इतिहास गवाह है कि जितनी जल्दी गुजरात दंगों पर नियंत्रण हुआ उतना अन्य स्थानों पर नहीं हुआ
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इतिहास गवाह है कि जितनी जल्दी गुजरात दंगों पर नियंत्रण हुआ उतना अन्य स्थानों पर नहीं हुआ

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Apr 12, 2014, 12:00 am IST
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सच खंगालती किताबें

दिंनाक: 12 Apr 2014 13:38:44

नरेन्द्र मोदी को जिस दिन भारतीय जनता पार्टी ने अपने भावी प्रधानमंत्री के रूप में घोषित किया,उस दिन अचानक गूूगल सर्च इंजन में उनके नाम को ह्यसर्चह्ण करने वालों की बाढ़ आ गई। दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमरीका के राष्ट्रपति बराक ओबामा को पीछे छोड़ नरेन्द्र मोदी आगे बढ़े और वहां पहंुच गए,जहां पहंुचना अगले कई वर्षों तक किसी राजनेता के लिए संभव नहीं हो सकेगा। 13 सितम्बर, 2014 को उन्हें दुनिया के 1 अरब 77 करोड़ से अधिक लोगों ने गूगल में ह्यसर्चह्ण किया। इससे एक सवाल उठता है कि क्या वाकई नरेन्द्र मोदी दुनिया में इतने प्रसिद्ध हैं? अगर ये बात सही है तो फिर उनके इतने दुश्मन क्यों हैं ? 2002 के बाद से उन्हें देश और दुनिया के सामने ऐसे पेश किया गया जैसे वे ही गोधरा दंगे के प्रमुख दोषी हों। इन्हीं तमाम विषयों को आधार बनाते हुए साहित्यकारों,पत्रकारों और लेखकों की हाल ही में नरेन्द्र मोदी पर एक दर्जन से ज्यादा पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं, जिनमें उनके जीवन,गुजरात मॉडल,उनकी नीतियों और 2002 के बाद से उनके खिलाफ जितने भी षड्यंत्र हुए सभी को उजागर किया गया है। अधिकतर पुस्तकें पूरी तरह तथ्यों पर आधारित हैं। ये पुस्तकें जहां पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण में चर्चा का केन्द्र बनी हुई हैं वहीं उनके आलोचकों को भी खुराक उपलब्ध करा रही हैं। मोदी के आलोचक इन पुस्तकों को पढ़कर जहां अपनी आलोचना जारी रख सकते हैं वहीं दूसरा पहलू यह होगा कि तथ्यों की आंच में तपकर निखरा सच सबके सामने आएगा।

साजिश की कहानी तथ्यों की जुबानी: कुछ बिन्दु

20 घंटे में सेना पहुंची,72 घंटे में दंगों पर नियंत्रण

मोदी सरकार ने दंगे में फंसे 24 हजार मुसलमानों को बचाया

2002 में 6000 हाजी हज करके गुजरात लौट रहे थे,सरकार ने सभी को सुरक्षित उनके घरों तक पहुंचाया।

1947-2002 के बीच कांग्रेस के शासन में 10 हजार से ज्यादा दंगे हुए ।

मोदी मंत्र: कुछ बिन्दु

नरेन्द्र मोदी की विभिन्न क्षेत्रों के प्रति नीति

मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के 101 कारण

नरेन्द्र मोदी दर्शन

नमो वाणी:

विभिन्न विषयों पर नरेन्द्र मोदी के ओजस्वी-प्रेरक विचार

कैसे गुजरात अन्य राज्यों से अलग है

गुजरात में चल रहीं महत्वपूर्ण योजनाएं

कॉमनमैन नरेन्द्र मोदी: कुछ बिन्दु

कैसे कामयाब हुआ गुजरात

पूरी दुनिया के मीडिया के आईने में मोदी

विकास के सौ कदम

प्रशासन पर पकड़

देश के सोलहवें लोकसभा चुनाव में किताबें भी अपना रंग दिखा रही हैं। ई-शॉपिग पोर्टल से लेकर किताबों की दुकानों तक पर मोदी पर लिखी एक दर्जन से अधिक किताबें छाई हुई हैं। इन किताबों में प्रमुख रूप से उनके जीवन से लेकर उनकी राजनीतिक यात्रा,विचार,कार्य कौशल और भाषणों एवं 2002 के बाद से विरोधियों द्वारा किस प्रकार उनको षड्यंत्रपूर्ण फंसाने की कुचेष्टा की गई उसका पूरा तथ्यात्मक वर्णन मिलता है। चुनावी मौसम में किताबों की आमद को ह्यबुक वारह्णनाम दिया गया है। जहां लोकसभा चुनाव के पहले मोदी मैदान पर अपने विरोधियों के छक्के छुड़ा रहे हैं वहीं पुस्तकों के युद्ध में भी दूर-दूर तक उनसे मुकाबला करने के लिए कोई नजर नहीं आ रहा है। जिस कांग्रेस पार्टी ने चमकाते हुए अपने युवराज राहुल गांधी को मोदी के समक्ष चुनाव मैदान में जबरन प्रस्तुत किया है, वे पुस्तकों तक के युद्ध में मोदी के सामने नहीं टिक पा रहे हैं। आंकड़ों की बात करें तो अभी हाल ही में दिल्ली में हुए विश्व पुस्तक मेले में मोदी पर लिखी पुस्तकोंे की अच्छी खासी बिक्री हुई। लम्बे अरसे के बाद किसी राजनेता पर एक दर्जन से ज्यादा किताबें छपी हैं। अपने आप में यह एक महत्वपूर्ण बात है। देश की प्रमुख भाषाओं हिन्दी, मलयालम, अंग्रेजी, गुजराती, मराठी,पंजाबी और बंगला में इनका प्रकाशन हो चुका है। इतनी बड़ी तादाद में एक ही व्यक्ति पर पुस्तकोंं का प्रकाशन बुद्धिजीवी वर्ग में उनकी स्वीकार्यता और लोकप्रियता की ओर संकेत करता है। क्यांेकि कोई भी लेखक पहले विषय की गहराई में जाकर तथ्यों को खंगालता है और फिर उस तथ्य के साथ वह अपनी बात को पुस्तक रूप में आकार देता है। ये तमाम किताबें नरेन्द्र मोदी की राजनीतिक यात्रा का सच बताती हैं, साथ ही ये बताती हैं कि कैसे उन्हें फंसाने के लिए एक जाल बिछाया गया था,लेकिन मोदी ने अपने विवेक और अपनी नीति का प्रयोग कर उन सबको मात ही नहीं दी बल्कि बुद्धि के कौशल से पूरी दुनिया में छा गए हैं।

हाल ही में पत्रकार संदीप देव की पुस्तक ह्यसाजिश की कहानी तथ्योंे की जुबानीह्णप्रकाशित हुई है। यह पुस्तक कई मायनों में अलग है,क्योंकि यह उनके विकास मॉडल पर आधारित न होकर 12 वर्ष के षड्यंत्रकारी दुष्प्रचार की कलई खोलती है। पुस्तक की खास बात यह है कि इसमें 27 फरवरी,2002 से लेकर फरवरी,2014 तक मोदी से जुड़ी प्रत्येक घटना का जिक्र है। पुस्तक पूरी तरह तथ्य पर आधारित है। गोधरा से लेकर अब तक नरेन्द्र मोदी को घेरने के लिए जिस-जिस पंैतरे को आजमाया गया और जिन-जिन लोगों को उनके खिलाफ खड़ा किया गया,उन सभी चेहरों और उनके द्वारा रची गई साजिशों का पर्दाफाश तथ्यों के साथ प्रस्तुत किया गया है। गोधरा-गुजरात पर अब तक आए अदालती आदेशों से लेकर एसआईटी एवं अन्य जितनी भी रपटें रही हैं ,उन्हें पुस्तक का आधार बनाया गया है। यह पुस्तक आरोप-प्रत्यारोप का दस्तावेज न होकर प्रामाणिक तथ्यों पर आधारित है। लेखक ने भारतीय मीडिया की हकीकत से रू-ब-रू कराते हुए लिखा है-ह्यदेश का मीडिया गुजरात की तो बात करता है ,लेकिन 59 राम भक्तों को जिन जिहादियों और कांग्रेसियों ने मिलकर जिंदा जलाया था,उन पर बात क्यों नहीं करता? और मीडिया कभी भी उन जलाए गए रामभक्तों को हिन्दू नहीं लिखता, क्यों? बल्कि गुजरात दंगों में मीडिया ह्यमुसलमानों का नरसंहारह्ण जैसे साम्प्रदायिक शब्दों का लगातार प्रयोग करता रहा है आखिर क्यों? ये तमाम सवाल आज देश के सामने हैं,जिनका उत्तर देश की जनता मांग रही है।यह भी अब किसी से छिपा नहीं है कि गोधरा कांड में कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की संलिप्तता थी, जिसे जस्टिस तेवतिया कमेटी ने उजागर किया है। उसने अपनी रपट में उल्लेख किया है कि हाजी बिलाल,जिला कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष फार्रुख बाना व गोधरा नगर पालिका में कांग्रेस पार्टी का सक्रिय सदस्य अब्दुल रहमान दांतिया साबरमती एक्सप्रेस को जलाने में बहुत ही सक्रिय रहे थे। पुस्तक में बड़ी प्रमुखता व तथ्यों के साथ गुजरात व गोधरा कांड में कांग्रेसी नेताओं की कारगुजारियों व उनकी घिनौनी मानसिकता और इसके साथ मोदी को घेरने के लिए कांग्रेस ने किस प्रकार नौकरशाहों का सहारा लिया उन सभी विषयों को तथ्यों के साथ प्रस्तुत किया है।गुजरात दंगा मामले में खुद को सेकुलरवाद की सबसे बड़ी पैरोकार साबित करने वाली तीस्ता सीतलवाड़ का भी चेहरा पुस्तक में उजागर हुआ है। लगातार विदेशी हस्तकों के इशारे पर काम करने वाली तीस्ता गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को फंसाने के लिए किस प्रकार नकली सबूत पैदा करने से लेकर असली सबूत नष्ट करने का खेल खेलती रही हैं, यह उनके पूर्व साथी रईस खान की गिरफ्तारी व उसके बयान से स्पष्ट हो चुका है। उनके द्वारा मोदी पर लगाए गए एक-एक आरोप को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) ने किसी खास मतलब से प्रेरित और झूठ करार दिया है। साथ ही एसआईटी ने अपनी रपट में यह भी साफ किया है कि 2002 में भड़के दंगों पर नरेन्द्र मोदी ने पूर्ण नियंत्रण के हरसंभव कदम उठाए थे। एसआईटी ने अप्रैल 2009 में सर्वोच्च न्यायालय के जज न्यायमूर्ति अभिजीत पसायत,पी.सदाशिवम और आफताब आलम की पीठ के समक्ष पेश रपट में कहा था कि सेलिब्रिटीज सामाजिक कार्यकर्ता और कुछ मानवाधिकार कार्यकर्ता दंगों में हुई कई मौतों के बारे में झूठ की खिचड़ी पका रहे हैं। दंगे और मौत की कई घटनाएं बिल्कुल झूठी और तथ्यहीन हैं और इन काल्पनिक घटनाओं को सही साबित करने के लिए झूठे गवाह भी पेश किए गए हैं। यह पुस्तक कांग्रेस के उन सभी षड्यंत्रों को उजागर करती है,जो उसने मोदी के खिलाफ रचे थे। तीस्ता सीतलवाड़ की तथाकथित सामाजिक भूमिका,तहलका के स्िंंटग ऑपरेशन और अरविन्द केजरीवाल के गजुरात मॉडल पर प्रश्न खड़े करना इसी कांग्रेसी पाठ के अलग-अलग सोपान कहे जा सकते हैं।मोदी पर केन्द्रित इसी श्रंृखला की अगली कड़ी है हरीश चन्द्र बर्णवाल द्वारा लिखित पुस्तक ह्यमोदी मंत्रह्ण। हाल के कई वर्षों में यदि किसी शख्स के साथ मीडिया ने सबसे ज्यादा ज्यादती की है तो वे नरेन्द्र मोदी हैं। अगर किसी राजनेता के साथ सबसे ज्यादा मीडिया ट्रायल करने की कोशिश की गई तो वे नरेन्द्र मोदी ही हैं। क्या इस देश में दंगे नहीं हुए? मोदी के सत्ता में आने से पहले और बाद में हजारों दंगे हुए,लेकिन गुजरात दंगों में उन्हें ऐसे पेश किया गया,मानो वे ही सबसे बड़े दोषी हों। लेखक हरीश चन्द्र बर्णवाल की पुस्तक ह्यमोदी मंत्रह्ण ऐसे ही अनेक सवाल उठाती है। साथ ही उनके गुजरात मॉडल को जनता के सामने रखती है। लेखक लिखते हंै-एक सवाल ये उठता है कि आदर्श की बातें तो सभी करते हैं पर हकीकत ये है कि जमीनी स्तर पर आते-आते उनके आदर्श धराशायी हो जाते हैं। लेकिन नरेन्द्र मोदी एक ऐसा नाम है,जिसने जो कहा वह कर दिखाया और इसका प्रमाण स्वयं गुजरात और वहां की जनता है। उन्होंने शिक्षा से लेकर सेवा क्षेत्र,उद्योग-धंधों से लेकर खेती के विकास तक,रोजगार के नए अवसर उपलब्ध कराने से लेकर लोगों को कुशल कारीगर बनाने तक अनेकों उपलब्धि हासिल की हैं। पुस्तक में मोदी को प्रधानमंत्री बनाने की 101 वजहें व मोदी का विभिन्न विषयों पर क्या नजरिया है,उसको भी बखूबी समाहित किया है।नेहरू या इन्दिरा के बाद वे पहले ऐसे व्यक्ति होंगे,जिन्होंने लोकप्रियता के मामले में सभी रिकार्ड ध्वस्त कर ऐसा कीर्तिमान स्थापित किया है,जिसे पाने के लिए देश के नेताओं को पता नहीं कितनी ही बैसाखियों का सहारा लेना पड़ेगा। दो दशक से पत्रकारिता से जुड़े सं.अरुण आनंद अपनी पुस्तक ह्यनमो वाणीह्ण की प्रस्तावना में लिखते हैं कि मोदी में कई ऐसी विशेषताओं का मेल है,जो व्यक्तिगत तौर पर अलग-अलग नेताओं में मिलती है। लेकिन मोदी इसके अपवादस्वरूप हंै। उनके आलोचक भी इसे मानते हैं कि उनकी मजबूत इच्छाशक्ति,दूरगामी सोच और वैश्विक संदर्भों में विकास की अवधारणा ने गुजरात को देश का अग्रणी राज्य बना दिया है। पुस्तक में लेखक ने उनके व्यक्तित्व और कृतित्व साथ ही गुजरात कैसे अन्य राज्यों से हटकर है,इस विषय को भी पुस्तक में स्थान दिया है। समय-समय पर उन्होंने किस विषय पर क्या बोला है उसको भी समाहित किया गया है।मोदी पर पुस्तक लिखने वालों में जानी-मानी सामाजिक कार्यकर्ता मधु किश्वर भी हैं। अपनी पुस्तक ह्यमोदी मुस्लिम और मीडिया: वॉयसेज फ्रॅाम नरेन्द्र मोदीज गुजरातह्ण में उन्होंने मीडिया पर निशाना साधा है। उन्होंने सवाल किया कि कौन कहता है कि मोदी के राज में मुसलमान सुरक्षित नहीं हंै,मुसलमानों के साथ गलत व्यवहार हो रहा है। यह सब एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है और उनके खिलाफ एक षड्यंत्र रचा गया था। यह पुस्तक पूरी तरह से शोध पर आधारित है। इसी प्रकार एक और पुस्तक है ह्यकॉमनमैन नरेन्द्र मोदीह्ण, लेखक हैं किशोर मकवाणा। उन्होंने गुजरात में चल रही अनेक कल्याणकारी जनहित योजनाओं का उल्लेख किया है। साथ ही मोदी की जीवन यात्रा से जुड़े विभिन्न चित्रों को भी स्थान दिया है। खास बात यह है कि नरेन्द्र मोदी पर जितनी भी किताबें छपी हैं उनमें ज्यादातर पुस्तकों का प्रकाशन ह्यप्रभात प्रकाशनह्ण ने किया है। यह संस्थान साहित्य, संस्कृति, धर्म-अध्यात्म, राजनैतिक सहित सभी क्षेत्रों में प्रभावी सामग्री प्रकाशित करता रहा है। भारत रत्न पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ऐ.पी.जे. कलाम से लेकर पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी, अमर्त्य सेन, पूर्व उप-प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी समेत दर्जनों ऐसे नाम हैं, जिनकी पुस्तकों का प्रकाशन यह संस्थान कर चुका है। नि:संदेह ये सभी पुस्तकें जहां नरेन्द्र मोदी के प्रशंसकों के लिए उनको ज्यादा से ज्यादा जानने और समझने में उपयोगी सिद्ध होंगी, वहीं आलोचकों के लिए आलोचना की दृष्टि से भरपूर सामग्री उपलब्ध कराती हैं। ल्ल अश्वनी कुमार मिश्र

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