भारतीय मज़दूरों की दर्दभरी दास्ताँ
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भारतीय मज़दूरों की दर्दभरी दास्ताँ

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May 28, 2014, 12:00 am IST
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अरब देशो में भारतीय मज़दूरों की दुर्दशा

दिंनाक: 28 May 2014 16:20:17

मुंबई के उपनगर विक्रोली की यह हृदय विदारक घटना है। मेरे पड़ोस में एक हेयर कटिंग सैलून है। एक दिन उस दुकान का मालिक मेरे पास आया और कहने लगा कि सऊदी अरब के एक शहर में उसका भाई संकट में फंस गया है। उसकी सहायता यदि भारतीय दूतावास ने नहीं की तो उसकी किसी भी क्षण हत्या हो सकती है। उसकी करुण कहानी में पीड़ा थी और लाचारी भी स्पष्ट रूप से झलक रही थी, जो कि एक व्यक्ति को न जाने क्या-क्या करने को मजबूर कर देती है।

उसकी करुण कहानी का सारांश यह था कि कुछ माह पहले उत्तर प्रदेश के जिला अमरोहा से उसका भाई मुंबई आया जिसे काम की तलाश थी। वह क्योंकि अपने गांव में बाल काटने का ही काम करता था, इसलिए अरबस्तान में काम दिलाने वाले एक एजेंट ने तीन माह का पेशगी वेतन अपने कमीशन के रूप में लेकर उसे सऊदी अरब भेजकर काम दिलाने के आश्वासन पर तैयार हो गया। उस नाई के घरवाले खुश थे कि छोटे भाई को काम मिल गया। वह उसे जेद्दा भेजने के आश्वासन पर उसका पासपोर्ट बनाने और जेद्दा तक का किराया देने के लिए तैयार हो गए। दो माह के भीतर सारी तैयारी हो गई और छोटे भाई को हवाई अड्डे पर छोड़ने के लिए परिवार के अनेक सदस्य खुशी-खुशी पहंुच गए। शुरुआत में तो उस आठवीं पास भाई के पत्र आने लगे। लगा वह काम कर रहा है और ढेर सारा पैसा उन्हें शीघ्र ही भेज देगा। लेकिन कुछ समय बाद अचानक उसके पत्र आने बंद हो गए। घरवालों को चिंता हुई तो उन्होंने अपने ही गांव के एक व्यक्ति को, जो वहां पहले से किसी सैलून में काम करता था उससे संपर्क किया। 6 माह तक तो परिवार जन को आश्वासन मिलता, लेकिन बाद में गांव के व्यक्ति के पत्र भी आने बंद हो गए। अब घरवाले हैरान और परेशान थे, पासपोर्ट कार्यालय में पूछताछ की, लेकिन कोई उत्तर नहीं मिला। इस बीच अचानक एक दिन सऊदी अरब से भेजा गया भारतीय दूतावास का मुंबई के पते पर पत्र मिला तो सब हैरान हो गए। केवल यह समाचार था कि अमुक नाम का व्यक्ति वहां जेल में है और उसे भारत का टिकट भेजकर स्वदेश बुला सकते हैं। लगभग डेढ़ साल बाद जब वह युवक भारत लौटा तो उसने जो कहानी सुनाई, उसे कोई सुन नहीं सकेगा। रोते-रोते उसका गला रुंध गया, वह कहने लगा सऊदी अरब में हवाई अड्डे से उसे एक अरबवासी अपने घर ले गया और वहां कुछ दिनों तक घर का काम करवाया जिसमें शौचालय को साफ कराना और झाडृू लगाना मुख्य रूप से शामिल था। एक माह बाद उसे ऊंट पर बैठाकर बहुत दूर जंगल में ले गया, जहां एक झोपड़ी में 4 बालक पहले ही से थे। मालिक ने उसे कहा कि अब वह यहीं रहेगा और उसके ऊंटों को चराने और देखभाल का काम करेगा। उसने विरोध किया तो मालिक ने उसे लात-घूसों से मारना शुरू कर दिया। यह कहकर वह तो चला गया, अब रोजाना उसका काम केवल ऊंटों को चराना और रात-दिन खुले आसमान के नीचे ऊंटो के साथ रहना था। इस बीच ऊंट पर बैठकर हर सप्ताह एक व्यक्ति वहां आता था, जो कि एक बड़े थेले में ढेर सारी तंदूरी रोटियां और प्याज लेकर आता था। यही उनका भोजन और नाश्ता था।

एक दिन वह व्यक्ति फिर से पहंुचा तो उसने उसे पकड़ लिया और कहा कि वह अपने मालिक को बुलाए। इस पर सभी ने मिलकर मजदूर को पीटना शुरू कर दिया, लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी। इसका परिणाम यह निकला कि दूसरे दिन मालिक पहंुचा। इस पर मजदूर ने उससे कहा कि जिस काम से उसे लाया गया है उसे वह काम दिया जाए या उसे वापस उसके स्वदेश भेज दो? लेकिन निर्दयी मालिक का दिल नहीं पसीजा। वहां मौजूद सभी लोगों ने मजदूर को ऊंट से बांधा और कुछ दूर ले गए, वहां एक गड्ढा किया और उसे उसमें आधा धकेलकर खड़ा कर दिया। इस स्थिति में उसे छोड़कर वे सभी भाग गए। गड्ढों में से निकलना उस मजदूर के लिए कठिन था और अंदर गर्मी से उसकी हालत बिगड़ने लगी। लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी और किसी तरह से हाथ बाहर निकाला और उसे हिलाने लगा। वह बुरी तरह से चीख रहा था, वहीं से कुछ दूरी पर ही एक सड़क बनी हुई थी। वहां से एक कार गुजरी जिसमें सवार व्यक्ति ने उसे देख लिया। वह गाड़ी से उतरकर वहां पहंुचा और उसे बाहर निकाल दिया। मजदूर की आंखों में से जब रेत निकल गई और उसे कुछ दिखने लगा तो उसने पाया कि वह व्यक्ति कोई भारतीय ही था। उसने गाड़ी में मजदूर को बैठाकर पानी पिलाया और उसकी स्थिति के बारे में पूछा। उसने सारी दर्दनाक कहानी सुना डाली। इस पर उसने स्वयं को अक्षम बताकर मदद करने से इनकार कर दिया। उसने कहा कि 15 किलोमीटर बाद एक शहर आएगा, जहां वह उसे गाड़ी से उतार देगा। उसने मजदूर को पैदल ही फुटपाथ पर चलकर भारतीय दूतावास का पता पूछने को कहा। उसने कहा कि पता मिलते ही वहां जाकर अपनी आपबीती सुना देना, लेकिन कभी किसी से अपना जिक्र करने को मना किया। यह भी बताने का मना किया कि वे गड्ढे से यहां तक कैसे पहंुचा? इसके बाद मजदूर ने सबकुछ वैसा ही किया। रात के 11 बजे वह भारतीय दूतावास पहंुच गया और सारी कहानी रो-रोकर अधिकारियों को सुना दी। उसे रात में फर्श पर सोने के लिए कहा गया। सवेरे 9 बजे उन्होंने उसके बताए पते पर संपर्क किया। इस प्रकार वह जान बचाकर उन दुष्टों के देश से पुन: मुंबई पहंुच सका। 'मजदूर रो-रोकर कहता था कि साहब मैं कभी अरबस्तान नहीं जाऊंगा, आपको भी जो मिले उसको यह कहानी मेरा नाम लेकर सुनाना।' यह दर्दभरी आपबीती बताती है कि भारतीयों के साथ वहां क्या होता है? यह कहानी तो केवल किसी एक इंसान की है, ऐसे कितने ही भारतीय उन जंगली अरबियों के शिकार बनते हैं। जब उनके पंजे से नहीं छूट पाते हैं तो रोकर-तड़पकर अपनी जान दे देते हैं। समय के साथ और अन्तरराष्ट्रीय कानूनों के तहत भले ही कुछ कायदे-कानून बदले हों, लेकिन अरबस्तान के शासकों के दिल बदले हों और उनमें मानवता जन्मी हो, ऐसा नहीं लगता है,क्योंकि आज भी सैकड़ों भारतीय और विश्व के अन्य नागरिक बड़ा जोखिम उठाकर वहां पहंुच जाते हैं।  भारत में अरब देशों के रोजगार के लिए दरवाजे उस समय खुले थे कि जब देश की जनता पार्टी सरकार में विदेश मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने पासपोर्ट के मामले में कानून बदले थे। इस प्रक्रिया को सरल बनाने का काम किया था। तब तक केवल देश के राज्यांे की राजधानी में ही पासपोर्ट कार्यालय थे। अटल जी के समय से यह नियम और कानून सरल होने लग गए। आज तो हर जिले के मुख्यालय पर यह काम हो जाता है। कोई भी भारतीय घर बैठे अपना पासपोर्ट तैयार करा सकता है। इस सरलता के कारण पासपोर्ट धड़ल्ले से बनने लगे और विदेशों की यात्रा करने लगेे। कुशल और अकुशल भारतीय मजदूर बड़ी तादाद में मध्य पूर्व के देशों में पहंुचने लगे हैं। इन मजदूरों के कारण अरब देशों में रचनात्मक कार्य होने लगे। सरकारी भवन, अस्पताल, निवास के लिए घर तथा कल कारखाने स्थापित होने लगे। इन देशों को सस्ते मजदूर मिल गए और बेकार भारतीयों को काम-धंधे। भारत में विदेशी मुद्रा का प्रभाव बढ़ा जिससे देश की योजनाओं में इस धन का उपयोग होने लगा। यह दोनों को परस्पर रूप से लाभ पहंुचाने वाला है। एक अदृश्य किन्तु न्यायिक समझौता था, लेकिन अपने स्वभाव से मजबूर अरब देशों ने बहुत शीघ्र भारत एवं विदेश से पहंुचे उन लोगों का शोषण प्रारंभ कर दिया। मामले हेग की अन्तरराष्ट्रीय अदालत तक पहंुचने लगे। लेकिन अरबी सरकारों का मन नहीं पसीजा, उनका शोषण बढ़ता गया।

60 के दशक के बाद खाड़ी सहित सभी अरब देश आपस में भी उलझने लगे और पश्चिमी राष्ट्रों से भी वे उलझने लगे। इसी बीच कुवैत-इराक का युद्ध शुरू हो गया तो कभी इराक और ईरान के बीच। बहुत सारे मामले एकत्रित हो गए तो वहां दो बातें हुईं। एक तो उन देशों में आर्थिक संकट बढ़ने लगे और सैनिकों के नाम पर मध्य पूर्व  में पश्चिमी राष्ट्रों का हस्तक्षेप बढ़ता चला गया। इसके नतीजे के रूप में पिछले 50 वर्षों में अनेक सैनिक संघर्ष और बड़े देशों के बीच युद्ध होने लगे । हथियारों की खरीद से एक ओर उनकी आर्थिक स्थिति बिगड़ने लगी तो दूसरी ओर वहां स्थानीय बेकारी का भी रोग लग गया। इसलिए नताका जैसे कानून बनने लगे जिसके तहत विदेशी लोगों को बाहर निकाना जाने लगा। आज स्थिति यह है कि यूरोप और अमरीका के लोग तो वहां की सरकार के दबाव के कारण अच्छी स्थिति में हैं और साथ ही सुरक्षित भी। लेकिन एशिया और अफ्रीका के लोग बुरी तरह से त्रस्त और पीडि़त हैं। इनमें भारतीय उपखण्ड के लोगों के साथ तो पशुओं जैसा व्यवहार होता है। खाड़ी के देशों में पहंुचकर वहां के लोगों ने जो धन कमाया उससे भले ही भारत को आर्थिक लाभ हुआ हो, लेकिन यह भी सच है कि इससे हवाला जैसा दूषण भी भारतीय अर्थव्यवस्था में दीमक के समान लग गया।

अमरीका और यूरोप में भारतीय रुपये को कालेधन के रूप में निवेश किया जाने लगा। इस काले धन के कारण आज भारत में तो काले धनवालों की एक समानान्तर सरकार चलती है। इससे देश में तेजी से महंगाई बढ़ती है और मुद्रा का लगातार अवमूल्यन भी होता रहता है। एमनेस्टी इंटरनेशनल के एक प्रवक्ता की बात मानें तो खाड़ी देशों में बड़ी संख्या ऐसे मजदूरों की है जिनकी स्थिति बंधुआ मजदूर से भी बदतर है। न तो उनके काम के घंटे तय है और न ही उनके वेतन। जहां वे काम करते हैं, वहां का मालिक पासपोर्ट और सरकारी कागजों को अपने पास रख लेता है। उन्हें कितनी मजदूरी मिलेगी, यह भी तय नहीं रहता है।

बाहर के इन मजदूरों के लिए जो घरों की व्यवस्था की जाती है, वे उनके लिए चारदीवारी में कैद हैं। वहां से ये कहीं भाग भी नहीं सकते और उनके विरुद्ध एक शब्द का उच्चारण भी नहीं कर सकते। एक सर्वेक्षण के अनुसार 90 फीसदी मजदूरों के पासपोर्ट उनकी कंपनियां जब्त कर लेती हैं। 56 फीसदी मजदूरों के पास उनके स्वास्थ्य का कार्ड नहीं है। इसके बिना ये मजदूर सरकारी अस्पतालों में अपना उपचार नहीं करा सकते। इस संबंध में एडिनबरा एंड यूनिवर्सिटी और शेफील्ड का सर्वेक्षण चौंका देने वाला है। उसके अनुसार वहां किसी व्यक्ति का प्रवेश इंसान के रूप में होता है, लेकिन जब वहां से कोई निकलता है तो चलती-फिरती लाश बन जाता है।

खाड़ी के देशों में मजदूरों को 8 बाई 10 फुट के कमरे में आठ लोगों को गुजारा करना पड़ता है। कारखाने और फैक्टरी का मालिक इस बात की अपेक्षा करता है कि नमाज के समय वे सभी मजदूर मस्जिद में जाएं और प्रार्थना करें। किसी भी हिन्दू को पूजा करने का अधिकार नहीं है। खाड़ी और सऊदी अरब के देशों में श्मशानघाट की व्यवस्था तक नहीं है। यहां तक तो ठीक है, लेकिन उसके शव को भारत अथवा अपने देश में नहीं भेज सकते। वहां कोई भी गैर मुस्लिम त्योहार नहीं मनाया जाता है।  वहां रहने वाले अन्य पंथी लोग कभी-कभी यह सवाल उठाते हैं कि क्या वे कभी अपने त्योहार मनाकर और धार्मिक प्रक्रियाओं को पूर्ण कर अपने पंथ के प्रति निष्ठा व्यक्त कर सकेंगे? लेकिन अभी तो इसकी संभावना कोसों दूर ही लगती है।

– मुजफ्फर हुसैन

 

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