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9 रातें नौ बा्रबातें-

by
Oct 12, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 12 Oct 2015 11:59:53

-नवरात्र उत्सव वर्ष में दो बार मनाया जाता है। वर्ष के प्रारंभ में चैत्र शुक्ल पक्ष के पहले नौ दिवस वासन्तिक नवरात्र कहलाते हैं तथा आश्विन शुक्ल पक्ष के प्रथम नौ दिन शारदीय नवरात्र कहलाते हैं। पूरे भारत में नवरात्र उत्सव मनाए जाते हैं। अब तो विदेशों में भी नवरात्र मनाए जाने लगे हैं और दुर्गा पूजा  होने लगी है। अभी हाल ही में एक समाचार आया है कि इस्लामिक देश दोहा में भी एक दुर्गा मन्दिर बना है। इसका उद्घाटन पिछले दिनों भाजपा सांसद और प्रसिद्ध भोजपुरी कलाकार मनोज तिवारी ने किया है। नवरात्र उत्सव के समय आए इस समाचार से ऐसा कौन हिन्दू होगा जिसका मन गद्गद् नहीं हुआ होगा? नवरात्रों में पूरे भारत में ऐसा धार्मिक वातावरण बन जाता है कि क्या बच्चे, क्या बड़े सभी में एक नई ऊर्जा का संचार हो जाता है। यही तो किसी भी पर्व को मनाने का उद्देश्य है!

सनातन धर्म के सभी पर्व-त्योहार प्रकृति पर आधारित हैं। नवरात्र भी पूरी तरह प्रकृति पर आधारित हैं। एक श्लोक है-  
शरद वसंत नामानौ
दानवौ द्वौ भयंकरौ।
तयो: रूप, द्वव शाम्यर्थ
इयं पूजा द्विधामता:।।
अर्थात् वसंत और शरद नाम के दो भयंकर दानव हैं। ये दोनों भयंकर रोगों के कारण हैं। इनका विनाश करने के लिए मां दुर्गा की पूजा की जाती है। ये दोनों समय ऋतु परिवर्तन के समय हैं। शिशिर और हेमंत में जब ठंड जाने लगती है तो मनुष्यों को अनेक रोग घेर लेते हैं। वासंती नवरात्र में नौ दिन उपवास रखकर अन्न न ग्रहण करें तथा फलाहार करें तो अनेक रोगों का शिकार होने से बच सकते हैं। इसी प्रकार वर्षा ऋतु में नमी और गंदगी से अनेक रोग पैदा होते हैं।
श्राद्ध पक्ष में गरिष्ठ भोजन भी किया जाता है। अत: शारदीय नवरात्र में व्रत उपवास रखकर हम शरीर का संतुलन बनाए रख सकते हैं। नवरात्रोंं की पहली विशेषता है कि दोनों नवरात्रों के समय ऋतु परिवर्तन होता है। शारदीय नवरात्र के समय गर्मी विदा होती रहती है और सुहावनी सर्दी की पदचाप सुनाई देने लगती है। वहीं वासन्तिक नवरात्र के समय सर्दी विदा होती है और गर्मी का अहसास होने लगता है।  दूसरी बात है एक (वासन्तिक) शीतकाल के रोगों से मुक्त कराता है, तो दूसरा (शारदीय) वर्षा जनित  पीड़ाओं को शांत करता है।
तीसरी बात है वासन्तिक नवरात्र भगवती दुर्गा के मंत्रों से सिद्धि का मार्ग खोलता है तथा श्रीराम के जन्म की नवमी मनाता है। चौथी बात है शारदीय नवरात्र दुर्गा मां की साधना का अवसर उपलब्ध कराते हैं, वहीं भगवान राम द्वारा भगवती की पूजा तथा रावण की राक्षसीय संस्कृति पर विजय का स्मरण दिलाते हैं। पांचवीं बात शारदीय नवरात्र में श्रीरामकथा को नाटक के रूप में खेला जाता है जिसे रामलीला कहा जाता है। छठी बात रामलीला में रामकथा का रोचक एवं प्रभावी प्रदर्शन होता है। समाज के सभी वगार्ें में श्रीरामकथा सहज ही प्रवेश कर जाती है। नवरात्रों की सातवीं विशेषता है कि इस अवसर पर युवाओं को अपनी अभिनय कला को प्रदर्शित करने  का अवसर मिलता है।  उल्लेखनीय है कि आज बॉलीवुड में सफलता के झण्डे गाड़ने वाले  कई कलाकार पहले रामलीला में मंचन करते थे। इनमें सबसे प्रमुख हैं शाहरुख खान। आठवीं विशेषता है यह पर्व आचरण शुद्धि और चरित्र को उन्नत बनाने का अवसर देता है। ऐसे अनेक साधक मिलेंगे जो नवरात्रों में प्रतिदिन पूजा-पाठ करके किसी विशेष  कार्य को करने का संकल्प लेते हैं, तो कई किसी कार्य को कभी न करने का संकल्प भी। और नौंवी बात यह है कि नवरात्रों में विधिवत व्रत पारायण करने वाले परिवारों में पले बालक बड़े होकर भी महिलाओं का आदर ही करते हैं। उन्हें उपभोग की सामग्री नहीं, अपितु पूजनीय माता का स्वरूप ही मानते हैं। ऐसे युवा छेड़छाड़ की घटनाओं में कभी दोषी नहीं पाए जाते। अन्याय के विरुद्ध लड़ना इनका स्वभाव बन जाता है। कई लोगों के मन में यह प्रश्न उठता रहता है कि इन्हें नवरात्र क्यों कहा जाता है, नव दिवस क्यों नहीं कहते? रात्रि शांति का प्रतीक है। आध्यात्मिक मंत्र-तंत्र की साधना रात्रि में की जाती है। रात्रि में शोर, विघ्न तथा मानसिक व्यस्तता कम हो जाती है। ध्यान लगाने में जो स्थिरता चाहिए वह रात्रि में सहज प्राप्त हो जाती है। भगवती दुर्गा की साधना इन रात्रियों में सिद्धि के लक्ष्य तक पहुंचने में सुलभ होती है। इसलिए इन्हें नवरात्रे कहा गया है।  व्रत का भाव है स्वयं चुनकर संकल्प करना। दूसरा अर्थ है समीप जाना। अपने प्रिय के, इष्ट के, परमात्मा के, देवी के अथवा लक्ष्य के समीप जाना।
 उपवास, व्रत वास्तव में चरित्र निर्माण की प्रक्रिया है। प्रत्येक व्रत में कोई प्रण किया जाता है। नवरात्रों में यदि सारे दिन उपवास रखकर रात्रि में पूजा करके अपने जीवन को उज्ज्वल बनाने के लिए किसी दुर्गुण को छोड़ने का अथवा सदाचरण के लिए किसी गुण को ग्रहण करने का व्रत लिया जाए तथा निष्ठापूर्वक उसका पालन किया जाए तो यह उत्तम चरित्र के निर्माण की भारतीय विधि है। उपवास से तन-मन को पवित्र करके विशेष धर्मपरायण मन:स्थिति में किए गए संकल्प सुपरिणाम ही देते हैं।
नवरात्र की पूजा का इतिहास तो नहीं बताया जा सकता पर हां, इतिहास में नवरात्र में दी गई भगवती दुर्गा की पूजा का प्रमाण रामायण काल में मिलता है। भगवान राम ने भगवती दुर्गा की पूजा विजय की कामना सिद्धि के लिए समुद्र तट पर संपन्न की थी। प्रसिद्ध साहित्यकार सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' ने भी  अपने काव्य 'राम की शक्ति पूजा' में वर्णन किया है कि दुर्गा माता की पूजा करते समय कमल का एक फूल कम पड़ जाने पर श्रीराम ने अपनी एक आंख ही निकाल कर अर्पण कर दी थी। इस प्रकरण से पता चलता है कि इससे पूर्व भी दुर्गा पूजा होती होेगी।
दुर्गा शब्द का अर्थ
देवी महापुराण में एक श्लोक है-
दैव्यनाशार्थ वचनो दकार: प्रकीर्तित:।
उकारो विघ्न विनाशस्य वाचको वेदसम्मत:।।
रेफो रोगघ्न वचनो गश्चपापघ्नवाचक:।
भयशत्रघ्नु वचनश्च आकार: परिकीर्तित:।।
'द' अक्षर दैत्यनाश का बोध कराता है। 'उ' विघ्नो का नाश करने वाला है। 'र' रोगनाशक  तथा 'ग' पाप विनाशक माना जाता है। 'आ' शत्रु भय को नाश करने वाला है। इन सबका सम्मिलित स्वरूप दुर्गा कहा जाता है।

नव दुर्गा, नव कन्याएं और नव शक्तियां
दुर्गा सप्तशती तथा मार्कण्डेय पुराण में जीवनदायिनी मां जगदम्बा के प्रथम, मध्यम तथा उत्तम चरित्र  की कल्पना बहुत ही रोमांचकारी तथा मनोरंजक रूप में की गई है। मां दुर्गा को महिषासुर- मर्दिनी एवं चंड-मुंड, शुंभ-निशुंभ जैसे आततायियों का संहारक माना गया है।
नवरात्र नव दुर्गाओं का प्रतीक है। इसलिए कहीं-कहीं नवरात्र को नव दुर्गा की संज्ञा प्राप्त है। महर्षि मार्कण्डेय ने इन्हें नव मूर्तियों से सम्बन्धित किया है। यह नव प्रतीक शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कुष्माण्डा, स्कन्दमाता, कात्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी तथा सिद्धिदात्री हैं। इसी प्रकार कौमारी, त्रिमूर्ति, कल्याणी, रोहिणी, कालिका, शाम्भवी, दुर्गा, सुभद्रा और चंडिका नव कन्याएं तथा ब्रह्माणी, वैष्णो, रौद्रौ, माहेश्वरी, वाराही, नारसिंही, कार्तिकी, सर्वमंगला और इन्द्राणी, ये नव शक्तियां हैं। 

आचार्य मायाराम पतंग 

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