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बच्चो ! आज हम आपको कंगारू के बारे में बता रहे हैं। यह सिर्फ ऑस्ट्रेलिया में ही पाया जाता है। जिस तरह हमारा राष्ट्रीय पशु बाघ है,उसी तरह ऑस्ट्रेलिया का राष्ट्रीय पशु कंगारू है। कंगारू शाकाहारी जीव होते हैं जो स्तनधारियों में अपने ढंग के निराले प्राणी हैं। इन्हें सन 1773 ईस्वी में पहली बार ं कैप्टन कुक ने देखा, उसी के बाद दुनिया को इनके बारे में पता चलें।
कंगारू की पिछली टांगें लंबी और अगली छोटी होती हैं, इसलिए ये उछल-उछल कर चलते हैं। कंगारू एक बार में दस मीटर से ज्यादा लंबी छलांग मार सकते हैं।
कंगारू की विशेषता इनके पेट पर बनी कुदरती थैली होती है। कंगारू का बच्चा पैदा होने के बाद बहुत दिनों बाद तक इसी थैली में रहता है। कंगारू छोटे और बड़े दोनों आकार के होते हैं। इनमें सबसे बड़ा कंगारू यानी भीम कंगारू एक छोटे घोड़े के बराबार होता है। सबसे छोटे कंगारू जिन्हें मस्क कंगारू भी कहा जाता है वे खरहे से भी छोटे होते हैं।
कंगारू की प्रजातियां
कंगारू केवल ऑस्ट्रेलिया में ही पाए जाते हैं। अभी तक इनकी 21 प्रजातियों के बारे में ही पता चला है। इनमें कुछ प्रसिद्ध कंगारुओं की प्रजातियां इस प्रकार हैं-
1- न्यू गिनी में डोरकोपसिस जाति के कंगारू मिलते हैं जो कुत्ते के बराबर होते हैं, इनकी पूंछ और टांगें छोटी होती हैं।
2- इन्हीं के निकट संबंधी तरुकुरंग (डेंड्रोलेगस कंगारू) हैं जो पेड़ों पर भी चढ़ जाते हैं। इनके कान छोटे और पूंछ पतली तथा लंबी होती है।
3- पैडीमिलस नामक कंगारू डोलकोपसिस के बराबर होने पर भी छोटे सिरवाले होते हैं। ये यूगिनी से टैक्मेनिया तक फैले हुए हैं।
4- प्रोटेमनोडन जाति के कई कंगारू बहुत प्रसिद्ध हैं, ये घास के मैदानों में रहते हैं। ये रात के समय चरने के लिए निकलते हैं और दिन के समय किसी झाड़ी में छिपकर रहते हैं।
5- मैकरोपस जाति का धूम्रवर्ण कंगारू (ग्रेट ग्रे कंगारू) भी बहुत प्रसिद्ध है। यह घास के मैदान का निवासी है। इसी का निकट संबंधी लाल कंगारू भी किसी से कम प्रसिद्ध नहीं है, यह आस्ट्रेलिया के मध्य भाग के निचले पठारों पर रहता है।
6- शैलधाकुरंग (पेट्रोग्रोल )और ओनीकोगोल प्रजाति के शैल वैलेबी (रॉक वैलेबी,) और नखपुच्छ (नेल टेल) वैलेबी नाम के कंगारू बहुत सुंदर और छोटे कद के होते हैं।
7- पैलार्किस्टिस जाति के प्रातिनूतन भीम कंगारू (प्लाइस्टोसीन जायंट कंगारू,) काफी बड़े (लगभग छोटे घोड़े के भार के) होते हैं। इनका मुख्य भोजन घास पात और फल फूल हंै। इनका सिर छोटा, जबड़ा भारी और टांगें छोटी होती हैं।
कंगारुओं की शारीरिक विशेषताएं
कंगारू के पैरों में अंगूठे नहीं होते। इनकी दूसरी और तीसरी अंगुलियां पतली और आपस में एक झिल्ली से जुड़ी रहती हैं, चौथी और पांचवीं अंगुली बड़ी होती हैं।
कंगारू की पूंछ लंबी और भारी होती है। उछलते समय ये पूंछ से अपना संतुलन बनाए रखते हैं और बैठते समय पूंछ को टेककर इस प्रकार बैठते हैं जैसे कि कुर्सी पर बैठे हों। इनकी आंखें भूरी होती हैं और कान गोलाई लिए बड़े और घूमने वाले होते हैं। कंगारुओं की सुनने की क्षमता बेहद तेज होती है ये हल्की सी आहट को भी भांप लेते हैं। कंगारुओं की सबसे बड़ी विशेषता उनके पेट के निचने भाग पर लगी थैली होती है। थैली आगे की ओर खुलती है और उसमें चार थन रहते हैं। जाड़े के आरंभ में इनकी मादा एक बार में एक बच्चे को जन्म देती है, दो दो से चार इंच तक का होता है। बच्चा शुरू में मां की थैली में ही रहता है। जब बच्चा थोड़ा बड़ा हो जाता है और बाहर घूमने लगता है तब भी वह हल्की सी आहट पाते ही भागकर मां की थैली में घुस जाता है। वैसे तो कंगारू बेहद शांतिप्रिय जीव होता है, यह किसी को हानि नहीं पहुंचाता, लेकिन आत्मरक्षा के लिए यह अपनी पिछली टांगों से भयंकर प्रहार करता है।
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