अद्वितीय है हमारी संस्कृति
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अद्वितीय है हमारी संस्कृति

by
Jan 22, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 22 Jan 2015 11:27:26

अंक संदर्भ: 28 दिसम्बर, 2014

आवरण कथा 'संस्कृति से साक्षात्कार' अच्छी लगी। जानकारी मिली कि कम्बोडिया का अंगकोरवाट मन्दिर विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक स्थल है। अंगकोरवाट मन्दिर के बारे में जानकर हर हिन्दू गर्व का अनुभव करता है। यह मन्दिर स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है। इस मन्दिर का निर्माण कार्य सम्राट सूर्यवर्मन द्वितीय के शासनकाल (1112-1153 ई.) में शुरू हुआ था। उन्होंने सनातन धर्म के लिए एक ऐसा काम कर दिया है जिस पर युगों तक सनातन-धर्मी गर्व करेंगे।
—दयाशंकर पाण्डेय
लोनी, गाजियाबाद (उ.प्र.)
ङ्म पाकिस्तान स्थित कटासराज मन्दिर के धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व की जानकारी तो मिली, पर अभी वह मन्दिर किस हाल में है उसकी कहीं कोई चर्चा नहीं है। यह पढ़-सुनकर बड़ा दु:ख होता है कि पाकिस्तान में सारे हिन्दू तीर्थ समाप्त होने की कगार पर हैं। हिन्दू तीर्थों के भूखण्डों पर कब्जा कर लिया गया है। इससे कटासराज भी अछूता नहीं है। 2005 में पाकिस्तान सरकार ने कहा था कि वह कटासराज मन्दिर का जीर्णोद्धार कराएगी। क्या पाकिस्तान ने उस दिशा में कुछ किया है?
—अभिजीत कुमार
जयलालगढ़, पूर्ण्िाया (बिहार)
ङ्म भले ही नेपाल और भारत दो अलग-अलग देश हैं, पर इन दोनों की संस्कृति एक है, पूजा-पद्धति समान है और यहां तक कि दोनों देशों के लोगों के बीच बेटी-रोटी का सम्बंध है। काठमाण्डू स्थित पशुपतिनाथ मन्दिर दोनों देशों को और समीप लाने का कार्य करता है। पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नेपाल गए थे। उन्होंने पशुपतिनाथ मन्दिर के विकास के लिए सहायता दी है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के मार्गदर्शन में नेपाल का पुरातत्व विभाग इस मन्दिर को विकसित कर रहा है।
—गोपाल साह
मोहनपुर, देवघर (झारखण्ड)
ङ्म भारत में हजारों ऐसे स्थल हैं, जहां भारतीय संस्कृति, भारतीय स्थापत्य कला, मन्दिर निर्माण की कला आदि की अमिट छाप दिखती है। ऐसे स्थलों को पाञ्चजन्य पाठकों के सामने लाए तो बहुत अच्छा रहेगा। मेरा तो सुझाव है कि पाञ्चजन्य का एक मन्दिर विशेषांक प्रकाशित हो। इसमें देशी-विदेशी सभी प्राचीन मन्दिरों के इतिहास और महत्व को स्थान दिया जाए। विगत 50 वर्ष में विदेशों में भी अनेक विशाल मन्दिर बने हैं। उनके बारे में भी पाठकों को बताया जाए।
—सुशील गुप्ता
चतरा,धनबाद (झारखण्ड)
अब भी सुधरे पाकिस्तान
पेशावर के आर्मी पब्लिक स्कूल पर हुए आतंकवादी हमले में 130 बच्चों समेत कुल 160 लोगों की जान चली गई। यह बहुत ही दु:खद घटना थी। मरने वाले भी मुसलमान थे और मारने वाले भी मुसलमान। पाकिस्तान में कट्टरवादियों को ही पाला-पोसा जा रहा है। ईशनिन्दा कानून की आड़ में कट्टवादियों का ही मनोबल बढ़ाया जा रहा है।
—सुधाकर मिश्र
डी.एल.एफ., गुड़गांव (हरियाणा)
ङ्म पेशावर में जो हुआ उसे पागलपन ही कहा जाएगा। यह पागलपन पाकिस्तान के लिए ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए खतरा है। इस पागलपन को खत्म करने के लिए विश्व की सभी मानवतावादी ताकतों को एकजुट होना होगा। अभी भी समय है कि पाकिस्तान आतंकवादियों को पालना छोड़ दे।
—हरिहर सिंह चौहान
जंवरी बाग नसिया, इन्दौर (म.प्र.)
ङ्म सम्पादकीय 'मानवता को निगलता मजहब' ने इतिहास ताजा कर दिया। ये पंक्तियां बड़ी अच्छी लगीं, 'इस्लाम स्वीकार न करने पर गुरु तेगबहादुर का शीश उतार लेने वाले औरंगजेब, गुरु गोविन्द सिंह के बेटों को जिन्दा दीवार में चिनवा देने वाले वजीर खान या आर्मी स्कूल में बच्चों की लाशें बिछा देने वाले फजलुल्लाह फर्क क्या है?' ये लोग सचमुच में मजहबी राक्षस हैं। इन राक्षसों का नाश करना सभ्य समाज के लिए आज सबसे बड़ा दायित्व बन गया है। इन राक्षसों के रहते हुए दुनिया में मानवता जिन्दा नहीं रह सकती है।
—नीतू कुमारी
शिवाजी नगर, वडा, थाणे (महाराष्ट्र)
ङ्म इन दिनों आतंकवादी घटनाओं में सबसे अधिक लोग पाकिस्तान में मारे जा रहे हैं। शायद ही कोई ऐसा दिन जाता होगा जब पाकिस्तान में आतंकवादी घटनाओं में लोग न मारे जाते हों। इसके बावजूद वहां के लोग नहीं सुधर रहे हैं। अभी कुछ दिन पहले ही पेरिस से प्रकाशित होने वाली पत्रिका 'शार्ली एब्दो' पर हमला करने वाले आतंकवादियों के पक्ष में पाकिस्तान में रैली की गई। रैली में बड़ी संख्या में आम लोग शामिल हुए। इससे साबित होता है कि पाकिस्तानियों में किस हद तक कट्टरवाद का नशा चढ़ा हुआ है।
—राजेश चौबे
डालन, कटिहार (बिहार)
मजबूत होता लोकतंत्र
इस बार जम्मू-कश्मीर के लोगों ने विधानसभा के चुनावों में जमकर मतदान किया। इसका मतलब है कि वहां के हालात बदल रहे हैं। 'किसी ने नहीं सुनी तब चिनारों की चीत्कार' शीर्षक से प्रकाशित रपट में सही लिखा गया है कि भाड़े के हत्यारों को मुजाहिदीन का तमगा लगाकर जब पड़ोसी पाकिस्तान ने घाटी के भटके उन्मादियों के साथ कश्मीर से हिन्दुओं का नामोनिशान मिटा देने के वास्ते उन्हें हथियार थमाए थे तब कश्मीर के किसी नेता ने इसका विरोध नहीं किया था। कुछ राष्ट्रवादी तत्वों ने इसका विरोध किया तो उन्हें घोर साम्प्रदायिक बताकर उन्हीं को राष्ट्रघातक बताया था। अब अच्छी बात यह हो रही है कि वहां के लोग इन सब बातों को समझने लगे हैं।
—बी.एल.सचदेवा
263, आई.एन.ए. मार्केट, नई दिल्ली

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