान देना उनको सुहाता है? उन्हें पता होना चाहिए यह देश मुसलमानों के लिए जितनी हमदर्दी रखता है उतना तो इस्लामिक देश तक नहीं रखते। आज मुसलमान अगर पिछड़ा है तो उसके लिए वह स्वयं जिम्मेदार है। वह मजहब की जंजीरों को छोड़ना ही नहीं चाहता, जिसका परिणाम उसके सामने है। मुसलमानों को आज के माहौल के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलना होगा, तभी वह आगे बढ़ पाएगा।

—रमेश कुमार मिश्र

कान्दीपुर,अंबेडकरनगर (उ.प्र.)

संविधान में विश्वास रखने वाला कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं होगा जिसने उपराष्ट्रपति के उस बयान की भर्त्सना नहीं की होगी। उन्होंने यह साम्प्रदायिक बयान जानबूझकर दिया था। केन्द्र में चल रही भाजपा सरकार को स्थिर देखते हुए कई लोगों की परेशानी बढ़नी स्वभाविक है। वह देश के उपराष्ट्रपति हंै या किसी एक वर्ग विशेष के नेता।

—रामधारी कौशिक

विजयनगर, भिवानी (हरियाणा)

समरसता की आवश्यकता

लेख ‘सामूहिक भोजन व भजन बचाएगा परिवार’ अच्छा लगा। आज देश में सामाजिक समरसता की अत्यधिक आवश्यकता है। सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने अपने एक संबोधन में इस बात पर विशेष बल देते हुए कहा था कि समाज यदि एकमत होकर चलेगा तो इससे सामाजिक एकता को बल मिलेगा। यदि ऐसा नहीं हुआ तो समाज को तोड़ने वाली ताकतें अधिक प्रभावी होंगी। आज की जनसंख्या और दस वर्ष पहले की जनसंख्या में हिन्दुओं की संख्या में काफी अंतर आया है। मुसलमानों की संख्या बराबर बढ़ रही है तो हिन्दुओं की संख्या कम हो रही है। साथ ही कन्वर्जन भी बढ़ रहा है। इन सबमें वंचित समाज की संख्या अधिक है। समाज द्वारा उन्हें उचित सम्मान न मिलने के कारण वे कन्वर्ट हो कर विरोधी के रूप में प्रकट हो जाते हैं। ऐसा न हो इसलिए सभी मतभेदों को भूलकर, सभी समान हैं का भाव जाग्रत करना होगा। ऐसा जिस दिन हो जायेगा उस दिन हिन्दुत्व को तोड़ना तो दूर की बात, उसकी ओर आंख उठाकर भी कोई नहीं देख सकेगा।

—इन्दुमोहन शर्मा, राजसमंद (राज.)

ङ्म आज हम सब मिलकर शोषण, अन्याय के विरुद्ध संघर्ष जारी रखें। व्यक्तिवाद, वंशवाद व परिवाद ने देश को खोखला करके रख दिया है। समाज इन विकृतियों से ऊपर उठे और ऐसे लोगों का विरोध करे जो इन चीजों को बढ़ावा देते हैं। हमारे लिए हमारा समाज, हमारा देश सर्वोपरि है। इसी भावना को लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ देश में सतत समाजसेवा में लगा हुआ है। देश इस बात को बड़े गर्व के साथ स्वीकार भी करता है।

—गुरु नारायण कठेरिया

सिन्धी कॉलोनी, भरथना, इटावा (उ.प्र.)

बढ़ती विषबेल

देश में लगातार बढ़ती मुस्लिम जनसंख्या किसी खतरे से कम नहीं है। कुछ रपटों पर गौर करें तो स्पष्ट हो जाता है कि आगामी दो दशक के बाद हिन्दू आबादी में 50 फीसद की कमी आएगी क्योंकि हिन्दू ‘हम दो हमारे दो’ की नीति पर चल रहा है जबकि हिन्दुस्थान के मुस्लिम ‘हम पांच हमारे पच्चीस’की नीति पर। दूसरी ओर लाखों मुसलमान बंगलादेश और पाकिस्तान से घुसपैठ करके भारत में अवैध रूप से रहकर यहां के ताने-बाने को नष्ट कर रहे हैं। साथ ही देश के अंदर भी तुष्टीकरण की राजनीति इनको और पालने का काम कर रही है, जिसके कारण इनके हौसलों को और पर लग जाते हैं। अगर तुष्टीकरण की राजनीति ऐसे ही होती रही तो देश के लिए यह बहुत ही घातक सिद्ध होने वाली है।

—आनंद मोहन भटनागर,

लखनऊ (उ.प्र.)

समान शिक्षा नीति की आवश्यकता

रपट ‘पढ़ाई का पहाड़ा’ से स्पष्ट हो गया है कि व्यवस्था परिवर्तन हेतु इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला सख्ती से लागू होना चाहिए। यदि सक्षम व्यक्ति और सरकारी अधिकारी अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाएंगे तो निश्चित ही उनकी दशा सुधरेगी क्योंकि सरकारी स्कूलों की हालत का अंदाजा आज सभी को है। एक सामान्य व्यक्ति भी अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में नहीं पढ़ाना चाहता। इसलिए देशभर में इस ओर जनजागरण अभियान चलाने की आवश्यकता है।

—भूषण राजपूत, पहाड़गंज (नई दिल्ली)

ङ्म भारत देश आध्यात्मिक व आत्मज्ञान के कारण दुनियाभर में विख्यात था। लेकिन यह तभी तक रहा जब तक वेद का दीपक घर-घर में जलता रहा। अपनी शान्ति और अपने बच्चों की समृद्धि के लिए वेद का फिर से प्रचार-प्रसार करें।

—जयदेव आर्य

माउंट आबू, दिलवाड़ा (राज.)

हमारे प्रेरणापुञ्ज

जब हम स्वतंत्र हैं तो हमारी पाठ्य पुस्तकों में अकबर महान, सिकन्दर महान क्यों पढ़ाया जाता है? हम उन्हें महान कह रहे हैं जो हमारी सभ्यता-संस्कृति को नष्ट करने आए थे। लेकिन दूसरी ओर उन आततायीयों और लुटेरों से हमारे हिन्दुत्व और मातृभूमि की रक्षा के लिए जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन अर्पण कर दिया, उनको हमने ठुकराया और भुलाया है। आज हमारी पाठ्यपुस्तकों में वीर शिवाजी, महाराणा प्रताप, गुरु गोविन्द सिंह, महर्षि दयानंद जैसे महापुरुषों की जीवनियों को पढ़ाया जाना चाहिए, क्योंकि इन जीवनियों का बच्चों के मन-मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़ता है और आगे चलकर वह भी ऐसा बनने का प्रयास करते हैं।

रमेश आर्य, दिलवाड़ा, सिरोही (राज.)

चुनाव सुधार की आवश्यकता

देश में 2014 में लोकसभा चुनाव हुए थे। जिसके बाद झारखंड, हरियाणा, महाराष्ट्र और जम्मू-कश्मीर विधानसभा में चुनाव हुए। इसके बाद दिल्ली विधानसभा में चुनाव हुए। दिल्ली में चुनाव समाप्त होते हुए बिहार चुनाव की लहर चल पड़ी और आगामी समय में भी उत्तर प्रदेश सहित कुछ राज्यों में चुनाव होने हैं। क्या ऐसा नहीं लगता कि काम के बजाए देश में चुनाव ही होते रहते हैं। अत्यधिक धन खर्च होता है और नेताओं के पास चुनाव के सिवाय कोई और काम भी नहीं रहता। लगातार चुनाव होने के कारण कोई भी राजनेता किसी भी महत्वपूर्ण निर्णय लेने से बचता है। कोई भी निर्णय चुनावी माहौल के नफा-नुकसान को देखकर ही लिए जाते हैं। इसलिए देश में चुनाव प्रणाली पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।

विमल नारायण खन्ना

पनकी, कानपुर (उ.प्र.)

सुलझाया मामला

रपट ‘समता और सम्मान’ से केन्द्र की मोदी सरकार ने ‘वन रैंक वन पेंशन’ के तनाव को दूर कर दिया। अर्से से यह मामला उलझा हुआ था लेकिन सिर्फ 16 महीने सरकार ने इसे सुलझा लिया।

      —जमालपुरकर गंगाधर

         जियागुडा (तेलंगाना)

पुरस्कृत पत्र

इतिहास का हो पुनर्लेखन !

इतिहास को विकृत करने की साजिशें एक लंबे दौर से चली आ रही हैं। स्वतंत्र भारत में वाममार्गी राष्ट्रघाती दुर्विचारों ने इसे और धार दी। परिणामत: हम पीढ़ी दर पीढ़ी अपने वास्तविक इतिहास को भूलते गए और गलत तथा झूठे इतिहास को अपने मनों में समाते गए। वैसे अंग्रेजों ने भी साम्राज्यवादी हितों के लिए समाज में फूट डालने हेतु हमारे इतिहास को तोड़ा-मरोड़ा। हमें स्वतंत्रता तो मिली लेकिन कुछ पाश्चात्य और अंग्रेजों के तलवे चाटने का काम करने वाले वामपंथी लोगों ने अंग्रेजों के जाने के बाद इतिहास को विकृत करने का बीड़ा उठा लिया, जिसके बाद बड़ी चालाकी और धूर्तता से हमारे इतिहास में कुछ भ्रामक शब्दों को समाहित कर दिया गया। इसकी अनदेखी करने से देश को नुकसान हुआ। वनांचलवासियों को ‘आदिवासी’ बताकर हमें मूलत: असभ्य सिद्ध करने की मुहिम चली। पुरातन शास्त्रों के वैज्ञानिक पक्ष को भी पूरी तरह दबाया गया। इतना सब होता रहा लेकिन हमने इसका प्रतिकार नहीं किया। हमने यूरोप से भारत आई पाश्चात्य सभ्यता को अपने लिए किसी वरदान से कम नहीं माना। हमारे बुद्धिजीवियों ने देश की अखंड सांस्कृतिक सत्ता पर किए गए इस प्रहार को भी सहन कर लिया। मुगलों और अंग्रेजों ने देश को उत्तर भारत और दक्षिण भारत जैसे विभाजनकारी नामों में बांट दिया। आज भी हम उसी प्रकार इन शब्दों का प्रयोग करते हैं। हमारा पुरातन एवं वर्तमान इतिहास राष्ट्रवादी विद्वानों से अपेक्षा करता है कि वे योजनाबद्ध तरीके से चलाये जा रहे राष्ट्रघाती अभियानों को रोकने का प्रयास करें। साथ ही इतिहास में जो विकृतियां और गलत तथ्यों को जोड़ा गया है उन्हें चिन्हित करते हुए उसका पुनर्लेखन करें।

—प्रो.रामबाबू मिश्रा

अशोकपुरम,कायमगंज,फर्रूखाबाद (उ.प्र.)

 

कैसे काम चलेगा?

बादल वापस हो गये, लेकिन दुखी किसान

वर्षा बस आधी हुई, मुश्किल में है जान।

मुश्किल में है जान, पेट किस तरह भरेगा

बच्चों का पशुओं का कैसे काम चलेगा ?

कह ‘प्रशांत’ धन वाले अपना हृदय टटोलें

-प्रशांत

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