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जिस भव्य चर्च इमारत की नींव में 20 हजार भारतीयों के बलिदान की स्मृतियां दफन हैं उस चर्च की ओर इस सप्ताह विश्व का ध्यान आकर्षित हुआ है। कुछ माह पूर्व मुंबई उच्च न्यायालय ने मुंबई के अफगान चर्च की इमारत की जांच शीघ्र से शीघ्र समाप्त करके इसकी रिपोर्ट देने का आदेश दिया था। वर्तमान एंग्लिकन चर्च के प्रमुख आर्चबिशप ऑफ केंटरबरी जस्टीन वेल्बी ने इस पर चिंता जताई थी इसलिए विश्व के सभी एंग्लिकन मीडिया ने उस पर टिप्पणी की है। न्यायमूर्ति नरेश पाटिल व न्यायमूर्ति अनुजा प्रभुदेसाई ने कहा है कि हजारों करोड़ रुपयों का घपला होने की आशंका वाले इस प्रकरण की तुरंत जांच की मांग पर सन् 2008 में न्यायालय में लाए गए इस प्रकरण में पुलिस ने जो विलंब किया उससे इस प्रकरण की गंभीरता चली गई है। महाराष्ट्र और गुजरात में अनेक चर्च अधिकारियों को गिरफ्तार किया गया है। इसमें जिस चर्च का उल्लेख है वह मुंबई में अफगान चर्च के नाम से जाना जाता है। एक घपले के कारण वह पिछले 5-6 वर्र्ष से चर्चा में है।
वह घोटाला कुछ यूं है। अरबों रुपयों की चर्च की संपत्ति उस चर्च के प्रमुख ने बिना किसी को बताए बेच दी थी। किसी माफिया अपराधी की तर्ज पर वह लेन-देन किया गया था। भारत के एंग्लिकन समुदाय के जिम्मेदार लोगों ने सामने आकर इसके विरोध में न्यायालय में गुहार लगाई। यह विषय मुंबई के किसी एक चर्च तक सीमित लग सकता है, लेकिन उसका व्याप काफी बड़ा है।
भारत से ब्रिटिश सत्ता के जाने के बाद उन्होने जो हजारों करोड़ रुपयों की चर्च संपत्ति एवं शहरों के निकट भूखण्ड प्रोटेस्टेंट चर्च को दिए थे, वे स्वतंत्रता के बाद अनेक चर्च प्रमुखों ने झूठे निगम स्थापित कर बेच दिए। किसी जमाने में हजार और लाख रुपये के प्लॉटों की कीमत अब अरबों तक जा चुकी है। कभी यह पूरी संपत्ति इस देश की थी, अत: इस विषय पर सरकार को ध्यान देने की आवश्यकता है। इसके लिए यहां की एंग्लिकन जनता को भरोसा दिलाने की आवश्यकता है। मुंबई के अफगान चर्च के कारण यह विषय सामने आया है। 175 वर्ष पूर्व ब्रिटिशों ने अफगानिस्तान को जीतने के लिए वहां 20 हजार सैनिक भेजे थे। उस युद्घ से केवल एक सैनिक जिंदा लौट सका था। उन 20 हजार भारतीयों की स्मृति में यह चर्च बनवाया गया था, इसलिए हजारों भारतीयों की भावनाएं इस विषय से जुड़ी हुई हैं। 175 वर्ष पूर्व हुए उस युद्घ की पृष्ठभूमि भारत की दृष्टी से अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण थी।
अंग्रेजों को भारत में जमे 20-25 वर्ष हुए थे। उस समय रूस-अफगानिस्तान द्वारा भारत पर आक्रमण करने की संभावना थी। इसलिए अंग्रेजों ने भारत के 20 हजार सैनिकों को अफगानिस्तान भेजा था। वहां की सत्तास्पर्धा में गद्दी से हटाए गए सम्राट मोहम्मद खान को उसका राज वापस दिलवाने का बहाना बनाकर अंग्रेजों ने वह सैन्य दल भेजा था। लेकिन जबरदस्त युद्घ में वह सारा सैन्य दल मारा गया,केवल सार्जेन्ट विलियम ब्रायडन वापस आया। मारे गए लगभग 20 हजार सैनिकों एवं उनकी मदद करने वालों की स्मृति में अंग्रेजों ने मुंबई में एक चर्च बनाया। उसी चर्च को अफगान चर्च कहते हैं।
लाखों-करोड़ की जमीन
पिछले 60 वर्ष में चर्च के रखवालों ने चर्च की काफी सारी जमीन बेच दी। लेकिन उसे गैरकानूनी मानकर उसका कब्जा फिर से लेने की आवश्यकता है। चर्च की अभी बहुत सारी जमीन बची भी है। देश की सामाजिक संस्थाओं एवं जनप्रतिनिधियों को प्रयास करके कई लाख करोड़ के ये सौदे रुकवाने चाहिए, क्योंकि अंग्रेजों के ये जमीन देने के मायने हैं देश के एक शत्रु द्वारा उसे मदद करने वाले अपने सहायकों को जमीन देना। ऐसे में इस पर 'एनिमीज प्रापर्टी' कानून लागू होता है। इसके अनुसार शत्रु के राज में उसके आम नागरिक पर यदि अन्याय होता है तो उसकी संपत्ति की रक्षा की जाती है। लेकिन देश पर आक्रमण करने की तैयारी के रूप में अगर शत्रु ने कुछ दान किया हो तो उसका कब्जा जनता अथवा समाजसेवी संस्थाओं को देने की परिपाटी है। गोवा मुक्ति के बाद वहां 'एनिमीज प्रापर्टी के अंतर्गत ऐसी संपत्ति संबंधित लोगों को देने के लिए स्टेट बैंक के अधिकारी श्री़ भास्करराव गदरे को अधिकार दिए गए थे। भारत में आज भी वह सूत्र लागू हो सकता है। इस पर विचार करना चाहिए।
मुंबई का यह मामला दरअसल चार वर्ष पूर्व आरंभ हुआ था। बॉम्बे डायसियन ट्रस्ट एसोसिएशन यानी प्रोटेस्टेंट चर्च से संबंधित अधिकार प्राप्त यह संस्था (बीडीटीए) है। चार वर्ष पूर्व प्रोटेस्टेंट मत के बिशप एवं अन्य न्यासियों ने कागजातों में हेरफेर कर चर्च की जमीन एक बिल्डर को बेच दी। आज उस जमीन की कीमत हजारों करोड़ रुपये है। इसके विरोध में एक प्रोटेस्टेंट व्यक्ति सिरील दारा ने याचिका दायर की कि इस प्रकरण में सरकार हस्तक्षेप करे। उसके विरोध में बीडीटीए के एक विश्वस्त श्रीकांत साल्वे ने कार्रवाई न करने की मांग मुंबई उच्च न्यायालय में की थी। वह आवेदन भी ठुकराया गया। तब बिशप साठे और अन्य न्यासियों की गिरफ्तारी शुरू हुई। भारतीय दंड संहिता 406,420,435,34 के अनुसार उन पर कार्रवाई शुरू हुई है। इसमें दिलचस्प बात यह है कि न्यायालय में कार्रवाई रोकने का आवेदन करने वाले श्रीकांत साल्वे उनकी गिरफ्तारी की प्रक्रिया के दौरान फरार हो गए। इसलिए पुलिस अन्य आरोपियों पर गंभीरता से कार्रवाई कर रही है।
20 हजार भारतीय सैनिकों का बलिदान
वास्तव में मुंबई के अफगान चर्च प्रकरण का टू जी स्पेक्ट्रम अथवा कोलगेट प्रकरण से अधिक महत्व है। सिर्फ चर्चाधिकारियों की गिरफ्तारी से यह सामने नहीं आएगा। 20 हजार भारतीयों को अंग्रेजों ने केवल साम्राज्य वृद्घि की लालसा से बलि चढ़ाया। उस दृष्टि से यह नरसंहार ही हुआ। भारतीय सैनिकों को अपना साम्राज्य बढ़ाने की गरज से अफगानिस्तान में भेजना, अफ्रीका के छोटे छोटे देशों में लातिनी अमरीकी अथवा मेसो अमरीकी सैनिक भेजना, आस्ट्रेलिया में सैनिकों की मदद से पूर्वी एशिया के देश जीतना, यह सिलसिला सौ से अधिक वर्ष तक जारी रहा था। 'अंग्रेजों के साम्राज्य में सूरज नहीं ढलता' था, अंग्रेजों की चलाई यह उक्ति हम जानते हैं, लेकिन उसके लिए कितने भारतीयों ने अपनी बलि दी, इसका हिसाब आज तक नहीं किया गया। अन्य यूरोपीय लोगों की तुलना में अंग्रेज इस तरह के स्मृतिस्थल बनाने में ज्यादा माहिर हैं, लेकिन उन्हें इससे कोई खास लगाव नहीं था। अंग्रेजों ने 10 लाख से अधिक भारतीय सैनिकों की बलि चढ़ाई। हमारे पुरखे अफगान युद्घ में गए थे, इसके अलावा हमारे यहां कोई इस पर बात नहीं करता। लेकिन जो 10 लाख लोग जान से गए, उनके पोतांे-परपोतों ने अगर मुआवजे की मांग उठा दी तो अंग्रेजों ने पिछले 150 वर्ष में जो लूट मचाई वह पूरी उसकी भरपाई में चली जाएगी। मुंबई के अफगान चर्च तक का कहना है कि उस युद्घ में मारे गए सैनिकों में ईसाई सैनिकों की संख्या गिनी-चुनी थी़, फिर भी चर्च सबकी स्मृति में बनवाया गया था। मुंबई के अफगान चर्च पर भारतीयों का अधिकार है, इस मुद्दे पर कभी आग्रह किया ही नहीं गया।
पुणे के एक सेवानिवृत्त बिशप को मुंबई पुलिस ने उसके घर से आधी रात गिरफ्तार किया है। इस प्रोटेस्टेंट बिशप विजय साठे पर ही दक्षिण मुंबई स्थित अफगान चर्च की जमीन का घपला करने का आरोप है। बिशप के साथ और तीन व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया है एवं कुछ और चर्चाधिकारियों के गिरफ्तार होने की संभावना है। बिशप का पद ईसाई परंपरा में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। वह डायोसिस प्रमुख होता है। जिस व्यक्ति पर अपने क्षेत्र के लोगों का पांथिक मार्गदर्शन करने की जिम्मेदारी हो, उस पर इस तरह की कानूनी कार्रवाई के बाद अनेक ईसाई संगठनों ने नाराजगी जताई है। लेकिन 'एक पांथिक संस्था के प्रमुख की गिरफ्तारी', यह कोई आम अपराध समाचार नहीं है। किसी भी संस्था में किसी व्यक्ति के विरुद्ध अपराध करने का आरोप हो तो उस पर कार्रवाई की जाती है, आरोपी व्यक्ति को अपना बचाव करने का अवसर दिया जाता है और बाद में निर्णय आता है।
इसमें चिंता की बात यह है कि भारत में 20-25 बिशपों पर इस तरह के मामले चल रहे हैं। अनेक मामले केवल नौकरशाही की ढिलाई के कारण सामने नहीं आते। भारत पर अंग्रेजों का 150 वर्ष से अधिक समय तक बहुतांश इलाकों पर राज था। कुछ जगह वह राज 300 वर्ष से अधिक समय तक रहा था। उन्होंने भारत की कितनी संपत्ति लूटी, इसकी अभी तक गिनती नहीं हुई है। कुछ जानकार लोगों के मत में वह 10 हजार लाख करोड़ से अधिक की थी। उसे फिलहाल हम वापस लाने की मानसिकता में नहीं हैं। कोहिनूर हीरा अथवा ब्रिटिश संग्रहालय में रखे भारतीय जेवरातों को हमने वापस
मांगना भी बंद कर दिया है। तो फिर अंग्रेजों ने जो चीजें यहां छोड़ दी हैं, कम से कम उन्हें वापस पाने का प्रयास हमें करना ही चाहिए। इसी से अंग्रेजों द्वारा की गई कुल लूट को वापस लाने का मार्ग खुलेगा।
अफगान चर्च केवल एक ही पहलू है, लेकिन भारत पर पिछले 400 वर्ष में अंग्रेजों ने जो अन्याय किए उनका अभी भी समाधान नहीं मिल सका है। जरूरत है कि हम समाधान की खोज जारी रखें। एक न एक दिन हमें सफलता अवश्य मिलनी है। -मोरेश्वर जोशी
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