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इस बार के लोकसभा चुनावों के नतीजों के बाद उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की बैठक सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ले रहे थे, जिसमें समाजवादी पार्टी की भयावह हार के कारणों की समीक्षा की जा रही थी। उक्त समीक्षा बैठक में सपा के हारे प्रत्याशियों ने हार के दूसरे कारण तो बताए ही, कई प्रत्याशियों ने हार का एक बड़ा कारण यह भी बताया कि जब यादव मतदाता भी हिन्दू हो गये तो फिर सपा की जीत कैसे संभव होती? उनका कहने का आशय यह था कि सपा एवं दूसरे तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दलों की एकतरफा मुस्लिम पक्षधरता के चलते समाजवादी पार्टी का वोट बैंक मानी जाने वाली यादव जाति भी प्रतिक्रियास्वरूप हिन्दू हो गई, अर्थात समाजवादी पार्टी की जगह भाजपा को वोट दे दिया।
अब इसमें कोई दो मत नहीं कि इस बार के लोकसभा चुनाव में सभी जातीय धारणाएं टूट गई, जिसके चलते सपा और बसपा जैसी जाति आधारित राजनीति करने वाली पार्टियों के नीचे से जमीन ही सिखक गई। जहां बसपा का वंचित वोट विभाजित हुआ और उसे एक भी सीट नहीं मिली। वहीं सपा के यादव वोटों के विभाजित होने के चलते सपा को उत्तर प्रदेश में मात्र पांच सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। वह भी मुलायम सिंह और उनके परिवारवालों को।
कुल मिलाकर देश ने जातिवाद की धारणा से ऊपर उठकर इस बार मतदान दिया। यहां तक कि जिसे मुस्लिम वोट बैंक कहा जाता है, उसकी तुलना में हिन्दू वोट बैंक देखने को मिला। अभी इसके पहले तक होता यह था कि मुसलमान संगठित होकर उस पार्टी या उम्मीदवार को वोट करते थे, जिसमंे भाजपा के उम्मीदवार को हराने की संभावना देखते थे। इसमें वह बहुत हद तक सफल भी रहते थे, क्योंकि हिन्दू बड़ी मात्रा में जाति के आधार पर वोट करते थे। लेकिन इस बार जब हिन्दुओं में वह जाति का कारक प्रभावी नहीं दिखा तो मुस्लिम मतदाता भी भ्रमित हो गए और उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में एक से ज्यादा तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दलों में बंट गए। यद्यपि राष्ट्रवादी सोच रखने वालें मुसलमानों के एक वर्ग का भी वोट भाजपा को मिला, लेकिन इस हिन्दू वोट बैंक का मतलब साम्प्रदायिक नहीं वरन् राष्ट्रवादी था।
अब सोनिया गांधी को इस बात की शिकायत है कि हिन्दुओं के ध्रुवीकरण का प्रयास किया गया। सोनिया गांधी क्या यह बता सकती हैं कि वह साम्प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा रोकथाम विधेयक लाने का प्रयास कर वह हिन्दुओं को द्वितीय श्रेणी का नागरिक बनाने का प्रयास नहीं कर रही थीं? जब शाही इमाम अहमद बुखारी से चुनावों के दौरान यह कहती हैं कि मुस्लिम वोट नहींं बंटना चाहिए तो वह धु्रवीकरण का प्रयास नहीं था? इसी तरह से जब उत्तर प्रदेश के मंत्री आजम खां मुजफ्फरनगर दंगों से लेकर कारगिल की लड़ाई तक का इस्लामीकरण करने का प्रयास करते हैं और मुलायम सिंह खुलकर उनका समर्थन करते हैं तो भला अपना अस्तित्व बचाने के लिए हिन्दुओं को एकजुट क्यों नहीं होना चाहिए? बड़ी बात यह भी कि इसी संगठित हिन्दू समाज के चलते जातिवाद और मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति करने वाले कई राजनीतिक दलों की इस चुनाव में दुकानें बंद हो गईं। ऐसी स्थिति में जब हिन्दू समाज से जातिवाद की दीवारे टूट रही है,तो देश के लिए यह एक बड़ा शुभ संकेत है।
– वीरेन्द्र सिंह परिहार
vparihar15@gmail.com
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