नवरात्र पर विशेष - सबल राष्ट्र के लिए शक्ति का आह्वान
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नवरात्र पर विशेष – सबल राष्ट्र के लिए शक्ति का आह्वान

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Sep 20, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 20 Sep 2014 16:06:51

प्रकृति की सारी शक्तियां ईश्वरीय शक्ति की ही अभिव्यक्तियां हैं। इसीलिए मूलशक्ति को सर्व सामर्थ्ययुक्त कहा गया है। पूरी दुनिया में जहां कहीं भी शक्ति का स्फुरण दिखता है वहां सनातन प्रकृति अथवा जगदम्बा की ही सत्ता है। यह शक्ति मां की तरह सृष्टि को विकास से पहले अपनी कोख में रखती है, उसकी वृद्धि और पोषण करती है, उसका प्रसार करती है। और फिर उत्पन्न हो जाने पर उसकी रक्षा करती है। यही शक्ति ब्रह्मा, विष्णु और महेश की जननी है। शक्ति विहीन होने पर ब्रह्मा, विष्णु और महेश भी कुछ नहीं कर पाते। आज देश के संदर्भ में देखें तो सबल राष्ट्र के लिए शक्ति अति आवश्यक है।
प्रकृति यानी ह्यप्रह्ण जिसका अर्थ है प्रकृष्ट और ह्यकृतिह्ण का अर्थ है सृष्टि। सृष्टि करने में जो परम प्रवीण है उसे देवी प्रकृति कहते हैं। प्रकृति तमो, रजो और सतो गुण से संपन्न है। देवी प्रकृति का दूसरा स्वरूप भगवती लक्ष्मी हैं। परम प्रभु श्री हरि की शक्ति हैं। संपूर्ण जगत की सारी संपत्तियां उनके स्वरूप हैं अैार उन्हें संपत्ति की अधिष्ठात्री देवी माना गया है। ये परम सुंदर, शांत, अति उत्तम स्वभाव वाली और समस्त मंगलों की प्रतिमा हैं। अपने पति श्री हरि से वह अति प्रेम करती हैं औऱ श्री हरि भी उनसे बहुत प्रेम करते हैं। महालक्ष्मी के रूप में देवी का यह परम स्वरूप बैकुण्ठ में श्री हरि की सेवा करता है और स्वर्ग में स्वर्ग लक्ष्मी, राजाओं के यहां राजलक्ष्मी और गृहस्थों के यहां गृहलक्ष्मी तथा व्यापारियों के यहां वाणिज्यरूप में विराजती हैं।
वाणी, विद्या, बुद्धि और ज्ञान की देवी हैं सरस्वती। मनुष्यों को बुद्धि, कविता, मेधा, प्रतिभा और स्मरण शक्ति उन्हीं की कृपा से प्राप्त होती है। स्वर संगीत और ताल उन्हीं के रूप हैं। सिद्धि, विद्या उनके स्वरूप हैं। वे व्याख्या और बोध स्वरूपा हैं। शांत तपोमयी देवी सरस्वती श्वेत वस्त्र धारण करती हैं और हाथ में वीणा पुस्तक लिए रहती हैं। देवी प्रकृति के इन्हीं तीनों रूपों के पूजन और आराधना का पर्व हैं नवरात्र यानी नौ रात्रियां।
शाक्त परंपरा और नवरात्र
नवरात्र नौ दिन का पर्व है। शाक्त परंपरा (शक्ति की उपासना) में नवरात्र को तीन भागों में बांटा गया है। पहले तीन नवरात्र में मां भगवती के महाकाली रूप का पूजन। दुर्गा का भक्त अपने तमो गुण दूर करता है। बीच के तीन दिन यानी चौथे, पांचवें और छठे नवरात्र को मां के महालक्ष्मी रूप का पूजन कर अपनी भक्ति से रजोगुण प्राप्त करता है। महालक्ष्मी दुनिया की सभी सुख-सुविधाएं, ऐश्वर्य और संपदाएं देती हैं। अंतिम तीन नवरात्र अर्थात् सांतवां, आठवां और नौवां में महासरस्वती का पूजन होता है। व्यक्ति तमोगुण दूर करके रजो गुण प्राप्त करके सतो गुण की ओर बढ़ता है और ज्ञान की प्राप्ति करता है।
भले ही नवरात्र महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के तीन रूपों की आराधना है, लेकिन आम देवी भक्त इन नौ दिनों में क्रम से दुर्गा के नौ रूपों की पूजा करते हैं- शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और नवें व अंतिम दिन सिद्धिदात्री स्वरूप की पूजा की जाती है।
नवरात्र शरीर में नव ऊर्जा का संचार करते हैं। नवरात्र में की गयी साधना मन और आत्मा का शोधन करती हैं। तन और मन स्वस्थ प्रसन्न रहने पर ही व्यक्ति अपना हर काम ठीक से कर सकता है और दुनिया के समस्त सुखों को भोगता हुआ मोक्ष की राह पर चल सकता है। इसलिए नवरात्र पर्व के मर्म को समझते हुए परम शक्तिशाली नवरात्र पर्व में अपने तन-मन का शोधन करें। ज्ञान, भक्ति और तप की राह पर चलते हुए अपने जीवन को हर दृष्टि से सफल बनाने और राष्ट्र को संपन्न व शक्तिशाली बनाने का प्रयास करें।
कन्या पूजन
पहले नवरात्र को एक कन्या से आरंभ करके नौवें नवरात्र तक नौ कन्याओं का पूजन करें प्रतिदिन एक एक कन्या बढ़ाते जाएं। कन्या पूजन में दो वर्ष की आयु पूरी कर चुकी कन्या से लेकर दस वर्ष तक की कन्या का पूजन करें।
कन्या की आयु/ स्वरूप/ पूजन का फल
दो वर्ष/ कुमारी/ दुख-दारिद्र्य नाश
तीन वर्ष/ त्रिमूर्ति/ धर्म, अर्थ, काम की सिद्धि। धन, धान्य, संतान प्राप्ति
चार वर्ष/ कल्याणी/ राज सुख, विजय, संपूर्ण मनोकामना पूर्ति
पांच वर्ष/ रोहिणी/ रोग नाश
छह वर्ष/ कालिका/ शत्रु का शमन
सात वर्ष/ चंडिका/ ऐश्वर्य, धन की पूर्ति
आठ वर्ष/ शांभवी/ दुख दरिद्रता का नाश, संग्राम में विजय
नौ वर्ष/ दुर्गा/ कठिन कार्यसिद्धि, दुष्ट शत्रु का संहार
दस वर्ष/ समुद्रा/ सर्वमनोरथ सफलता
देवी का भोग
श्रीमद्देवीभागवत पुराण के आठवें स्कंद में भगवान नारायण ने स्वयं नारद जी को बताया है कि नवरात्र में आदि मां भवानी को कौन सा भोग लगाने से क्या फल मिलता है।
नवरात्र/ भोग/ फल
पहला/ गाय का घी/ रोग नाश
दूसरा/ चीनी/ दीर्घ आयु
तीसरा/ दूध/ संपूर्ण दुखों से मुक्ति
चौथा/ मालपुआ/ विघ्न नाश
पांचवा/ केला/ बुद्धि का विकास
छठा/ शहद/ सुंदर रूप की प्राप्ति
सातवां/ गुड़/ शोकमुक्ति
आठवां/ नारियल/ संताप नाश
नौवां/ धान का लाभ/ लोक-परलोक में अपार सुख। -सर्जना शर्मा

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