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जगदम्बा मल्ल
सम स्थित शोणितपुर और कोकराझार जिले के गहन जंगलों के बीच बसे चार वनवासी गांवों पर गत 23 दिसम्बर को हमला कर नरसंहार रचाया गया था। इस नरसंहार को आईएसआईएस और अल-कायदा के नरसंहारों के भारतीय संस्करण के रूप में माना जा रहा है। हमले की चपेट में आए वनवासियों के गांवों में मैतालू बस्ती, जंगल बस्ती, शांतिपुर उल्टापानी गांव और पाखरीगुड़ी गांव शामिल हैं। इसमें दो माह के मासूम बच्चे से लेकर बुजुर्गों तक किसी को नहीं बख्शा गया। कुछ घरों में तो हथियारों से लैस आतंकियों ने घर के बाहर जाकर पीने का पानी मांगा और पानी न देने पर महिलाओं को गोलियों से छलनी कर दिया, बिलखते बच्चों क ी भी नृशंस हत्या कर दी गई। नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (संगबिजित) एनडीएफबी(एस) के आतंकियों ने इस विनाशलीला को अंजाम दिया। एनडीएफबी के तीन संगठन हैं- एनडीएफबी (संगबिजित), एनडीएफबी(रंजन दैमारी) और एनडीएफबी (गोविंद बसुमतारी)। केन्द्र सरकार एनडीएफबी (रंजन दैमारी) गुट से वार्ता कर रही है,लेकिन संगबिजित गुट इस वार्ता का विरोध कर रहा है। इसके विरोध में संगबिजित गुट ने कई स्थानों पर बम विस्फोट कर कई लोगों को हताहत किया। सुरक्षा बलों ने अभियान चलाकर इस गुट के कई आतंकियों को मार गिराया। संगबिजित ने घोषणा कि है कि एक आतंकी के बदले दस लोगों को मारा जाएगा। गत 24 दिसम्बर को केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह एवं गृह राज्यमंत्री किरण रिजीजू ने वरिष्ठ अधिकारियों के साथ प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया और तत्काल आतंकियों पर कार्रवाई के आदेश दे दिए थे। साथ ही भारत-भूटान तथा असम-अरुणाचल की 350 किलोमीटर लंबी सीमा को सील कर दिया गया। सेना व सुरक्षाबलों के करीब नौ हजार सैनिकों को 'ऑपरेशन राइनो 2' पर लगाया गया है। सैन्य कार्रवाई की मदद के लिए भूटान व म्यांमार से मदद मांगी गई है। मेघालय तथा अरुणाचल प्रदेश की राज्य सरकारों से भी मदद ली गई है। केन्द्र सरकार द्वारा संगबिजित गुट के मुखिया इंगती कथार पर 20 लाख रुपए, जबकि कमांडर बी. विदाई के ऊपर 15 लाख रुपए के इनाम की घोषणा की गई है। एनडीएफबी (एस) पर लगे प्रतिबंध को अगले पांच वर्षों के लिए बढ़ा दिया गया है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार असम हिंसा के बाद 140 राहत शिविरों में 210892 शरणार्थी रह रहे हैं जिनमें करीब 50-50 हजार बच्चे हैं। ये सभी आतंकियों के भय से अपने घर जाने को तैयार नहीं हैं। मृृतकों के परिजनों को दो-दो लाख रुपए, घायलों को एक-एक लाख रुपए, जलाए गए घरों की मरम्मत के लिए 50 हजार रुपए और अधजले मकानों की मरम्मत के लिए 22-22 हजार रुपए की आर्थिक मदद दी गई है।
आईएसआई तथा जेएमबी का षड्यंत्र
पश्चिम बंगाल के बम धमाकों की जांच एनआईए कर रही है। इस जांच में पता लगा है कि वहां के मदरसे आतंकियों का प्रशिक्षण केन्द्र बन गए हैं। असम के मदरसे भी आईएसआई का केन्द्र बनते जा रहे हैं। एनआईए ने आईएसआई तथा जेएमबी के आतंकियों को असम में पकड़ा है। बोडो टेरिटोरियल आटोनोमस डिस्ट्रक्टि (बीटीएडी) में भी एनआईए मुस्लिम आतंकियों की तलाश कर रही है। बोडो समाज इस जांच में सहयोग कर रहा है। यह जांच बंद हो जाए तथा बोडो समाज के हथियार सेना जब्त कर ले, इसी उद्देश्य से आईएसआई तथा जेएमबी ने वह रक्तपात रचाया था।
असम के होजाई नामक स्थान का रहने वाला अगर का व्यवसायी और ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट(एआईयूडीएफ) नामक राजनीति पार्टी का संस्थापक बदरूद्दीन अजमल आईएसआई का एजेंट माना जाता है। वह असम में बंगलादेशी मुसलमानों का अगुआ कहा जाता है। मुसलमानों के खिलाफ जब कभी भी सैनिक या सरकारी कार्रवाई की जाती है तब-तब वह कथित रक्तपात करवा कर सरकार का ध्यान दूसरी तरफ खींचता है और जिहादी तत्वों को बचाता है। बदरुद्दीन अजमल की एआईयूडीएफ का सचिव कारबी ईसाई है और एनडीएफबी (एस) भी कारबी ईसाई है। इस नरसंहार से पूर्व भी संगबिजित ने असम में श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोट करवा कर निर्दोष लोगों की जान ली थी। गोपनीय सूत्रों का मानना है कि उस समय संगबिजित को बदरुद्दीन ने 35 करोड़ रु. की सहायता की थी और संगबिजित ने बदरुद्दीन के पक्ष में उक्त विस्फोट करवाया था। माना जा रहा है कि संगबिजित उस वक्त म्यांमार के जंगलों में छुपा हुआ है। माना जा रहा है कि आईएसआई तथा जेएमबी के खिलाफ एनआईए की जांच को प्रभावित करने के लिए वह रक्तपात किया गया है। ऐसी आशंका व्यक्त की जा रही है कि इस बार भी बदरुद्दीन अजमल तथा संगबिजित के बीच एक बड़ा समझौता हुआ था। इस आर्थिक लाभ के कारण तथा आईएसआई व जेएमबी को मदद करने के उद्देश्य से संगबिजित ने यह रक्तपात रचाया था। ईसाई मिशनरी इस दंगा प्रभावित क्षेत्र में काफी सक्रिय हो गई हैं। इस क्षेत्र के पादरी घूम-घूम कर ईसाई प्रचार कर रहे हैं। पता चला है कि इस बार सैकड़ों लोगों को मारने का षड्यंत्र था। हजारांे घरों को जलाने की रणनीति बनाई गई थी। यदि केन्द्र सरकार पूर्ववर्ती मनमोहन सरकार की तरह उदासीन बनी रहती तो उनकी योजना सफल हो जाती, लेकिन मोदी सरकार के तत्काल प्रभावी कदम उठाने से भीषण नरसंहार को रोक दिया गया।
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