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मंडल राजनीति के दौर में कथित सेकुलर पार्टियां हिंदुत्वनिष्ठ पार्टियों के खिलाफ जातिवाद का सहारा लेती थीं। इसके तहत मुसलमान, पिछड़े और वंचित गठजोड़ पर जोर रहता था। यह प्रतिक्रियावादी राजनीति भी कई सेकुलरवादियों को आत्मतुष्ट होने का मौका प्रदान करती थी। लेकिन समाज में पैदा हो रहे अंतर्विरोधों के कारण इसमें दरार पड़ने लगी है। इस अल्पसंख्यक सांप्रदायिकता से पिछडे़ हिंदुओं, खासकर वंचितों को सबसे ज्यादा नुकसान होगा- कांग्रेस के घोषणापत्र के लागू हो जाने पर हिंदू वंचितों को न केवल शैक्षणिक संस्थाओं और नौकरियों में मिलने वाले आरक्षण में कमी आएगी, बल्कि लोकसभा और विधानसभा में उनकी सीटों में भी कमी आ सकती है। इसमें उन्हें तभी सुरक्षा मिल सकती है, जब वंचितों के लिए निर्धारित आरक्षण बढ़ाया जाए, जिसकी संवैधानिक प्रावधानों के मद्देनजर संभावना कम ही है। जाहिर है पहले से इसका विरोध कर रहीं अनुसूचित जातियों में आने वाले समय में इसके खिलाफ लामबंदी तेज हो सकती है। इससे दलितों-पिछड़ों की राजनीति करने वाली पार्टियों के सामने धर्मसंकट पैदा हो जाएगा। अगर वे इसका विरोध करेंगी, तो मुसलमान नाराज होंगे, जबकि चुप्पी साधेंगी तो हिंदू। कांग्रेस भी वंचितों-पिछड़ों की राजनीति से बाहर हो सकती है। स्वाभाविक है इसका लाभ हिंदुत्ववादी पार्टियों को मिलेगा।
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