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जिन्दगी जांबाजी का नाम है

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May 24, 2014, 12:00 am IST
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दिशा बोध :फायर इंजीनियरिंग

दिंनाक: 24 May 2014 15:05:42

आज जगह-जगह गगनचुंबी होटल, कॉम्प्लेक्स एवं अन्य तरह की इमारतों का निर्माण हो रहा है। पहले की अपेक्षा इन इमारतों में आग से सुरक्षा के हरसंभव उपाय किए जा रहे हैं तथा सुरक्षा अधिकारियों की नियुक्ति पर भी जोर दिया जा रहा है। फिर भी इन्हें पूरी तरह से रोक पाना संभव नहीं हो पा रहा है। आज भी प्रमुख बाजारों, फैक्ट्रियों एवं कॉम्प्लेक्सों में आग लगने की घटनाएं सुनने को मिलती हैं। यदि समय रहते इन पर नियंत्रण कर लिया जाए तो भारी मात्रा में धन-जन की हानि को रोका जा सकता है। आग लगने के पश्चात दमकलकर्मी अपनी जान पर खेल कर इसे रोकने का प्रयास करते हैं। इसके लिए बाकायदा उन्हें विषयगत जानकारी एवं प्रशिक्षण दोनों दिए जाते हैं, जिसके पश्चात फायर इंजीनियर की डिग्री मिलती है। इस पाठ्यक्रम को ह्णफायर इंजीनियरिंगह्ण का नाम दिया जाता है। यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां आग से बचाव के विभिन्न तरीकों का अविष्कार किया जाता है। खतरों से खेलने की अभिरुचि वाले लोगों के लिए यह चुनिंदा क्षेत्र है।
मकेनिकल, केमिकल, सिविल इंजीनियरिंग का काम जहां पर समाप्त हो जाता है, वहां से फायर इंजीनियर का काम शुरू हो जाता है। चाहे कितनी ही कीमती इमारत क्यों न बना दी जाए, यदि उसमें आग से सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम नहीं किए गए हैं तो उसे कानूनी मान्यता नहीं दी जा सकती। एक फायर कर्मी को प्रतिदिन घटनाओं से रू-ब-रू होना पड़ता है तथा लोगों के जान माल की सुरक्षा करनी पड़ती है। फायर इंजीनियरिंग के क्षेत्र में कर्मियों को जोखिमभरा जीवन जीना पड़ता है।
विज्ञान विषय होना आवश्यक
फायर इंजीनियरिंग का पाठ्यक्रम करने के लिए छात्रों को बारहवीं की परीक्षा विज्ञान विषय से उत्तीर्ण होना आवश्यक है। तभी बीई/बीटेक में प्रवेश मिल सकता है। जबकि स्नातक एवं परास्नातक के उपरांत क्रमश: पीजी डिप्लोमा, एमटेक एवं पीएचडी पाठ्यक्रम उपलब्ध हैं। इसमें कई तरह के डिप्लोमा पाठ्यक्रम भी मौजूद हैं। जिसकी अवधि छ: माह से लेकर 2 वर्ष तक है। यदि छात्र परास्नातक स्तर के पाठ्यक्रम करना चाहते हैं तो उन्हें बीई (केमिकल, सिविल, मकेनिकल या इलेक्ट्रिक इंजीनियरिंग) होना आवश्यक है।
कई निजी संस्थान ऐसे भी हैं जो छात्रों को 12वीं (पीसीएम) के पश्चात डिप्लोमा पाठ्यक्रम करवाते हैं। शैक्षिक योग्यता के साथ-साथ छात्रों को शारीरिक योग्यता एवं उम्र-सीमा का बंधन भी आता है।
नामांकन प्रवेश परीक्षा के आधार पर
इस पाठ्यक्रम में नामांकन के लिए छात्रों को पहले एक प्रवेश परीक्षा से गुजरना पड़ता है। इसमें सफल होने के पश्चात ही आगे की प्रक्रिया पूरी हो पाती है। इसमें प्रवेश परीक्षा के रूप में दो प्रश्नपत्र होते हैं। इसमें सफल होने वाले छात्रों को गुणवत्ता के आधार पर महाविद्यालय के चिकित्सा अधिकारी द्वारा डॉक्टरी जांच कराई जाती है। उसमें सफल अभ्यर्थी को ही प्रवेश दिया जाता है। साक्षात्कार की प्रक्रिया प्रबंधन के ऊपर निर्भर होती है। वे छात्र को प्रवेश देने संबंधी अपना निर्णय सुरक्षित रख सकते हैं।

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अभिरुचि एवं प्रशिक्षण का लेखा-जोखा
विगत कुछ वर्षों से जहां घटनाओं में वृद्धि हो रही है। उसी के चलते इस क्षेत्र के प्रति लोगों की जागरूकता बढ़ी है। फायर इंजीनियरिंग के अंतर्गत आग से सुरक्षा, मशीनरी का रख-रखाव एवं उनके उपयोग का ढंग, विकट परिस्थितियों से निपटने का कौशल, भवन निर्माण के बाद अग्निशमनरोधी व्यवस्था करना आदि सिखाया जाता है। गैस, पेट्रोकेमिकल्स तथा अन्य ऑयलों के बढ़ते उपयोग के कारण सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए अग्निशमनकर्मियों का होना स्वाभाविक ही है। प्रशिक्षण के दौरान आग पर काबू पाने, खतरों से खेलने, उपकरणों के प्रयोग तथा त्वरित प्रबंधन का गुण सिखाया जाता है। जबकि कोर्स के दौरान ही उन्हें व्यवहारिक ज्ञान मिल सके। इसमें वही छात्र ज्यादा सफल होते हैं, जो जिज्ञासु प्रवृत्ति तथा मानसिक रूप से दृढ़ होते हैं। यह एक सामूहिक कार्य होता है। अत: सामूहिक भावना अधिक काम आती है। इसमें वेतन अलग-अलग माध्यम से दिया जाता है।
रोजगार की अपार संभावना
एक फायर इंजीनियर अथवा अन्य कर्मियों की कई संस्थानों में मांग रहती है। साथ ही शैक्षिक संस्थाएं, काउंसलिंग कंपनी एवं सरकारी संस्थाओं को भी ये लाभ पहंुचाते हैं। बड़ी-बड़ी उत्पादन कंपनियां जैसे पेट्रोलियम रिफाइनरी, पेट्रोकेमिकल्स एंड प्लास्टिक, फर्टिलाइजर्स, टेक्सटाइल, एलपीजी, केमिकल्स प्लांट्स एवं बीमा कंपनियां जहां आग लगने की प्रबल संभावना रहती हैं, वहां पर फायर इंजीनियर की नियुक्ति की जाती है। भारत के अलावा विदेशों खासकर खाड़ी देशों में फायर इंजीनियर्स की जबरदस्त मांग है। क्योंकि खाड़ी देश, अमरीका तथा रूस जैसे देशों में पेट्रोकेमिकल्स, ऊर्जा संयंत्र तथा ऑयल कंपनियां अधिक होने के कारण आग लगने की संभावना अधिक रहती है। अत: वे अपनी सुविधानुसार सुरक्षा अधिकारी एवं अग्निशमनकर्मियों को रखते हैं।
वेतनमान संस्थान पर निर्भर
सरकारी अथवा गैर सरकारी संगठनों में वेतन का आधार भी अलग-अलग होता है। दोनों में विभिन्नता भी देखने को मिलती है। सरकारी संस्थान में फायरमैन का वेतन 10000-12000 रुपए, फायर इंजीनियर को 15000 रुपए व मुख्य अग्निशमन अधिकारी को करीब 22000 रुपए प्रतिमाह प्रदान करते हैं, जबकि निजी संस्थाएं अपने यहां कार्यरत फायरमैन को अपेक्षाकृत ज्यादा वेतन देती हैं। निजी संस्थान अपने यहां कुछ वर्ष का अनुभव रखने वाले लोगों को वरीयता देते हैं।

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थ्योरी व प्रैक्टिकल से मिलती है जानकारी

प्रशिक्षण के दौरान छात्रों को आग से बचाव, किस प्रकार करना है,आग लगने से रोका जा सकता है तथा तत्कालिक उपाय के बारे में जानकारी दी जाती है। पाठ्यक्रम में सामान्यत: फायर केमिस्ट्री के अंतर्गत आग लगती कैसे है तथा फायर इंजीनियरिंंग के पाठ्यक्रम में प्रमुख उपकरणों के विषय में ज्ञान तथा उनका प्रयोग व रखरखाव के अलावा इंजीनियरिंग पक्ष के बारे में बताया जाता है। आग लगने पर जब सभी लोग बाहर भागते हैं तो फायरकर्मी अंदर जाता है। फायर इंजीनियरों की विदेशों में अधिक मांग है। खासकर एशिया मूल के लोगों की अधिक जरूरत है, क्योंकि यहां के लोग मेहनती होते हैं तथा उन्हें कम वेतन पर भी रखा जा सकता है।

– कैप्टनकृष्णकुमार, वाइसचेयरमैन

दिल्लीइंस्टीट्यूटऑफफायरइंजीनियरिंग

 

प्रमुख प्रशिक्षण संस्थान

ऐसे अनेक संस्थान हैं जो अग्निशमन सेवा से संबंधित पाठ्यक्रम करवाते हैं-

-राष्ट्रीय अग्निशमन सेवा महाविद्यालय, नागपुर

वेबसाइट- www.nfscnagpur.nic.in

-दिल्ली इंस्टीट्यूट ऑफ फायर इंजीनियरिंग, नई दिल्ली

वेबसाइट- www.dife.in

-कॉलेज ऑफ फायर टेक्नोलॉजी (सीएफटी), अमदाबाद

वेबसाइट-

www.collegeoffiretechnology.com

-स्टीट्यूट ऑफ फायर इंजीनियरिंग, नई दिल्ली

वेबसाइट- wwwifeindia.org

-कोचीन विश्वविद्यालय, कोच्चि

वेबसाइट- www.cusat.ac.in

-इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलाजी, खड़गपुर

वेबसाइट-www.iitkgp.ac.in

 

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