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-अतुल अंजान, प्रवक्ता, भाकपा
मुजफ्फरनगर की घटनाओं ने इंसानियत को शर्मसार किया, पहली बार साम्प्रदायिक विद्वेष गांव तक पहुंच गया। सरकार, शासन और संकीर्ण साम्प्रदायिक सोच के संगठन इसके लिए पूरी तरह जिम्मेदार हैं। जो मर गए उन्हें तो वापस नहीं लाया जा सकता, केवल दु:ख ही व्यक्त किया जा सकता है। भविष्य में कोई दल अपने निहित स्वार्थों के लिए ऐसे प्रकरण प्रायोजित न करे तभी लोकतंत्र बचेगा।
भारतीय संस्कृति मिलजुलकर रहने का आह्वान करती है उसकी रक्षा हम सभी को करनी होगी। देश के संविधान से बड़ा कोई ग्रंथ नहीं है और लोकतंत्र से बड़ी कोई शासन पद्धति नहीं हो सकती। भारत में हर एक नागरिक को अपने धर्म और पूजा पद्धति को अपनाने की इजाजत है लेकिन कुछ सीटों और वोटों के लिए ऐसा कराया जाना ठीक नहीं, इसकी जितनी भर्त्सना की जाए वह कम है। ऐसी ताकतों के विरुद्ध जनता और सरकार को सख्त कदम उठाकर उन्हें हाशिए पर धकेलने का प्रयत्न करना चाहिए। आज के दौर की मांग और भारत में लोकतंत्र को सुदृढ़ करने का यही ठोस उपाय है।
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