चोर दरवाजे से दबे पांव
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चोर दरवाजे से दबे पांव

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Apr 19, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 19 Apr 2014 15:32:48

 

ऑन लाइन व्यापार में उतरीं विदेशी कंपनियां

-डॉ़ अश्विनी महाजन-

आजकल देश के बाजारों में खरीदारी के लिए नई पीढ़ी के लोग एक नये प्रकार के माध्यम का उपयोग कर रहे हैं, जिसका नाम है ई-कामर्स। रेलवे टिकट हो, हवाई टिकट अथवा घरेलू सामान या किताबों की खरीद, सभी में ई-कामर्स का बोलबाला बढ़ता जा रहा है। देश में कई किस्म की ई-कामर्स कंपनियां वस्तुओं के प्रकार के आधार पर काम करती हैं तो साथ ही ऐसी कंपनियां भी हैं जो सभी चीजों और सेवाओं की ऑन लाईन बिक्री का व्यवसाय कर रही हैं। देश का कानून अभी तक विदेशी कंपनियों को देश के खुदरा व्यापार में ई-कामर्स की अनुमति नहीं देता। लेकिन उसके बावजूद कई विदेशी कंपनियां देश के बाजार में अनधिकृत रूप से सेंध लगा रही हैं।
गौरतलब है कि जून 2013 में ह्यएमेजॉनह्ण नाम की एक विदेशी ई-कामर्स कंपनी ने भारत में अपना काम ह्यएमेजॉन डॉट इनह्ण के नाम से प्रारंभ किया। चूंकि यह कंपनी भारतीय कानूनों के मुताबिक स्वयं सामान खरीद कर नहीं बेच सकती इसलिए यह अपने पोर्टल पर अन्य छोटे-बड़े खुदरा व्यापारियों को स्थान देकर एक प्लेटफार्म प्रदान करने के नाम पर खुदरा व्यापार में घुसपैठ कर चुकी है। इस कंपनी ने जब
अपना काम प्रारंभ किया था तो उसके पास 12000 फिल्मों और 70 लाख किताबों के साथ-साथ कई अन्य विश्वव्यापी टाइटल बिक्री के लिए उपलब्ध थे। बाद में इस कंपनी ने मोबाइल फोन से लेकर तमाम इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादों तक अपना व्यवसाय फैला लिया है। चूंकि यह कंपनी सीधे तौर पर खुदरा व्यापार नहीं कर सकती, इसलिए एक तरह से चोर दरवाजे से आने के लिए उसने इस प्रकार के मॉडल का सहारा लिया।
कंपनी का दावा है कि इस मॉडल के माध्यम से उसने भारत में प्रवेश में पहली रुकावट यानी खुदरा ई-कामर्स में विदेशी निवेश के प्रतिबंध से पार पा लिया है। इसी प्रकार ई-बे नाम की ई-कामर्स कंपनी भी अपने पांव भारत के बाजार में पसार रही है।
ई-कामर्स है फायदेमंद
कहते हैं कि नई तकनीक को कोई रोक नहीं सकता और कितने भी विरोध के बावजूद उसे तो आना ही होता है। जाहिर है कि व्यापार में कुशलता का मतलब है कम से कम लागत में उपभोक्ताओं तक ज्यादा से ज्यादा चीजों और सेवाओं की बेहतर तरीके से पहुंच बने और लोगों के जीवन स्तर में सुधार हो। इस नाते ई-कामर्स फायदे का सौदा साबित हुआ है। चूंकि इंटरनेट के माध्यम से बिक्री होने के कारण स्थापना लागत तो कम होती ही है, चालू लागत में भी किफायत होती है, इसलिए ऑनलाईन चीजें सस्ती मिल जाती हैं। इस प्रकार से ई-कामर्स का कुछ लाभ उपभोक्ता को भी मिलता है। वस्तुएं खरीदना भी आसान होता है क्यांेकि दुकान पर जाने की जरूरत ही नहीं होती। पैसे का लेन-देन भी आसान है, क्योंकि ऑनलाईन क्रेडिट कार्ड या डेबिट कार्ड से भी पैसा दिया जा सकता है या फिर घर में सुपुर्दगी के साथ भी। पिछले लगभग 8-10 सालों के दौरान इंटरनेट से रेल, हवाई और बस यात्रा की टिकटों की बिक्री इस कदर बढ़ी है कि रेल और हवाई टिकटों में 70 प्रतिशत खरीद इंटरनेट से होती है।
यदि संचार साधनों की बात करें तो पिछले दो दशकों के दौरान, पहले से इनमें कहीं ज्यादा प्रगति हुई है। पिछले दो दशकों में इलेक्ट्रॉनिक्स की क्रांति ने जन-जीवन इतना बदल दिया है कि आज के युग में खासतौर पर युवा वर्ग में जिन उपकरणों यानी गेजेट्स पर चर्चा होती है, उसकी शायद कल्पना भी आज से दो दशक पहले नहीं की जाती थी। आज युवा वर्ग जिस ह्यवॉट्स एपह्ण और ह्यफेसबुकह्ण की बात करता है, शायद वह दो दशक पहले स्वप्न की बातें रही होंगी। लेकिन इलेक्ट्रॉनिक्स में इस प्रगति से केवल संचार सुविधाओं में ही बदलाव नहीं आया, बल्कि इसने व्यापार में भी मूलभूत परिवर्तन ला दिया है। इंटरनेट अब न केवल ह्यटेलीकॉमह्ण यानी संदेश भेजने तक सीमित नहीं है, व्यापार में भी इससे क्रांति आ गई है। ई-कामर्स भी उसी क्रांति का हिस्सा है। इलेक्ट्रॉनिक्स, फैशन, ज्वैलरी, घडि़यां, परफ्यूम और अन्य प्रकार की चीजों की बिक्री अब ई-कामर्स में विशेष आकर्षण का केन्द्र बनी हुई है। सिनेमा तक की टिकटों की बिक्री के लिए अब ई-कॉमर्स पोर्टल बन गए हैं। आज देश में 15 करोड़ लोग इंटरनेट का उपयोग कर रहे हैं, जिसमें से 80 प्रतिशत के लगभग शहरों में हैं। स्मार्टफोन और टेबलेट्स (लघु लेपटॉप) के चलन से इंटरनेट का चलन और अधिक बढ़ा है। अब तो ई-कॉमर्स कंपनियां अपने-अपने व्यापार को बढ़ाने की कवायद में स्मार्टफोन और टेबलेट्स के लिए खास एप्स (एप्लिकेशन) उपलब्ध कराने लग गई हैं।
आज भारत में हजारों वेबसाइटों के माध्यम से ई-कामर्स का व्यवसाय चल रहा है। फ्लिपकार्ट, होम शॉप 18, स्नैपडील, इंडिया टाइम्स शॉपिंग, मेक माई ट्रिप, यात्रा डॉट कॉम सरीखी बहुत सी बड़ी भारतीय कंपनियां इस क्षेत्र में काम कर रही हैं। अब इस क्षेत्र में भी एकाधिकार जमाने की प्रवृत्ति शुरू हो गई है और हाल ही में कई बड़ी कंपनियों ने छोटी कंपनियों को अधिग्रहित करना शुरू कर दिया है। जैसे स्नैपडील ने एसपोर्टबाए डॉट कॉम, ट्रेवल गुरू का यात्रा डॉट कॉम द्वारा, शेरसिंह का मिंट्रा डॉट कॉम द्वारा अधिग्रहण हाल ही में किया गया है।
दोहराया जा रहा है इतिहास
गौरतलब है कि भारी विरोध, आंदोलनों और राजनीतिक ड्रामेबाजी के बीच अत्यंत शर्मनाक तरीके से खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश को अनुमति दे दी गई और उसके साथ ही वालमार्ट, कारफूर, टेस्को समेत कई बड़ी कंपनियों के भारत में प्रवेश के लिए रास्ता खुल गया। लेकिन इस अनुमति मिलने यानी देश के कानून में बदल होने से लगभग एक दशक पहले से ही इसके लिए विदेशी कंपनियों की कवायद शुरू हो गई थी। बहुत पहले ही विदेशी कंपनियों ने देश के बाजार में चोरी छिपे अपनी पहुंच बनानी शुरू कर दी थी। गौरतलब है कि देश में थोक व्यापार के नाम पर पहला मेट्रो कैश एण्ड कैरी स्टोर बंगलूरू में खुला। तब भी स्वदेशी जागरण मंच समेत कई जन संगठनों और व्यापारियों के विरोध का उसे सामना करना पड़ा था। लेकिन सरकारी मशीनरी के सहयोग से देश के कानूनों को धता बताते हुए कई कंपनियों ने थोक व्यापार के नाम पर खुदरा सामान की बिक्री का धंधा जारी रखा। बाद में भारती के साथ मिलकर वालमार्ट ने व्यापक रूप से इस व्यापार में प्रवेश करने की बड़ी कोशिश की। यानी चोर दरवाजे से भारत के बाजार पर कब्जा करने की विदेशी कंपनियों की कवायद जारी रही। लेकिन यह सही है कि छोटे व्यापारियों की तबाही करते हुए, स्टोर सजाकर फुटकर सामान बेचने की उनकी इच्छा तब तक पूरी नहीं हो सकी, जब तक खुदरा में विदेशी निवेश के लिए कानून नही बना। उसी प्रकार से अभी खुदरा ई कामर्स में विदेशी निवेश को अनुमति नहीं है। लेकिन उस अनुमति का इंतजार किए बिना वैश्विक ई-कामर्स कंपनियों ने भारत में ऑनलाईन व्यापार करने के अपने मंसूबों को अंजाम देना शुरू कर दिया है। और इसी रणनीति के तहत एमेजॉन, ई-बे सरीखी कंपनियां अपनी शाखाएं भारत में खोलती जा रही हैं। उनकी योजना यह है कि अभी तो छोटे व्यापारियों को ई-कॉमर्स प्लेटफार्म प्रदान करने के नाम पर अपना वर्चस्व बढ़ाया जाए और जैसे ही ई-कामर्स में विदेशी निवेश की अनुमति मिले, वैसे ही सारे बाजार को कब्जा लिया जाए।
इंतजार नीति में परिवर्तन का
कहा जा रहा है कि एमेजॉन ने इस प्रकार भारत के बाजार में अभी केवल प्रवेश करने का काम किया है, इसका वास्तविक खेल तो तब शुरू होगा जब खुदरा ई-कामर्स में सरकार विदेशी निवेश की अनुमति दे देगी। गौरतलब है कि एमेजॉन का वास्तविक काम वे चीजें खरीदकर उनको ऑन लाईन बेचने का ही है, जिससे उसने 2012 में वैश्विक व्यवसाय में 61 अरब डालर कमाए यानी 3,66,000 करोड़ रुपए कमाए थे। इस इंतजार में कि भारत सरकार ई-कामर्स में विदेशी निवेश को देर-सबेर अनुमति देने ही वाली है, इस कंपनी ने अभी भारत में ऑनलाईन मार्केट प्लेटफार्म उपलब्ध कराने के नाम पर प्रारंभिक प्रवेश कर लिया है। वैसे एमेजॉन का भारत के अलावा 11 और देशों में व्यापार है। 15 साल पहले अस्तित्व में आने के बाद इस कंपनी ने अपने पंख काफी पसार लिये हैं। अमरीका और चीन का ई-कामर्स का व्यवसाय क्रमश: 220 अरब डालर और 197 अरब डालर है। चीन में एमेजॉन सबसे लंबे समय से है। भारत में अभी यह व्यापार 13 से 14 अरब डालर का ही है, यानी भारत में एमेजॉन आने वाले समय में बड़ी हिस्सेदारी की फिराक में है। वैश्विक तौर पर एमेजॉन 40 प्रकार के उत्पादों में व्यवसाय करती है और उसके पास 20 लाख रीटेलर पंजीकृत हैं, दस करोड़ ग्राहकों तक इसकी पहुंच है। अभी भारत में प्रारंभिक तौर पर इसने 13 उत्पादों में ही व्यापार शुरू किया था लेकिन अभी वह उन्हें बढ़ाती जा रही है।
खुदरा ई-कामर्स में विदेशी निवेश है खतरनाक
यह सही है कि खुदरा ई-कामर्स, नई तकनीक पर आधारित है और लाभकारी भी है। इसके कारण उपभोक्ताओं को सामान और सेवाएं सस्ती और आसानी से मिल जाती हैं। ई-कॉमर्स को रोका नहीं जा सकता, यह भी सही है। लेकिन ई-कामर्स में विदेशी कंपनियांे का प्रवेश देश और अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा संकेत नहीं है। विदेशी कंपनियां बड़ी हैं और उनका व्यापार विश्वव्यापी है। भारतीय ई-कामर्स कंपनियां छोटी या बड़ी, देश से ही सामान खरीदकर अपनी वेबसाइट पर बेचती हैं। इसलिए देश के उत्पादकों को ई-कामर्स से वृहत् बाजार भी मिल पाता है। लेकिन विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियों के लिए ऐसी कोई बाध्यता नहीं है कि वे देशी उत्पादकों से ही माल खरीदें। ऐसे में विदेशी ई-कामर्स कपंनियों के चलन से इस बात की पूरी आशंका है कि देश के उत्पादन तंत्र, खास तौर पर लघु और कुटीर उद्योगों को नुकसान होगा। ई-कामर्स में विदेशी निवेश उनके लिए मौत का पैगाम सिद्घ हो सकता है। अभी जिस प्रकार से देश में नियमों को
ताक पर रखते हुए विदेशी कंपनियां चोर दरवाजे से ई-कामर्स में आने लगी हैं, उससे भविष्य के खतरे साफ दिखाई देने लगे हैं। जरूरत इस बात की है कि नीति-निर्माता देशहित में विदेशी ई-कामर्स कंपनियों पर प्रतिबंध लगाते हुए लघु और कुटीर उद्योगों की सुरक्षा सुनिश्चित करें।

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