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पाञ्चजन्य और ऑर्गनाइजर साप्ताहिकों द्वारा 26 दिसम्बर को नई दिल्ली स्थित मध्य प्रदेश भवन में थल सेना, वायु सेना और नौसेना के विशेषज्ञों के मध्य एकदिवसीय परिसंवाद का आयोजन किया गया। सुरक्षा पर केन्द्रित इस संवाद के तीन अलग-अलग विषय थे- भारत की रक्षा चुनौतियां, रक्षा तैयारियों में आत्मनिर्भरता और इस्लामी आतंक की चुनौती- जिन पर विशेषज्ञ वक्ताओं ने अपने तर्कपूर्ण, तथ्यपूर्ण और अनुभवजन्य विचार रखे।
संवाद के विषयों पर प्रकाश डालते हुए ऑर्गनाइजर के संपादक प्रफुल्ल केतकर ने कहा कि पाञ्चजन्य और आर्गनाइजर दोनों ही समाचारपत्र राष्ट्रीय सुरक्षा को प्राथमिकता देते हैं, इसलिए समय-समय पर इनके द्वारा देश की बाह्य एवं आंतरिक सुरक्षा पर यथावसर चर्चा भी आयोजित की जाती है, ठोस समाधान के विकल्प भी तलाशे जाते हैं। यह एक खुला मंच है जहां नये मुद्दे, विचार और भाव उपस्थित होते हैं और उनका विश्लेषण होता है।
आज हम वैश्विक जगत की बात करते हैं लेकिन कई मायनों में हम परंपरागत रास्ते पर ही चल रहे हैं। आने वाले दिनों में देश के सामने बाह्य और आंतरिक चुनौतियां नये रूप में उपस्थित होंगी।
पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर ने कहा कि यह मंथन मीडिया हाउस की चकाचौंध से दूर होता है, शायद इसीलिए गंभीर चर्चा के बाद यहां से देश की सुरक्षा के लिए ठोस सुझाव निकलते हैं। रक्षा पर ठोस चर्चा की झिझक तोड़ने का कार्य पाञ्चजन्य और ऑर्गनाइजर ने बखूबी किया है। गहराई के साथ नीति विषयक तत्वों को समझने वाले लोगों का योगदान उपयेागी होता है। हमारे पत्र अपने पाठकों को यह उपयोगी सामग्री देने के नाते भी पत्रकारिता धर्म निभाते हैं।
प्रथम सत्र में 'भारत की रक्षा चुनौतियां' विषय का प्रवर्तन करते हुए रक्षा विशेषज्ञ और इंडिया फाउण्डेशन में सुरक्षा एवं रणनीति केन्द्र के निदेशक आलोक बंसल ने कहा कि पिछले वर्ष इराक समस्या पर हमने इसी मंच से चर्चा की थी और विशेषज्ञों ने अपने अनुसंधान और विश्लेषण द्वारा जो संभावित निर्णय दिये वे बाद में सही सिद्ध हुए।
आज देश में आंतरिक और बाहरी सुरक्षा के सरोकारों से संबंधित जो चुनौतियां उपस्थित हुई हैंउनमें भारत अपने परंपरागत प्रतिद्वंद्वियों पाकिस्तान के साथ ही उत्तर की ओर चीन के उभरने से भी असहज महसूस कर रहा है। यह ठीक है कि हम अपने शत्रु के साथ त्वरित आक्रामक व्यवहार नहीं कर सकते किन्तु हमें अपनी संप्रभुता और सामरिक अस्मिता की रक्षा के लिए कूटनीतिक और ठोस निर्णय लेने ही होंगे।
आज देश के समक्ष बाहरी चुनौतियां तो हैं ही साथ ही आंतरिक चुनौतियां भी उपस्थित होती दिखायी दे रही हैं। अभी जो सिडनी में हमने देखा वह बेशक हमारी सीमा से कोसों दूर हुआ हो लेकिन तटरक्षक सुरक्षा को चीरते हुए मुम्बई में प्रवेश करके आतंकवाद को बखूबी अंजाम दिया गया। आज हमारे समक्ष पूर्वोत्तर में बहुत बड़ी विकट समस्या आयी है। असम में बोडो उग्रवादियों द्वारा किया गया नरसंहार इसका ज्वलंत प्रमाण है। सीधे तौर पर कहा जाए तो सरकार को बाहरी सुरक्षा की तरह ही आंतरिक सुरक्षा से लड़ने के लिए भी ठोस और प्रभावी तंत्र स्थापित करना होगा।
जनरल एस.ए. हसनैन ने कहा कि यह देश का सौभाग्य है कि 2014 के चुनावों में एक देशभक्त और राष्ट्रवादी दल की सरकार सत्ता में आयी है तो स्वाभाविक है कि यह देश की सुरक्षा और विशेषकर सेना के विषय में प्रभावी कार्यनीति बनाएगी। ऐसा लगता है कि अब तक रक्षा क्षेत्र में ऐसे थिंक टैंक का अभाव था जो प्रभावी सामरिक संस्कृति से अनभिज्ञ रहा है। जहां तक सुरक्षा का प्रश्न है भारत को पाकिस्तान और चीन से तो परंपरागत चुनौतियां मिलती ही रही हैं इसके साथ ही कुछ वर्षों से इस्लामी आतंकवाद ने भी भारत की आंतरिक सुरक्षा को चुनौती दे दी है। आज इस्लामी आतंकवाद हमारे यहां असुरक्षा का एक हिस्सा बन गया है। कई मायनो में सोशल मीडिया अच्छा काम कर रहा है। पाकिस्तान और चीन हमारे कश्मीर और उत्तर पूर्व में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से शांति भंग का कोई अवसर नहीं छोड़ते। इसको रोकने में सीएपीएस सक्षम नहीं रहा है। 2009 में जब आतंकवाद ने कश्मीर में जड़ें जमानी शुरू की तो उसके बाद उन्मादियों के साथ-साथ वित्तीय सहायता और बजट भी बढ़ चढ़ कर दिया जाने लगा। चीन अपने कुल बजट का 3 प्रतिशत रक्षा क्षेत्र में खर्च करता है। हम रक्षा बजट और आयुध पर खर्चे के मामले में चीन से दस साल पीछे चल रहे हैं। पूर्वोत्तर में भी सीमा पर वायुसेना की जैसी चौकसी होनी चाहिए थी वह अब तक नहीं हो सकी है।
पाकिस्तान की व्यूहरचना हमेशा से एक जैसी रही है इस सत्य को वह भी जानता है कि भारत के सामने वह कुछ नहीं है। यह सब होने पर भी सामरिक रणनीतिकारों को सोचना चाहिए कि सीमाओं की सुरक्षा के लिए सीमा सुरक्षा बल ही पर्याप्त नहीं है। 1999 के युद्ध में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की कूटनीति का ही प्रभाव था कि युद्ध होने के बाद भी पाकिस्तानी सैनिक सीमा तक नहीं पहुंच पाये। आज उच्च सुरक्षा तंत्र बनाने की आवश्यकता है। राज राइफल रेजीमेंट को जम्मू-कश्मीर में लगा देना चाहिए। रक्षा मामलों की समिति ने जो संस्तुतियां दी हैं वे रक्षा मंत्रालय को घेरे में लाने वाली हैं। आज हम सेना में अधिकारियों की कमी की बात कर रहे हैं और दूसरी ओर पूर्व सैनिकों के व्यक्तिगत प्रबंधन में भी खरे नहीं उतर पाए हैं। चीन और पाकिस्तान के साथ सीमा विवाद के स्थायी समाधान के लिए हमारी ओर से ठोस पहल होनी चाहिए। सभी सेनाओं को ढांचागत सुविधाएं प्राप्त होनी चाहिए। हमें अपनी युद्ध लड़ाकू क्षमता दिखानी चाहिए ताकि पाकिस्तान को लगे कि हमारी सहनशक्ति की सीमा क्या है। हमारी तैयारी बेशक कम हो लेकिन हमारी ताकत और क्षमता बहुत ठीक है, यह भी दिखाना होगा।
एडमिरल पी.के. रॉय ने कहा कि रक्षा क्षेत्र में हमारे जितने प्रोजेक्ट चल रहे हैं, हमें पहले उन्हें पूरा करना चाहिए। हमें थल सेना और नौसेना को अत्यधिक आधुनिक और शक्तिशाली बनाने के साथ वायुसेना पर विशेष कार्य करना होगा। हमें अपने वायुसेना की पायलटों को इतने लड़ाकू जहाज उपलब्ध कराने चाहिए ताकि वे ज्यादा से ज्यादा उड़ानें भरकर किसी भी भावी खतरे के लिए हमेशा स्वयं को तैयार रख सकें।
वरिष्ठ राजनयिक एस. पुरुषोत्तम ने कहा कि जब बात रक्षा की आती है तो हमारा ध्यान विशेष रूप से बाहरी सुरक्षा पर ही जाता है जबकि आज के परिप्रेक्ष्य में हम देखें तो देश के अंदर भी कम आंतरिक समस्याएं नहीं हैं। चीन और अमरीका स्वदेशी तकनीकों से युक्त होने के बावजूद आंतरिक सुरक्षा को कमतर नहीं आंकते। भारत में भी हमारे अपने संस्थान रक्षा से जुड़े स्वदेशी उपकरणों का निर्माण कर आत्मनिर्भर हो सकते हैं। नागर विमानन क्षेत्र में प्रारंभ हुआ प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) इसकी शुरुआत बन सकता है। आज चीन, ब्राजील और दक्षिण कोरिया स्वयं लड़ाकू विमान बना रहे हैं। रक्षा बजट के माध्यम से हम भी स्वदेशी उत्पादों द्वारा इसको बढ़ा सकते हैं। चीन आज स्वयं अपने द्वारा संचालित तंत्र विकसित कर चुका है वह साइबर स्पेस, साइबर हैकर्स सभी से निपटने में सक्षम है।
अंदमान-निकोबार के पूर्व मुख्य सचिव शक्ति सिन्हा ने कहा कि 2030 तक हमें राजनीतिक रणनीति के साथ अपनी सभ्यता की स्वीकृति को भी सुरक्षित रखना है। प्रतिव्यक्ति आय, स्वास्थ्य और शिक्षा में हम कहां ठहरते हैं। यह देखना होगा आज हम सभी बहुत प्रतिक्रियावादी हो रहे हैं। हम नियमों को लेने वाले हैं नियम बनाने वाले नहीं। व्यावहारिक सत्य यह होना चाहिए कि हम समेकित और एकीकृत रक्षा कमांड बनाएं। यह कमांड थलसेना, वायुसेना और नौसेना के लिए एकरूप होनी चाहिए। इसी प्रकार जो वित्त का प्रवाह होता है वह भी केन्द्रीयकृत होना चाहिए अर्थात इस सब में संतुलन बनाने की आवश्यकता है। मेजर जनरल ध्रुव कटोच ने कहा कि जम्मू कश्मीर, पूर्वोत्तर में जो आतंकवाद दिखता है उस पर हमेशा प्रश्न उठते हैं। बात आती है कि हमें अधिकारी चाहिए लेकिन कम संख्या में। कभी बात आती है आईएमए में संख्या बढ़ा दो, कभी बात आती है कि सेना के सभी अंगों में मानवशक्ति की जरूरत है। असली समाधान संभव है यदि केन्द्रीय अधिकारियों की नियुक्ति पद्धति बदल दी जाए। इसी प्रकार जब आप 10-12 वर्ष किसी को कमांड करने का अवसर नहीं देंगे तब तक कुछ ठोस नहीं होगा। सेना आज केवल पाकिस्तान से नहीं बल्कि वह वैश्विक उग्रवाद से भी लड़ रही है क्योंकि राजनीति सेना के मनोबल को प्रभावित करती रही है। रक्षा मंत्रालय को समेकित एवं एकीकृत करने की आवश्यकता है। डीआरडीओ में और अनुसंधान होने चाहिए। पाकिस्तान और चीन के साथ लागू करने के लिए हमारी व्यूहरचनाएं अलग-अलग होनी चाहिए। हमें जमीनी, आसमानी, समुद्री और साइबर चुनौतियों से भी लड़ने के लिए सजग रहना चाहिए। मिसाइल तकनीक में हमारी वायुसेना सबसे ऊपर है। हमें रक्षा चुनौतियों को श्रेणीबद्ध तरीके से प्राथमिकता के तौर पर लेना चाहिए। सेना में क्षेत्रीय कमान गठित कर केन्द्रीय कमान की जबावदेही सुनिश्चित होनी चाहिए। ले. जनरल के.टी. पटनायक ने कहा कि हमें सर्वप्रथम एक राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय की स्थापना करनी चाहिए ताकि सेना और आम जनता के बीच संप्रेषण संवाद और भावनाओं का आदान-प्रदान हो सके। इसके साथ ही सैनिकों को यह भी पता रहे कि सुरक्षा वातावरण का दूसरा आयाम क्या है। हमें चीन और पाकिस्तान के साथ सीमा विवाद का ठोस और स्थायी हल खोजना चाहिए।
वरिष्ठ राजनयिक स्मिता पुरुषोत्तम ने कहा कि तकनीकी माध्यम से कोई भी देश सबसे अग्रणी बन सकता है। भारत में राष्ट्रीय स्तर पर अपने उपकरणों की आत्मनिर्भरता के विषय में ज्यादा विमर्श नहीं उठा जबकि हमें इस परिवर्तन कि लिए बहुत सक्रिय तंत्र तैयार करना चाहिए था। उच्च तकनीक से युक्त कार्यतंत्र की इस समय बड़ी आवश्यकता है, जहां निजी क्षेत्र को भी प्रतियोगिता के लिए आमंत्रित किया जाना चाहिए। रक्षा मंत्रालय अकेले ही सब कुछ नहीं कर पाएगा उसे आर्थिक तंत्र के सहारे की भी जरूरत पड़ेगी।
अमरीका जोकि स्वदेशी तकनीक से पूर्ण है वहां भी रक्षा क्षेत्र में सौ प्रतिशत एफडीआई है। यही हाल चीन का भी है जहां की प्रत्येक पुस्तक उनकी अपनी भाषा में है- चाहे विज्ञान की हो या तकनीक की। भारत में भी स्वदेशी भारतीय उद्योग को प्रोत्साहन देने की जरूरत है। जो कोई कमजोरियां रहेंगी उनको ताकत देने के लिए अंत:मंत्रिमंडलीय समूह बनाकर सेवा क्षेत्र को रक्षा मंत्रालय के अधीन और मजबूत एवं प्रभावी बनाया जा सकता है।
हमें खुले दिमाग से और पूरे समर्पण के साथ अनिवार्य चीजों पर ध्यान देना पड़ेगा और एकल खिड़की समाधान के तहत ठोस सामने लाना होगा। बच्चों को ऐसा ज्ञान देना होगा जिसे वे याद रखें चाहे इसके लिए पाठ्यक्रम ही क्यों न
बदलना पड़े।
संवाद के दूसरे सत्र के विषय 'रक्षा तैयारियों में आत्मनिर्भरता का प्रवर्तन करते हुए हितेश शंकर ने कहा कि सुरक्षा का मामला सीधे तौर पर देश के स्वाभिमान और सम्मान से जुड़ा होता है और जब सामरिक तैयारी की बात होती है तो रक्षा तैयारियों में आत्मनिर्भरता होनी आवश्यक है।
प्रफुल्ल केतकर ने कहा कि रक्षा उत्पादों में स्वदेशी मॉडल देकर हम अपने लोगों की प्रतिभा को सामने लाएंगे साथ ही विश्वसनीय रक्षा सामग्री एक अच्छी लागत से बनाने में सफल हो सकेंगे।
जनरल एस.ए. हसनैन ने कहा कि सेना में आज भी वैज्ञानिक विशेषज्ञता का अभाव है। सामान्य कैडर को युद्ध में झोंक दिया जाता है। सेना में वैज्ञानिक तकनीकी और अलग-अलग क्षेत्रों से जुड़े हुए नागरिक कैडर को शामिल करना चाहिए। यह सब कार्य विशेषीकृत होना चाहिए लेकिन इसका समन्वय एक ही तरफ से होना चाहिए। बोफोर्स सौदे की तरह की शंकालु प्रकृति किसी के लिए भी ठीक नहीं है। हमारे कार्मिक प्रबंधन को बदलने की भी सख्त जरूरत है। हमारी सेना में ऐसी परंपरा है कि सेवानिवृत्त होने के बाद सैनिक के अनुभव का कोई उपयोग नहीं होता। जबकि अनुभवी सेना अध्यक्षों अथवा पूर्व सैनिकों के अनुभवों का पूरा लाभ लेना चाहिए और विज्ञान और तकनीक के युग में भी निसंदेह उनके जमीनी अनुभव कारगर सिद्ध हो सकते हैं।
डीआरडीओ से जुड़े प्रो. राव तटवर्ती ने कहा कि स्वदेशी नवोन्मेष तकनीक सामरिक उपयोग में विशेष भूमिका निभाएगी। 18 वर्षों तक डीआरडीओ में परियोजना अधिकारी के रूप में पर्याप्त आवश्यक कार्य करने का अवसर मिला और भारतरत्न डॉ. कलाम के साथ भी काम करने का अवसर मिला। यह सत्य है कि हम समुन्नत तकनीक से युक्त समुद्री जहाज और जल नौकाएं बनाने की ओर बढ़ रहे हैं। डीआरडीओ की अपनी कार्यसंस्कृति है और इसका अपना एक ढांचा है। जहां मेडिकल कॉलेज एवं विभिन्न प्रशिक्षण संस्थाएं भी हैं। हमें अपनी युवा पीढ़ी पर दबाव बनाने की बजाय उनकी मनपसंद के हुनर वाले क्षेत्र में जाने के लिए अनुकूल वातावरण बनाना चाहिए। डीआरडीओ में देश के लिए समर्पित लोग काम कर रहे हैं। कई विषयों पर इसके कार्मिकों में वैचारिक या सांस्कृतिक मतभेद हो सकते हैं। थोड़ा बहुत बाधा बन सकती है, ज्यादातर कार्य संकेत भाषा से सम्पन्न होते हैं।
श्री आलोक बंसल ने कहा कि भारत में नागर विमानन के लिए बहुत कुछ करने की आवश्यकता है और इसके लिए व्यापक अवसर भी हैं। हमें नये मार्ग तलाशने होंगे। कुछ छोटी चीजों को जोड़कर हम धरातल से ऊपर विकसित होने का अवसर प्राप्त कर सकते हैं। वास्तव में रक्षा क्षेत्र में कोई ठोस निर्णायक नेतृत्व वाला अधिकारी जुड़ेगा तो वह नौकरशाही को इस प्रकार तंत्र से जोड़ेगा जिससे देश के सामरिक वातावरण में आत्मनिर्भरता का रास्ता स्वत: खुल जाएगा। हम तकनीकी को अनिवार्य बनाने की बात नहीं कर रहे लेकिन निहित स्वार्थ वाले कुछ तत्व तकनीक को अनावश्यक बताते हैं। अपनी नौकरशाही में विदेशी आयात पर जोर देने की परंपरा अभी भी है। रफेल एक अच्छा लड़ाकू विमान है, 100 प्रतिशत एफडीआई भी चलेगा लेकिन गुणवत्ता पर नियंत्रण कैसे होगा। स्वदेशी तकनीक को आवश्यक रूप से प्रोत्साहन मिलना चाहिए। डीआरडीओ के पास बहुत भारी बजट रहता है और वे इस कार्य के लिए एक बड़ी प्रयोगशाला उपलब्ध करा सकते हैं।
मेजर जनरल ध्रुव कटोच ने कहा कि रक्षा क्षेत्र में 100फीसद एफडीआई का विरोध नहीं होना चाहिए, क्योंकि हमारे पास तकनीक नहीं है और हम युद्धपोतों का निर्माण नहीं कर सकते। आपके पास शक्ति नियंत्रण की क्षमता होनी चाहिए। जब यह बात होगी कि प्रतिभा का सम्मान नहीं करेंगे तो भारतीय उद्योगों में हुनरमंद लोग कहां से आएंगे। हमें डीआरडीओ को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान परिषद (इसरो) की तरह प्रभावी और जबावदेह बनाना होगा। डीआरडीओ को निर्माण और उत्पादन की बड़ी जिम्मेदारियां देनी चाहिए- पोशाक, कम्बल और मच्छरदानी बनाने का काम कोई और कर सकता है। हमारे पास विश्व में सबसे सुन्दर हथियार हैं आवश्यकता इस बात की है कि हम सही जवाबदेही तय करे। हमारा गुणवत्ता नियंत्रण तंत्र बहुत कमजोर है। यदि इसे मजबूत और नियंत्रित किया जाए तो सबकुछ संभव है।
शक्ति सिन्हा ने कहा कि हमारा तंत्र ठीक नहीं है। हमें एक सेवानिवृत्त जनरल की जरूरत नहीं पड़नी चाहिए। डीआरडीओ भारत का दूसरा सबसे बड़ा सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम है। ऐसे संस्थानों में नवीनतम सामयिक ज्ञान और तकनीक पर जोर होना चाहिए। हमें भारतीय तकनीक को और अधिक बढ़ाना चाहिए तब यह संतुलन बनेगा। सब कुछ हम नहीं बना सकते, सेना में अधिकारियों की कमी को दूर करना चाहिए। एक कमान अधिकारी आधे समय में रेजीमेंट के लिए क्या कर पाएगा जब वह आधे समय और कारणों से बाहर रहेगा। अधिकारियों का आपस में तालमेल रहना चाहिए और सेवानिवृत्त होने वाले सेना प्रमुख को अपने उत्तराधिकारी के साथ निरंतर सम्पर्क एवं संवादरत रहना चाहिए। पदोन्नति के लिए ठोस नीति बनायी जानी चाहिए।
तीसरे सत्र में 'तटीय सुरक्षा की चुनौतियां' विषय पर बोलते हुए शेखर सिन्हा ने कहा कि तटीय सुरक्षा पर हमें विशेष ध्यान देना होगा। जब तक इससे क्षेत्रीय लोगों के हित नहीं जोड़ें जाएंगे चाहे वे नारियल किसान हों अथवा मछुआरे इन सभी को मुख्यधारा से जोड़ना होगा। इससे तटीय क्षेत्रों से प्रवेश करने वाले आतंकी तत्व स्वभाविक रूप से नियंत्रित हो सकेंगे। उनको अपनी नाव मिलनी चाहिए और विशेष पहचान पत्र देकर उनसे आत्मसुरक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा दोनों ही आसानी से करवाई जा सकती है।
पी.के.रॉय ने कहा कि सरकार को तटीय क्षेत्रों में पर्यटन को बढ़ावा देने के साथ-साथ स्थानीय लोगों को रोजगार एवं परस्पर आदान-प्रदान के लिए प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। क्योंकि यहाां जीविका की सीमित साधन हैं जिस कारण न तो अधिक मानव संसाधन दिखाई पड़ता है और नहीं आपस में परस्पर समन्वय भाव। इसके लिए केन्द्र से भी और राज्य स्तर से भी ठोस उपाय करने की जरूरत है। समुद्री जहाजों और नावों के आवागमन पर स्थानीय लोग निरंतर नजर रखते हैं। सरकार के स्तर पर ऐसी व्यवस्था को ठोस अमलीजामा पहनाया जाना चाहिए।
प्रो. राव तटवर्ती ने कहा कि हमारे पास अपने ऐसे प्रभावी सेटेलाइट नहीं है जो तटीय क्षेत्रों में हो रही दैनिक गतिविधियों पर नजर रख सकें, इसलिए निश्चित रूप से स्वयंसेवी संस्थाओं को सक्रिय करते हुए स्थानीय जनता को इसमें सहभागी बनाना चाहिए।
शक्ति सिन्हा ने कहा कि आज भी द्वीपसमूहों में संचार की व्यवस्थित सुविधा नहीं है। जब यहां लोगों की ज्यादा आवाजाही रहेगी तो सुरक्षा व्यवस्था स्वयं ठीक रहेगी। इस क्षेत्र में 60 हजार से भी ज्यादा समुद्री जहाज आरपार होते हैं। हमें इस क्षेत्र में आर्थिक हब बनाना होगा और लोगों को पर्यटन और नौकायन के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। कचाल क्षेत्र का एक तिहाई हिस्सा समुद्री सुनामी के कारण नष्ट हो गया था उस क्षेत्र को भी पुन: नया स्वरूप देने का प्रयास करना चाहिए।
आलोक बंसल ने कहा कि तटीय क्षेत्रों की लोक संस्कृति, मुख्यधारा के लोगों से थोड़ी अलग है। मद्रास और मराठा रेजीमेंट के कुछ लोग यहां रह रहे हैं। केवल पर्यटन ही दक्षिण क्षेत्र के इन सुन्दर स्थलों के लिए विकास के रास्ते खोल सकता है।
चौथे सत्र में इस्लामी आतंकवाद पर बोलते हुए न्यू एज इस्लाम डाट काम के सुलतान शाहीन ने कहा कि आज विश्वभर में उन्माद के लिए भावनाओं को भड़काने के साथ-साथ पैसा भी परोसा जा रहा है। पैगम्बर ने आत्महत्या की मनाही की थी लेकिन आज जान देने को अल्लाह का पैगाम माना जा रहा है। मुस्लिम समाज को यदि प्रगति करनी है तो उसे देश की मुख्यधारा से जुड़कर उपयोगी और प्रासंगिक शिक्षण-प्रशिक्षण लेना होगा। तालिबान अलकायदा अथवा आईएसआईएस या ऐसे कितने भी नाम जो विश्व में उन्माद और आतंक के पर्याय बने हुए हैं- वे यदि मुसलमानों को बदनाम कर रहे हैं तो एक सच्चे मुसलमान को इस अमानुष कार्य का खुले रूप से विरोध करना चाहिए। हिंसा और घृणा को सभ्य समाज में विल्कुल जगह नहीं मिलनी चाहिए। सरकार को कुछ मस्जिदों अथवा सोशल मीडिया के माध्यम से समाज में विखंडन पैदा करने वाले तत्वों पर शिकंजा कसना चाहिए।
ले. जनरल एस.ए. हसनैन ने कहा कि आज सारा विश्व वैश्विक ग्राम बन रहा है। जातिवर्ग और सम्प्रदाय के संकीर्ण भाव को त्यागकर सर्वसम्मत जीवन पद्धति से चलते हुए अपने व देश के विकास के विषय में सोचना चाहिए।
इस संवाद गोष्ठी में अन्य वक्ताओं के साथ राजस्थान विधानसभा के सदस्य मानवेन्द्र सिंह, जम्मू-कश्मीर अध्ययन केन्द्र के अध्यक्ष अरुण कुमार और पत्रकार देबब्रत घोष ने भी अपने विचार व्यक्त किये। ल्ल प्रस्तुति : सूर्य प्रकाश सेमवाल
आधुनिक तंत्र का निर्माण होना चाहिए
ल्ल वाइस एडमिरल (से.नि.) शेखर सिन्हा
जब हम फिक्की ऐसोचैम या पीएचडी चैम्बर्स ऑफ कामर्स के मंचों पर सुनते हैं कि रक्षा उपकरणों के लिए बजट 22 प्रतिशत क्यों, 30 प्रतिशत क्यों नहीं तो मन में प्रश्न उठते हैं। यह जरूरी नहीं है कि सामरिक दृष्टि से उपयोगी सारे रक्षा उपकरण भारत में ही निर्मित हों। आज हमारे सामने आंतरिक चुनौतियां ज्यादा हैं। हमारा मुख्य ध्यान जनसंख्या नियंत्रण पर होना चाहिए। आज हमारे यहां जन्म दर 2.4 है। 2050 तक हम जनसंख्या के मामले में विश्व में पहले स्थान पर पहुंच जाएंगे। आज भी सरकार के लिए प्राथमिकता शिक्षा और स्वास्थ्य चिंता की होनी चाहिए। लोग छोटी-छोटी जगहों पर सुरक्षा के अभाव में कार्य करने को क्यों विवश हैं। आज राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की पुनर्रचना करने की आवश्यकता है। हमारे यहां अभी भी राष्ट्रीय सुरक्षा नीति में परंपरागत मानक और पैमाने ही प्रचलन में र्हैं। देश में केवल एक मुख्य सुरक्षा सलाहकार ही नहीं बल्कि उसके साथ-साथ विविध क्षेत्रों से जुड़े हुए अलग-अलग उपसुरक्षा सलाहकार भी होने चाहिए। सीमा विवाद से संबंधित, वायु क्षेत्र से संबंधित और साइबर विवादों से संबंधित। हमें सब चीजों को देखकर चलना होगा। जब तक आप सामाजिक ताने-बाने और अपने वातावरण के अनुसार तंत्र का निर्माण नहीं करेंगे तब तक कुछ नहीं हो सकता।
हमारी कुछ समाज से जुड़ी हुई बुनियादी समस्याएं हैं जिनमें करोड़ों की संख्या में लोग हैं उनमें मध्य वर्ग, निम्न मध्य वर्ग इत्यादि… इत्यादि। उनका चिंतन सीमित है… ऐसे में आप उनके साथ संवाद करने के लिए मध्यस्थों को नियुक्त करेंगे! यह सही बात है कि सुशासन के क्रम में मुख्य जोर शिक्षा, औषधि, स्वास्थ्य चिंताओं आदि पर होना चाहिए। विश्व भर में जो आतंकवाद और उन्माद बढ़ रहा है वह भी साइबर अपराध तक पहुंचा हुआ है। तो इस प्रकार आज युद्ध की परिभाषाएं बदल गयी हैं। ऐसे में हम कैसे तय करें कि सारी दुनिया के लोग एक ही छाते के नीचे आकर एक जैसा सोचें। आज भी हमारा रक्षातंत्र बहुत हद तक अंग्रेजों द्वारा दिखाए गए नियमों पर ही चल रहा है। यदि कुछ आवश्यक परिवर्तन कर दिये जाएं तो उनका सुफल मिलेगा। नरेशचंद्र समिति ने एचआर नीति के लिए जो संस्तुतियां दी हैं उनको क्रियान्वित किया जाना चाहिए। भारत, पाकिस्तान और चीन की अलग-अलग बुनियादी आवश्यकताएं और आकांक्षाएं हैं इसलिए किसी की देखादेखी न करते हुए भारत को एक ठोस रणनीति बनानी चाहिए। बदलते समय के साथ हमें युद्ध के तरीके, प्रशिक्षण की पद्धति और अपने थिंक टैंक को दुरुस्त करना चाहिए। इस्रायल में जिस प्रकार राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को ताकत देने के लिए अलग-अलग क्षेत्रों के विशेषज्ञ उपसुरक्षा सलाहकार कार्य करते हैं- वह पद्धति यहां अपनायी जा सकती है। वर्तमान में रक्षा क्षेत्र में नौकरशाहों के कब्जे में फंसे रक्षा क्षेत्र को सक्षम बनाने में कोई तंत्र सफल नहीं हो पाएगा।
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