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राजपक्षे की हार, सिरिसेना के हाथ कमान

by
Jan 10, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 10 Jan 2015 13:56:01

विवेक शुक्ला
करीब दस साल के राज के बाद श्रीलंका
मेंमहिंदा राजपक्षे सत्ता से बाहर हो गए। उन्होंने
अपनी हार मान ली। साल 2005 से सत्ता पर
काबिज राजपक्षे ने आसान जीत की उम्मीद में दो
साल पहले ही चुनाव करवा दिए हैं लेकिन पासा
उल्टा पड़ गया। वे चुनाव हार गए। अब देश के
नए राष्ट्रपति उनके हाल तक सहयोगी रहे
मैत्रिपाला सिरिसेना बन गए हैं।
महिंदा राजपक्षे की हार का हालांकि गहन
विश्लेषण तो होगा, पर पहली नजर में तो यही
लगता है कि तमिलों के कत्लेआम और चौतरफा
भ्रष्टाचार के चलते वे हारे। उन पर पक्षपात के
आरोप भी बार-बार लग रहे थे। उनके परिजन
देश के कई महत्वपूर्ण और प्रभावशाली पदों पर
विराजमान हैं और आलोचकों का कहना है कि
वह देश को एक पारिवारिक कारोबार की तरह
चला रहे थे। तमिल राजनीति को करीब से
समझने वाले वरिष्ठ पत्रकार के़ नारायणन कहते हैं
कि तमिलों का राजपक्षे के हारने से खुश होना
स्वाभाविक है। उन्होंने मानवाधिकारों की परवाह
किए बगैर तमिलों का कत्लेआम किया।
श्रीलंका में 2009 में गृहयुद्ध खत्म होने के
बाद राजपक्षे लोकप्रियता की लहर पर सवार
होकर सत्ता तक पहुंचे थे। विश्लेषकों का कहना
है कि सिरिसेना इससे फायदा उठा रहे थे और
सिंहलियों में लोकप्रियता हासिल कर रहे थे जो
सामान्यत: राजपक्षे को वोट देते थे। जानकारों का
कहना है कि सिरिसेना को तमिलों और दूसरे
नस्लीय अल्पसंख्यकों के मत भी मिले। एक
चुनाव अधिकारी ने कहा कि वह उन दावों की
जांच कर रहे हैं कि जाफना जैसे तमिल क्षेत्र में
सेना तैनात कर दी गई है ताकि कथित रूप से
तमिलों को मतदान से रोका जा सके। राजपक्षे को
यकीन था कि इधर से उन्हें वोट नहीं मिलेंगे।
हालांकि राजपक्षे अब सत्ता से बाहर हो रहे हैं,
पर वे सिंहली-बहुल जनसंख्या में बेहद लोकप्रिय
रहे। उन्हें देश में गृहयुद्ध को खत्म करने वाले नेता
के रूप में याद तो रखा जाएगा। राजपक्षे की हार
से श्रीलंका के ही नहीं बल्कि अपने देश के बहुत
से तमिल खुश होंगे। हालांकि उनके पक्ष में
अभिनेता सलमान खान भी प्रचार करने गए थे।
अब राष्ट्रपति बनेंगे 63 साल के मैथ्रिपाला
सिरिसेना ।
सिरिसेना कुछ समय पहले तक महिंदा राजपक्षे
की सरकार में स्वास्थ्य मंत्री थे। उन्होंने बीती 21
नवंबर को राजपक्षे से नाता तोड़कर विपक्ष के
राष्ट्रपति पद के संयुक्त उम्मीदवार के रूप में चुनाव
लड़ा था।
वे दूसरे
विश्व युद्घ के योद्धा
के पुत्र हैं। उन पर
तमिल छापामारों ने 9
अक्तूबर, 2008 को
जानलेवा हमला
किया था जिसमें वे बाल-बाल बचे थे। सिरिसेना
राजनीति की दुनिया में बहुत छोटी उम्र में ही आ
गए थे। उन पर 1971 में सरकार का तख्ता
पलटने में शामिल लोगों का साथ देने का आरोप
लगा था। तब वे मात्र 20 साल के थे। उनकी
श्रीलंका के ग्रामीण क्षेत्रों में जबरदस्त पैठ है। वे
नशेबाजी का विरोध करते रहे हैं। उन्होंने अपने
चुनाव प्रचार के दौरान जनता से वादा किया था
कि वे देश में फिर से संसदीय लोकतंत्र की बहाली
करेंगे। उन्होंने नौकरशाही, न्यायपालिका और
पुलिस को स्वतंत्र संस्थानों के रूप में विकसित
करने का भी वादा किया था। वे पहली बार
1989 में संसद के लिए चुने गए। वे कुमारतुंगा
की सरकार में भी मंत्री रहे। वे 2005 में कृषि मंत्री
भी रहे। वे श्रीलंका फ्रीडम पार्टी में भी रहे। अगर
बात भारत-श्रीलंका संबंधों की करें तो इसमें कोई
बड़ा बदलाव तो आने वाला नहीं है। इन संबंधों
की बुनियाद ऐतिहासिक और सांस्कृतिक है।
दुर्भाग्यवश कुछ समय पहले भारत और
श्रीलंका के संबंध कटु हो गये थे। इसका प्रमुख
कारण यह था कि बार बार वादा करने के बावजूद
श्रीलंका के राष्ट्रपति राजपक्षे वहां के तमिलों पर हो
रहे अत्याचार को रोक नहीं पा रहे हैं। भारत में
इसकी घोर प्रतिक्रिया हुई थी जिसके कारण सार्क
सम्मेलन में मनमोहन सिंह श्रीलंका नहीं गये थे।
जब नरेन्द्र मोदी ने अपने प्रधानमंत्री पद के शपथ
ग्रहण समारोह में आमंत्रित किया तो तमिलनाडु
की मुख्यमंत्री जयललिता ने इसका घोर विरोध
किया और अपना विरोध दर्ज कराने के लिये वह
शपथ ग्रहण समारोह में नहीं आईं। पर मोदी ने
जयललिता की नाराजगी को नजरन्दाज किया
और राजपक्षे को शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित
किया था।

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