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उत्तराखंड में पिछले एक सप्ताह से चल रहे वंचित समाज के शोषण के नाटक का 12 अक्तूबर को पर्दाफाश हो गया। यहां वंचित समाज के लोगों को कुकुर्सी मंदिर में प्रवेश नहीं करने देने की घटना को तूल दिया जा रहा था, ताकि इन लोगों को हिन्दू समाज से काटकर कन्वर्ट कर ईसाई पंथ में शामिल कराया जा सके। पिछले दिनों चकराता के कुकुर्सी मंदिर में वंचित समाज के लोग ढोल-नगाड़े बजाकर प्रवेश कर रहे थे, लेकिन ढोल पर चमड़ा होने की वजह से इन लोगों को मंदिर में प्रवेश करने से रोक दिया गया। इसके बाद से आराधना ग्रामीण विकास मंच के संरक्षक दौलत राम कुंवर ने इस मामले को भुनाना शुरू कर दिया। उन्होंने देहरादून के गांधी मैदान में न केवल धरना दिया, बल्कि यह जाहिर किया कि हिन्दू समाज में वंचितों को मंदिर में प्रवेश से रोका जा रहा है। इसके पीछे मंशा यही थी कि वे इन लोगों को पक्षपात की बात पर उकसाकर कन्वर्जन की ओर धकेल दें।
असल में दौलत राम स्वयं भी ईसाई मिशनरियों के प्रभाव में रहते हैं। जौनसार के साहिया से 36 किलोमीटर दूर गबेला गांव से शुरू हुआ यह नाटक तब समाप्त हो गया कि जब बजरंग दल के जिला संयोजक अमित तोमर के नेतृत्व में अनुसूचित जाति और जनजाति से जुडेÞ लोगों ने प्राचीन कुकुर्सी मंदिर में दर्शन किये। किसी भी कार्यकर्ता से न तो उसकी जाति पूछी गयी और न ही उसका पंथ। दल के साथ गई वाल्मीकि समाज की बहनों के हाथ से ही आरती करवायी गयी और वंचित समाज की बहनों के हाथ से पूरे गांव में प्रसाद वितरण कराया गया। सुबह 8 बजे की आरती के बाद गांव व समाज के लोगों ने इन सभी को नाश्ता करवाया और गांव में अतिथि की तरह पूरा सम्मान दिया। कुकुर्सी मंदिर जाकर पूजा करने वालों में सतपाल धानिया, ऊषा देवी वाल्मीकि, सरेशो देवी जाटव तथा जाटव समाज के संजय कुमार शामिल रहे।
पिछले एक सप्ताह से यह मामला सुर्खियों में था जिसमें तथाकथित सेकुलर लोग समाज के उन लोगों के विरुद्ध होते जा रहे थे जिनके कारण लोग मंदिर में प्रवेश नहीं कर पा रहे थे। इस घटना के पीछे ईसाइयों की राजनीति निकली। ईसाई मिशनरी ने दौलत राम को मोहरा बना कर हिन्दू समाज को बाटंने का प्रयास किया था। अमित तोमर को इस बारे में जानकारी दी तो उन्होंने इस षड्यंत्र का पर्दाफाश करने का प्रण किया और वंचित समाज के लोगों को मंदिर लेकर स्वयं पहुंच गए जिनका मंदिर में प्रवेश रोकने का ढोल पीटा जा रहा था। इस मामले में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने गांव के प्रधान से बातचीत कर मामले को आधारहीन बताया था। इसके बावजूद वंचित समाज के नेताओं को एकत्रित कर हो-हल्ला मचाने की प्रक्रिया जारी रखी थी, जो अब पूरी तरह से बेनकाब हो गई।
बजरंग दल द्वारा पर्दाफाश किए जाने पर गत 12 अक्तूबर को लगभग 150 लोगों के साथ दौलत राम मंदिर पहुंचे और अपने नाटक का स्वयं ही खुलासा कर दिया। इसके बाद दौलत राम ने अपने ऊपर लगे सभी आरोपों को झुठला दिया। इस घटना को पूर्व लोक कलाकार नंदलाल भारती तथा पूर्व दर्जाधारी मंत्री टीका राम साह ने दौलत राम को कुछ लोगों के इशारे पर अलगाववाद को बढ़ाने वाला बताया है। इस प्रकरण की जब विवेचना की गई तो गांव के ही वंचितों ने दौलत राम पर ईसाई संस्थाओं के लिए काम करने का आरोप लगाया और बताया कि वे लगभग हर वंचित परिवार को धन का लालच दे रहे हैं और ईसाई पंथ में कन्वर्ट होने को दबाव बना रहे हैं। जिस दौलत राम में लोग अपना मसीहा तलाश रहे थे, वह ईसाई मिशनरी से जुड़ा होगा, यह लोगों को बर्दाश्त नहीं हुआ। इस क्षेत्र के वंचित समाज के लोग भी मानते हैं कि उनका एक मात्र उद्देश्य जातिवाद का जहर घोलकर जौनसार क्षेत्र में वैमनस्य फैलाना है और जाति के नाम पर अपनी राजनीति को चमकाना है। ऐसे लोगों को समाज कभी बर्दाश्त नहीं करेगा।
वोट बैंक को भुनाने की कोशिश
चकराता जनजातीय क्षेत्र है, यहां पांच हिस्सों में वर्ण व्यवस्था बांटी गई है जिसमें ब्राह्मण, क्षत्रिय, बाजगी, कनेटा और डोम शामिल हैं। ब्राह्मण व क्षत्रियों को छोड़कर अन्य की संख्या लगभग 40 फीसद है। ये 40 फीसद लोग ही दौलत राम कुंवर के निशाने पर थे। इन्हें भुनाने के लिए ढोल-नगाड़े समेत मंदिर में जाने का प्रयास किया था। उन्हें रोका गया तो उन्होंने वंचित समाज का झंडा उठाकर मामले को तूल दिया और दावा किया कि वे यहां के 50 लोगों को ईसाई बना देंगे। इसी मंशा से वंचित विकास यात्रा निकाली गई थी। दौलत राम पूर्व में बसपा के टिकट पर चुनाव भी लड़ चुके हैं। चुनावी दृष्टि से वोटों का ध्रुवीकरण करने के लिए यह यात्रा निकाली गई। इनके समर्थन में सबसे पहले वामपंथी आए और उसके बाद टिहरी के जबर सिंह वर्मा, जो कि ईसाई पंथ में कन्वर्ट हो चुके हैं। इस क्षेत्र में लंबे अर्से से ईसाई मिशनारियां षड्यंत्र के तहत अपने काम को अंजाम देने में जुटी हुई हैं। राम प्रताप मिश्र
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