खून में एक उबाल था
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खून में एक उबाल था

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Jun 21, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 21 Jun 2014 15:24:40

छत्तीसगढ़ अंचल के बिलासपुर में आपातकाल का पहला विरोध न्यायालय परिसर में 17 सितंबर 1975 को हुआ। सेंट्रल बैंक के अधिकारी श्री कृपाराम कौशिक, व्यवसायी श्री हरिभाऊ वाघमारे, जिला चिकित्सालय के सहायक शल्य चिकित्सक डॉ. डी.पी. अग्रवाल और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक श्री मनोहर राव सहस्त्रबुद्धे रायपुर में नमक व्यापारी के वेष में भूमिगत होकर आपातकाल विरोधी गतिविधियां संचालित कर रहे थे। इन्हीं चारों को तत्कालीन मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री प्रकाशचंद्र सेठी के कार्यक्रम में आपातकाल विरोधी पर्चों के साथ गिरफ्तार किया गया था। कोरबा के श्री बनवारीलाल अग्रवाल ने बिलासपुर में अकेले ही आपातकाल के विरोध में नारे लगाते हुए अपनी गिरफ्तारी दी। 18-19 वर्ष के नवयुवकों शशिकांत कोन्हेर, सदानंद गोडबोले एवं दत्ता त्रिपुरवार ने सत्याग्रह कर अपनी गिरफ्तारी दी।
प्रोस्टेट का ऑपरेशन कराकर लौटे पंढरीराव कृदत्त को बीमारी और कमजोरी की हालत में ही गिरफ्तार कर हथकड़ी लगाकर पुलिस उनका जुलूस निकालते हुए लेकर गई। जेल में उनकी स्थिति बहुत ज्यादा खराब हो गई। गंभीर स्थिति में उन्हें मुश्किल से अस्पताल ले जाया गया। रायपुर जेल में सबसे कम आयु के सत्याग्रही जयंत तापस थे, जिन्हें डीआईआर के तहत गिरफ्तार किया गया था। कुुरुद के श्री मंगूसिंह ने अपनी पत्नी और दो छोटे बच्चों के साथ सत्याग्रह किया और गिरफ्तार हुए।
रायपुर में तीन-तीन स्वयंसेवकों के जत्थे में सत्याग्रह की शुरुआत हुई। 14 नवंबर 1975 को पहले जत्थे में अप्पा खरे, सुहास देशपांडे और राजेश त्रिपाठी ने आपातकाल और इंदिरा गांधी की तानाशाही के विरोध में नारे लगाए और पर्चे बांटते समय अपनी गिरफ्तारी दी। उस समय अप्पा खरे के परिवार में उनकी पत्नी और चार माह का पुत्र ही था। ऐसी कठिन परिस्थितियों में उनकी नवविवाहिता पत्नी और पुत्र को श्रीमती रजनी उपासने के परिवार ने अपनी बेटी के रूप में अपनाया। जितने भी सत्याग्रही गिरफ्तार हुए थे उनमें से किसी ने भी जेल से रिहाई के लिए न तो माफी मांगी और न ही शासन के दबाव में कुछ लिखकर दिया।
ये भी ऐतिहासिक बात है कि अप्पा खरे और उनके साथियों का सत्याग्रही जत्था सबसे पहले गिरफ्तार हुआ और उनकी रिहाई सबसे अंत में 21 मार्च 1977 को तब हुई जब चुनाव परिणाम घोषित हुए और सांसद श्री पुरुषोत्तम लाल कौशिक उनकी रिहाई कराने जेल में आए।
उल्लेखनीय है कि तीन-तीन के जत्थे में स्वयंसेवक लगातार सत्याग्रह कर जेल जाने लगे थे, जिनमें प्रमुख रूप से सच्चिदानंद उपासने, वीरेंद्र पांडेय, महेंद्र फौजदार, किशनलाल गोयल, मणिलाल चंद्राकर, अमृत साहू, बसंत दुबे, जयंत तापस, सुनील पुराणिक, गिरीश उपासने, विवेक सुरंगे, राजेंद्र अग्रवाल, आदि शामिल थे। वीरेंद्र पांडेय पगड़ीधारी सिख के वेश में भूमिगत रहकर आपातकाल विरोधी आंदोलन का संचालन कर रहे थे। उपासने परिवार में जगदीश उपासने को पुलिस 103 डिग्री टायफाइड बुखार की हालत में गिरफ्तार करके ले गई। उनके दो छोटे भाइयों, सच्चिदानंद और गिरीश ने भी सत्याग्रह किया और गिरफ्तार हुए।
ल्ल प्रस्तुति : हेमंत उपासने
ओडिशा के वे तप:पूत

ओडिशा के कंधमाल जिले में फूलबनी के स्वयंसेवक रमेश चन्द्र साहू और उनके छोटे भाई देवराज साहू को आपातकाल के समय पुलिस ने गिरफ्तार करके जेल भेज दिया था। रमेश चन्द्र भंजनगर जेल में रहे और देवराज फूलबनी जेल में रखे गये। चाय की दुकान चलाकर अपने परिवार का भरण-पोषण करने वाले दोनों भाइयों के जेल चले जाने के बाद उनके वृद्ध पिता दुकान का काम संभालने लगे। भंजनगर जेल की जिस कोठरी में रमेश चन्द थे उसी कमरे में ओडिशा के पूर्व मुख्यमंत्री तथा मुंबई के पूर्व राज्यपाल डा. हरेकृष्ण महताव भी थे। रमेश जी सुबह उठकर ध्वज प्रणाम करके संघ प्रार्थना करते थे। इसका गहरा प्रभाव महताव जी पर भी पड़ा। वे संघ के प्रति अधिक रुचि रखने लगे। डा. महताव ने 21 फरवरी 1977 को प्रजातंत्र दैनिक में लिखा- 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की दैनिक शाखा में शारीरिक व्यायाम के साथ राष्ट्रभक्ति, नैतिक शिक्षा प्रदान की जाती है। संघ कभी भी चुनाव में भाग नहीं लेता है। इन लोगों को बंदी बनाना जरूरी नहीं था।'
कालाहांडी के प्रचारक श्री मनोहर बुद्धे एक धूपबत्ती कंपनी के एजेन्ट के रूप में भुवनेश्वर में भूमिगत रहे थे। रात्रि के समय वे रेणुबाला पटनायक के घर में विश्राम करते थे। सुबह होने पर चले जाते थे। उनके बारे में किसी को कोई संदेह नहीं हुआ। रघुनाथ सेठी आपातकाल में फूलबनी जेल में बंदी थे। उन्होंने ओडिशा में विश्व हिन्दू परिषद का कार्य शुरू किया था, बाद में वनवासी कल्याण आश्रम और भाजपा से जुड़े। वैद्य सरस्वती शिशु मंदिर के अध्यक्ष साक्षी गोपाल प्रधान अपने पिता नटवर प्रधान के बारे में बताते हैं, 'जब शहर में सुना कि देशद्रोह के अपराध में मेरे पिता जी को फूलबनी जेल में रखा गया है तब मेरा मन विद्रोह कर उठा। एक बार जेल में उनकी आंखों में आंसू बहते देखे तो मैं विचलित हो उठा। उन्होंने कहा, पढ़ाई ठीक से करो। डाक्टर बनकर समाज का भला करना है।'
साक्षी गोपाल प्रधान बताते हैं कि परिवार में रोटी-दाल के पैसे मुश्किल से इकट्ठे हो पाते थे। सुभाष काका, विष्णु काका घर चलाने के लिए पैसा देते थे। मां घर से बाहर नहीं निकलती थीं। पिता की जमानत कराने हेतु सरकारी संस्था के सेक्रेटरी कृष्ण चन्द राय ने बहुत कोशिश की। फूलबनी के रमेश चन्द्र साहू जेल जाने के समय जिला कार्यवाह थे, आज वे विभाग संघचालक का दायित्व निभा रहे हैं।  पंचानन अग्रवाल

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