60 वर्ष पहले पाञ्चजन्यके पन्नों से
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24 अप्रेल को गूंजउठेगी-'शब्द वापिस लो वरना गद्दी छोड़ दो'
विधान घाती नेहरू,नहीं चाहिए
ह्यमैं प्रधानमंत्री पद छोड़ने के लिए प्रस्तुत हूं पर गोहत्या निरोध कानून पर लाए गए विधेयक को पास न होने दूंगा' कहकर श्री नेहरू ने भारतीय जनता की हृदयस्थ भावना पर जिस प्रकार का कठोर प्रहार किया है उससे जनता तिलमिला उठी है। राजधानी में यह रोष स्पष्ट लक्षित हो रहा है। नेहरू जी ने ऐसी घोषणा कर देश के संविधान का भी भारी अपमान किया है और इसलिए राजधानी में कांग्रेसी तथा गैर कांग्रेसी सभी क्षेत्रों में इस प्रकार की चर्चा है की यदि भारतीय जनमत तथा भारतीय संविधान की आज्ञा का उल्लंघन नेहरू जी करना चाहते हों तो उन्होंने कल नहीं आज ही अपना इस्तीफा देना चाहिए।
भारतीय संविधान की धारा 48 के अनुसार ऐसा स्पष्ट निर्देश किया गया है कि 'गाय और बछड़ों की हत्या रोकने के लिए राज्य कार्यवाही करें। 'ऐसी स्थिति में प्रधान मंत्री तो क्या देश के किसी भी नागरिक के द्वारा किसी भी प्रकार का किया गया विरोध संविधान के प्रति द्रोह समझा जावेगा। संविधान का यह निर्देश जब तक बना है तब तक भारत का कोई भी प्रधान मंत्री इस पद पर रहकर गो वध पर रोक लगाने के विरुद्ध नहीं बोल सकता। प्रधान मंत्री संविधान का रक्षक होता है।यादि वह यह कार्य नहीं कर सकता तो उसके लिए यही आवश्यक है कि वह तत्क्षण अपने पद से इस्तीफा दे दे।
शेख अब्दुल्ला से इतना प्रेम क्यों?
मुकदमा क्यों नहीं चलाया जाता?
शेखअब्दुल्ला के काले कारनामों को ढंकने का यत्न किया जा रहा है। आश्चर्य,दुर्भाग्य और क्षोभ की बात तो यह है कि इस कार्य में स्वयं प्रधान मंत्री श्री नेहरू रुची ले रहे हैं ।प्रश्न साधारण सा यह है कि नेहरू जी ऐसा क्यों कर रहे हैं? हत्यारे,षडयत्रकारी,देशद्रोही शेख के प्रति नेहरूजी के मन में यह सहानुभूति क्यों? बार-बार बख्शी गुलाम मुहम्मद द्वारा ऐसी घोषणा करने पर भी कि शेख के भीषण कृत्यों को कोर्ट के समक्ष प्रगट किया जा सकता है नेहरूजी उस पर मुकदमा क्यों नहीं चलने देते? एक स्वर से भारतीय जनता ने जिसे गद्दार कहकर डॉ मुखर्जी की हत्या के लिए जिम्मेदार ठहराया उसे नेहरू जी अपने दामन में छिपाना क्यों चाहते हैं?
देशभक्त डॉ. मुखर्जी हों या देशद्रोही हत्यारा शेख दोनों के बिना कारण बताए जेल में ठूंस कर नहीं नहीं रखा जा सकता । नेहरूजी को चाहिए कि वे डॉ मुखर्जी को ,बिना कारण बताए जेल में ठूंस कर रखने के घोर अप्रजातान्त्रिक कार्य के लिए शेख से जवाब मांगे, रहस्यपूर्ण,सुनसान भरी,अन्धेरी रात में श्रीनगर के नर्सिंग होम में डॉ अली मोहम्मद के हाथों डॉ मुखर्जी के जीवन के साथ किये गए खिलवाड़ के षडयन्त्र के लिए शेख पर मुकदमा चलाए,विदेशों के साथ सौदे तय कर,तारीखें निश्चत कर जिन 25 फाइलों को लेकर शेख अब्दुल्ला 8 अगस्त 1953 को श्रीनगर से गुलमर्ग गए थे और जिन्हें उसकी गिरफ्तारी के समय जप्त किया गया है और जिनमें स्टीवेन्सन-शेख अब्दुल्ला की बातचीत का वह ब्यौरा है जिसके अनुसार शेख 14 अगस्त को स्वतंत्र कश्मीर की घोषणा भी करने वाले थे -निकालकर कोर्ट और जनता के सामने रखें और शेख की इस आखिरी लालसा को कि उसकी भूलें बताइ जांय पूर्णकर उसे उसके योग्य स्थान फांसी के तख्ते पर भेजा जाय । डॉ मुखर्जी के हत्यारे को जेल खाना नहीं मृत्युदंड चाहिए।
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