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अंक संदर्भ: : 11 जनवरी, 2015आवरण कथा 'बसे विदेश दिल में देश' उन भारतवंशियों के कौशल और परिश्रम की कुछ गाथाएं हैं,जिन्होंने अपने अथाह परिश्रम और लगन से विदेश में बुलन्दियों को छुआ है। लेकिन इन सबके बाद भी उनसे प्रेरणा लेने वाली यह बात है कि वे आज इतनी बुलन्दियों पर पहुंचने के बाद भी उनके हृदय में हिन्दुस्थान और यहां की मिट्टी के लिए वही स्नेह है, जो बचपन में था। अपने देश और यहां के लोगों का प्रेम उन्हें रह-रह कर सताता है। हिन्दुस्थान के लोगों के लिए कुछ कर गुजरने का सपना और यहां के लोगों को कैसे मजबूत किया जा सके इस सपने को पूरा करने के लिए वह विदेशों में सतत लगे हुए हैं।
—आशुतोष कुमार मिश्र
रामगढ़,जिला-लखीमपुर खीरी(उ.प्र.)
उचित निर्णय
केन्द्र सरकार ने दो महान विभूतियों को भारत रत्न से विभूषित करके एक उचित निर्णय का परिचय दिया है। पं. मदन मोहन मालवीय एवं पं.अटल बिहारी वाजपेई के बारे में इतना कहना उचित होगा कि इनमें भारत का अतीत बोलता है,वर्तमान डोलता है,भारत का भविष्य कौंधता है,भारत की धरती की गंध है,भारत के पानी की चमक हैं और भारत के तेज का फैलता हुआ प्रकाश है। कहीं कोई प्रश्न नहीं,उत्तर ही उत्तर है। सरकार ने राष्ट्र चेतना को सम्मानित कर राष्ट्रधर्म का निर्वाह किया है। इस कार्य के लिए केन्द्र सरकार का साहित्य जगत की ओर से धन्यवाद।
—डॉ.ब्रह्मदत्त अवस्थी
फतेहगढ़-फर्रुखाबाद (उ.प्र.)
ङ्म श्री अटल बिहार वाजपेई व पं. मदन मोहन मालवीय जी को देश के सर्वोच्च अलंकरण 'भारत रत्न' देने पर केन्द्र सरकार का धन्यवाद करता हूं। क्योंकि बड़ा आक्रोश होता है कि कांग्रेस की सरकारों द्वारा ऐसी महान विभूतियों को भुलाया गया, वह भी सिर्फ और सिर्फ राजनीति पूर्वाग्रह के कारण। वास्तविक रूप में देश का सम्मान अपने स्थान पर है,लेकिन कभी देश की जनता को या पे्रम करने वालों को ऐसा नहीं लगा कि यह किसी भारत रत्न से कम हंै। इन महान विभूतियों की प्रतिभा ऐसे ही सदा सूरज के समान चमकती रहे यह कामना है।
—दिनेश भारद्वाज
एम.एस.रोड,जोरा,जिला-मुरैना (म.प्र.)
बदलाव की जरूरत
लोकतंत्र के नयनाभिराम महल को जिन चार स्तम्भों पर खड़ा किया गया है, उन पर नजर डालें तो दिल दहल उठता है। विधायिका और व्यवस्थापिका भ्रष्टाचार व तर्क-वितर्क के गहरे दलदल में धंसी दिखाई देती है तो प्रेस की काया पीतवर्ण सी प्रतीत होने लगी है। न्यायपालिका अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए प्रयासरत है, लेकिन यहां की तलहटी में भी घोर अंधकार छाया हुआ है। जिस भारतीय लोकतंत्र की महिमा और आदर्श का बखान हम पूरे विश्व में करते फिरते हैं, लेकिन अगर वास्तविकता में देखें तो कुछ और ही है। कुल मिलाकर यह कहना उचित होगा कि पूरे तंत्र को कुछ दीमकों ने खा के रखा है,जिसके कारण देश का पूरा तंत्र गड़बड़ हो चला है। आज सरकार को इन सभी क्षेत्रों पर पूरा ध्यान देना होगा और उन दीमकों को नष्ट करना होगा जो दिनरात पूरे तंत्र को चट करने में लगे हुए हैं।
—मधुसूदन अग्रवाल
गोरक्ष बाजार,गोंदिया (म.प्र.)
चाहिए सकारात्मक प्रयास
किसी भी देश का विकास वहां की जनता के हाथों में होता है। समाज शिक्षित और ईमानदार हो तो राजनीति में भी सुधार हो सकता है। समाज सुधार के बिना देश में सुधार नहीं हो सकता। जड़ से सींचा जाए तो पूरा वृक्ष हरा-भरा हो जाता है,लेकिन अगर जड़ को सींचने के बजाए पत्तों को सींचा जाए तो उससे कुछ लाभ नहीं मिलता। दुर्भाग्य है कि आज तक की सरकारों का ध्यान जड़ के बजाए पत्तों पर अधिक रहा और जिसका परिणाम आज हमारे सामने है। देश में बेरोजगारी और अन्य समस्याएं मुंह बाए खड़ी हैं। इन सभी समस्याओं से निपटने के लिए जरूरी है कि सरकार अपने प्रचार माध्यम से नीति और न्याय का पाठ हर नागरिक को पढ़ाए।
—रामप्रताप सक्सेना, खटीमा (उत्तराखंड)
जब तिलमिला उठे
फ्रांस के एक समाचार पत्र में छपे इस्लाम के पैगंबर मोहम्मद के व्यंग्यचित्र पर मुसलमान इस तरह बिलबिला उठे जैसे किसी ने इस्लाम और उनके मोहम्मद को 'हाईजैक' कर लिया हो। वास्तविकता तो यह है कि समाचार पत्र ने मोहम्मद का व्यंग्यचित्र छापकर सामान्य जनता के समक्ष उनकी असलियत रखी है। असल में सभी देशों को चाहिए कि इन जिहादियों की असलियत को बिना डरे जनता के समक्ष लाएं।
—डॉ. विश्वास गांेधकेकरठाणे (महाराष्ट्र)
जीवनदायिनी को मिले जीवन दान
व्यक्ति ने अपने उपयोग के लिए प्रत्येक चीज का दोहन किया और दोहन इतना ज्यादा किया लगभग जब तक उसने उस वस्तु का समापन नहीं कर दिया तब तक चैन नहीं ली। देश की प्रमुख नदियां आज अपने जीवन से लड़ रही हैं। गंगा पर 40 प्रतिशत से अधिक लोग प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से आश्रित हैं, लेकिन फिर भी उसकी हालत दयनीय बनी हुई है। यमुना ने लगभग दम ही तोड़ दिया है। मेरा केन्द्र सरकार से यही आग्रह है कि लाखों लोगों के जीवन को देने देने वाली इन नदियों को किसी भी प्रकार बचाएं और उनको उनका वही स्वरूप दंे, जो पहले था।
—विनोद कोचर, लालबर्रा (म.प्र.)
अवसरवादियों से सावधान!
केन्द्र सरकार को अवसरवादियों से सावधान होने की जरूरत है। क्योंकि इनका न तो कोई ईमान धर्म हेाता है और न ही कोई विचारधारा। ये लोग पाला बदलने में देर नहीं लगाते।
—एस.कुमार,
बी 24,मीनाक्षीपुरम्,मेरठ(उ.प्र.)
काला समय
संप्रग के दस साल शायद देश के लिए काला समय ही थे। इन वर्षों में देश को जो हानि हुई वह पूर्ण नहीं की जा सकती। प्रत्येक क्षेत्र में इस सरकार ने अपनी मानसिकता को थोपकर अपना कार्य किया। शिक्षा,व्यापार,राजनीति हर जगह इसने जहर घोला। असल में कांग्रेस की मानसिकता और उसके भावों में कभी भारतीयता रही ही नहीं,जिसका परिणाम हुआ कि उसने इसे लूटा और भारत की व्यवस्थाओं को जितना दोहन कर पाया उतना किया। देश का ऐसे भितरघाती लोगों और दलों से सावधान रहना होगा, जो देश में रहकर ही देश के खिलाफ जहर घोलने का काम करते हैं।
—दीपक कुमार सालवन,करनाल(हरियाणा)
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