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– रमेश पतंगे –
16वीं लोकसभा के चुनावों का आखिरी चरण समाप्त होने के बाद पूरे देश में एक ही सवाल था, ये मोदी की लहर है या सुनामी? ये मोदी लहर थी, इस बारे में दो राय नहीं थी। हरेक राज्य में मतदान प्रतिशत बढ़ा है इससे यह अंदाजा लगा है कि देश भर में मोदी सुनामी थी। चुनाव परिणाम ने उस पर मुहर लगा दी है।
नरेंद्र मोदी की विजय क्यों हुई है, इस बारे में मीडिया में अलग अलग मत प्रकट किए जा रहे हैं। कांग्रेसी प्रवक्ता ने अपना मत रखा है। लालूप्रसाद यादव, मुलायम सिंह और चुनाव में पराभूत अन्य नेता भी अपना मत रख रहे हैं। इन लोगों ने पहले जो कुछ कहा, वही राग अब भी अलाप रहे हैं और आगे भी यही जारी रहेगा। इन सभी लोगों ने नरेंद्र मोदी को 'सांप्रदायिक नेता' बताया। उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी ने चुनाव में बड़ी सफाई से जाति का मुद्दा भी उठाया और धर्म का मुद्दा भी। वे आगे कहेंगे कि, यह विजय भाजपा की नहीं बल्कि एक व्यक्ति मोदी की है और किसी व्यक्ति को पार्टी से बड़ा बनाना अच्छा नहीं होता है, इससे तानाशाही का खतरा पैदा हो जाता है। उनका कहना है, नरेंद्र मोदी प्रभुतावादी हंै। वे अपने सहयोगियों को आगे नहीं आने देते हैं। सब कुछ मोदी के वजह से है, वे ऐसा दिखाते हैं। ऐसा दुष्प्रचार किया जाता है।
यह सारा प्रचार बेमतलब का है। लालूप्रसाद, मुलायम सिंह और सोनिया गांधी, इन लोगों ने अपनी पार्टियों को एक पारिवारिक व्यावसायिक कंपनी बना दिया है। मायावती का मतलब है पूरी बहुजन समाज पार्टी। ममता बनर्जी को तृणमूल कांग्रेस से हटा दें, तो शेष बचेगा शून्य, ऐसी स्थिति है। ये लोग और उनके तोते जब नरेंद्र मोदी पर ऐसे ही आरोप लगाते हैं तब कांच के घर में रहने वालों कोे दूसरे पर पत्थर नहीं फेंकना चाहिए, यह कहावत साफ हो जाती है। भारतीय मतदाताओं ने उनको ऐसी चपत लगाई है कि दूसरी चपत लगाने को जगह ही नहीं बची है। महाराष्ट्र में आईबीएन/ लोकमत पर ऐसे तोते जमा करके मोदी, भाजपा और संघ के खिलाफ प्रचार करने हेतु बड़ा मोर्चा खोला गया था। जनता ने उन सबके मुंह पर ताले जड़ दिए हैं। चुनाव के माध्यम से ऐसी चपत पड़ी है कि शब्दों के तीर चलाने की आवश्यकता नहीं रही है।
राष्ट्रीय विचारधारा की विजय
नरेंद्र मोदी की विजय राष्ट्रीय विजय है। यह एक व्यक्ति की विजय नहीं, केवल भाजपा की विजय नहीं बल्कि राष्ट्रीय विचारधारा की विजय है। इस विचारधारा का मातृत्व एवं नेतृत्व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को जाता है। इसलिए यह विजय संघ विचारधारा की विजय है। इस विजय का महव असाधारण है तथा यह भविष्यकालीन दूरगामी परिणाम लानेे वाली भी है।
स्वाधीनता के बाद देश में दो विचारधाराएं स्थापित हो गई थीं। पहली विचारधारा है 'नेहरू विचारधारा', जिसे अंग्रेजी में 'नेहरूवियन मॉडल' कहा जाता है। इस विचारधारा ने मुस्लिम तुष्टीकरण, हिंदू समाज को जातियों में बांटकर देखना, अल्पसंख्यकवाद, हिंदू संस्कृति की निंदा, हिंदू चिंतन की अनदेखी, ऐसी नीति अपनाई जाती है। समाजवादी, कम्युनिस्ट, चर्चवादी, मुल्ला-मौलवी के लिए यह नीति बहुत सुविधाजनक और उपकारक होने के कारण वे सब इस विचारधारा के नुमाइंदे बन गए। सेक्युलरिज्म, इस एक शब्द में इस विचारधारा का सार बताया जा सकता है। राज्य को पांथिक आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं करना चाहिए और सभी को समान न्याय, यह है सेक्युलरिज्म का सही मतलब, लेकिन भारत में इसका मतलब बन गया हिंदुओं पर जुल्म ढाना और अल्पसंख्यकों को सर पर बिठा लेना।
विदेशी मॉडल की नकल
नेहरूवियन मॉडल की दूसरी विशेषता है विकास के विदेशी मॉडल की नकल उतारना।। पंडित नेहरू ने रूस की विकास अवधारणा की नकल उतारी और समाजवाद भारत में लाने का कार्यक्रम बनाया। इस कार्यक्रम से गरीबी नहीं हटी केवल गरीबों की संख्या बढ़ती चली गई। सरकारीकरण के कारण नौकरीशाही प्रबल और दिन ब दिन भ्रष्ट बनती गई। उद्योग की प्रेरणा खत्म हो गई, कृषि विकास कुंठित हो गया। देश विदेशी कर्ज के खाई में डूब गया।
इस के बाद वैश्वीकरण का प्रयोग आरंभ हो गया। अमरीकीा विकास अवधारणा की नकल उतारी गई। इस नकल के चलते देश में पूंजीवाद आ गया। पूंजीवाद का मुख्य हेतु होता है अधिक मुनाफा कमाना और इसलिए संसाधन, मजदूर, शासन का जितना हो उतना शोषण करना। वैश्वीकरण के कारण एक ओर नया अमीर वर्ग खड़ा हो गया और चार पहियों वाली गाडि़यां बढ़ने लगीं। उनके लिए अच्छी सड़कें बनने लगीं और देहात उजड़ गए। किसान की हालत खस्ता हो गई और वह आत्महत्या करने लगा। शिक्षा का बाजारीकरण हो गया, आरोग्य सेवाओं का भी बड़े पैमाने पर बाजारीकरण हो गया। मध्यमवर्ग और गरीब आदमी वैश्वीकरण की मार से बेसहारा हो गया।
एक विचारधारा है हिन्दू
दूसरी विचारधारा है रा. स्व. संघ की। संघ विचारधारा ने संघ की स्थापना से ही जाति भावना के लिए कोई स्थान नहीं रखा और हरेक की उपासना की स्वतंत्रता मान्य की। यही हमारे देश की परंपरा है। अपनी संस्कृति एक है और सर्वसमावेशक है, उसके कुछ जीवनमूल्य हैं। इसका नाम है हिंदू संस्कृति। देश की अर्थनीति, समाजनीति, राजनीति हिंदू जीवनमूल्य के आधार पर ही खड़ी रहनी चाहिए। हिंदू जीवनमूल्य सभी को एक ही चेतना के आविष्कार के रूप में देखना सिखाते हैं, विश्व में चींटी से लेकर हाथी तक सभी को जीने का हक है और हरेक का सृष्टि में महवपूर्ण स्थान है। इसलिए हम मनुष्यों का केवल एक दूसरे के पूरक नहीं तो हमारी जीवनशैली सृष्टि की पूरक होनी चाहिए। पं़ दीनदयाल उपाध्याय ने एकात्म मानव दर्शन में यही विचार रखा है और यह विचारधारा भाजपा की प्राणशक्ति है।
यह विचार और जीवनमूल्य संपूर्ण समाज में पनपाने के कुछ चरण हैं। सर्वप्रथम संघकार्य को देशव्यापी बनाने का कार्य पू़ डॉक्टरजी के समय से ही प्रारंभ हो गया था। श्री गुरुजी के समय में इसे देशव्यापी के साथ ही राष्ट्र जीवन के सभी क्षेत्रों तक पहंुचाने का भी प्रयास हुआ और उस दौरान जनसंघ की स्थापना हुई। संघ के अत्यंत कतृर्त्वशाली प्रचारक जनसंघ में भेजे गए। बालासाहब देवरस के कार्यकाल में समाज के अंतिम तबके तक संघकार्य पहुंचाने का प्रयास किया गया। रज्जू भैया और श्री कुप्. सी. सुदर्शन के कार्यकाल में इस कार्य के दृढ़ीकरण पर बहुत बल दिया गया। यह दो स्तर पर किया गया, वैचारिक और कार्यकर्ता।
सर्वस्तरीय संघ-स्वीकृति
इस सारे कालखंड में संघकार्य को हर एक चरण पर बड़े पैमाने में स्वीकृति मिलती चली गई। इन चरणों की विशेषताएं ऐसी हैं कि सर्वप्रथम आम आदमी ने इस कार्य को स्वीकार किया और उसके बाद इसे समाज के प्रतिष्ठित और बुद्धिजीवी वर्ग ने भी स्वीकार किया। आज भी सर्वसाधारण हिंदुओं का संघ ही संघ का स्वरूप है। संघ निष्ठापूर्वक खुद को काम में लगाने वाले अनगिनत स्वयंसेवक हैं। सर्वसाधारण जनता को इनके माध्यम से ही संघ समझ में आता है। वह लेखन, भाषण, पुस्तकों, विचारगोष्ठी आदि के माध्यम से समझ में नहीं आ सकता है। मीडिया में संघ के बारे में होने वाली बौद्धिक ज्यादातर चर्चाएं अज्ञान पर आधारित होती हैं। किसी का कोई विधान लेकर उस पर चर्चा करना और वह ही संघ विचार है, ऐसा बताने का प्रयास करना तो संघ की दृष्टि में नासमझी है। बडे़ बडे़ बुद्धिवादी ऐसा करते हैं इसलिए उसे बौद्धिकनासमझी कहा जा सकता है। संघ स्वयंसेवक को संपूर्ण देश में पहचान दिलाने वाला कार्य, संघकार्य देशव्यापी, समाजव्यापी यानी समाज के अंतिम घटक तक पहुंचाने का कार्य सातत्यपूर्ण होते रहने से ही संघ का हरेक स्वयंसेवक उसके विशाल रूप में देशव्यापी बन जाता है। नरेंद्र मोदी संघ स्वयंसेवक हैं, संघ प्रचारक रहे हैं। वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे। वह अखिल भारतीय कैसे बन गए? यह सवाल मीडिया के बहुत से विद्वानों को सता रहा है। संघ स्वयंसेवक की यही पहचान उसे अखिल भारतीय बना देती I मोदी तो गुजरात के मुख्यमंत्री थे, लेकिन केरल के स्वयंसेवक को भी वे गुजरात के स्वयंसेवकों जितनेे ही अपने लगते थे। मोदी की लहर सब ओर कैसे छा गई, यह संभ्रम सभी को सता रहा है। यह तो संघ के सालों के कार्य का परिणाम है, यह चीज समझ में आने तक कई साल बीत जाएंगे। संघ देशव्यापी है इसलिए मोदी अपने आप देशव्यापी बन जाते हैं। भाजपा के सारे नेता इसी तरह देशव्यापी होते हैं। पूरे देश को वे अपने लगें, इसके लिए आवश्यक संगठनात्मक रचना संघ के कारण इन सभी को अपनेआप उपलब्ध हो जाती है।
प्रादेशिकता से परे व्यापक दृष्टिकोण
संघ की आज की अवस्था का वर्णन करें तो कहना पडे़गा कि आज भारत की जनता के संघ के अखिल भारतीय दृष्टिकोण को स्वीकारनेे और उसे अपनाने का वक्त आ गया है। भारत की एक अप्रतिम विशेषता है और वह यह है कि भारत के किसी भी कोने में रहने वाला कोई भी हिंदू भाव-विश्व से पूरे भारत से जुड़ा हुआ होता है। उसका गंगा से नाता होता है और हिमालय का चित्र ही देखा होगा तो भी हिमालय के प्रति उसके मन में आकर्षण होता है। यमुना के तीर भले वह कभी न गया हो, तो भी यमुना, कृष्ण, यशोदा और वृंदावन उसके जीवन में रचे-बसे होते हैं। गोदावरी, कृष्णा, कावेरी का उसे आकर्षण होता है और दुर्गा के शक्तिपीठ, शिव के ज्योतिर्लिंग आदि पूरे भारत भर में हैं। एक अखिल भारतीय भावना उसके अंतरतम में होती है। कुछ राजनेता धूर्ततावश उसे जातीयता, सांप्रदायिकता, प्रादेशिकता के दायरे में ले जाने का कार्य करते हैं। कुछ समय तक इसमें भले उनको सफलता मिलती दिखे, लेकिन हिंदू मन का वैसा झुकाव ना होने के कारण वह कुछ टिक नहीं पाता है।
इस चुनाव ने स्पष्ट रूप से यह दिखा दिया है कि मायावती की शुद्ध जातिवादी राजनीति उन्हीं के मतदाताओं ने ठुकराई है। मुल्ला-मौलवियों के आदेशों को ना मानते हुए, जिन्होंने अपना हिंदुत्व जागृत रखा है, ऐसे सभी मुसलमानों ने भाजपा को वोट दिया है। विभिन्न जातियों की राजनीति करने वालों को इन चुनावों में हिंदू जनता ने पास भी फटकने नहीं दिया। उसी तरह रोम की सोनिया को भी लोगों ने पूरी तरह से अस्वीकृत किया है।
देश की बहुसंख्य जनता के मन में इस चुनाव ने अत्यंत महवपूर्ण सवाल रखे थे। राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि विकास, सुशासन, भ्रष्टाचारमुक्त भारत, ये सब चुनाव के विषय थे। चुनाव प्रचार के विषय ये सब थे, इस में दो राय नहीं है, मगर प्रचार के मुद्दे लोगों के अंत:करण में होते हैं, ऐसी बात नहीं है। लोगों के अंत:करण में यह विषय था कि अपना देश, अपना भारत देश क्या भारत बन कर रहेगा अथवा इस भारतमाता को हरा दिया जाएगा, इसका ईसाईकरण होगा, इसका विदेशीकरण होगा? यह बात किसी को स्वीकार नहीं थी। यह चुनावी संघर्ष अपनी राष्ट्रीय अस्मिता रक्षा का संघर्ष बन गया था। यह लड़ाई नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए नहीं लड़ी गई थी, किसी एक व्यक्ति के लिए नहीं लड़ी गई थी।
यह लड़ाई नरेंद्र मोदी के नाम पर केंद्रित हो गई थी, इस बात का अंदाजा कैसे लगाया जा सकता है? नरेंद्र मोदी ने तीन लाख किलोमीटर की यात्रा की और पूरे देश में साढे़ चार सौ सभाएं की थीं। उनके परिश्रम की कोई सीमा नहीं थी। यह सब उन्होंने क्यों किया? मीडिया के लोग कह सकते हैं कि खुद प्रधानमंत्री बनने के लिए उन्होंने यह सब किया है। लेकिन मेरे जैसा संघ स्वयंसेवक ऐसा नहीं सोच सकता। पू़ डॉक्टरजी, श्री गुरुजी, पं़ दीनदयाल जैसी विभूतियों का सपना सच करने के लिए मोदी ने यह सब किया है। क्या था वह सपना? देश को सामर्थ्यशाली बनाना, आम आदमी को स्वाभिमानी बनाना, आम आदमी को सक्षम बनाना और उसके आधार पर देश को वैभवशाली बनाना। केवल आर्थिक योजना बनाकर और नियोजन करके देश का वैभव निर्माण नहीं होता है। जब देश को वैभवशाली बनाने की प्रेरणा आम आदमी के अंदर निर्माण हो जाती है तब देश वैभवशाली बन जाता है। संघ ने यह कार्य अपनी क्षमता से, अपनी कार्यपद्धति से, अपने मर्यादित संसाधनों से देशभर में सातत्यपूर्ण तरीके से किया है। इस कार्य को अब राजशक्ति का साथ मिलना आवश्यक था। इससे जिन क्षमताओं का जागरण हो गया है, उन क्षमताओं को राष्ट्रोन्नति के कार्य में सहभागी बनाना आना चाहिए। मोदी देशभर में इन सपनों का प्रतीक बन गए। छत्रपति शिवाजी महाराज जिस तरह स्वतंत्रता के प्रतीक बन गए, महात्मा गांधी जिस तरह सादगी और नैतिक आचरण के प्रतीक बन गए, स्वातंत्र्यवीर सावरकर जिस तरह देश के लिए असीम त्याग के प्रतीक बन गए, अंबेडकर जिस तरह सामाजिक स्वतंत्र्ता का प्रतीक बन गए उसी तरह नरेंद्र मोदी देश के राजनीतिक पुनरुत्थान के प्रतीक बन गए हैं। संघ ने विगत सालों में देश में जो चारित्र्यबल निर्माण किया, जो संगठन बल निर्माण किया, जो सेवाबल निर्माण किया, जो समर्पणबल निर्माण किया, इन सबका प्रतिबिंब लोगों ने मोदी के व्यक्तित्व में देखा। संघ के केरल से कन्याकुमारी तक और असम से कच्छ तक, सर्वसाधारण स्वयंसेवकों ने मोदी में यही प्रतीक देखे हैं। इसलिए नरेंद्र मोदी, नरेंद्र मोदी नामक कोई व्यक्ति ना रहकर इस देश के सनातन विचार और पुनरुत्थान के प्रतीक बन गए हैं। नरेंद्र मोदी अब संघ से ऊपर हो जाएंगे? यह बेमतलब का सवाल खड़ा करके बहुत बहस चलेगी। कल अगर ऐसे लोगों ने यह बहस चलाई कि 'पार्वती शंकर से ऊपर हो गई हैं? सीता राम से ऊपर हो गई हैं? श्रीकृष्ण यशोदा से ऊपर हो गए हैं? जीजा बाई शिवाजी ऊपर हो गईं ?' तो लोग उनकी हंसी उड़ाएंगे।
राष्ट्रीय विचार ही मुख्य विचार
यह राष्ट्र की संपूर्ण विजय नहीं है। संपूर्ण विजय के लिए कुछ समय तक इंतजार करना होगा। जब इस देश के पूरे राजनीतिक क्षेत्र में राष्ट्रीय विचार ही मुख्य विचार नहीं बन जाता, तब तक इंतजार करना होगा। इस देश ने ऐसा समय देखा है कि जब किसी को नया दल शुरू करना होता था तब उसे दल के नाम में 'समाजवाद' शब्द जोड़ना पड़ता था। शीघ्र ही देश में ऐसी परिस्थिति निर्माण होने लगेगी कि हरेक दल को, चाहे वह कम्युनिस्ट ही क्यों न हो, उसे बताना पडे़गा कि हम सर्वप्रथम राष्ट्रीय हैं, भारतीय हैं, भारतीय संस्कृति के वाहक हैं। सालों के अथक कार्य के बाद एक मूलगामी राजनीतिक परिवर्तन लाने में संघशक्ति का निर्णायक भूमिका रही है। यहां संघशक्ति का मतलब संघ विचारधारा को मानकर सभी क्षेत्रों में कार्य करने वाली संस्थाएं और व्यक्ति हैं, जिसमें भाजपा भी आती है। आगे के कालखंड में हमें इस विजय को और भी मजबूत बनाकर निर्णायक विजय की ओर जाना है। मोदी सरकार अपना कार्यकाल पूरा करेगी। शासन चलाते समय जनता को दिए आश्वासन और जनता की अपेक्षाएं पूरी करनी होती हैं। संघ विचारधारा की यह ख्याति है कि जो कहेंगे वह कर दिखाएंगे और जो करेंगे वह सबके हित का ही होगा। इस बात पर सहमति की मुहर लगाने के लिए सभी को परिश्रम करना होगा, अंतिम विजय का मार्ग प्रशस्त बनाना होगा।
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