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मोदी सरकार के पहले सौ दिनों के कार्यकाल को रक्षा क्षेत्र के संदर्भ में परखें तो साफ है, हमारी रक्षा जरूरतों की सीधे-सीधे चिन्ता की गई है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी विमान वाहक युद्धपोत पर गए, उन्होंने डीआरडीओ को संबोधित किया, वे सीमा क्षेत्रों में गए और सैनिकों से मिले। इससे हमारे सैनिकों का मनोबल निश्चित ही ऊंचा हुआ है। तात्कालिक तौर पर तीन-चार चीजें और ध्यान में आती हैं जो जल्दी ही करनी चाहिए। सबसे पहले तो एक 'फुलटाइम' रक्षा मंत्री होना चाहिए। अभी जिनके पास इसका प्रभार है, वे वित्त मंत्रालय भी देखते हैं। ये दोनों मंत्रालय अपने आप में बेहद बड़े हैं, इसलिए एक 'फुलटाइम' रक्षा मंत्री होना चाहिए। दूसरे, सेना के तीनों अंगों का अलग-अलग विकास तो हो रहा है लेकिन अब हमें सबसे पहले भारत का हित देखना है। भारत इस क्षेत्र का सबसे बड़ा देश है। हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा के ढांचे को थोड़ा बदलने की आवश्यकता है, जिसमें विदेश नीति, वाणिज्य, अर्थ और रक्षा का एक केंद्रीय समन्वय होना चाहिए। इस क्षेत्र में काफी सुधार की आवश्यकता है, मैं तो कहूंगा बदलाव की आवश्यकता है।
भारत की सुरक्षा चिन्ताओं के केन्द्र में पाकिस्तान और चीन, ये दो देश प्रमुखता से रहे हैं। मोदी सरकार ने अपने कूटनीतिक प्रयासों से दोनों को ही अच्छे संकेत दिये हैं। पाकिस्तान के साथ विदेश सचिव स्तर की वार्ता को रद़्द करके भारत ने एक कड़ा संकेत दिया है कि पाकिस्तान के साथ अब तक जिस तरह का ढीला-ढाला व्यवहार चलता रहा है, वह अब नहीं चलेगा। ऐसा नहीं चलेगा कि एक तरफ आप अलगाववादी तत्वों के साथ बातचीत करते रहें, संघर्ष विराम का उल्लंघन करते रहें, आतंकवाद चलाए रखें तो दूसरी तरफ वार्ता भी चलती रहे, जैसा कि पिछली संप्रग सरकार के दौरान हुआ करता था। मुझे ऐसा लगता है कि भारत की इस आपत्ति को पाकिस्तान के राजनीतिज्ञ तो समझते हैं, पर सेना नहीं समझती। वहां सेना और राजनीतिज्ञों के बीच एक बड़ी खाई है इसलिए मुद्दा यह है कि यह बात वहां की सेना को समझ में आए।
मोदी सरकार ने विदेश नीति में यह बहुत स्पष्ट कर दिया है कि हमारा झुकाव किसी एक ही देश की ओर नहीं है। हम सबसे मित्रता रखना चाहते हैं। हमने जापान को भी संकेत दिया है कि ऐसा नहीं है कि या तो हम जापान से दोस्ती रखेंगे, या चीन से। मोदी सरकार ने एक ऐसा आभास दिया है कि भारत किसी एक पलड़े में नहीं है, वह अपने राष्ट्रीय हित को देखते हुए ही हर देश के साथ व्यवहार करेगा। यह एक बहुत अच्छी कूटनीति है।
लाल किले से अपने भाषण में मोदी ने 'मेक इन इंडिया' का आह्वान किया था। यह 'मेड इन इंडिया' से अलग है। अन्य क्षेत्रों की तरह ही हमें रक्षा क्षेत्र में अपनी जरूरतों की चीजें अपने ही देश में बनानी चाहिए। हम क्यों किसी और पर निर्भर हों जबकि हम सब कुछ अपने यहां ही बना सकते हैं। हमें बाहर से कुछ लेने की जरूरत ही क्यों पडे़। इससे दो फायदे होंगे, एक-भारत में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। दो-उस तकनीक से जुड़ा छोटे से छोटा पुर्जा भारत में ही निर्मित होगा। प्रधानमंत्री ने डीआरडीओ को कह दिया है कि अपने काम में गति लाएं। रक्षा क्षेत्र में निश्चित ही कदम आगे बढ़े हैं। -वाइस एडमिरल (से.नि.) शेखर सिन्हा
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