|
प्रत्येक नागरिक किसी न किसी कला से जुड़ा है। कहीं कलाकार के रूप में अपनी साधना में रत है तो कोई किसी कला का रसिक है। कला के प्रति रुचि यह मनुष्य मात्र की पहचान है। परन्तु क्या कला के प्रति उसका लगाव केवल 'स्वांत:सुखाय' है? कला क्या केवल मनोरंजन के लिये है? किसी कला की निमिति समाज प्रबोधन करती है या समाज मन को कलुषित या दूषित करती है? यदि कला समाज के सुख-शान्ति के लिये घातक हुई तो अपने लिये सचमुच चिंता का विषय है।
आज की स्थिति में भारत के बहुतांश घरों में दूरदर्शन के माध्यम से सैकड़ों चैनल द्वारा बरसों चलने वाले धारावाहिकों ने परिवार के व्यक्ति-व्यक%E
टिप्पणियाँ