सुरक्षा पर संवाद - पाञ्चजन्य और ऑर्गनाइजर के सुरक्षा विशेषांकों का लोकार्पण
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सुरक्षा पर संवाद – पाञ्चजन्य और ऑर्गनाइजर के सुरक्षा विशेषांकों का लोकार्पण

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Jan 27, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 27 Jan 2015 12:13:12

कान्स्टीट्यूशन क्लब के डिप्टी स्पीकर हॉल में 21 जनवरी को मुख्य अतिथि के रूप में केन्द्रीय सूचना प्रसारण राज्य मंत्री श्री राज्यवर्धन सिंह राठौर ने पाञ्चजन्य एवं ऑर्गनाइजर के सुरक्षा विशेषांकों का लोकार्पण किया। समारोह में मुख्य वक्ता जम्मू कश्मीर अध्ययन केन्द्र के अध्यक्ष श्री अरुण कुमार थे और अध्यक्षता की भारत प्रकाशन (दिल्ली) लि. के प्रबंधक निदेशक श्री विजय कुमार ने।
पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा- पाञ्चजन्य और ऑर्गनाइजर देश के सबसे पुरानी साप्ताहिक हैं एक का जन्म स्वतंत्रता प्राप्ति से कुछ सप्ताह पूर्व हुआ तो दूसरे का पहले गणतंत्र दिवस से कुछ सप्ताह पहले। 67 वर्ष की यात्रा में जब साधनों की पूर्णता होने के बाद भी देश की कई अच्छी पत्रिकाएं कालकवलित हो गईं तब भी पाञ्चजन्य और ऑर्गनाइजर ने अनेक प्रतिकूल परिस्थितियों में अपने विचार और तेवर को जीवंत बनाए रखा। 1968 में लखनऊ से दिल्ली, 1972 में वापस लखनऊ और 1977 में फिर वापस दिल्ली आने पर इन पत्रों के स्थान बदले, स्थितियां बदलीं लेकिन स्वर नहीं बदले। इसी स्वर को जीवंत बनाए रखने की कड़ी में सुरक्षा पर संवाद आयोजित किये जाते हैं। नवनीत बिना मंथन के नहीं निकलता। इस मंथन में विशेषज्ञ विश्लेषकों ने जो विचार दिये उन्हें पाठकों के लिए सुरक्षा विशेषांक के रूप में संकलित किया गया है। इस सामग्री से जहां एक ओर रक्षा चुनौतियां दिखाई पड़ेंगी वहीं उनका समाधान करता हुआ एक राष्ट्र भी मिलेगा।
देश की आंतरिक और बाह्य सुरक्षा की चर्चा करते हुए राज्यवर्धन सिंह राठौर ने कहा- 1994 से 1997 तक मैं सेना में कश्मीर घाटी में कार्यरत था। हम सब की एक ही भावना थी कि इस क्षेत्र को आतंक मुक्त करना है। आज भी मैं पूरे इलाके का नक्शा बना सकता हूं। राष्ट्रीय सुरक्षा के विषय में यह स्वाभाविक बात है कि जिन राष्ट्रों में मजबूत युवा शक्ति और मार्गदर्शन करने वाले गुरु रहे वे कभी नहीं हारे। एक भाव व विचार सभी लोगों को एक साथ आगे लेकर आता है। आज विश्वभर में आईएसआईएस का आतंक फैला हुआ है। अन्य आतंकवादियों से अलग इनकी सोच क्षेत्र विशेष को कब्जाने की है। पेरिस में शार्ली एब्दो पर जो हमला हुआ उसे अल कायदा ने अंजाम दिया। ये दोनों संगठन एक साथ तो नहीं दिखायी पड़ते लेकिन दोनों ही इस्लाम की स्थापना के पक्षधर हैं। उनके तरीके अलग-अलग हैं। एक पश्चिमी देशों और भारत में आतंक को बढ़ावा देना चाहते हैं तो दूसरा भारत की युवा शक्ति पर टकटकी लगाकर उसे अपने साथ खड़े देखना चाहता है। क्योंकि भारत ही एक ऐसा देश है जो युवाशक्ति से पूर्ण है इसलिए दोनों ही उग्रवादी संगठन भारत में युवा बेरोजगारों को देख रहे हैं जिन्हें मादक पदार्थ या अन्य आकर्षणों से वे अपनी ओर खींचना चाहते हैं। आज सबसे शक्तिशाली देश भारत को चीन सब ओर से घेर रहा है। करांची, श्रीलंका और बंगलादेश में वह बंदरगाह बना रहा है। काम तटरेखा में 90 प्रतिशत समुद्री जहाज भारत की तटीय सीमा से जाते हैं। सोमालियाई समुद्री लुटेरे किसी के बनाये थे या तैयार थे।
पश्चिमी नौसेना को इस पर ध्यान देना होगा क्योंकि भारतीय महासागर में देश का जो प्रभुत्व था वह अब कम हो रहा है। चीन एक और काम कर रहा है जो नेपाल हिन्दू राष्ट्र है उसमें कन्फ्यूशियस सेंटर खोल रहा है। इसका आशय यह है कि नेपाल के भावी बुद्धिजीवी चीन के दर्शन से प्रभावित होंगे।
इसी प्रकार अल हदीस नामक संगठन भारत-नेपाल सीमा पर मस्जिदें खोल रहा है। हिन्दुस्थान को किस तरह सीमित किया जाए पड़ोसी देशों का यह अभियान जारी है। चीन-नेपाल में संचार, तकनीक, सूचना जैसे नौ प्रमुख क्षेत्रों में निवेश कर रहा है। पाकिस्तान व अफगानिस्तान की तरफ नजर डालें तो अफगानिस्तान पाकिस्तान को तटस्थ कर सकता है। तालिबान ने हेलमैंड, बर्डा और कूंदस तीन क्षेत्रों में जो मादक पदार्थों के सबसे बड़े उत्पादक क्षेत्र हैं को अपने कब्जे में कर रखा है। आईएसआईएस की प्रतिदिन की कमाई लगभग 3 मिलियन डॉलर है। पूर्वोत्तर में चीन के साथ हमें पनबिजली कूटनीति की जरूरत है। ब्रह्मपुत्र में पानी की मात्रा कम होने से भारत में समस्याएं पैदा होंगी। इसे मुद्दा बनाकर हम अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय में ले जा सकते हैं और ब्रह्मपुत्र से जुड़ी अपनी बड़ी आबादी का तर्क प्रभावी ढंग से देना होगा। पूर्वोत्तर में चरमपंथियों के साथ कई वर्षों से संवाद चल रहा है। जब समझौते होते हैं तो एक समूह शस्त्र समर्पण करता है और दूसरा समूह शस्त्र उठाने लगता है। इस पर कुछ एकीकृत व ठोस कार्य करना होगा। पूर्वोत्तर में ढांचागत आर्थिक तंत्र सुदृढ़ करना होगा। इससे सेना का आवागमन आसान होगा। वहां की लोकसंस्कृति दूरदर्शन के माध्यम से यहां और देश की संस्कृति वहां पहुंचे ऐसे ठोस उपाय करने होंगे। वहां की अर्थव्यवस्था को मजबूत करना होगा। पाकिस्तान भारत के साथ सीधा मुकाबला नहीं कर सकता इसलिए वह आतंकवाद को हथियार बनाकर भारत को अजगर की तरह कई घाव देना चाहता है। अलग-अलग नाम के अलग अलग संगठनों को भारत में आतंकवाद फैलाने के लिए वित्तीय सहायता और हथियारों के साथ साथ उनमें प्रतियोगिताएं करवाकर पुरस्कृत भी करता है। पाकिस्तान कश्मीर में आतंकवादी घुसपैठ के द्वारा, पंजाब में मादक पदार्थों की आपूर्ति द्वारा और राजस्थान में सामरिक सूचना प्राप्त करने के अभियान में लगा रहता है। 7500 किमी. में फैली लंबी तटीय रेखा का भी फायदा उठाने में हमारे पड़ोसी कोई कसर नहीं छोड़ते।
जब राष्ट्रीय सुरक्षा की बात आती है तो माओवादियों की चर्चा भी आवश्यक है। देश में सबसे ज्यादा खनिज भण्डार, सबसे ज्यादा वन और सबसे ज्यादा जनजातियां उड़ीसा, झारखण्ड और छत्तीसगढ़ में हैं, जहां माओवादी ज्यादा सक्रिय हैं। वे अपने संविधान में अपनी इस लड़ाई को वैचारिक मानते हैं। मरता गरीब ही है चाहे वह सीआरपीएफ का सिपाही हो अथवा गलत दिशा में जाने वाला इन क्षेत्रों का स्थानीय युवा। इन युवाओं को सही दिशा देते हुए, आशा बंधाते हुए अवसर उपलब्ध कराने के साथ विकास का दर्शन समझाना जरूरी है। 1919 से 1922 तक तुर्की में जो खिलाफत चला था भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने उसका समर्थन किया था। दुर्भाग्य से आज भी देश में ऐसे क्षेत्रीय राजनीतिक दल हैं जो इस्लाम के चरम तत्वों का समर्थन कर रहे हैं। वर्तमान प्रधानमंत्री और केन्द्र सरकार युवा को ही केन्द्र में रखकर चल रहे हैं। हमें अपनी अच्छी छवि वाले लोगों को आगे बढ़ाना होगा चाहे वे खिलाड़ी हों, नेता हों अथवा किसी भी क्षेत्र के विशिष्ट व्यक्ति। जब एक सिपाही को परमवीर चक्र दिया जाता है तो साहस के साथ लड़ने के उसके जज्बे से अन्य युवाओं को भी प्रोत्साहन मिलता है।
जम्मू कश्मीर अध्ययन केन्द्र के अध्यक्ष अरुण कुमार ने कहा- द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से 1990 तक हम देखते हैं तो पश्चिमी और पूर्वी दो शक्तिकेन्द्र दिखायी पड़ते हैं। 1999 में बड़ी महाशक्ति कहलाने वाला देश रूस बिखर जाता है जिसका पूरा विश्लेषण अभी तक नहीं हो पाया है। भविष्य में बहुध्रुवीय शक्ति केन्द्र अस्तित्व में होंगे जिनमें अमरीका, यूरोपीय यूनियन, चीन, जापान और भारत विश्व को शक्ति संतुलन प्रदान करेंगे। इस भूमिका की सभी भारत से अपेक्षा करते हैं। विश्व में चाहे आर्थिक मामला हो, पर्यावरण का, जी-5 का अथवा कोई अन्य- भारत यदि किसी विषय के ऊपर खड़ा हो जाता है तो सभी को सोचना पड़ता है। आज के वैश्विक परिदृश्य में हम तीसरी दुनिया के देश नहीं बल्कि वैश्विक ताकत हैं। जबकि दूसरी ओर यदि हम स्वयं को देखें तो आंतरिक संकट दिखायी देते हैं। कहीं चीन घेर रहा है, कहीं माओवादी बढ़ रहे हैं। वास्तविकता यह भी है कि एक वैश्विक शक्ति बनने का सामर्थ्य भारत के अतिरिक्त किसी के पास नहीं है। ब्रिटेन भी यदि एक समय में शक्ति था तो वह 1947 से पूर्व भारत के औपनिवेशिक क्षेत्र की कृपा से। पहले विश्वयुद्ध में ब्रिटेन की ओर से लड़ने वाली सेना में 18 लाख सैनिकों में से 14 लाख भारतीय सैनिक थे। इसी प्रकार द्वितीय विश्वयुद्ध में लड़ने वाले 25 लाख सैनिकों में से 20 लाख भारतीय सैन्ि ाक थे। दुनिया के अंदर यदि हमें विजेता बनना है तो ठोस रणनीतिक दृष्टि बनानी होगी। जिस देश का समाज बिजली-पानी, गली-सड़क की सोच से बाहर नहीं निकल सकता वह विजय का विजन रख पाएगा इस पर शंका स्वाभाविक है। आजादी के बाद हम ऐसा समाज नहीं बना पाए जो अपेक्षित था। लोगों को उचित शिक्षा नहीं मिल पायी और इसके साथ ही शिक्षाविदों, नेताओं और मीडिया ने भी अपेक्षित भूमिका नहीं निभायी। जबकि इनका भी देश को एक विशेष शक्ति बनाने का दायित्व था जो ये नहीं कर पाए। मैं समुद्र तट पर रहता हूं तो सुरक्षा का दायित्व केवल तटरक्षकों का नहीं उस समाज का भी है जो वहां रह रहा है। हम प्रतिक्रिया के लिए तो प्रतिबद्व रहते हैं लेकिन सक्रियता कम दिखाते हैं। समाज में जागरण लाना होगा। केवल विशेषज्ञों का नहीं सभी का दायित्व होना चाहिए कि देश की सुरक्षा कैसे सुदृढ़ हो और रणनीतिक समाज की निर्मिति कैसे हो तभी हम आंतरिक और वाह्य दोनों स्तरों पर वैश्विक शक्ति बन सकेंगे।
लोकार्पण समारोह में धन्यवाद ज्ञापन करते हुए भारत प्रकाशन (दिल्ली) लि. के प्रबंध निदेशक विजय कुमार ने कहा कि यह तो नियति का नियम है कि भारत ने विश्व का नेतृत्व करना है। हम सब को मिलकर महत्वाकांक्षा, व्यापक दृष्टि और ठोस संकल्प के भाव को क्रियान्वित करना होगा। हम अपने पत्रों की इस थाती को तभी संवार पाएंगे जब प्रबंधन से लेकर कर्मचारी तक इस व्यापक भाव का आचरण करेंगे। पाञ्चजन्य और ऑर्गनाइजर टैबलायड आकार से पत्रिका रूप में आए, नई तकनीक से जुड़े, हमने कई पाठक सम्मेलन किये, प्रतिनिधियों की बैठकें कीं और ब्राण्ड प्रमोशन का काम भी किया। गत एक वर्ष से पाञ्चजन्य की प्रसार संख्या में 37 प्रतिशत वृद्धि और ऑर्गनाइजर की प्रसार संख्या में 45 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इस समारोह में आईसीसीआर के अध्यक्ष डॉ. लोकेश चंद्र, रक्षा विशेषज्ञ आलोक बंसल, पूर्व एडमिरल के.के. नंदा, वरिष्ठ पत्रकार जगदीश उपासने, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दिल्ली प्रांत सहसंघचालक आलोक कुमार और पूर्व सह प्रांत संघचालक डॉ. श्यामसुन्दर आदि उपस्थित थे। लोकार्पण समारोह का संचालन पाञ्चजन्य के सहयोगी संपादक आलोक गोस्वामी ने किया।
ल्ल पाञ्चजन्य ब्यूरो

पाकिस्तान भारत के साथ सीधा मुकाबला नहीं कर सकता इसलिए वह आतंकवाद को हथियार बनाकर भारत को अजगर की तरह कई घाव देना चाहता है। अलग-अलग नाम के अलग अलग संगठनों को भारत में आतंकवाद फैलाने के लिए वित्तीय सहायता और हथियारों के साथ साथ उनमें प्रतियोगिताएं करवाकर पुरस्कृत भी करता है।
-राज्यवर्धन सिंह राठौर

दुनिया के अंदर यदि हमें विजेता बनना है तो ठोस रणनीतिक दृष्टि बनानी होगी। जिस देश का समाज बिजली-पानी, गली-सड़क की सोच से बाहर नहीं निकल सकता वह विजय का विजन रख पाएगा इस पर शंका स्वाभाविक है।
– अरुण कुमार

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