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.राज्य सरकार और उसका प्रशासन यूपी में हुए हालिया दंगों से कोई खास सबक लेते नहीं दिखा। यदि उसकी कहीं संवेदनशीलता दिखाई देती तो संभवत: सहारनपुर के लोगों को शनिवार के दंगे की आग में झुलसने को मजबूर न होना पड़ता। सभी पक्ष के लोगों को सहारनपुर दंगे के लिए कोई जरूरी वजह नहीं दिख रही है। इसलिए हिंसा के अचानक फूटने पर सभी को हैरत है। इसीलिए दंगे के सुनियोजित और पूरी तैयारी के साथ होने की बात आला और पुलिस अफसर दावे के साथ कह रहे हैं। सतही तौर पर दंगे के पीछे मुख्य कारण सहारनपुर नगर के अंबाला रोड के थाना कुतुबशेर इलाके में स्थित प्राचीन एवं ऐतिहासिक गुरुद्वारे के पास 100 गज के भूखण्ड पर सिखों द्वारा निर्माण कराया जाना और शुक्रवार की रात उस निर्माण पर लिंटर डाले जाने का विरोध बताया जाता है। दरअसल उस भूमि पर बने भवन के मालिक एक मुस्लिम हसन तसकरी थे, जो भारत विभाजन के वक्त पाकिस्तान चले गए। इसका मालिकाना हक कस्टोडियन को मिल गया, जिसने इस जगह का अधिकार एक प्रतिष्ठित अग्रवाल परिवार को दिया। कुछ साल पूर्व इस जगह को श्री गुरुद्वारा श्री गुरु सिंह सभा को बाकायदा बेच दिया गया। सभा के प्रधान सरदार बलवीर सिंह धीर इस जगह को गुरुद्वारे की जगह बताते हैं और शनिवार को हुए हमले को अपने धार्मिक स्थल पर हुआ हमला मानते हैं। प्रशासनिक अफसरों से मिली जानकारी के मुताबिक पिछली बसपा सरकार के वक्त से उस जगह पर होने वाले निर्माण का नक्शा सहारनपुर विकास प्राधिकरण में विचाराधीन है। विरोधी पक्ष ने अपनी राजनीतिक पहुंच के जरिए इस नक्शे को पारित नहीं होने दिया, मजहबी कट्टरवादी जिसके चलते वहां निर्माण का कार्य शुरू नहीं हुआ। अपनी इसी अड़चन के बल पर मजहबी कट्टरवादी सिखों से लगातार मोलभाव और दबाव की कोशिशों में लगे हैं।
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