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स्काइप से जुड़ी दुनिया

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May 17, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 17 May 2014 13:42:40

11 वर्ष पहले शुरू हुए स्काइप ने दुनियाभर के लोगांे को एक-दूसरे से जोड़ा था। देखते ही देखते तकनीक की मदद से आज नई-नई ह्यएप्लीकेशंसह्ण मुफ्त में शुरू हो गईं जिन्होंने परदेस में रहने वाले परिवारों की कमी को दूर कर दिया है। इनसे जब चाहे तब परिवार के सदस्य तकनीक का सहारा लेकर दूरी को मिटा रहे हैं। पुणे में रहने वाला जोगलेकर परिवार भी इसी का एक प्रत्यक्ष उदाहरण है।
पुणे में बैठे जोगलेकर दंपति प्रतीक्षा करते हैं, अमरीका के न्यूजर्सी में बसे अपने लड़के के कम्प्यूटर का कैमरा चालू होने का। उनकी लगभग रोज, पुणे में जब शाम या रात होती है तो जोगलेकर दंपति का न्यूजर्सी में रहने वाला लड़का अपना कम्प्यूटर चालू करता है। कैमरा चालू होता है और जोगलेकर पति-पत्नी को अपने बेटे के घर का कमरा दिखने लगता हैै। उस कमरे का प्रमुख आकर्षण उनकी ढाई वर्ष की पोती प्रथमेश़, उससे ये दोनों दादा-दादी खूब बात करते हैं। यही नहीं उसके मीठे तुतलाते बोल सुनते हैं और सुकून पाते हैं। मानों हजारों मीलों का ये अंतर एक पल में खत्म हो जाता है।
बात सिर्फ शाम या रात की नहीं है। पुणे में जब दिन की शुरुआत होती है तो न्यूजर्सी में रात होती है। पोती से बात कर अपने दिन की शुरुआत करना जोगलेकर दंपति को बहुत अच्छा लगता है। उनके लिए यह खुद को तरोताजा रखने का एक अच्छा साधन लगता है। जोगलेकर दंपति को अमरीका में रहना पसंद नहीं है। वहां जाने पर उन्हें 15-20 दिनांे में ही बोरियत होने लगती है। फिर पुणे की मित्रमंडली याद आने लगती है तो कभी पुणे में ब्याही बिटिया याद आने लगती है। आधुनिक तकनीक ने जोगलेकर की यह समस्या भी हल कर दी है। महाभारत में संजय जिस तरह से युद्धभूमि को प्रत्यक्ष देख सकता था, वैसे ही यह पति-पत्नी अमरीका में रह रहे अपने बेटे के घर को देखते हैं। थोड़ा फर्क है बस यह कि संजय को जो दिख रहा था, वह कष्टदायी था, उसके अलग अमरीका का यह ह्यदूरदर्शनह्ण दोनों दादा-दादी के लिए अत्यंत आनंददायी है। संजय युद्धक्षेत्र को केवल देख सकता था, किन्तु ये दादा-दादी न केवल देख सकते हैं, बल्कि अपने बेटे, बहू और अपनी प्यारी पोती से बातें भी कर सकते हैं। उनकी पोती भी उन्हें देखती है और उनसे तुतलाकर खूब बातें करती है।
यह दो खण्डों को जोड़ने वाली सुविधा लगभग मुफ्त में है। न्यूजर्सी में जोगलेकर का बेटा तीव्र गति के इंटरनेट का बिल भरता है क्योंकि वह एक दिन भी अपने माता-पिता से बिना बात किए नहीं रह सकता है। वहीं पुणे में जोगलेकर परिवार ने ब्रॉडबैंड का एक बेहतर प्लॉन लिया हुआ है। बस इतना ही नहीं इन दोनों के कम्प्यूटर में 'स्काइप' नाम का सॉफ्टवेयर डाला गया है। तकनीकी भाषा में इसे 'वॉइस ओवर आईपी' कहते हैं। शुरू के दौर में जोगलेकर जी को स्काइप का उपयोग करने में थोड़ी परेशानी आई, लेकिन जल्द ही उनके ध्यान में आया कि यह तो सरल है। बाद में उनकी पत्नी को भी यह उपयोग करते-करते सरल लगने लगा।
आज जोगलेकर दंपति अनेक परिवारों, अपने रिश्तेदारोंे, मित्रों और परिचितों से स्काइप के माध्यम से जुड़े हैं। उनके लिए स्काइप का उपयोग यानी महंगी अंतरराष्ट्रीय कॉल्स से छुट्टी मिलना साबित हो रहा है। दूर के लोगों का पास से दर्शन और प्रत्यक्ष बातचीत की एक सुखद अनुभूति होती है।
स्काइप अगस्त, 2003 में पहली बार दुनिया के सामने आया था। डेनमार्क के जॉन्स फ्रीस और स्वीडन के निकलस जेन्स्ट्रॉर्म ने पूर्वी यूरोप के अन्य साथियों के साथ मिलकर इस कल्पना को प्रत्यक्ष में उतारा था। शुरुआत में अत्यंत छोटी और अव्यावहारिक दिखने वाली इस कल्पना को आज दुनियाभर में 70 करोड़ से ज्यादा लोग उपयोग में ला रहे हैं, जिनमंे पुणे के जोगलेकर दंपति जैसे अनेक वृद्ध दंपति भी शामिल हैं। इसकी सेवाएं 38 भाषाओं में उपलब्ध हैं जिसमें नेपाली तो है पर हिन्दी या अन्य भारतीय भाषाएं नहीं हैं। हालांकि अगर उपयोगकर्ता विंडोज का प्रयोग कर रहा है तो कुछ अनुपात में 31 अन्य भाषाओं में स्काइप का प्रयोग हो सकता है, उनमें तमिल और तेलुगु जैसी भारतीय भाषाएं शामिल हैं। स्काइप की अनेक सेवाएं निशुल्क होने के बाद भी यह आर्थिक रूप से सफल कंपनी कहलाई। दुनिया की चर्चित ई-कॉमर्स साइट 'ई-बे' ने इसे वर्ष 2007 में 2.5 बिलियन अमरीकी डॉलर में खरीदा और लगभग 2 वर्ष बाद,2009 में इसका 65 फीसदी हिस्सा 1.9 बिलियन अमरीकी डॉलर में बेच दिया। इसके दो ही वर्ष बाद आईटी के सार्वभौम राजा, माइक्रोसॉफ्ट ने इसे 8.5 बिलियन डॉलर में खरीद लिया। इसको खरीदने के बाद माइक्रोसॉफ्ट ने अपना 'विंडोज लाइव मेसेंजर' का उत्पाद बंद कर दिया।
स्काइप की सफलता ही है कि इसने संचार संबंधी अनेक अवधारणाओं को तोड़ा और अनेक अवरोधों को दूर किया। दुनियाभर में फैला हुआ इंटरनेट नाम का अंतरजाल पहले मात्र कम्प्यूटरों को जोड़ने के लिए और उनके डाटा परिवहन में ही इस्तेमाल होता था। स्काइप ने इसे मानवी संभाषण करने के लिए बाध्य कर दिया। बाध्य इसलिए कि इंटरनेट की रचना मानवी संभाषण या लाइव वीडियो के लिए उपयुक्त नहीं है। दुनियाभर में यह 'वॉइस ओवर आईपी' का पहला सबसे बड़ा सफल प्रयोग था। इंटरनेट से, जैसे टेलीफोन पर बातें होती हैं, वैसे ही बातचीत हो सकती है, यह सिद्ध करके दिखाया। इससे अत्यंत महंगे अंतरराष्ट्रीय कॉल्स से लोगों को बहुत अंशों में छुटकारा मिला। अगर हम कम्प्यूटर से कम्प्यूटर संभाषण करते हैं, वीडियो भेजते हैं तो हमें किसी अतिरिक्त शुल्क की आवश्यकता नहीं है। केवल अपने मासिक इंटरनेट शुल्क को छोड़कर। स्काइप ने अभी 'ग्रुप वीडियो कॉल' भी मुफ्त कर दिए हैं। इससे निचले और मध्यम उद्योगों को सस्ते में 'वीडियो कान्फ्रेंसिंग' की सुविधा प्राप्त हो सकेगी।
वर्ष 2012 में की गई कुल अंतरराष्ट्रीय कॉल्स में स्काइप द्वारा हुई कॉल्स की संख्या 34 फीसदी थी। यह लगातार बढ़ रही है और अभी पिछले 2-3 वर्षों से मोबाइल फोन से स्काइप का उपयोग करना और भी आसान हो गया है। यही कारण है कि स्काइप द्वारा किए जा रहे अंतरदेशीय और अंतरराष्ट्रीय कॉल्स की संख्या में वृद्धि हो रही है।
किन्तु क्या स्काइप द्वारा किये गए कॉल सुरक्षित हैं? या स्काइप के माध्यम से की गई वीडियो कान्फ्रेंस सुरक्षित है? इसका उत्तर मिलना कठिन है, वैसे तो इंटरनेट में कुछ भी पूर्णत: सुरक्षित नहीं है, किन्तु स्काइप ने शुरुआती दौर में अपने आप को 'सुरक्षित संचार' का माध्यम बताया था। शुरू से अंत तक एन्क्रप्शिन की भी बात की गयी थी। 25 जून, 2008 को हुई एक बैठक में जिसमें 'असंवैधानिक या गैरकानूनी तरीके से इंटरनेट की बातें सुनना' इस विषय पर चर्चा हुई थी। चर्चा के दौरान ऑस्ट्रिया के गृह मंत्रालय में काम करने वाले उच्च अधिकारी ने यह बताया कि वे लोग आसानी से स्काइप पर होने वाली बातें सुन सकते हैं।
ऑस्ट्रिया के दूरदर्शन चैनल 'ओआरएफ' ने इस पूरी बैठक का समाचार दुनिया में प्रसारित किया तो संचार जगत में हड़कंप मच गया। हालांकि स्काइप ने इस विषय को नकारने का प्रयास किया था, किन्तु वह सफल न हो सका। इसके बाद स्काइप ने अपनी संचार प्रणाली को अधिक सुरक्षित बनाने के कई प्रयास किये। इसमें ऑटोमैटिक अपडेट शुरू किये गए, ताकि स्काइप का प्रयोग करने वालों को अधिक सुरक्षा मिल सके। लेकिन हमेशा की तरह 'हैकर्स' ने प्रयोगकर्ताओं के 'आईपी एड्रेस' निकालकर स्काइप में सेंध लगा दी। वर्ष 2012 में स्काइप पर 'विकीलिक्स' को कुछ डाटा देने का आरोप लगा था। आज भी अमरीकी सरकार की 'प्रिज्म' परियोजना लोगों के सामने आने के
बाद सुरक्षित नहीं है। यह सर्वमान्य धारणा बनी हुई है। इन सब के बावजूद भी स्काइप का उपयोग बढ़ रहा है क्योंकि सर्वसामान्य लोगों का मानना है कि उनके निजी और सामान्य संभाषण किसी अन्तरराष्ट्रीय एजेंसी की रुचि के नहीं हो सकते तो फिर स्काइप का प्रयोग करने में डर किस बात का है?
लेकिन माइक्रोसॉफ्ट ने स्काइप को अपने स्वामित्व में लेने के बाद भी इंटरनेट टेलीफोन या इंटरनेट से वीडियो चैटिंग में अब स्काइप का एकाधिकार नहीं बचा है। अनेक छोटी-बड़ी कंपनियां इस क्षेत्र में टक्कर देने के लिए आगे आई हैं। मात्र 4 वर्ष पुरानी 'वाइबरह्ण ने एक बहुत बड़े उपयोगकर्ताओं का वर्ग खड़ा किया है। मूलत: मोबाइल पर 'वॉइस ओवर आईपी' के लिए बनी यह एप्लीकेशन आई फोन और एन्ड्राइड, दोनों के लिए अत्यंत लाभकारी है। अब तो यह स्काइप को सीधी टक्कर देने के लिए डेस्कटॉप पर भी उपलब्ध है। चार इजराइली नवयुवकों ने प्रारंभ में हुई इस कंपनी की सफलता तथा उसके 20 करोड़ से भी ज्यादा उपयोगकर्ता देखते हुए जापान में ई-कॉमर्स की नामी राकुतेन कंपनी ने इसे अभी दो महीने पहले ही 900 मिलियन अमरीकी डॉलर में खरीदा है। आने वाले दिनों में ऐसे अनेक नाम इस क्षेत्र में उभर सकते हैं। विकर, 'वाट्स-एप' जैसे एप्लीकेशन तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं। 'वॉइस ओवर आईपी' का बहुत बड़ा बाजार अभी और खंगाला जाना बाकी है।
-प्रशांत पोल

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