आवरण कथा - कश्मीर में लालच की बाढ़
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आवरण कथा – कश्मीर में लालच की बाढ़

by
Sep 13, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 13 Sep 2014 15:55:15

कहा जाता है कि पिछले साठ वषोंर् में ऐसी बाढ़ कश्मीर में नहीं आई थी। जम्मू कश्मीर से दूर बैठे टीवी देख रहे लोगों को यह यकीन नहीं हो रहा था कि बाढ़ का यह दृश्य जम्मू कश्मीर का है या फिर बिहार का। सरकारी आंकड़े 160 लोगों की मौत और 1500 से ज्यादा गांव प्रभावित होने की पुष्टि करते हैं जबकि बताया जाता है कि वादी में 390 गाँव पूरी तरह से जलमग्न हैं। राजधानी श्रीनगर में घरों के दरवाजे पर दस्तक देकर पानी ने प्रलय का संकेत दे दिया है। बिहार में बाढ़ की विभीषिका केंद्र और राज्य की सरकारों के ढुल मूल रवैये से पैदा हुई है जबकि कश्मीर में यह जल प्रलय लोगों के लालच और भ्रष्ट तंत्र के बीच अनैतिक संबंधों को रेखांकित करता है।
गृहमंत्री के बाद प्रधानमंत्री का जम्मू -कश्मीर में बाढ़ प्रभावित इलाकों का दौरा केंद्र सरकार की जिम्मेदारी का अहसास जरूर कराता है, लेकिन बाढ़ की इस विभीषिका के बीच देश के लाखों करदाताओं को केंद्र से यह सवाल पूछने का हक जरूर बनता है कि पिछले वषोंर् में वूलर और डल झील से अतिक्रमण हटाने और उसे गहरा करने की परियोजना का क्या हुआ ?
एक सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक श्रीनगर, बारामुला और बांदीपूरा के 5000 से ज्यादा वेटलैंड पर लोगों ने गैरकानूनी तौर पर कब्जा कर लिया है। वादी के मुक्तलिफ पुलिस स्टेशन में 500 से ज्यादा एफआईआर सरकारी अमलों ने दर्ज करायी थी लेकिन कभी कार्रवाई नहीं हुई।
फ्लड बेसिन में लगातार भवन निर्माण ने पानी के कुदरती चैनल को बंद कर दिया है।
करोड़ों रुपये के बजट वाले पी एच डी महकमे का हाल यह है कि पिछले वषोंर् में उसके नाक के नीचे श्रीनगर डेवलपमेंट ऑथरिटी खुल्लमखुल्ला जमीन का सौदा करती रही, आलम यह है कि लसजन से बेमिना और नौगाम से पीरबाग तक का बेसिन फ्लड कंट्रोल का अहम चैनल था। आज यहां बड़े-बड़े शॉपिंग काम्प्लेक्स और आलीशान घर बन गए।
हर साल बाँध के रख -रखाव और कुदरती फ्लड चैनल को गहरा करने के नाम पर करोड़ांे रुपये खर्च होते हैं लेकिन जमीं पर एक छटांक मिट्टी नहीं डाली जाती। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और साबिक फ्लड कंट्रोल मंत्री अपने ही कांग्रेस मंत्री शाम लाल शर्मा पर लूट का आरोप लगाते हैं। वह यह भी सवाल उठाते हैं कि उनके विभाग बदलने के पीछे भी एक साजिश थी। यानी भ्रष्टाचार के बोलबाले के बीच सरकार चलती रही और लोगों की लालच ने कुदरत की तमाम धरोहरों पर जमकर लूटपाट की। लेकिन यह पूछने वाला कोई नहीं था कि करोड़ों की इस लूट के लिए जिम्मेदार कौन है। सवाल यह कि एन्वाययरनमेंट को लेकर बड़ी सियासत करने वाले लोग कश्मीर में यात्राओं पर प्रतिबन्ध लगाते हैं। अमरनाथ गुफा में अस्थायी शेड को वातावरण और धारा 370 से जोड़ते हैं, लेकिन दुनिया के सबसे बड़ी वूलर झील को किसने लूटा? किसने सैकड़ों किलो मीटर डल झील को महज कुछ किलो मीटर की शक्ल दे दी? किसने पहाड़ों की हरियाली छीन ली ?और किसने कुदरती फ्लड बेसिन को औने पौने दामों पर बेच दिया।
मुल्क के लोग कश्मीर में सिर्फ खर्च करते हैं हिसाब लेने का उन्हें अधिकार नहीं है। आज यह पूछने वाला कोई नहीं है कि फ्लड कंट्रोल की योजनाओं पर खर्च किये गए 2000 करोड़ रुपये का क्या हुआ ?
मुश्किल की घड़ी में पूरा मुल्क कश्मीर की अवाम के साथ है। रियासत की सरकार के सुर में सुर मिलाकर देश बाढ़ पीडि़तों के पुनर्वास के लिए भारत सरकार से 50000 करोड़ रुपये देने का समर्थन कर सकता हैं। लेकिन यह देश सवाल पूछने का हक जरूर रखता है। कश्मीर में हो रही लूट पर जबतक धारा का कवच पहनाया जाएगा तबतक ऐसे हादसे कश्मीर में होते रहेंगे और मुल्क को अफसोस के अलावा कुछ हाथ नहीं आएगा। -'विनोद मिश्रा का ब्लॉग' से साभार

विद्यार्थी परिषद द्वारा सहायता कार्य
अभाविप की जम्मू-कश्मीर प्रदेया इकाई ने बाढ़ से प्रभावित हुए जिलों में सेना द्वारा स्थापित राहत शिविरों में राहत सहायता के रुप में खाद्य सामग्री, नमकीन, फल, पीने का पानी आदि के साथ ही अन्य राज्यों से आए हुए यात्रियों का उनके घरों में एवं स्थानीय लोगों को अपने परिजनों से सम्पर्क करने हेतु दूरभाष सुविधा भी उपलब्ध करवाई। अभाविप के कार्यकर्त्ता बाढ़ प्रभावितों की सहायता हेतु अभी तक पुलवामा जिले में मलंगपुर, डेडगामपुरा, लखीपुरा, गुलजारपुरा, रेशीपुरा, डुगरपुरा के साथ ही राजौरी, पुंछ, नौशेरा, कालाकोट, सुन्दरबनी, उधमपुर, समरौली, चैनानी, क्रिमची आदि स्थानों पर पहुंचे हैं। 12 से 15 सितम्बर 2014 तक परिषद की ओर से आपदा प्रभावितों के लिए देशभर में सहायता निधि संग्रह अभियान चलाया जाएगा।

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