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11 वर्षीय लक्ष्मण अपने पिता और चाचा के साथ अपने घर से कुछ दूर लकडि़यां लेने जंगल की तरफ जा रहे थे। वे नियमित रूप से लड़कियां लेने जंगल जाते थे। इस बीच इन्हें एक जगह बांसों का झुरमुट दिखाई दिया और उन्होंने वहां से लकडि़यां काटकर इकट्ठी कर लीं। जब जरूरत के लायक लकडि़यां इकट्ठी हो गईं तो वे गट्ठर लेकर घर की तरफ निकल पड़े। शाम ढल चुकी थी। जंगल में अंधेरा छाता जा रहा था। अचानक उनके सामने शेर आ गया। मानो उसे जंगल में से उनका गुजरना नागवार गुजरा हो। शेर ने लक्ष्मण के चाचा पर हमला कर दिया। उसके चाचा नीचे गिर पड़े। लक्ष्मण और उसके पिता ने शोर मचाया पर शेर वहीं पर खड़ा रहा। जब कुछ नहीं सूझा तो लक्ष्मण ने वहां पड़े पत्थरों को उठाकर शेर पर फेंकना शुरू कर दिया। एक बड़ा पत्थर शेर के जबड़े पर लगा। अचानक हुए इस हमले से शेर घबरा गया और जंगल की तरफ भाग गया। जब शेर वहां से चला गया तो वे अपने पिता की मदद से चाचा को लेकर घर पर आये। लक्ष्मण को खुद इस बात पर विश्वास नहीं हो रहा था कि उन्होंने इस तरह का कारनामा कैसे कर दिया। इनमें कहां से इतना साहस आ गया? निहत्थे शेर से लड़ने के लिए लक्ष्मण को वर्ष 2001 में राष्ट्रपति ने बालवीर पुरस्कार से नवाजा। शेर से मुकाबला करने वाले लक्ष्मण अब बड़े हो गये है लेकिन वे अब भी अपने गांव में ही रहते है। गांव में जीवनयापन के लिए वह एक छोटी सी परचून की दुकान करते है। घर के हालात इस तरह के नहीं थे कि पढ़ाई आगे जारी रख पाते। इसलिए उसे दुकान चलाकर अपना गुजारा करना पड़ रहा है। बालवीर पुरस्कार मिलना, राष्ट्रपति से भेंट होना और गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल न होना अब उनके लिए भूली बिसरी यादें हो चुकी हैं। ल्ल
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